भारत में
राजनीति को वह स्थान नही मिला जो उसे मिलना चाहिए | यही कारण है कि हमारे देश में राजनीति
शुद्ध नहीं हो सकी , न शुद्ध
लोग ही राजनीति में आये जिससे इसकी सफाई हो सकती | गन्दगी में गंदे लोग ही आये और पले बढ़े
, और
उन्होंने इसे और गन्दा ही किया | कारण , कह सकते
हैं कि भारत में जनता के बीच राजनीतिक संस्कृति थी ही नहीं थी | यह काम राजा के जिम्मे था | लोकतंत्र का विकास नीचे से हुआ ही नहीं | अलबत्ता , दूसरी तरफ यहाँ धर्म को ज्यादा
मान्यता मिली | जनता उसमे
ज्यादा रची बसी थी | इसीलिये
संतों -महात्माओं को राजनेताओं की अपेक्षा अधिक महत्त्व मिला , और उन लोगों ने उससे जो राजनीतिक
काम भी कराया , उसने किया | प्रथम जन विद्रोह सेना के माध्यम
से कारतूस में पशु की चर्बी के चलते हुआ , अर्थात धार्मिक चेतना के कारण , न कि राजनीतिक चेतना वश | गौर करें तो गाँधी और गाँधी की राजनीति
उनकी संतई के प्रभाव में ग्राह्य और सफल हुई और उन्हें महात्मा कहा गया | विनोबा , जे पी भी संत या संत समान थे तभी
जन मानस में उनकी घुसपैठ संभव हुई
| आज के समय
में भी जय गुरुदेव - रामदेव ज्यादा सम्मानित हुए , और संत छवि के कारण ही अन्ना का आन्दोलन
कुछ ही सही, सफल हो रहा
है | अवश्य कुछ
खालिस राजनेता भी जनगण मन को जीत सके , सुभाष , नेहरु , पटेल , आंबेडकर आदि अपवाद हैं , पर वे सब स्वतंत्रता आन्दोलन की
उपज या देन
थे | तिस पर भी सूक्ष्म दृष्टि डालें तो उन
पर भी धर्म की एक झीनी
चादर चढ़ी है | तो फिर आज
कैसे उम्मीद करें की कोई खरा राजनेता उभरे जब यहाँ राजनीति गन्दा काम माना जाता है
, संत
महात्मा कितने भी गंदे काम करें , पूजे जाते हैं |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें