शनिवार, 19 मई 2012

भारत में राजनीति


भारत में राजनीति को वह स्थान नही मिला जो उसे मिलना चाहिए यही कारण है कि  हमारे देश में राजनीति शुद्ध नहीं हो सकी , न शुद्ध लोग ही राजनीति में आये जिससे इसकी सफाई हो सकती | गन्दगी में गंदे लोग ही आये और पले बढ़े , और उन्होंने इसे और गन्दा ही किया | कारण , कह सकते हैं कि भारत में जनता के बीच राजनीतिक संस्कृति थी ही नहीं थी | यह काम राजा के जिम्मे था | लोकतंत्र का विकास नीचे से हुआ  ही नहीं | अलबत्ता , दूसरी तरफ यहाँ धर्म को ज्यादा मान्यता मिली | जनता उसमे ज्यादा रची बसी थी | इसीलिये संतों -महात्माओं को राजनेताओं की अपेक्षा अधिक महत्त्व मिला , और उन लोगों ने उससे जो राजनीतिक काम भी कराया , उसने किया | प्रथम जन विद्रोह सेना के माध्यम से कारतूस में पशु की चर्बी के चलते हुआ , अर्थात धार्मिक चेतना के कारण , न कि राजनीतिक चेतना वश | गौर करें तो गाँधी और गाँधी की राजनीति उनकी संतई के प्रभाव में ग्राह्य और  सफल हुई और उन्हें महात्मा कहा गया | विनोबा , जे पी भी संत या संत समान थे तभी जन मानस में उनकी घुसपैठ  संभव हुई | आज के समय में भी जय गुरुदेव - रामदेव ज्यादा सम्मानित हुए , और संत छवि के कारण ही अन्ना का आन्दोलन कुछ ही सही, सफल हो रहा है | अवश्य कुछ खालिस राजनेता भी जनगण मन को जीत सके , सुभाष , नेहरु , पटेल , आंबेडकर आदि अपवाद हैं , पर वे सब स्वतंत्रता आन्दोलन की उपज या देन      
थे | तिस पर भी सूक्ष्म दृष्टि डालें तो उन पर भी धर्म की एक झीनी चादर चढ़ी है | तो फिर आज कैसे उम्मीद करें की कोई खरा राजनेता उभरे जब यहाँ राजनीति गन्दा काम माना जाता है , संत महात्मा कितने भी गंदे काम करें , पूजे जाते हैं |

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