गुरुवार, 24 मई 2012

स्लट वाक


स्लट वाक-
अप्रेल २०११ में किसी देश की  पुलिस ने लड़कियों के लिए कह दिया कि वे स्लट की तरह कपडे न  पहना करें | इस पर पूरे विश्व में हाहाकार मच गया | औरतों ने इसे अपनी आज़ादी का मुद्दा बना लिया | उनका कहना है कि वे जो चाहेंगी पहनेंगी ,स्लट की तरह कपडे पहनेंगी  कोई उनसे छेड़खानी या बलात्कार क्यों करे | अपनी इस बात को लेकर अपने आन्दोलन में वे कम से कम कपड़ों में मार्च करती हैं , जिसे स्लट वाक कहा जाता है | उनका एक तख्ती यह भी कहती है - आओ बलात्कार करो | अब पुरुष इतना कमीना तो है नहीं , कामुक पुरुष तो वैसे भी कमज़ोर होते हैं | अतः उनका आन्दोलन अख़बार की सुर्ख़ियों में सफल होता है , और लडकियाँ फिर सामान्य कपडे पहन लेती हैं | इस तरह के विरोध पर एक लोक कथा है कि एक आदमी ने ठान लिया कि उसे अपने साथी की बात नहीं माननी है | साथी ने कहा देखो नदी में न उतरना , वह नदी में घुस गया | साथी ने कहा -देखो जाओ तो जाओ ,लेकिन गले में पत्थर बाँध कर मत जाना , उसने भरसक वज़नदार पत्थर रस्सी में बाँधकर गले से लटका लिया | साथी ने कहा -अच्छा, पर गहरे पानी में न उतरना , वह गहरे , और गहरे पानी में उतरता चला गया |नतीजा हमें नहीं पता , आप शायद कुछ अनुमान कर पायें | क्या दोनों कहानियों में कुछ साम्य दिखता है ? एक पुलिस वाले की साधारण -सामान्य बात को इतने अतिशयोक्ति में ले लिया गया कि यह सोचा ही न गया कि शायद  साथी ने  कुछ थोडा सा सच न कहा हो, या तब भी इतना तो विरोध न करें , पहनें चाहे जो पहनें | वे जाने , उनका खर्च चलने वाले माँ-बाप जाने | हम कौन होते हैं बीच में बोलने वाले और वैसे भी हम औरतों के बारे में कुछ कह नहीं सकते  , उनकी आलोचना नहीं कर सकते | पुलिस ही मूर्ख थी , होती ही है |    

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