गुरुवार, 24 मई 2012

भूमि अधिग्रहण


भूमि अधिग्रहण
वह एक शेर है - मुझे मस्जिद में बैठकर शराब पीने दे , या वह जगह बता की जहाँ पर खुदा नहीं | उसी तर्ज़ पर कहा जा सकता है कि विकास के लिए मुझको ज़मीन लेने दे , या वह ज़मीं बता कि जो कीमती न हो | कहा जाता है कि उपजाऊ ज़मीं न लिया जाय | तो भला ऐसी कौन सी ज़मीन है जो उपजाऊ या किसी अन्य उत्पादक कार्य के लिए उपयुक्त न हो ? चीन ने जब भारत का भूभाग ले लिया था तो नेहरु जी ने यही तो कहा था कि छोडो , वहां कुछ नहीं उगता | अर्थात उसे चीन  ने ले लिया तो हमारा कोई नुकसान नहीं हुआ | लेकिन उनके इस वक्तव्य की तो बड़ी आलोचना हुई ! यहाँ तो ऊसर ज़मीनों को भी उपचार द्वारा उपजाऊ बनाया जा रहा है , और उसके लिए सरकारतमाम धन व्यय कर रही है |  इस प्रकार किसी भी धरती को बेकार नहीं कहा जा सकता | हर ज़मीन , धरती का हर टुकड़ा किसी न किसी प्रकार सार्थक है , तो क्या सड़कें न बनें ? दूसरी राजनीतिक माँग है कि मालिक की मर्जी के बगैर उसकी ज़मीन न ली जाय ! तो , मर्जी होने , न होने के पीछे तो कई तरह की प्रेरणाएँ होती हैं , लेकिन उस विवाद में मैं नहीं जाऊंगा | लेकिन तब स्थिति यह हो सकती है कि सड़क के रास्ते में कुछ टुकड़ों में सड़क होगी और बीच - बीच में कृषि योग्य खाली ज़मीन | तब वहां या तो कैंटीलीवर फ्लाई ओवर बने , या ऐसी गाड़ियाँ बनें जो आवश्यकतानुसार उछल - उछलकर चलें | दूसरा विकल्प मेरे विचार से ज्यादा मज़ेदार होगा | [विभास]  
(विचारहीन भारतीय समाज)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें