उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
शनिवार, 3 सितंबर 2011
कवितानुमा
*तुम्हारा ही पत्थर है
तुम्हारी ही छेनी हथौड़ी
तुम्हारी ही मूर्ति है ।
0 बड़ी मुश्किल से
भीगने का
मौका मिला था
उसने
छाता उढ़ा दिया ।
0 साँप , कोई ज़रूरी नहीं
कि काटे ,
उसके काटने का भय भी
आदमी को
मार सकता है ।
0 इसीलिए
कमाई खूब है ,
क्योंकि मँहगाई
बहुत है । (सं-पीपली लाइव)
0 भेड़ियाधसान है
सरकार बनाने के लिए
मतपत्रों का डाला जाना ,
भेड़ियाधसान ही है
सरकार के खिलाफ़
आन्दोलन किया जाना ।
0जब मैं
बाजार के लिए
निकलता हूँ
मैं ठगे जाने
लुट पिटे जाने
के लिए
तैयार रहता हूँ । 0
0 (गीतारंभ)
यह सब द्वंद्व चला करता है ।
कभी नाव गाड़ी पर होती
गाड़ी कभी नाव पर होती,
कभी पुलिस पीटती हमें तो
कभी पुलिस हमसे भी पिटती,
हनन हंत होता रहता है ।
कभी सड़क पर कोई लड़की
बलात्कृत निश्चय ही होती,
कभी छेड़खानी का वह तो
झूठे भी आरोप लगाती ,
यह स्वच्छंद हुआ करता है ।
कोई मुनि दधीच दानी तो
अपनी हड्डी तक दे देता ,
कोई भक्त जनों को छलकर
उसका तन-मन-धन ले लेता,
फिर भी संत बना करता है ।
(कृपया इसे पूरा करें)
*गलती मेरी है जो
उधार माँग लिया ,
गलती मेरी है जो
उधार का तकाज़ा कर दिया ##
* बड़े कवि बड़े कवियों को
और आगे बढ़ाते हैं
जिससे प्रशंसित कवि
प्रशंसक कवि को
और आगे बढ़ाए
ऊँचा उठाये
बड़े कवि
बड़े बनते जाते हैं
कविता क्या होती जाती होगी ? ##
* [गीत]
"अचरज बाबू" नाम तुम्हारा
होता तो अच्छा था ,
पता नहीं किसने क्यों
ईश्वर नाम दे दिया ###
* उनका हर काम
'जन' से शुरू होता है
शाम 'जन ' से सोती है
सुबह 'जन ' से होती है
वे जन के ख़ास पैरोकार हैं
बल्कि , एक मात्र
जनवाद के अलम- बरदार ##
* जवानी में
शर्म आती थी
युवा सहपाठिनियों से
बात करने मे
अब युवतियाँ मुझसे
सटकर बैठ जाती हैं
कोई संकोच नहीं
होता उन्हें मुझसे ##
रदीफ़ = पुकारा तुमने , मुझे लगा कि
जब चिड़िया डालों पर चहँकी
फूलों की सब क्यारी महकी
बर्फ चाँदनी में इठलाई
जगजीवन ने ली अँगड़ाई ,
सवाँरा तुमने , मुझे लगा कि - -
###
* एक कुएँ से , दूजे खाई
कूद रहे हम भाई - भाई ,
इनमे से हम कोई भी हों
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
###
* राजा तो बन सकते हो
बीर बहादुर बनकर
लेकिन , शोषक बनने के लिए
बुद्धि चाहिए '
तीब्र बुद्धि , दूर गामी बुद्धि
रण चातुर्य
ब्राह्मण को देखिए
दुबला - पतला , सुटकुन्नी छड़ी जैसा
दो हाँड़ का , लगता आदमी जैसा
हरा पाया कोई योद्धा उसे !
अभी तक तो नहीं
उसे कोई वाद पराजित नहीं कर सका ##
* होड़ लेने में किसी से मुझको क्या डर !
बचपना मैंने अभी छोड़ा नहीं है [शेर ] ##
* चलकर आगे तुमको नदी में फेंक देता /
/तुझको आगे चल नदी में फेंक देता /
तुझको लेकर वह नदी में कूद जाता /
रेल की पटरी पे तुमको फेंक देता [1]
अच्छा हुआ जो दिल तुम्हारा टूट गया /
अच्छा हुआ जो दिल निराश है तेरा [2]
#[ एक शेर बनाना है ] ##
* दूर न हो जाती तो यह क्या करती
रोग को मैंने तवज्जो ही नहीं दी [शेर ]
*[ग़ज़ल ]
मैं आऊँगी , तमने कहा कि
ख़ुशी से पागल ,यूँ मैं हुआ कि [शेर ]
* सारी समस्याओं की
जड़ है ब्राह्मणवाद
सारी समस्याओं का
निदान है ब्राह्मणवाद
###
* नाले साफ़ रहेंगे
तो नदी भी
साफ़ रहेगी ###
* नया संशय
उभरने तक ,
संशय विहीन
रहता हूँ मैं
###
* प्रश्न हल करना
मतलब
उत्तर मिल जाना
प्रश्न का समाप्त होना
संदेह का मिटना
###
* कहीं डाल दो ,
जो भी विचार आयें
किसी शैली - विधा में
कविता - कहानी में
यह तो हाइकु है
इसी में सही
###
* मेरा लड़का , अब तो
कुछ बच्चों का बाप ,
मुझसे बातें करता है
तो लगता है जैसे
तुतला कर बोल रहा हो
उसी तरह , जिस तरह
बरसों पहले वह ,जब
बोलना सीख रहा था
नहीं , डरता वह बिलकुल नहीं मुझसे ,
न वह मेरी हर बात मानता है
बल्कि पूरा दबंग और
आत्म निर्भर है वह
मुझे ही उसकी बात माननी पड़ती है ,
पर वह 'पापा ' के संबोधन के बाद ही
अपना आदेश देता है
और मुझे लगता है
तोतली वाणी में ही
ज़िद कर रहा है मेरा बेटा ###
* तब पेंड़ इसलिए नहीं काटे जाते थे
क्योंकि यह धर्म-विरुद्ध था
पवित्र माने जाते थे पेंड़
अब पेंड़ इसलिए नहीं काटे जायेंगे
क्योंकि यह पर्यावरण विरुद्ध है
यही अंतर है
धर्म और विज्ञानं में
ईश्वरवाद - मानववाद में
###
* बड़ा कवि नहीं बह पाया
क्योंकि मुझे
छोटी - छोटी चीज़ें भी सोचनी थीं
उनसे छूटता , तब न
कवि कहाने का जुगाड़ करता !
लेकिन कविता तो बनी , बनती गयी
जैसे की यह :
क्या कविता नहीं है ###
* भजन
प्रभू जी , दे दो एक मिसकाल
कालबैक मैं तुम्हे करूँगा ,
तुझसे जी भर बात करूँगा ;
फिर सारा आदेश तुम्हारा ,
पूर्ण करूँ तत्काल प्रभू जी - -
हाथ में पकड़े फोन मोबाइल
भिनहीं से संध्या ह्वै आइल,
कबहूँ न कबहूँ फोन प्रभू जी
करिहैं तो हर हाल प्रभू जी - - -
चार्ज बैटरी बिलकुल फुल है
बात-यंत्र यह वंडर फुल है ,
इंतज़ार करते -करते हम
अब होते बेहाल प्रभू जी - - -
###
* [ गीत ]
चिंतन करना होगा हमको , बिलकुल ठोस बिन्दुओं पर
गौर करेंगे मुस्लिम पर भी , रखकर होश हिन्दुओं पर
###
* मैं यहाँ क्या सोच कर बैठा ?
और किस से पूछ कर बैठा ?
कौन से वाहन से मैं यहाँ आया ?
क्यों इसी कुर्सी पर कूद कर बैठा ?
* पहले सशय फिर विश्वास - - - - -
###
* मौन कक्ष
चुप हो गया अब यह कमरा
बहुत बोलता था
झगड़ा करता ,
बहस , तर्क - वितर्क
करता था
चीखता - चिल्लाता था , अपने ऊपर
अपने से बातें करता था
जो किसी को पसंद नहीं आता
तो चुप हो गया
अपनी मर्ज़ी से
यह कमरा
###
* सोचते हैं लोग ,
जबकि नहीं
सोचना चाहिए था -
उसे किसने बनाया ?
इसे सोचना उसे
अपने सोचने के
दायरे से बाहर
रखना चाहिए था ##
* दर्शन हिन्दू - दर्शन मुस्लिम
उसने तो मूर्तियाँ बना दीं
हमारी , पृथ्वी की ,
चाँद -सितारों की .
अब हमसे कहता है
मूर्तियाँ मत बनाओ
हम समझ सकते हैं
उसकी मजबूरी
क्योंकि वह स्वयं
न धरती है ,न आसमान
न पहाड़ ,न नदी
न जंगल न रेगिस्तान
न हवा, न पानी
वह जो है लगभग
ना के बराबर है
बल्कि ना ही है
वह नहीं है कोई
इसे नास्तिक जानता है
लेकिन , कुछ न होना भी
होना ही है
इसलिए वह है ,
इसलिए वह नहीं भी है
इस बात पर आस्तिकों को भी
सहमत हो जाना चाहिए
अब , जो उसकी मूर्ति बनायें
तो वह मूर्ति
उसकी नहीं होगी
'ना' की होगी
और ना की , दर असल
कोई तस्वीर नहीं बन सकती ;
इसे इस्लाम न जाने कब से
जाने बैठा है
किन्तु उसे मूर्ति पूजकों की भी
मजबूरी समझनी चाहिए
और ईश्वर की भी लीला पर
ग़ौर करना चाहिए
कि जब ईश्वर ने निराकार होकर भी
आकृतियों को जन्म दिया
तो आकृतियाँ साकार होकर
निराकार को आकर
क्यों नहीं दे सकतीं ?
या ,यदि देना चाहें तो
उनकी क्या गलती ?
दोनों दर्शनों के बीच
यही समझदारी है ,
यही एकता है
कि दोनों सामान रूप से
एक दूसरे को नहीं समझते
अतः , ईश्वर के बारे में
बराबर से नासमझ हैं ##
* मूर्ति बनाने की
क्या ज़रुरत है ?
और यदि बन ही गई
तो उससे चिढ़ने की
क्या ज़रुरत है ? ##
0 कौन जानता था
उसके दाँत टूट जायँगे
गालों पर झुर्रियाँ पड़ जायँगी
वह बूढ़ी हो जाएगी । 0
*Jab tak aap
use parh nahi lenge
mere sandesh ka
prateek chinh
aap ki mobile par
chipka rahega #
*NEKI , AUR POONCHH POONCHH ?
Bina poochhe neki
Kabhi ki baat
Rahi hogi ,
Ab nahi karni
Ab to poochh karke nahi hi ,
Chirauri karne par bhi
Neki mat kijiye,
Aisa zamana hai ##
*Kavita likhte raho
Yatharth apna kaam
Karta rahega
Tum naari mukti likho
Naari bandhti , jalayi ,
Balatkrit hoti rahegi
Tum dalit mukti , maila mukti
Karte raho ,
Bahmanvad ka mail , sab par
Chadhta rahega
Tum chalte raho
Tumhare ateet ka Brahma rakkshsas
Tumhare sir par charha rahega
Kavita likhte raho ,
Kahani chalti rahegi ##
*Apni purani vivashtaon ko
Yaad karne , unka samman
Karne ke liye , kabhi – kabhi
Main vivashta ka natak
Karne lagta hun aur
Mujhe khushi hoti hai
Ki maine apne mool ko
Chhoda nahi hai ##
*Jo hame pasand hogi
Usi ko to gale lagayenge
Neeti ho ya rajneeti
Ya koi ladki ! ##
*Charo ore se hamle honge
Tab koi teer talwar
Kaam na aayega ,
Kewal ek hathiyar
Bachega tumhare paas –
Bum ka,lekin wh
Aatmghaati bhi to hoga ?
Kuchh logon ke saath
Kya tum taiyar ho marne ke liye ?
Ya fir apni zid chhod do
Vishva vijeta ban ne ki
Tumhare upar hamle
Hone hi wale hain ! ##
*Pata nahi , dost
Maine theek kiya ya galat ,
Lekin jo kiya wh
Theek hi kiya ,
Jo nahi kiya
Wh galat ths ###
*Main baten karne lagta hun
Jab mere paas
Kahne ke liye
Kuchh nahi hota ##
* अभी कुछ कहने की मेरी तो बारी ही नहीं आई ,
न जाने क्या हुआ वह बीच में उठकर चले गए ##
*Saara pyaar bikhar to gaya
Pa alag , ya alag, ra alag ! ##
* Ab sochta hun
Kitni mamuli si baat thi
Unse milna , unhe ek nazar dekhna
Aur main jeewan bhar unka ho liya ‘
Ab sochta hun
Kitni sadharan sthiti me
Ghati thi wh ghatna ya durghatna
Jo itni asadharan ho gayi
Mere jeewan ke liye !##
*jeewan uke haath me
Mrityu bhi uske haath me hai ,
Lekin iske beech me
Manushya kee zindgi
Uski shaili , uska swasthya ,
Uski shiksha , uski sanskriti ,
Uski raajya vyavastha ,
Uska parivar , uska itihaas ,
Agli peerhi ka bhavishya ,
Wh bhi poora nahi to ,
Kuchh to uske paas hai ,
Manushya ke haath me hai ##
*sher :
Achchha to hai, agarche aisa ho ,
Aadmi yeh tamam achchha ho #
*sher :
Bhool chuke hain zyadatar to ,
Yaad abhi bhi zyadatar to
*DHOOL MERE PAIR KE NEECHE ‘
KINTU ,SAR PAR DHOOL TERE PAAON KA #
*Todne chala to
Toota to kuchh nahi
Jo ban na tha wh bhi na bana ,
Banane ki thaani
To kuchh bana bhi le gaya
Aur jo kuchh rootna tha
Wh toot bhi gaya #
*Vakya sare – aam hona hai ,
Mulk ko fi gulaam hona hai #
*Kaash mujhe gaana banana aata ,
Kaash mujhe gaana gaana aata #
*Bahut dhoondha magar mujko na mila ,
Tumhe kaise mila tinke ka sambal ? #
*Mai kis se kahun
Batti bujha do
Mujhe neend aa rahi hai
Main sona chahta hun ? #
*Kar tab kha ‘
Sarkaar jab
Kar leti hai to
Mantri gan
Khayen kyon nahi
Kar ka paisa ?#
*Lantaraniyan
Ya parhayi – likhayi
Kaam na degi
Kaam dega to Aayu ka anubhav
Gyan bhandar #
*Taari hai andhkaar fir chashma laga ke kya ? [samasya poorti]
*Bahut mushkil na hoga kaam , yeh to socha tha ,
Itna aasan hoga kaam , yeh na socha tha
*Muafi mangni hai , wh to unse mang hi lunga ,
Magar pahle zara kuchh ghaltiyan sampoorn to kar loon !
###
*Ab to hame wh pata hai
Jo gautam buddh ne gyat kiya
Kabir- Mahabir, jo khojkar de gaye
Newton Einstein ne
Jin kudarti niyamo ko
Doondh kar nikala
Ab hamari samajh me nahi aata
Ki hum unke samay ke poorv ki
Agyan-avastha me kyon hain ?
Kyon nahi hum aage barhte
Wahan se ,jahan ve poorvaj-mahapurush
Hame chhor kar gaye the ?
###
* Qafiya jiska nahi mila, Radeef hi use bana liya ,
Jiska tha koi na aasra , raqeeb hi use bana liya
*Zyadah bata dete hain
Paise rikshe wale
Kya karen ,
Dena parta hai
###
*Main kitabon me
Nahi jaunga ,
Kaapiyon me
Rah jaunga
###
*Bahut likhte ho
Samaj ke liye ,
Desh ke liye ,
Vishva ke liye,
Antariksha ke liye ,
Thoda kuchh
Apne liye bhi likho
###
*Kya aaj ki kavita
Samajhne ke liye
Koi prashikshan
Lena padega
Kisi sansthaan me ?
###
*Aap ne theek se socha nahi , is mas ale par,
Isliye kuchh aayn, kabhi baayn – saayn bakte hain
[sher]
*[mazal]
Yeh likha hai , who likha hai , Log kahte hain ;
Dharm granthon me likha hai , Log kahte hain
Kya likha hai ? kya likha hai ? puhhte hain hum ,
Dekhiye yeh bhi likha hai , Log kahte hain
*Aurat purush ko
Janm deti hai ,
Purush , aurat se
Balatkar karta hai
Aurat fir , purush ko
Janm deti hai
##
* LEN – DEN
Nahi main len –den me
Poora vishvas nahi karta
Kewal dene tak
Seemit rakhta vyavhar
Ab , ydi koi lene wala hoga
Tabhi to main dene wala hunga ?
Bas usee len ko
Main deta hun sthaan
LEN - DEN mein ###
*Main tumse
kuchh mangta nahi
to main tumse chhota
kaise ho paata ?
jo main chahta hun-
tumse chhota hona
main tumse mangta hun
tumhara chhutpan
jis se tum bade bane raho
bade rah pao
###
* Mujhse
Bhool jane ko kahte ho
Aur khud
Mujhe yaad rakhte ho ! ##
* Meri pareshani
yeh hai ki tum
meri tarah kyon nahi
sochte , uthte –baithte
sote –jagte , likhte –parhte ?
tum meri baat maante kyon nahi ?
###
* Kya zaruri hai
Saath rahne ke liye
Prem karna ?
Prem karne ke liye
Saath rahna ?
###
*DUNIA ME
bahut keemti kavitaen
bade wazandaar vichar hain,
Mere Satyabhama ke paas
Bas ek Tulsi dal hai
###
*Use kya pata tha
Ki main musalman hun ?
Usne mera pair chhoo liya
Mera kya chala gaya
Wh meri duwayein le gaya
To mera kya ghat gaya ?##
*Paar utarna [utrna ] hai
Ya, paar utarna [utaarna] hai
Dono ek hain
Roman lipi hindi me #
*Sawaar hone deta hun
Apne pagalpan ko
Apne upar
Koi din , koi raat,
Is se rakshas
Paas nahi fatakte
*Pyaar aur baat hai
Saath rahna aur baat
Jinke saath hamen rahna hai
Un sabse hum pyaar to nahi kar sakte
Dunia ke har pranee , ek-ek manushya se
Par saath to rahna hai
Kyonki saath rahna hai
Bhale apni patni , maan-bahan ,beta-beti ki
Trah se poore taur par nahi
Wahi saath rahne ki kala chahiye hamein
Wahi democracy hai
Democracy kewal rajya ki neeti hai
Wh ek jeewan kavya – kala hai
Lok jeewan de deejiye
Uska sanskrutik naam
Iske aage pyaar thoda seemit
Sankuchit , vyaktigat jaisa
Lagta hai mujhe
Swaarthi aanand bhakti yatra
Par lok jeewan to
Sampoorn shrushti ka aanand hai
Chaliye , ise jiya jaaye
###
*Kaam to karenge
Chahe chori se karni pade
Chahe iimandari se karni pade
Hum kaam zaroor karenge
[ambiguous poetry]
*MAIN TO JAAGTI
WH BHI KAHAN
SOYA HUA
*Jane wh din kab aayega ,
Chakshu tera darshan paayega
* Vedmantra
kanon me padte hain
jaise
jalta huwa seesa
*Kuchh to farq hoga
Mujhme , aur
Us aadmi me
Jo main nahi hun !
*Tarakki hoti hai
Bahar ki ladki
Vyah kar ghar lane se ,
Sanskrit Pati,
Angrezi bahuriya se
*Mujhe pata hai
Too kahan chhipa hai
Lekin tujhe
Dhoondhne ka natak
To karna hi hai mujhe
Zindgi ke aais – paais khel ko
Manoranjak , ruchikar
Banane ke liye !
*Ve dono aapas me
Aise batiyate hain
Maano un dono me
Sachmuch prem ho !
*FIVE WAYS :-
1- brahman na hote
To main dalit kaise hota
Aarakshan ka paatra ?
2- BRAHMAN HAIN
Tabhi to main
Dalit hun
Aarakshan ka paatra !
3- brahman nahi hun
To main
dalit hi kyon hoonga
Aarakshan ka paatra ?
4- haaye !
Brahman na honge
To main dalit
Kaise hoonga
Aarakshan ka paatra ?
Atah,
jai hai he manu maharaj
Jug-jug jiyo
Hum mode payen
5- us janam me brahman
Is janam me dalit
Malaayi hi malaayi
*ladaayi yahan hai Ve ,
Janglon me hain
*dhoop ka hona to ek bahana hai ,
Dar asl kujhe chhat par aana hi nahi hai
*horses bench kar soye raho ,
Kalpana-lok me khoye raho
*Nirutsah mat ho magar utsah me kami rakho ,
Jo giroge to zara chot to kam aayegi
*Desh ko kuchh ho gaya to , aap zimmedar honge ;
Khoon iska jo piyenge , maut ke haqdar honge
*Prabhu ki sharan me jao
To aise jao
Kisee sampraday me na jao ##
*Bahmanvad ka dosh is desh par hai
Nazivadi visheshan se navaze loge
Bhi is desh me hain
Samantvad , nawaabiyat ka aarop
Bhi yahin ke logon par hai
Samrajya vadi hone ka khitab bhi
Is par lagne laga hai
Andhvishvasi , kayar ,kaamchor
To ye kab ke hain
Bhrasht, ghooskhor ,soodkhor
Ye hain hi
Hatyare ,daku , balatkari hona to kitna
Adalton ke nirnayon se siddh hai
Sampradayik , burzuoise bhi
Kahaane lage hain hum
Atankvadi ,aur fir naye-naye
Maovadi bhi hum shauk se hain ;
Kya to nahi hain hum ,is desh me !
Yeh desh hai ya
Koi apradhiyon ka maha – adda
Isee ko chhipane ke liye hamara naam
Vishal jantantra hai ##
*Reedh ka farz hai
Kuchh der tane rahna
Kabhi , patthar
Uthne ke liye
Jhukna ##
*Jab tak mann ho , sota rahta ,
Jab mann hota , tab jag jaata
*[misra-e ula ] – Unke theek barabar hun main , kuchh antar ke saath
*Wh to tumhe
Gulam banana chahta hai
Aur tum use
Azad karna chahte ho ! #
*Yun sare-sham tum yad aaye mujhe
Kab subah ho gayi kuchh pata hi nahi #
*Tere aane me thodi der huyi
Wh jalkar khaq ho gaya ab to #
EK KURSI BEECH ME
Wo pakke dost the jab tak nahi thi ek kursi beech me ,
Jan ke dushman bane jab aa gayi ek kursi beech me #
*Kabhi hum yun hi hye dher hain sadkon pe, nalon me,
Hamara nam bhi aa jaye sharab pine walon me #
*Kuchh mat kaho nagrik ji ,
Khush- khush kaho nagrik ji #
*Bhojya kuchh achchha nahi laga , mujhko kya hua ?
Aaj maine kuchh nahi khaya hai , mujhko kya hua ? #
*Apna-apna swarth hai , apna-apna hitt,
Chulhe me ya bhad me jaye vishwa nihitt [doha] #
*Zindgi bhar
Pyar maine kiya
Palkiwala aaya
Le gaya #
*Sabko adhikar hai
Sabki himmat hai
Prajatantra me
Khoob boliye
Aur fir
Paani pee-pee kar
Kosiye
Prajantra ko ##
*Koi ladayi
Aazadi ki ladayi nahi
Ek gulami se
Doosri gulami ##
*Ydi tum kahoge
Aur chahoge , aur karoge , ki
Dharm ka rajya ho
To Dharm ka rajya hoga
Fir yeh na kahna ki
Yeh Islam ka rajya kyon ho gaya ,
Ya isayiyon ka , ya Khalsa panth ka
Dharm to dharm
Koi tumhara hi to dharm hai nahi !
Tumne kaha to dharm ka rajya ho gaya ##
*Haan main gyani hun
Kyonki maine gyan haasil kiya hai
Mujhe gyan hai
Kyonki main gyan ko prapt karna chahta tha
Isme duraw , lukaw , chhipaw kaisa
Main jo janta hun , wh main janta hun
Bhali-bhanti janta hun
Us gyan par mujhe vishwas
Adig bharosa hai
Tabhi to bole raha hun ! ##
*Jo kah sakte the
Wh to kaha hi
Is se zyada
Aur kya kahte ! #
*Aap ko vishwas ho to ho ,
Shesh koi aas ho to ho ! [sher]
*TV par
Vigyapanon ke trik aate hain
Bachche unhe asli samajh
Apnate hain ,
Aur janein ganwate hain
Usi prakar kavi log ishwar ke wajood ka
Trik khelte hain
Moodh jan
Unhe vastavikta samajh
Bhajan pooja , pakhand
Karne lagte hain
Apni buddhi ganwate hain
*Main sekularvad
Tab tak chillata rahunaga
Jab tak hamare dharm ka
Rajya sthapit nahi ho jata
Wh aage ki baat hai
Abhi to jai secularvad
Tumhi ho hamare mayi-baap ! ##
*Isme kya ashcharya!
- - -- - - - -- -- - --- - - - -
Isme kaun si khas baat hai
Yeh to hota hi hai –maine kaha
Yaksh ne mujhse whi prashna puchhe the
Whi jinhe yaksh-prashna kaha jata hai
Isee shabd se jana pahchana jata hai
Sadiyon porv , us jigyasa-katha ko
Haan ,log marte rahte hain
Fir bhi sochte hain we amar honge
Isme kaun si khas baat hai
Yeh to hota hi hai
Wh us samay ki baat thee
Jab yeh ashcharya ki baat thee
Ab to ashcharya ka prashn yeh hai ki
Itni dawaon ke bawjood
Aadmi marte kyon hain ?
Aur yeh bhi ki ,
Izzat ke liye itne
Premiyon ki hatyaon ke bawjood
Tajmahal khada kaise hai ?
Wh kanpta , thartharata , rota-chillata
Mar kyon nahi jata ?
Haan Yaksh ! ab duniya ke GK me
Yahi gyan hai ki
Tajmahal vishwa ka
Saatwan ashcharya hai ##
*[Radeef]-wah kya! Or wah kya baat hoti ! e.g=
Zindagi itni saral hoti wah kya !
Zindagi itni saral hoti wah kya baat hoti !
*Yeh koi
Shok sabha nahi hai
Jo prastav
Nirvirodh , sarvsammat
Parit ho jaye
Yeh manav ka mann hai
Uska buddhi – vivek
Uski bhavna ka ghar hai
Isme apni baat
Darj karne ke liye
Intzar karna padega
Aur apni baaton ki
Ragad ghiss karni padegi
Resha –resha kholkar
Dikhana samjhana hoga
Janta janardan ko ##
*Maut to ek kavita hai
Zindgi kab aisi hogi ? #
*Mera prashn hai –
Ki mujhe kavita
Karni hi kyon padi ? #
*Aap sweekar na karein
Yeh to ho sakta hai
Lekin main aapko salam,
Pranam , jairam na kahun
Yeh nahi ho sakta #
*Nahin hun main
Kavi, lekhak , patrkar ,
Rajneta , main
Isee me se kuchh
Kuchh na kuchh hun #
*Hamne apni haisiyat aisi banayi hai ,
Ki apni haisiyat ki kuchh mujhe chinta nahi rahti [ sher ]
*Udhar saundarya shobhayman ,
Idhar dil hai dardayman #
*Door ki kaudiyan (You bring us pebbles)
Laate ho tum, (From far-far distances)
Ham , bachchon ki tarah ( And we are enthralled)
Praphull ho jate hain (Like children.) ***
*Bol nahi pa raha hoon
Lekin sach bol raha hoon
Ki main sach bolna chahta hoon ,
Isliye bol nahi pa raha hoon ###
*veeron ki tasviron par
Malayein pahnana aasan hai
Bahadur bankar banduk utha lena aasan hai ,
Sainikon ke shaurya par
Kavitayein likhna aasan hai
Padyatrayein karna , jhanda uda kar
Jan gan man ga lena saral hai
Ya gareebon ki sewa me fal vitaran karna
Unhe sari-kambal bantna
Lekin gareegon ke liye
Garibon ke hit mein
Garibon ke saman rahna
Usi tarah ka jiwan jeena
Kathin hai , isliye
Use koi nahi karta
Kewal garib hi waisa karta hai
Par who to uski majboori hai
Koi saksham- samridhh aisa karke dikhaye
To main uske samne apna sheesh jhukaun
*Mere pravachan ka awsar hi nahi aata
Jase hi main kahna chahta hoon
Ki iishwar nahi hai ,
Us par vishwas ek andhvishwas hai
Udhar beech me baithi ek mahila cheekhti hai
He bhagwan mere bachche ko bacha lo
Ek kone me khada boorha prarthana hai –
Sabko sanmati de bhagwan
Ek boorhi karahti hai –
Ya Allah , ab mujhe le chalo ---
Aur main bhashan shuroo karne se pahle
Chupchap baith jata hoon
Mere pravachan ka number hi nahi aata
*BAAL KAVITA
Vaigyanik jan ek kaam karein
We ek aisi tikiya , dawa ya capsule banayein
Ki gareebon , mazdooron aur majloomon ko
Anaaj ka bhojan – daal- chawal –roti
Khane ki zaroorat hi na pade
Jisse une bhookh na sataye
Fir bhi kaam karneki unki ichchha na jaye
Lekin ameeron ko who dawa
Bilkul fayda na kare
Unki bhookh barh jaye aur we khoob khayein
Jisse kisan anaaj paida kar use inke haath beche
Aur khoob paisa paye
Jisse who ham bachchon ko doodh-mewa khilaye
Hamare liye khilone laye
Aur khoob rangeen tasveeron wali kahani-
Kavita ki kitabein
*Jab pyas nahi thee
Tab maine pani ke liye mana kiya
Ab pyas lagi hai
To koi pani dene wala nahi #
*Itna likha tab bhee
Tamam chhoot gaya , aur
Prem ki baat to
Abhi likhee hee hahi #
***
*sab aaram se hain
kewal musalman
pareshani e hain
saari samruddhi
hindu daliton aur
savarnon ne loot lee
manav-adhikariyon se suno –
musalmanon ko kuchh nahi mila
unse sab le liya gaya
sabse alag hain musalman
na we nyay pate hain
na we aatmhatya karne pate hain
sabse bhinn , sabse dukhi
sabse taklif me hai
bharat ke musalman
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