शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

गाली हमारी भाषा नहीं

१ - [कविता ]
* मैं बहुत ही
ख़राब आदमी हूँ
मुझे स्वीकार ।
* मैं ही तो हूँ
जनता जनार्दन
मैं ही शासक ।

* अब जग का
आकर्षण समाप्त
बहुत देखा ।

* आम आदमी
चिंतन विषय न मात्र
जीवन उसका
अनुकरणीय । #

- [विचार ]
गाली हमारी भाषा नहीं है , हो ही नहीं सकती । वह भाषा की विकृति है । जिस प्रकार वह हमारे मुख से तभी निकलती / उच्चारित होती है जब हम स्वयं विकृत अवस्था में होते हैं , हम स्वाभाविक शांत नहीं होते । #
३ - पाठकों के पत्र आने लगे हैं कि भूख हड़ताल को आत्म हत्या का प्रयास [Attempt to suicide]मानकर तदनुसार कार्यवाही की जाय । देखिये शायद कुछ लोग मेरी बात तक आ ही जायं कि Right to die of Hunger strike होना चाहिए ! #
4 - अगर हिन्दुस्तान अपनी आज़ादी न संभाल पाया तो इसका दोष निश्चय ही जनता पर डालने का कुत्सित प्रयास किया जायगा , कुछ कुछ है भी इसलिए कुछ माना भी जायगा । लेकिन यह सत्य नहीं होगा । जनता से ज्यादा ज़िम्मेदारी नेताओं की है और वे ही सच्चे दोषी हैं । क्योंकि इस जन प्रतिनिधित्व प्रणाली में जनता ने नेताओं को पूरा अधिकार , सुविधा और संसाधन सौपा हुआ है । इसलिए यदि आगे कोई कोर्ट बैठे तो नेताओं को ही फाँसी के फंदे पर चढ़ाया जाए ।
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