शनिवार, 24 सितंबर 2011

दलित - कायस्थ

* बड़ी उम्मीदें हैं अभी दलितों से । या फिर कुछ कायस्थों से ,यदि जाति के सन्दर्भ में सोचें तो । दलितों से क्रांति की उम्मीद तो स्वतः स्पष्ट है । पर कायस्थों से उम्मीद इसलिए है कि वे परंपरागत रूप से शिक्षित , कथित प्रगतिशील और आधे मुसलमान कहे जाते हैं, जो उन्हें भारतीय सेकुलरवाद के अनुकूल बनाता है । लेकिन यह क्या ? ये तो आजकल ब्राह्मणों का भी कान काटने में जुटे हैं । जितना पूजा -पाठ , तीर्थ यात्रायें , धार्मिक कर्म कांड , ढकोसलों का पालन , गुरुओं की चेलाही , चन्दन टीका की पाबंदी , और तमाम हिन्दू दकियानूसी और पोंगा पंथी को वे ढो रहे हैं , क्या कोई ब्राह्मण उतना करता होगा । तिस पर उन्हें अपने कायस्थ होने पर झूठा गर्व भी है । कायस्थ बने रहने के लिए उन्हें वैज्ञानिक मिजाजी होना , और जड़ता , पाखण्ड , अंधविश्वास , जादू टोना , भूत प्रेत , गृह नक्षत्र ,हस्तरेखा , भविष्य वाणी , पूजा -पाठ के दिखावे से दूर रहना होगा । सारांशतः उन्हें थोड़ा अँगरेज़ , थोड़ा मुसलमान बनना होगा , जिस गुण के बल पर इन्होने दोनों के शासन कालों में खूब तरक्की की , और समाज - राज्य के शीर्ष पर रहे । इसके साथ उन्हें एक बात और माननी पड़ेगी कि वे दलित श्रेणी से ही सम्बंधित हैं , भले उनका दावा न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया । अतः उन्हें दलितों के साथ पूर्ण साथ और सामंजस्य बनाकर रहना होगा । #

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