मंगलवार, 20 सितंबर 2011

कविताएँ

* - मैं काले अक्षर लिखता हूँ
जाने कैसे वे
काले बैक ग्राउंड से घिर कर
सफ़ेद हो जाते हैं
किसका दर इनका चेहरा
फक हो जाता है ?
अब याद आते हैं श्यामपट
जो काले होते ही थे
कालिख से पुते
उन पर सफ़ेद खड़िया मिट्टी से
कैसा तो लिखा करते थे हम !
लिखना सीख गए तो
अब काली कलम से
सफ़ेद कागज़
सियाह करते है । #


* - प्रेम क ज़िम्मा क्या
सारा मेरे ही ऊपर है ?
यदि मैं हिन्दू हूँ
तो हिन्दू के ऊपर , या
यदि मुस्लिम -ईसाई हूँ
तो भी मेरे ही ऊपर ?
फिर घृणा कौन करेगा ?
तब क्या , घृणा के बगैर
मै मनुष्य कायम रहूँगा ? ##

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