* [कवितायेँ ]
१ - रस्सी में गाँठ कैसे लगती है ?
उसका एक सिरा अपने को ही लपेट कर
एक लूप बनाकर , उसमे घुसकर तन जाता है ,
और रस्सी में गाँठ लग जाती है ।
ऐसे ही जैसे ही , जितना ही ,
अपने आप में , अपने आप से एंठोगे ,
उतना ही तुम अपने को रस्सियों में बंधोगे
मन में गांठें लगाओगे ।
सरल रहो , सीधे रहो तो
कहाँ बंधन , कैसी गांठें ?
खुला , मुक्त रहो । #
२ - जैसे जैसे लोग
मेरी राह में
काँटा बोते जाते हैं
वैसे वैसे मैं
उन्हें राह से हटाने का
प्रयास करता जाता हूँ । #
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