शनिवार, 3 सितंबर 2011

बच्चे नक़ल करते हैं 28

बच्चे नक़ल करते हैं
बच्चे नक़ल करके
सीखते , बड़े होते हैं
अब ऐसी स्थिति में ,
ऐसे समय में ,
उनके पास सीखने ,
पढ़ने , बड़े होने के
कौन से साधन
उपलब्ध हैं भला !
किसकी तो नक़ल करें वे ?
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कमाता कोई नही है
मेहनत की कमाई में
भला क्या बरक्कत !
ईमानदारी से कोई
लखपति - करोड़पति
नहीं बनता
सब लूटते हैं , चोरी करते ,
डाका डालते हैं ;
घूस लेते , भ्रष्टाचार -
स्कैम करते
अपने ही तरीके से
छद्म या प्रकट
सूक्ष्म या स्थूल
हर कोई , छोटा बड़ा
कर्मचारी - व्यापारी - अधिकारी
तभी वह धनाढ्य बनता
हराम की कमाई तो बस
दो जून नमक - रोटी ही दे सकती है
किसे संतोष इतने पर !
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रास्ता है
सहारा भी है
बस ,
मेरे चलने की देर है
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यदि कोई सुने ही नहीं
कोई सुनने वाला ही न हो
तो चिल्लाने से कोई
फायदा नहीं होता
बिस्तर बिछाता हूँ
इंतजार कर
थक हार कर , फिर
समेट ले जाता हूँ
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ईश्वर की बातें
इसलिए सच हैं , क्योंकि
वह स्वयं झूठ है
और कुछ नहीं
कुछ नहीं की ,
कुछ नहीं होने की ,
शून्यता की स्थिति में
कोई भी आएगा
वह सच ही कहेगा
तुम भी , मैं भी , वह भी
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मैं कह नहीं रहा हूँ
इसका मतलब यह नहीं है
कि मुझे कुछ
कहना नहीं है
कहना तो है
पर कह नहीं रहा हूँ
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दरअसल होता यह है
की हम या तो
किसी के होते हैं ,
या फिर , उसके नहीं होते
मीन - मेख निकलना
संभव नहीं होता , उसमें
जिसके हम होते हैं ,
और सहमति होते हुए भी
मुश्किल होता है खड़ा होना
साथ उसके
जिसके हम नहीं होते
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१ - करेला , और नीम चढ़ा
उसमे भी कीड़ा पड़ा
२ - दुनिया न होती तो क्या होता
न वह होती , न वह होता

३ - सूरज डूब गया , ठंडक बढ़ि आई
मनई के देहिन पर कप्दन चढ़ि - चढ़ि आई

४ - आज भी भोजन क्षुधा को मिल गया ,
या खुदाया फिर तुम्हारा शुक्रिया

५ - थोड़ा दोष मुझे भी देना दुनिया नर्क बनाने का
थोड़ा श्रेय मुझे फिर देना दुनिया में सुख लाने का

६ - यदि आप किन्ही रोज़ नाशिस्तों में जायंगे
तो आप नाशिस्तों में बुलाये भी जायंगे
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जैसे -जैसे हो रही दुनिया हमसे दूर
कहें नागरिक हम हुए चिंतन को मजबूर
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सोच रहा है वह दुनिया के बारे में ,
दुनिया है उसके बारे में सोच रही
क्या होगा अब उसके पुत्र -पुत्रियों का ,
उसकी पत्नी निज नसीब पर झींक रही

१ - ईश्वर के होने
और ईश्वर के
न होने के बीच भी
आदमी को तो
होना ही चाहिए
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२ - शम्बूक ही नहीं
हर कोई मारा जायेगा
जो ब्राह्मण का काम करेगा
पाँच हजार साल पहले या
दो हजार पचास में

एकलव्य भी
ब्राह्मणवाद से ग्रस्त था
जब गुरुदक्षिणा
देने को आतुर था
तो अंगूठा दे दिया
स्वयं काट कर
गुरु ने उसका अंगूठा
नहीं काटा था
उन्होंने माँगा भर था ,
पर मांगना तो
उनका काम ही था
ब्राह्मण को धन
केवल भिक्षा
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बहाने से प्यार

मैं जानती हूँ
तुम बहाने बना रहे हो
मुझे छूने का -
"यह तुम्हारे हाथ पर
कालिख कैसी लगी है?"
"पांवों में बिवाईयां
ज्यादा फट गयीं हैं,"
"बाल,देखो , कैसी तो
लटियाई हैं,"
"गालों पर झाँयीं
विटामिन की कमी है - --"
----और तुम छूते हो
मुझे जगह जगह
अच्छा लगता है

मैं चाहती हूँ कि
तुम मुझे छुओं
सचमुच , लेकिन
बहाने से छुओं

मैं बिल्कुल चाहती हूँ
तुम मुझे प्यार करो
लेकिन इज्ज़त के साथ
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किसलिए खड़े
ठेले वाले घूम रहे हैं
कोई खरीदार मिल जाए
रिक्शा वाले चक्कर लगा रहे हैं
थ्री व्हीलर दौड़ रहे हैं
कोई सवारी मिल जाय
लेखक कवि परेशान हैं
कोई श्रोता ,
कोई पाठक मिल जाय
टी वी , अख़बार वाले ---
--समाचार मिल जाय ,
दिहाड़ी मजदूर
चौराहों पर खड़े --
कोई काम मिल जाय
भला हम --
किसलिए खड़े हैं ?
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मैं हारना चाहता

नहीं ,
मैं जीतना नहीं चाहता
मैं हारना चाहता हूँ
कोई मुझे जीत तो ले !

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प्रेम ही नहीं
मुझसे घृणा भी
सुबूत है कि
आप मेरे हैं
====
हम बहस में
नहीं पड़ते
हम निर्णय करते हैं
और चल देते हैं
===
२ - चुटकी बजाते ही
हम कुछ कर लेते ,
चलो चुटकियाँ बजाएं
===
३ - अपनी सीमा समझ
मेरे पास आ
मेरे घेरे में
"आ ' जद ' में आ "
आज़ादी कहती
===
४ - कोई ऐसा विषय बताओ
जिस पर मैंने
कविता न की हो ,
तो उसकी
समस्या पूर्ति करूँ
===
५ - मैं कोई पदचिन्ह नहीं छोड़ता
छोडूंगा तो तुम
उस पर चलने लगोगे ,
अपने पैरों पर चलो
===
६ -कहने से
पूरी नहीं होती
हर बात
चुप होना पड़ता है
====
७ - अभी बहुत अच्छा है
बहुत हल्का हूँ मैं
मेरे शव को
मेरा एक पुत्र एक पुत्री मिलकर कब्र
में डाल सकते हैं
लेकिन यदि ज्यादा मान -सम्मान ,
प्रतिष्ठा -पुरस्कार का भार
तमगों का बोझ
अपनी देह पर लादूंगा
तो मेरे परिजनों को
अतिरिक्त मजदूर लगाने पड़ेंगें मेरी
लाश को कब्र में आहिस्ता
उतारने के लिए, और
मौके से कहीं मजदूर न मिले
तो कब्र में मजबूरन
मुझेधक्का देकर डालेंगें
और मेरे शरीर को कष्ट होगा >
=======
८ - बहुत अच्छा , आप
खूब सुंदर तो लिख लेते हैं ,
मेरे जैसा टेढ़ा - मेढ़ा
लिखिए तो जानूं !
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९ - हम अजब संकट में हैं
हम जिसको प्यार करते हैं
वह अपने कुत्ते को
प्यार करती है /
=====
१० - राजा से पूछो
वह टोपियाँ सिलना
जानता है या नहीं !
[or औरंगजेब को याद करो ,
और फिर अपने मंत्री ,
मुख्य मंत्री - प्रधान मंत्री से पूछो -
उसे टोपियाँ सिलनी
आती हैं या नहीं ? ]
=======
११ - हम उस दौड़ में नहीं हैं
जिसमे तुम हमें
असफल समझते हो /
======
१२ - सोच रहा हूँ अभी
लिखने के बारे में
सीख रहा हूँ अभी लिखना
मेरे लेखक बनने की
संभावना नहीं है /
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१३ - १५ -अगस्त
सोच रहा हूँ मुझे
कैसे मनाना चाहिए १५ अगस्त
आम आदमी की तरह
यह दिन भी " आया -गया हो गया " जैसा ,
या विशिष्ट बुद्धिजीवी की तरह -
"हाय -हाय क्या हो गया है लोकतंत्र को
इतनी समस्याएं आ गयी हैं
आज़ादी के बाद
कि कलम सूख गयी लिखते -लिखते
गला बैठ गया चिल्लाते - चिल्लाते
आँखें धंस गयीं मोटी -मोटी
किताबें पढ़कर "
मैं विधान सभा की झांकी
देखने निकल पड़ा , और
रात भर रिक्शे वालों , मजदूरों '
के साथ वहीँ जी पी ओं
पार्क में पड़ा रहा
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१४ -जंगल का मज़ा
इसी में है कि
शेर , शेर रहे
बकरी , बकरी रहे
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१५ - क्या करें
उसे न आने दें
जो पैदा होना चाहता ?
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१६ - सोचता हूँ कहीं
भ्रूण हत्या न हो जाये
ईश्वर की
जो पैदा होना चाहता है !
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१७ - खुद थूको चाँद पर
और जब थूक
तुम्हारे ऊपर गिरे
तो तुम कह सकते हो
देखो मैं कितना बड़ा आदमी हूँ
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१८ - कोई सफ़र
होता नहीं
कुछ पैदल
चले बिना
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१९ - इजाज़त किसी को
नहीं है , लेकिन
इजाज़त मांगता
कौन है ! [ambiguous ]
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२० - आकर्षक पहाड़
आकर्षक
उन्नत उरोज
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२१ - वह करेगा
अपने मन की
करते रहो
पूजा - पाठ
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२२ - ईश्वर है तो
उसका कोई
मतलब भी
होना चाहिए
या यूँ ही
जपे जायेंगे
माला , बजाये
जायेंगे ढपली !
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२३ - चिंता छोडो
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ज्यादा चिंता न करो भाई
बस अपनी रोटी और रोज़ी
का इंतजाम करो
और शान्ति से रहो
रोटी के साथ शान्ति ही जोड़ो
रोटी के साथ कमल मत जोड़ो
यह कमल- वमल का खेल
राजा - रानियों का है
और तुम राजा - रानी नहीं हो
जो तुम्हें कमल का वास्ता देते हैं ,
समझ लो वे राजा के आदमी हैं
तुम्हे राजा की
लिप्सा में शामिल कर
वे तुम्हे मरवाना चाहते हैं
और राजा का राज्य
स्थापित करना चाहते हैं
वरना भला कमल
तुम्हारे किस काम का
शान्ति से काम लो और
रोटी का इंतजाम करो ,बस !
अपना जीवन सत्ता के खेल में मत गंवाओ
लोकतंत्र के भ्रम में मत पड़ो
यह कभी नहीं होता , कभी नहीं होगा
बहुत शौक हो तो नेताओं के
चक्कर में पड़कर देख लो
आता - डाल का भाव
मालूम पड़ जायगा
इसलिए , केवल आता डाल देखो
और कायम रखो
अपने तन मन की शान्ति
अमन और चैन
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२४ - कोई किस्सा
केवल आपका नहीं है
वह सबका है
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२५ - कुछ डाक्टरों की पर्चियां
कुछ दवाओं की रसीदें
जांच की रपटें तमाम
मिलीं उसके बैग से
उसके मर जाने के बाद
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२६ - मेरा प्रश्न है -
मुझे कविता
लिखनी ही
क्यों पड़ती है ?

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२७ - चिड़िया उड़
पखेरू
उड़ने जा रहा है
चोंच में
तुम्हारी याद का
एक दाना है

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२८ - [प्रति-यथा कविता]
मुझे कुछ नहीं कहना
यदि आप इसी तरह खुश रहना चाहते हैं
तो मुझे आप से कुछ नहीं कहना
सरकारी वेतनभोगी ही सही ,
यदि आप चौराहे पर खड़े
पुलिस सिपाही को गोली मारकर
ठहाका लगा सकते हैं
तो मुझे आप से कुछ नहीं कहना ,
यदि आप भीड़ में खड़े
कुछ जन - जंतुओं को जिंदा जलाकर
अपना झंडा ऊंचा करना चाहते हैं
तो मुझे आप से कुछ नहीं कहना
===============

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