* देखिये , सबसे बड़ी फिलासफी यह है कि कैसे अपने जीवन को स्वार्थ पूर्ण ढंग से सुविधा पूर्वक जिया जाये ? इसके आगे सारी फिलासफी फीकी है , और इसी को सब जी रहे हैं , पालन कर रहे हैं | फिर अन्य दर्शन शास्त्र की ज़रुरत क्या है , यह मेरी समझ में नहीं आता |
* मैं मूर्ख तो हूँ पक्का , इसमें कोई संदेह नहीं है | मैं ईश्वर को नहीं मानता ,जबकि देख रहा हूँ कि labia majora और labiaminora की संरचना कितने करीने से की गयीहै और इसी प्रकार आँख ,कान ,नाक दांत आदि की बनावट और उनकी आश्चर्य जनक कार्य प्रणाली |
*सबको yesman [यसमैन] चाहिए , जबकि मैं वसमैन हूँ |इसलिए मेरी किसी से नहीं पटती |
* यह तो बहुत अच्छा है |
मैंयह सोच नहीं पा रहा हूँ कि एन डी तिवारी जी के जैविक पुत्र ने , यदि वह सचमुच
मैंयह सोच नहीं पा रहा हूँ कि एन डी तिवारी जी के जैविक पुत्र ने , यदि वह सचमुच
ही हैं , ऐसा मुकदमा क्यों किया ? पर यह तो निश्चित सोच पा रहा हूँ कि यदि तिवारी की जगह कोई कबाड़ी या रिक्शा वाला होता , और वह दुहाईयाँ देकर , गिडगिडा कर कहता -हे मेरे जैविक पुत्र , मुझे आज खाने और पौवे के लिए पचास रूपये दे दे , तो वह लात मारकर उसे भगा देते |
दूसरे मैं यह सोच रहा था कि पुत्र को तो कोई हक ही नहीं है क्योंकि वह किसी साम्बंधिक घटना का चश्म दीद गवाह नहीं है | हाँ , उसकी माँ को है | इसीलिये मैं उसके पक्ष में हूँ | क्योंकि इससे स्त्री सशक्ती करण को बल मिलता है | अब कन्या के पिता और स्वयं कन्या को शादी के लिए ज्यादा खोजबीन करने कि ज़रुरत नहीं होगी कि दूल्हा कैसा है ? वह कुछ कमाता हो ,न कमाता हो , पुन्सक हो ,नपुंसक हो , कोई फर्क नहीं पड़ता | बस लड़की को थोड़ा समझदार - दुनियादार होना चाहिए | वह सब संभाल लेगी | यदि पाँच बच्चे, तीन लड़के दो लड़कियां , भी हुए तो लड़कों को तो एक नेता , एक उद्योगपति ,एक किसी माफिया का जैविक पुत्र बना देगी और लड़कियां चतुर हुयीं तो माँ का मार्ग स्वयमेव पकड़ लेंगी | कम्प्लीट चिंतामुक्ति ?
लेकिन एक बात कहना तो शेष ही रह गया | यदि सपूत जी सचमुच तिवारी जी के जैविक पुत्र हैं ,तो उन्हें अपने लक्षणों से उसे जगजाहिर करना चाहिए | अदालत को तो अन्य सबूत चाहिए | उनका फैसला जो भी हो | समाज के समक्ष उन्हें यह सिद्ध करना चाहिये कि वह तिवारी जी के इश्क मिजाज [जैसा कि उनके आरोप में गुप्त - निहित है ]गुणों से संपन्न हैं | उन्हें भी अपना कोई जैविक संतान उत्पन्न कर नजीर के रूप में पेश करना चाहिए और तब ताल ठोंक कर कहना चाहिए कि वे उनके असली वारिस हैं | जैविक पुत्र में यदि जैविक गुण होंगे तो तिवारी जी स्वीकार करें ,न करें समाज तो उन्हें स्वीकार कर ही लेगा | ###
दूसरे मैं यह सोच रहा था कि पुत्र को तो कोई हक ही नहीं है क्योंकि वह किसी साम्बंधिक घटना का चश्म दीद गवाह नहीं है | हाँ , उसकी माँ को है | इसीलिये मैं उसके पक्ष में हूँ | क्योंकि इससे स्त्री सशक्ती करण को बल मिलता है | अब कन्या के पिता और स्वयं कन्या को शादी के लिए ज्यादा खोजबीन करने कि ज़रुरत नहीं होगी कि दूल्हा कैसा है ? वह कुछ कमाता हो ,न कमाता हो , पुन्सक हो ,नपुंसक हो , कोई फर्क नहीं पड़ता | बस लड़की को थोड़ा समझदार - दुनियादार होना चाहिए | वह सब संभाल लेगी | यदि पाँच बच्चे, तीन लड़के दो लड़कियां , भी हुए तो लड़कों को तो एक नेता , एक उद्योगपति ,एक किसी माफिया का जैविक पुत्र बना देगी और लड़कियां चतुर हुयीं तो माँ का मार्ग स्वयमेव पकड़ लेंगी | कम्प्लीट चिंतामुक्ति ?
लेकिन एक बात कहना तो शेष ही रह गया | यदि सपूत जी सचमुच तिवारी जी के जैविक पुत्र हैं ,तो उन्हें अपने लक्षणों से उसे जगजाहिर करना चाहिए | अदालत को तो अन्य सबूत चाहिए | उनका फैसला जो भी हो | समाज के समक्ष उन्हें यह सिद्ध करना चाहिये कि वह तिवारी जी के इश्क मिजाज [जैसा कि उनके आरोप में गुप्त - निहित है ]गुणों से संपन्न हैं | उन्हें भी अपना कोई जैविक संतान उत्पन्न कर नजीर के रूप में पेश करना चाहिए और तब ताल ठोंक कर कहना चाहिए कि वे उनके असली वारिस हैं | जैविक पुत्र में यदि जैविक गुण होंगे तो तिवारी जी स्वीकार करें ,न करें समाज तो उन्हें स्वीकार कर ही लेगा | ###
* आपने 2G spectrum देखा है ? क्या आकार - प्रकार , रूप रंग है ? कहाँ निवास स्थान है ? पर उसके नाम पर अरबों का घोटाला हो गया और देश परेशान है |
इसी प्रकार किसी ने ईश्वर को भी नहीं देखा | उसके नाम पर भी अरबों - खरबों का खेल चल रहा है , और मानवता परेशान है | ##
इसी प्रकार किसी ने ईश्वर को भी नहीं देखा | उसके नाम पर भी अरबों - खरबों का खेल चल रहा है , और मानवता परेशान है | ##
* धर्म चिकित्सा [RELIGIOPATHY]
यह जो आप धार्मिक जनों के मध्य भजन कीर्तन , नृत्य -संगीत गायन , शिखा -टीका -जनेऊ , सवेरे स्नान -ध्यान , मंदिर -मस्जिद -हज - तीर्थयात्रा गमन, माला-मनका[तस्बीह]फेरना देख रहे है , यह उनके रोग हेतु या तो औषध है, या बीमारी से बचने के लिए कुछ पथ्य -परहेज़ | इसे मैं धर्म चिकित्सा अथवा Religiopathy का नाम देना चाहता हूँ | और आदमी के इलाज के लिए तो हमें कुछ भी स्वीकार है | ##
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आदरणीय नागरिक जी,
जवाब देंहटाएंमै आपके भगवान नहीं के विचारों से सहमत हूं.
इसमें बरा मज़ा है, जब भगवान ही नहीं तो पाप-पुण्य का झगरा नहीं. बस इतना ध्यान रखना है संसारी जीवों से पकरे न जाओ.
चोरी करो, डाका मारो, खून कर दो, घर में ही माँ बहनों से रंगरेलियाँ मनाओ. क्योंकि इसके लिए ही तो इन धर्म के ठेकेदारों ने भगवान का झूठा दर लोगों के दिमाग में डाला है.
काश सारी दुनिया इन धर्म के ठेकेदारों के चुंगल से निकल कर मौज करे . न पाप , न स्वर्ग न नरक.
आपका
अशोक गुप्ता