बुधवार, 23 मार्च 2011

हाइकु कविताएँ [ sixth] 100

१०० - महंत जी हैं
शहर में शांति भी
महा आश्चर्य !

९९ - संत - कथन
न हों यदि महंत तो
बचे शांति |

९८ - बस्ती के लंठ
अब हुए महंत 
शांति दुर्लभ |


९७  - मठ में महंत 
और शहर शांत !
कहाँ संभव ?

९६   - सुनो भदंत !
मठ- मध्य महंत
शांति का अंत |

९५ - नेता ऊपर
जनता सर्वोपरि
नीचे - ऊपर |

९४ -  अति उत्तम
प्रश्न आपका , कोई
उत्तर नहीं
प्रश्न थे प्रायोजित
उत्तर ज्ञात |

९३  - नैतिकता की
बिलार - वाणियाँ तो 
हज को चलीं |

९२  - प्रेम का रास्ता
सच और झूठ के
पार का वास्ता |

९१ - काम या  लोभ
से परे प्यार , सारी 
विपदा  हरे | 

९० - इंद्र को छोड़ा
पर इंद्र धनुष
तो देखता हूँ

८९ - मेरी नज़र 
सबकी बुद्धिमत्ता
संदेहग्रस्त   |
  
८८ - दिपदिपाएं
सूरज के साथ साथ
जुगनुएँ भी |
८७  - नहीं बनती
विवाद करने से
सार्थक बात
|
८६ -ईगो ! यू गो टु          Ego ! you go to
हेल , माई डियर               Hell, my dear !
आई हेट यू |                    I hate  you .
  
८५ - अस्वस्थता है
वही पुरानी बात
ह्रदय रोग |

८४ - हाथ लगेगी
निराशा ही निराशा
जाओ , देख लो |

८३ - कौन है भला
सत्य का पक्षधर
कोई भी नहीं |

८२ - जिंदगी दे दूँ
जिजीविषा के हाथ
फ़िज़ूल बात |

८१ - मन से स्वस्थ
तन से अवश्य हूँ
किंचित रुग्ण |

८० - नहीं लौटेगा 
वह समय पर 
याद तो करूँ !

७९ - किसके पास
समय है इतना
वक्त निकाले
बैठे अपने पास
मन की सुने |
७८ - ऊब जाऊँगा
उनके घर से भी 
जानता हूँ  | 

७७ - महत्वाकांछी
महत्त्व के काम का
नाम का नहीं |

७६ - अविश्वास  था
इतना ही ज्यादा , तो 
व्याह क्यों किया ? 
७५ - पनघट की
डगर कठिन है
कंटकाकीर्ण |
७४ - कर रहा हूँ
सफ़र की तैयारी
कब चलना ?

७३ - करो न करो
कहने में क्या जाता
-करूँगा यत्न |

७२ - होना है अभी
बुद्धि से साक्षात्कार
बहुत बाकी |


७१ - धन दौलत
संचालक शक्ति
पूरे विश्व की |
७० - समझ गया
चाहते हैं  कहना
श्रीमानजी क्या !

६९ -अन्य मनस्क ?
थोड़ा होली खेल लो
मन बहले |

६८ - कभी लगता
किसी ने पुकारा है
कोई नहीं है |

६७ - धर्म न सही
सम्प्रदाय न सही
संत -  वाणियाँ   
तो पढ़ाई जायँगी
विद्यालयों  में !

६६ - नींद आयेगी                       
नींद आ तो रही है
नींद आ गयी |

६५ - कुछ भी बनो
प्रगतिशील नहीं
प्रगति वान |

६४ - कोई नहीं है
बुराइयों से परे
कम या बेश |

६३ - बाकी  तो रखो 
 कुछ कहने को  भी
सब न लिखो |

६२ - विद्रूप चित्र 
हमने बनाये हैं 
मुखौटों पर |

६१ - मन में कोई
विचार न आने दो 
यही ध्यान है |

६०  - खाली दिमाग
सुलेमान  का घर
अमन-चैन |

५९ - स्वास्थ्य, क्या है ?
बस वही , कमजोरी
है शरीर में |

५८ - अधिकतम
लकीर के फकीर
हैं भारत में |

५७ - हुई ज़रूर
मुझसे या तुमसे
कोई ग़लती !

५६ - कर्म अलग
कविता अलग है
ऐसा क्यों भला ?

५५ - आशीर्वाद को
किसने देखा -जाना
फलित होते !
फिर भी बुजुर्गों से
हम मांगते |

५४ - बोलता तो हूँ
कितना झूठ बोलूं
आख़िरकार !
नहीं सुन पाओगे
सच बोलूं तो |

५३ - मुझे अपनी
ज्यादा फिक्र नहीं है 
उनकी ज्यादा |

५२ - कुछ न कुछ
तो विचारता ही है
हर आदमी !

५१ - लिखेंगे हम
आखिर क्या खाकर
जड़ी या बूटी ?

५० - बहुत लोग
बहुत   ज्यादा  ज्ञानी
कम, कम ही |

४९ - शासन लक्ष्य
बहुत से लोगों का
हमारा नहीं |

४८ - जीवन ही है
सोद्देश्य जीवन भी
निरुद्देश्य भी |

४७ - इस लोक को 
as it is  lo / एज   इट इज लो  
सुखी रहोगे |

४६ - ज़रूर बोलूँ 
कोई बात उठे तो
बोलूँ क्यों नहीं !

४५ - जानदार है
ओशो  जानदार है
जीवनानंद |

४४ - आभास नहीं
तुम्हारे पास क्या है
जो विशिष्ट है ?

४३ - दाँत न होते
तो खाते कैसे सब 
वेदांती -जन ?

४२ -स्वाद के लिए
साहित्य पढ़ें , लिखें
स्वास्थ्य के लिए |

४१ - न उन्हें देना
हिसाब बराबर
न मुझे लेना |

४० -सिर्फ यादें हैं / यादें भर हैं
हम लोगों के पास
और न कुछ |

३९ - विज्ञापन है-
डाला निकला और,
हो गया (बच्चे) |

३८ - नेटवर्क ही
कहाँ देख पते हैं 
 मोबाईल के ?

३७ -सब हासिल
विश्वास हासिल तो
शेष बेकार |

३६ -जिंदगी नाम
ग़लतफ़हमी का
हम जीते हैं |

३५ - कोई नहीं है
न औरत , न मर्द
सब आदमी
सभी मजबूर हैं
और जीवित |

३४ -कल ठीक थी 
तबीयत ,परसों 
की तुलना में 
आज , कल से ज्यादा 
कल बिलकुल 
उठ, बैठ जाऊंगा |

३३ -जानते सब
मानता कोई नहीं 
यह भी तो है !

३२ -बहुत लोग
बहुत बेहतर
लिख रहे हैं |

३१ -अब इसमें
चौंकने की क्या बात
ऐसा होता है |

३० - चलता हूँ मैं
जब सभी कहते
सबको जाना |

२९ - कुछ देखिये
देखते ही जाइये
आगे और है |

२८ - बच्चे पिटते 
बिगड़ती जाती हैं
दर पीढ़ियाँ |

२७ - बराबरी    के   
पूर्व  ,बराबरी की
मानसिकता
लाएगी बराबरी  
होगी   समता   | 

२६ - दो आदमी
घर चलाने में तो
लगते ही हैं !
२५ - प्यार में कोई 
किसी का नहीं होता 
सत्य सुनिए !

२४ - कुछ है और
कुछ नहीं है , मेरे ,
तुम्हारे पास |

२३ - साथ चलेगी
सभ्यता -असभ्यता
संग मनुष्य |

२२ - तुला है पैसा
हर किसी चीज़ का
सेवा , श्रम का |

२१ - पूरा मस्तिष्क
कहाँ  समझ पाया
अभी विज्ञानं !

२० - परिचय है
हमारा भी प्रेम से
करते नहीं |

१९ - अपनी मौत
सब मारे जायेंगे
सब मरेंगे |

१८ - कवि हूँ जैसे
तमाम हिन्दुस्तानी
होते हिंदी के |

१७ - धन्य मनाओ
जो तुमको देख लूं
नज़र उठा |

१६ - मन नहीं है
प्यार भी करने  का
अब किसी को |

१५ - है जी आपकी
बुद्धि की बलिहारी
और मेरी भी |

१४ - यूँ तो सबने
मुझे प्यार ही किया
जैसे भी किया |

१३ - गलतियों से
अनुभव लेता हूँ
सही कैसे हो  ?

१२ - होने को ही हैं
हिन्दू -मुसलमान
वरना नहीं |

११  - I do die                 आई  डू डाई   
they all will die               दे आल विल डाई
you will die |                   यू विल  डाई  |

१० - चलिए सही
कुछ तो खायी पटी
दोनों के बीच !

९  - चुनौतियों को
स्वीकार करते हैं 
हम लेखक |

८ - किसी पर दया 
कभी मत कीजिये 
जो भी कीजिये 

७ - मेरे ख्याल से
सबकी इज्ज़त है
होनी चाहिए |

६ - आदमी ही है
अफसर हो वह
या मातहत |

५ - गिरा था वह 
उठने के लिए 
गिरता गया |
  
४ - दस्त और है
सर -दर्द तो है ही
पेचिश और |

३ -जन्म की जाति
मिटा तो नहीं पाए
भुला तो सके |

२- राजकुमार
सपनों का ढूढोगी
छली जाओगी |

१- मन कहता -
नेता क्या होता है जी
लेकिन होते |

2 टिप्‍पणियां:

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    सौ हाइकुकारों की
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  2. 1916 - 2016
    विधा हाइकु
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