हे प्रभु ! मुझे किसी की सेवा न करनी पड़े
यह उवाच दो बातों की गठजोड़ से निकला | एक तो वाहे गुरु का आशीर्वाद - तू उजड़ जा | और दूसरे मैं कम्युनिस्टों पर अफवाहित एक आरोप पर विचार कर रहा था की उनकी सारी राजनीति गरीबों को लेकर है , इसलिए वे नहीं चाहेंगे कि गरीबी समाप्त हो | लेकिन मुझे इस बात में सच्चाई नहीं दिखी |जैसे कोई कोढ़ियों या बीमारों कि सेवा करता है तो क्या वह चाह सकता है कि रोग रहें और उसका व्यवसाय [ निःशुल्क सेवा] चले ? अतः यदि मैं चाहता हूँ कि कोई बीमार या रोग ग्रस्त न हो तो मुझे कहना चाहिए कि हे भगवान ! मुझे किसी की सेवा न करनी पड़े |
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