शुक्रवार, 25 मार्च 2011

तू उजड़ जा

        हे प्रभु ! मुझे किसी की सेवा न करनी पड़े  

     यह उवाच दो बातों  की गठजोड़ से निकला | एक तो वाहे गुरु का आशीर्वाद - तू उजड़ जा | और दूसरे मैं कम्युनिस्टों पर अफवाहित एक आरोप पर विचार कर रहा था की उनकी सारी राजनीति गरीबों को लेकर है , इसलिए वे नहीं चाहेंगे कि गरीबी समाप्त हो | लेकिन मुझे इस बात में सच्चाई नहीं दिखी |जैसे कोई कोढ़ियों या बीमारों कि सेवा करता है तो क्या वह चाह सकता है कि रोग रहें और उसका व्यवसाय [ निःशुल्क सेवा] चले ? अतः यदि मैं चाहता हूँ कि कोई बीमार या रोग ग्रस्त न हो तो मुझे कहना चाहिए कि हे भगवान ! मुझे किसी की सेवा न करनी पड़े  |  

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