रविवार, 6 मार्च 2011

Burhapa

*            बुढ़ापे को लोग बिलावजह कोसते है
दुसरे लोग ही नहीं , स्वयं बूढ़े भी अपनी वृद्धावस्था पर झींकते , कलपते , हाय-हाय करते हैं | जबकि मुझे तो यह अत्यंत सुखद , आनंद दायक लगता है | कारण यह है कि बुढ़ापा अपनी जिम्मेदारियों , आपा -धापी की  जिंदगी से मुक्त हो चुका होता है ,और बड़ी ख़ुशी की बात और क्या हो सकती है ? बूढ़े अपना दुःख स्वयं बढ़ाते हैं नई -नई , गैर ज़रूरी चिंताएं अपने सर पर ओढ़ कर | सोनू स्कूल क्यों नहीं गया , मोनू ने होमवर्क क्यों नहीं किया ,चुनिय बर्गर -पिज्जा क्यों खाती है , मुनिया उस लड़के के साथ भला कहाँ गयी होगी ? आदि -आदि | 
और बूढ़ियाँ तो और भी कमाल करती हैं | बहू चप्पल पहनकर रसोई में क्यों गयी | बेटे के दोस्तों से हंसकर क्यों बतियाती है ? लड़का हमें तीरथ क्यों नहीं कराता ? पोती इतनी बड़ी हो गयी तब भी चड्ढी -स्कर्ट में घूमती है | पोते का बहू देख लूं ,तब न मरूं ! यह गैया भी तो जल्दी ब्याती नहीं , क्या करूं ? ##  

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