शुक्रवार, 25 मार्च 2011

मेरा ख़याल है कि--

                                              भूमिका

         दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है " | यह पूरी ग़ज़ल किसे याद है | या इसका पहला मिसरा ही कितनों को पता है ? लेकिन यह पंक्ति अमर है , और मेरे ख्याल से समूचा | या -" आख़िरी वक्त में क्या खाक  मुसलमा  होंगे ?" लोगों की जुबान पर है | इससे ज्यादा की उन्हें ज़रूरत नहीं पड़ती | या इतने से उनका काम चल जाता है |
        यही सोच कर मैंने अपनी संवेदना के टुकड़ों को ऐसे ही रख दिया है | कोई सुधी पाठक या गीत - ग़ज़ल शिल्पी इन्हें सुधर कर या पूरा करके पढ़ लेगा | 
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 १ -           ग़ज़ल -         मेरा ख़याल [यह] है कि

     कोई प्रलय न आएगा ,  मेरा ख़याल [यह] है कि,
     सब उसमे विलय होगा , मेरा ख़याल यह है कि |

                             मन [ने कहा ]कहता है कि उनके , बिलकुल करीब जाओ ,
                              कुछ [दूरियां बेहतर हैं ]दूर ही बेहतर है ,मेरा ख़याल है कि |

२ - लल्लो- चप्पो कुछ नहीं , अपने हों या ग़ैर,
       सच जो कहना चाहते , रखते सबसे बैर |

         [सच कहना जो चाहना , रखना सबसे बैर ]
          सच कहने के वास्ते रखिये [रखता] सबसे बैर|       

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