भूमिका
दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है " | यह पूरी ग़ज़ल किसे याद है | या इसका पहला मिसरा ही कितनों को पता है ? लेकिन यह पंक्ति अमर है , और मेरे ख्याल से समूचा | या -" आख़िरी वक्त में क्या खाक मुसलमा होंगे ?" लोगों की जुबान पर है | इससे ज्यादा की उन्हें ज़रूरत नहीं पड़ती | या इतने से उनका काम चल जाता है |
यही सोच कर मैंने अपनी संवेदना के टुकड़ों को ऐसे ही रख दिया है | कोई सुधी पाठक या गीत - ग़ज़ल शिल्पी इन्हें सुधर कर या पूरा करके पढ़ लेगा |
======================================
कोई प्रलय न आएगा , मेरा ख़याल [यह] है कि,
सब उसमे विलय होगा , मेरा ख़याल यह है कि |
मन [ने कहा ]कहता है कि उनके , बिलकुल करीब जाओ ,
कुछ [दूरियां बेहतर हैं ]दूर ही बेहतर है ,मेरा ख़याल है कि |
२ - लल्लो- चप्पो कुछ नहीं , अपने हों या ग़ैर,
सच जो कहना चाहते , रखते सबसे बैर |
[सच कहना जो चाहना , रखना सबसे बैर ]
सच कहने के वास्ते रखिये [रखता] सबसे बैर|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें