सोमवार, 14 मार्च 2011

अपने काम पर विशेषाधिकार

* अपना -अपना काम

वैज्ञानिक , जागरूक ,सचेत ब्राह्मण भी कभी यह शिकायत समाज से कर सकता है की उससे वह काम कराया गया जो निकृष्ट था | जैसा आज ब्राह्मण कार्य -पुरोहिती  मृतक भोज आदि | अज हर ब्राह्मण को सभ्य - प्रगतिशील तबका हेय,नीच और निरादर की दृष्टि से देखा जाता है | जब कि वह भी समाज की एक महती आवश्यकता की पूर्ति करता ही है | और उसे दिखने भर को भले थोड़ी देर के लिए आदर मिलता हो  अपना काम निकलने के लिए , लेकिन वह घृणित ही समझा जाता है | वह उससे कौन सा अच्छा काम करता है जैसा मैला ढोने वाला करता था | वह भी मनुष्य के मन का मैला ही ढो रहा है |तब तक , जब तक मानव समाज वैज्ञानिक चेतना और जीवन -प्रथा से युक्त नहीं हो जाता | दोष हमारा है , मढ़ते हैं ब्राह्मण के ऊपर |
     वह भी अंधविश्वासों के उगालदान का ही काम करता है | अब यह बात तो है ही किजिससे उसकी आजीविका चलती है , उसे तो वह बढ़ावा देगा ही | पर पेशा तो उसका भंगी का ही है और वैसा ही इज्ज़त / बेइज्ज़त भी है | भंगी जो करता था उसे भी तो केवल भंगी ही कर सकता था /करता था ! हल चलाना जिसके जिम्मे था वही हल चलता था | दूसरा उसमे प्रवेश नहीं कर सकता था | सबके अपने - अपने कामों पर विशेषाधिकार प्राप्त था | कोई उसका क्षरण, उसमे हस्तक्षेप  नहीं करता था | इसी प्रकार सबकी रोज़ी -रोटी चलती थी ,जीवन यापन होताथा| लोहार , सोनार ,मनिहारिन ,कुम्हार ,
लोनिया आदि सबका |

       और उसी में ब्राह्मण भी शामिल था |  

##################################

    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें