गुरुवार, 24 मार्च 2011

अन्धविश्वासी

संपादक जी , हम सब साथ साथ , दिल्ली |

 भाई साहेब , मैं छपने छपाने योग्य कुछ नहीं लिख पाता |ब्लॉग पर  बस डायरी जैसा लिखता हूँ | उस विषय पर अपने किसी सहायक से nagriknavneet .blogspot पर धर्म- कर्म lebel में दिखवा लें , शायद कुछ मिल जाय | वैसे मुझे उम्मीद कम है क्योंकि मैं कहने को तो नास्तिक और रेशनलिस्ट हूँ लेकिन सच्चाई में मैं घनघोर आस्तिक और जड़ अन्धविश्वासी हूँ | अपने भी धर्म को मैं जिद के रूप में लेता हूँ | जैसे ईश्वर को नहीं मानना तो नहीं मानना | हिंसा नहीं करना , जिना [बलात्कार] नहीं करना,सूद नहीं लेना इत्यादि  | इसमें तर्क बुद्धि लगाने की क्या ज़रूरत ? ऐसे कार्य दृढ़ता से ही पूरे होते हैं , दुलमुलपन से
नहीं | ऐसे ही व्यक्तिगत निष्ठां  [पागलपन?] से समाज नैतिक बना रहता
है | सारी अनैतिकता का स्रोत अति - बुद्धिमत्ता है | अब यह बुद्धि हीनता कहाँ दिखती है कि चोरी नहीं करनी तो नहीं करनी , घूस नहीं लेना तो नहीं लेना , स्कैम नहीं करना तो नहीं करना | इसमें सोचना -विचारना कैसा ? फल चाहे जो भुगतना पड़े |
        इसी ताक़त के बल पर मैं किसी भी ढकोसले को सिरे से ही नकार देता हूँ | भविष्य फल , हस्तरेखा ,जन्म कुंडली , भूत -प्रेत , गण्डा -तावीज़ , रत्न अंगूठी ,पूजा पाठ , रोली -टीका ,दिशा विचार , टोना -टटका कुछ भी धारण नहीं करता | भले ही वे पूर्ण सत्य क्यों न हों और प्रभाव भी डालते हों | पर मैं उससे विचलित होने का ख्याल भी मन में नहीं आने देता | न कोई तर्क - वितर्क | क्योंकि अगर इनके लिए आप ने ज़रा भी किन्तु - परन्तु , कोई संशय का कोना दिमाग में छोड़ा तो ये आपके ऊपर हावी होकर ही रहेंगे |
        दाढ़ी हर दूसरे दिन बनाता हूँ | वह दिन जो भी पड़े | पहले सायकिल से चलता था तो रास्ते में जितने नींबू मिर्चे के टोटके पड़े मिलते थे सबको अदबदा कर कुचलता चलता  था | स्कूटर खरीदा तो तय करके शनीचर के दिन | ऐसा नहीं कि उससे एक्सीडेंट नहीं हुए , लेकिन यह भी कोई कैसे कह सकता है कि वे इसलिए हुए क्योंकि वह शनिवार के दिन खरीदा गया था ?
      यह सब अभी उम्र की पैन्सठ्वें साल (तक)  में तो निभ ही रहा है | और आगे न निभने की कोई सम्भावना तो नहीं दिखती |

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