मंगलवार, 1 मार्च 2011

अभिजात्य इस्लाम

                                                         आरक्षण  से  क्षमा 
     *        भारत से पाकिस्तान  के बंटवारे पर जब भी सभा सेमिनारों में चर्चा चली है , उस पर पानी फेरने के लिए मुस्लिम वक्ताओं की जुबानी  बार- बार यह सुना गया है कि वह सब कुछ अभिजात्य मुसलमानों की कारस्तानी थी और साधारण मुस्लिम जनता की कोई चाह न थी | इसे मानना पड़ता है और हम मान भी लेते हैं | चलिए  उसे भूल जाते हैं | लेकिन अब देखते हैं सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट को लागू करने मांग करने वालों की हैसियत को , तो फिर वही मंज़र याद आता है | ये सब के सब इलीट या अभिजात्य वर्ग के लोग हैं | कम से कम  ये वे लोग तो नहीं हैं जिन्हें लाभ मिलने वाला है | ऐसी दशा में फिर कोई गलती दुहरायी क्यों जाये और इनकी रपटों को लागू करके एक और बंटवारे का मार्ग क्यों प्रशस्त किया जाय ? देश हित में , राष्ट्रीय एकता को अक्षुण   रखने की गरज से उन्हें कूड़ेदान में क्यों न फेंक दिया जाय | ध्यान देने की बात है कि इससे केवल  अभिजात्य मुसलमानों की राजनीतिक कुचेष्टाओं को ही क्षति पंहुचेगा और कथित लाभार्थी साधारण मुस्लिम जनता का कोई नुकसान नहीं होगा |
                  कारण , प्रथम तो यह कि उनके  अभिजात्य उन लाभों को उन तक पहुँचने ही न देंगे , जैसा कि हिन्दू दलितों के आरक्षण के साथ हुआ , दूसरे इसलिए कि आरक्षण की मांग उनकी है ही नहीं | वह उसी प्रकार की  कटेगरी के अभिजात्य मानवाधिकार प्रेमी हिन्दुओं  की ऋषि दधीचवादी दान या वरदान ज्यादा और दलित मुस्लिम - ईसाईयों की आवश्यकता कम है |
       इन निष्कर्षों में कोई अतिशयोक्ति नहीं है | स्पष्ट देखा जा सकता  है कि उन्होंने इसके लिए कोई संघर्ष नहीं
किया | करने की ज़रुरत भी नहीं  थी क्योंकि वे गरीब भले रहे हों पर दमन के शिकार नहीं थे | उन्हें अपनी धार्मिक व्यवस्था से कोई शिकायत  नहीं थी न उसमे उन्हें कोई परेशानी थी | फिर वे दलित कैसे कहे जाएँ और क्यों | यहीं यह भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि हिन्दू दलितों को आरक्षण उनके आर्थिक उत्थान के लिए नहीं , बल्कि उनके सामाजिक  सम्मान के हेतु है , और दरअसल इसी सम्मान कि लडाई  थी ही उनकी | ऐसा वे स्वयं समझते और कहते हैं | ऐसा न होता तो आर्थिक दशा अच्छी हो जाने के बाद भी बड़े बड़े दलित अधिकारी आरक्षण छोड़ चुके होते |
     अब देखना है कि इस  सामाजिक प्रतिष्टा  को हासिल करने   के लिए उन्हें क्या क्या  करना  पड़ा | कहाँ  से शुरू कीजियेगा  ? आंबेडकर  युग  से ही ले  लीजिये  | क्या  क्या  पापड़ नहीं  बेले  और क्या  क्या  नहीं किया | हिन्दू धर्म  की  व्याख्या  में उसकी  बखिया  उधेड़  डाली  , तार तार ,रेशा रेशा छिन्न भिन्न करके तहस -नहस किया |  कथित पवित्र  किताबों    वेद  - पुराणों  की अवमानना  की , मनुस्मृति   जलाई  , देवी  देवताओं  को गालियाँ  दीं  , संतों  - महात्माओं  पर कीचड़  उछाले , ब्राह्मणवाद की ऐसी - तैसी की, गाँधी से पंगा लिया , वाइसराय से जिद किया , और कुछ भी तो करना बाक़ी नहीं  रखा ,यहाँ तक कि धर्म परिवर्तन करके बौद्ध भी बने  | तब  जाकर  अभी  थोड़ा  सा  पा  सके  हैं | अब भी उन पर उत्पीड़न  जारी  है और उनका  संघर्ष भी |
      इसके बरक्स    मुसलमान  भाइयों ने क्या किया ! वे  इस्लाम  से चिपके रहे ,उसके वफादार बने रहे , उसका गुणगान करते रहे , रोजे नमाज़ के पाबंद रहे ,मजारों पर चादरें चढाते रहे | फिर क्या परेशानी है ? इस्लाम  तो पूरी सामाजिक व्यवस्था है, उसमे गरीबी का भी उपचार और इंतजाम है | दान , ज़कात की व्यवस्था इसीलिये की गयी है जिससे गरीबों , मजलूमों का भरण - पोषण हो और वे धर्म के अंतर्गत और अधीन बने रहें | इस कथन में भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है , क्योंकि इनकी इन्ही व्यवस्थाओं के कारण आज तक कोई उदहारण नहीं है कि इस्लाम या ईसाई धर्म से निकलकर किसी ने कोई दूसरा धर्म अपनाया हो | यह तो महज़ एकमात्र  नालायक हिन्दू धर्म है जिसके तमाम लोग इस्लाम और ईसाई मजहबों में समता , बराबरी  ,भाईचारा , मानवाधिकार , स्त्री अधिकार और क्या -क्या के स्वर्ग का सब्जबाग देखकर इससे निकलकर इन मजहबों कि गोदें भरते रहे | ज़ाहिर है उन्हें हिन्दू धर्म में परेशानी थी | यह भी सच है कि उन मजहबों के गुण अब भी उसी प्रकार गाये जाते हैं | कही कोई क्षोभ नहीं , कोई पश्चाताप , कोई पुनरीक्षण नहीं | वे अब भी वैसे ही समतावादी , मानववादी होने के लिए ख्याति प्राप्त करने की होड़ में संलग्नरत - प्रयासरत हैं | उसे सबसे उचित और सबसे श्रेष्ठ सिद्ध करने में लादेन की अलक़ायदा से लेकर डाक्टर  जाकिर नाइक व एक छोटे से छोटे गाँव का गरीब से गरीब  मोलवी-मौलाना  तक लगा हुआ  है | उधर सुदूर जंगलों और आदिवासी क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियां भी यही काम कर रही हैं | इनकी वकालत में भारत के महान  बुद्धिजीवी भी यही कहते हैं कि आतताई हिन्दू धर्म से ये निकल न जायं तो क्या  करें ! ज़ाहिर है कि वहां निश्चय ही उनका अच्छा भविष्य  है |
               यह तथ्य इस बात से भी प्रमाणित होता है कि जहाँ तक हमारी जानकारी है , इन मजहबों के इन्ही सदगुणों के कारण किन्ही ईसाई देशों और पाकिस्तान , ईराक -ईरान , अरब मुल्कों में आरक्षण की  कोई मांग या कोई  व्यवस्था सुनाई नहीं देती  | सब उनकी सुराज के कारण है , जो हिन्दू धर्म में नहीं है  | और यह हिन्दू  धर्म केवल हिंदुस्तान में है |
                ऐसी दशा  में प्यारे गरीब ईसाई - मुस्लिम भाइयों से यह पूछना है कि वे हिन्दू धर्म की जेहालत - जलालत में क्यों लौटना चाहते हैं ? आरक्षण व्यवस्था इनके अपने दलितों के लिए की  गयी व्यवस्था है | वह भी इनकी गरीबे दूर करने के लिए नहीं , इन्हें सामाजिक सम्मान दिलाने के लिए | गरीबी के लिए तो बी  पी एल कार्ड है | यदि आप में तनिक भी ईमान है तो इनके हक में आप कृपया छीछा   न करें , छीजन न करें | यही न्याय की बात होगी , अन्यथा उनके ऊपर आप और अन्याय डाल रहे होंगे , जिससे वे पर्याप्त पहले से दबे हैं |
      निवेदन है कि इन सच्चर , रंगनाथ  मिश्र लोगों   पर न जाएँ और अपनी नैतिकता की आवाज़ सुनें  | हिन्दू धर्म की तमाम बुराईयों  में एक बुराई यह भी शामिल है कि यहाँ एक ईश्वर और उनका एक सन्देशवाहक नहीं होता | यहाँ तमाम देवता होते हैं | इसी प्रकार के देवता हैं हमारे ये सच्चर , रंगनाथ  मिश्र  लोग | महात्मा गाँधी ने तो जान ही गँवा दी पाकिस्तान को कुछ करोड़ रूपये भारत सरकार से दिलवाने के लिए | हिन्दू के दधीच तो आपके लिए अपना  अंग -अंग दान देने को तैयार हो जायेंगे | पर क्या उसे लेना  आप के लिए उचित और शोभाकर होगा ?
          इस पर गंभीरता से सोचा जाना है  कि देश  का हर आदमी देवता नहीं है , वह दुनियादार भी है  | सेकुलरिज्म या धर्म निरपेक्षता का एक अर्थ पारलौकिकता से परे इहलौकिकता भी है | अब वह अपने महात्माओं के विपरीत धर्मों की साजिशें और उनकी राजनीतिक रणनीतियां भी बखूबी
 समझता है | अब हर भारतीय को हर समय मूर्ख नहीं बनाया जा सकता | उसने देखा कि आयोग के ही एक सदस्य ने दलित अन्य धार्मिक समुदायों के लिए आरक्षण के विरुद्ध आख्या दी है और वह सर्व सम्मत नहीं है |  हिन्दू दलितों की फर्क स्थिति को वहां भी रेखांकित किया गया है | आरक्षण का समर्थक  कोई सचमुच यह बताये कि मोहम्मद साहेब के कार्टून के विरोध में जो लाखों गरीब मुसलमान लखनऊ और अन्य जगहों पर निकल आये ,क्या उतने अपनी गरीबी के विरोध में कभी उतर  सकते हैं ? इस्लाम का कोई विरोध , जिसमे उन्हें कथित दलितावस्था झेलनी पद रही है, क्या वे कुछ कर रहे हैं? तसलीमा नसरीन को वीजा मुसलमानों के भय से नहीं दिया जा रहा है , और भारत में इस्लाम की ताक़त इनके  गरीब मुसलमान ही  है, न की सारे अमीर लोग | इसीलिये , गौर से देखें , सारे अमीर इन्हे आरक्षण दिलाने के लिए ऐंडी चोटी एक कर रहे हैं |
          लेकिन बन्धु , अब यह तो नहीं चलेगा  कि जब समता का मज़ा लेना हो तो ईसाई बन जांयें , इस्लाम ग्रहण कर लें , और जब आर्थिक सुविधा लेनी हो तो जय श्री राम का नारा लगायें | हाँ , लें ही है तो हिन्दू धर्म के दोज़ख और नर्क में आइये | यहीं से गए थे तो अब क्यों पड़े हैं उस स्वर्ग और जन्नत में ! वरना तो यदि सेकुलर देश में आप तसलीमा को वीजा नहीं देने देंगे , तो हिन्दू देश आपको कोई आरक्षण देने में असमर्थ है | कृपया क्षमा करें |    
07/01/2011                                                                                      --- उग्रनाथ श्रीवास्तव  ' नागरिक '
L-5 / 185 / L , Aliganj , Lucknow. 226024
email :  priyasampadak@gmail.com               [Published , Hindi Pioneer , Lucknow , 15/1/2011]
blog :  nagriknavneet.blogspot.com
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