*पूँजीवाद का उतना विरोधी मैं अभी तक नहीं हो पाया , जितना मेरे बच्चे शुरू से रहे | उन्होंने हमेशा स्कूल से उतने ही नम्बर लिए जितने की उन्हें ज़रुरत थी |
कुछ लोगो का कथन है कि मेरा लेखन और कर्म स्वान्तःसुखाय है | मैं इसे उचित नहीं मानता | मुझे इससे कोई ख़ुशी नहीं मिलती | पर ,यह मेरा कर्तव्य है जो मैं करता हूँ | मेरी ज़िम्मेदारी है ,जिसे निभाता हूँ | इससे मुझे शारीरिक दुःख ही पहुँचता है | यह तो सच पूछें तो स्वान्तः दुखाय है | ##
* ग़ज़ल कही जाती है | कविता की जाती है | केवल कहने से काम नहीं चलता | ##
* मौलिक प्रश्न है | क्या राज्य के बग़ैर काम नहीं चल सकता ? ##
* धर्म का कोई मतलब नहीं , यदि ग़रीबी बरक़रार है | ग़रीब को आवश्यक अमीरी देना धर्म का काम है |
* आदमी , आदमी तो तब बने , जब वह आदमी का कहना माने !
* घटिया होना , और घटियापन प्रकट करना दो अलग अलग चीज़ें हैं | प्रदर्शन करते करते आदमी घटिया हो जाता है | और छिपाते छिपाते आदमी का घटियापन दूर हो सकता है |
* उतनी ही प्रशंसा सुनो , जितने के तुम हक़दार हो | शेष के लिए तो दूसरा कान है ही !
* खुशियाँ किसी के पास गिरवी नहीं हैं | दुःख ,किसी की बपौती नहीं है |
* समझाना पड़ता है
विवेकी पढ़ाई के सिद्धांतकार व्यक्ति के स्वतंत्र विकास की बात तो करते हैं , पर व्यव्हार में यह बात मेरी समझ में एक सीमा के आगे समझ में नहीं आती | मेरा अनुभव है की अगली पीढ़ी को पिछली पीढ़ी की बातें बतानी पड़ती हैं ,और बतानी चाहिए | यह उसके कर्तव्य में शामिल है | जसे यही कि बेटा / बेटी , अंकल को प्रणाम करो | वर्ना वह ऐसा क्यों करेगा / करेगी ? यहाँ ' पैर छूना ', हाथ मिलाना ' में मैं अंतर नहीं करता | वह अपनी संस्कृति के अनुसार कुछ भी हो | पर बताना , गाइड तो करना पड़ेगा | स्वतंत्र चिंतन से हमेशा जिंदगी नहीं चलती | आदमी , आमियों द्वारा कुछ समझाने से ही समझता है ,कुछ पालन करता है | भले वह उसे स्वयं भी जानता हो | अब इस पर तो शोध ही कुछ बता सकता है पर मेरे अनुमान से आदमी स्वयं भी चाहता है कि कोई उसे कुछ बतलाये |इसे समझाने के लिए मेरे पास एक उम्दा उदहारण है | परिवार में किसी की मृत्यु पर हर श्रद्धान्जक , सदस्यों को यह समझाता ही है , समझाना ही चाहिए ,और समझाने का असर , कुछ तोष -संतोष भी होता ही है कि भैया / बहन शोक न करो ,यह तो जिंदगी का नियम है , जाना सबको है | मत रोवो | वासांसि जीर्णानि इत्यादि | जब कि वही व्यक्ति उलट अवसर आने पर यही बात उसको भी समझाएगा , जिसे वह तो पहले ही उसे बता चुका है | तो यही है पारस्परिकता | इसी प्रकार जिंदगी चलती है | कोई व्यक्ति इस दुनिया में कोई टापू नहीं है |###
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