बुधवार, 9 मार्च 2011

स्वान्तःसुखाय

*पूँजीवाद का उतना विरोधी मैं अभी तक नहीं हो पाया , जितना मेरे बच्चे शुरू से रहे | उन्होंने हमेशा स्कूल से उतने ही नम्बर लिए जितने की उन्हें ज़रुरत थी |

* स्वान्तःसुखाय
कुछ लोगो का कथन है कि मेरा लेखन और कर्म स्वान्तःसुखाय है | मैं इसे उचित नहीं मानता | मुझे इससे कोई ख़ुशी नहीं मिलती | पर ,यह मेरा कर्तव्य है जो मैं करता हूँ | मेरी ज़िम्मेदारी है ,जिसे निभाता हूँ | इससे मुझे शारीरिक दुःख ही पहुँचता है | यह तो सच पूछें तो स्वान्तः दुखाय है | ##

* ग़ज़ल कही जाती है | कविता की जाती है | केवल कहने से काम नहीं चलता | ##

* मौलिक  प्रश्न है |  क्या राज्य के बग़ैर काम नहीं चल सकता ?  ##

* धर्म का कोई मतलब नहीं , यदि ग़रीबी बरक़रार है | ग़रीब को आवश्यक अमीरी देना धर्म का काम है |

* आदमी , आदमी तो तब बने , जब वह आदमी का कहना माने !

* घटिया होना , और घटियापन प्रकट करना दो अलग अलग चीज़ें हैं | प्रदर्शन करते करते आदमी घटिया हो जाता है | और छिपाते छिपाते आदमी का घटियापन दूर हो सकता है |

* उतनी ही प्रशंसा सुनो , जितने के तुम हक़दार हो | शेष के लिए तो दूसरा कान है ही !

* खुशियाँ किसी के पास गिरवी नहीं हैं | दुःख ,किसी की बपौती नहीं है |

  *        समझाना पड़ता है
विवेकी पढ़ाई के सिद्धांतकार व्यक्ति के स्वतंत्र विकास की बात तो करते हैं , पर व्यव्हार में यह बात मेरी समझ में एक सीमा के आगे समझ में नहीं आती | मेरा अनुभव है की अगली पीढ़ी को पिछली पीढ़ी की बातें बतानी पड़ती हैं ,और बतानी चाहिए | यह उसके कर्तव्य में शामिल है | जसे यही कि बेटा / बेटी , अंकल को प्रणाम करो | वर्ना वह ऐसा क्यों करेगा / करेगी ? यहाँ ' पैर छूना ', हाथ मिलाना ' में मैं अंतर नहीं करता | वह अपनी संस्कृति के अनुसार कुछ भी हो | पर बताना , गाइड तो करना पड़ेगा | स्वतंत्र चिंतन से हमेशा जिंदगी नहीं चलती | आदमी , आमियों द्वारा कुछ समझाने से ही समझता है ,कुछ पालन करता है | भले वह उसे स्वयं भी जानता हो | अब इस पर तो शोध ही कुछ बता सकता है पर मेरे अनुमान से आदमी स्वयं भी चाहता है कि कोई उसे कुछ बतलाये |इसे समझाने के लिए मेरे पास एक उम्दा उदहारण     है | परिवार   में किसी की मृत्यु    पर हर    श्रद्धान्जक  , सदस्यों   को यह समझाता   ही है , समझाना ही चाहिए   ,और समझाने का असर   , कुछ तोष   -संतोष   भी होता   ही है कि भैया   / बहन   शोक   न   करो ,यह तो जिंदगी का नियम   है , जाना  सबको  है | मत   रोवो   | वासांसि   जीर्णानि   इत्यादि   | जब कि वही   व्यक्ति उलट   अवसर   आने   पर यही बात उसको   भी समझाएगा   , जिसे   वह तो पहले   ही उसे  बता चुका  है | तो यही है पारस्परिकता   | इसी  प्रकार   जिंदगी चलती है | कोई व्यक्ति इस दुनिया   में कोई टापू   नहीं है   |###     

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