बुधवार, 16 मार्च 2011

गेरुआ वस्त्र

16/3/03
                * कितना तो श्रम , कितनी तो सेवा की ,मदर टेरेसा ने , तब जाकर बड़ी मुश्किल से उन्हें संत का पद मिल पाया | हमारे यहाँ क्या है , बस एक मित्र गेरुआ वस्त्र , और हो गए संत |
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               * कहाँ है आस्था ? अब केवल एक ही आस्था बची है | वह है -पैसा | और इसी पर मेरी कोई आस्था नहीं है | इसलिए मैं नास्तिक हूँ |

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                 * और वैसे भी अब मैं ना- ना बन गया हूँ | तो मुझे नास्तिक नागरिक बनना ही है |

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