*१ - जो हो रहा है , उसे होने दो | जो नहीं हो रहा है ,उसे होने का प्रयास करो |
*२ - क्या ऐसा नहीं हो सकता कि यदि कोई बात सत्य हो तब भी हम उसे न मानें ? या इसे इस तरह कहें कि जो बात हम न मान रहे हों वह सत्य हो ? जैसे जाति प्रथा को हम नहीं मानते , पर वह हकीक़त तो है | तो इसी प्रकार हम यह प्रश्न ईमानदारी से उठा सकते हैं कि जिस ईश्वर को हम नहीं मानते वह भी सत्य हो , क्या ऐसा नहीं हो सकता ?
तथापि इन लौकिक सच्चाईयों के बावजूद , यह तो तय है कि हम जातिप्रथा और इसी प्रकार ईश्वर को भी न स्वीकार करते हैं , न स्वीकार करेंगे | यहाँ तक कि यदि इन्हें विज्ञानं भी सत्य सिद्ध करता फिरे |
*३ - आप मेरी बात का जवाब देने लगेंगे , और मुझे चुप होना पड़ेगा | इसलिए मैं आप से कोई बात कहता ही नहीं |
*४ - जाम का वरदान
साईं बाबा एक बड़े दानी -वरदानी , फलप्रदायी संत -फकीर हैं | इसीलिये आजकल उनकी मान्यता सारे महात्माओं से ऊपर चल रही है | भक्तों की सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने लखनऊ को भी एक बड़ा वरदान दिया है | कपूरथला में उनके मंदिर के सामने भीषण - अनंत ट्राफिक जाम का | जय हो !
* ५ - कोऊ नृप होय
फिर याद आया कोऊ नृप होय वाला जीवन दृष्टि | इधर दिमागी रूप से बहुत परेशान और चिंतित रहा, राज्य प्राप्त करने के लिए चलने वाले तमाम आन्दोलनों के बारे में सोचते हुए | सुकून मिला कोऊ नृप होय से | अब राज्य चाहे नक्सलवादी ले जायं , चाहे कश्मीर को अलगाववादी | अरब देशों में चाहे प्रजातंत्र हो या इस्लामी शासन , हमसे क्या ? और हम कर ही क्या लेंगे ?
* ६ - स्वर्गीय
अंग्रेजी के late का विशेषण हिंदी में स्वर्गीय प्रयोग किया जाता है | हमारे समूह में बहुत से लोग स्वर्ग नरक परलोक आदि नहीं मानते | तो क्या इस शब्द का भी प्रयोग नहीं करेंगे ? करते तो हैं . करना ही पड़ेगा | इस तरह के हमने तमाम कुछ पौराणिक - धार्मिक शब्द चुने हैं ,जो अब भाषा के अंग बन गए हैं , उसमे समाहित हो गए हैं | उनका प्रयोग हमें करना ही पड़ेगा , चाहे हम आस्तिक हों या धुर नास्तिक |
* ७ - मेरा यह दृढ़ मत है कि भारत के लौकिक नागरिक संतों को ग़रीबी अपनानी ही चाहिए , और वे अपनाएंगे ही यदि वह संत हैं |
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