शनिवार, 5 मार्च 2011

कोलकाता से लखनऊ

* बहुत  बहादुर   बनती  हैं  औरतें ! अपना रोने का औजार कहीं भूल आयें . फिर देखें |##

* बैंकिंग में आगे की प्रगति यह होनी चाहिए कि किसी भी बैंक का चेक किसी भी बैंक में आनर हो जाय |

*Rennaissance की तर्ज़ पर क्या religionaissance भी हो सकता है ?

* कैसी आस्था ,और कितनी आस्था !तनिक यजमान को बनारस के पंडों से पाला पड़ने दीजिये | साड़ी आस्था का कचूमर निकल जाय | भूल जायं भूल से भी तीर्थ -यात्रा |

* कोलकाता में आम तौर पर औरतों को बहुत सम्मान प्राप्त है | वहाँ  का सोनागाछी  भी मशहूर   है |

*  मुझे किसी भी कोण से यह उचित नहीं लगता कि मेरे बच्चे मेरे पाँव छुएँ | यह तो औपचारिक स्पर्श है | उनके तो पूरे शरीर मुझसे छूने हैं |

*  लेखक जन बहुत अच्छा लिख पाते हैं , जनता के लिए , जनता के हित में | इसलिए हम जो लिखते हैं लेखकों के लिए लिखते हैं | उनको लिखने कि सामग्री / मसाला मुहैया करते हैं |

* मुक्ति ? मुक्ति तो मेरे ख्याल से लिखने से मिलती है |

* लेखक जगती के लिए लिखता है | मैं अपने लिए लिखता हूँ | इसलिए मैं लेखक नहीं हूँ |

* कवि नहीं था तो कैसे कह देता - कविराज हूँ मैं ?

*  आश्चर्य है कि हिंदी की इतनी वैज्ञानिकता के बावजूद , वह भाषा सफल हो रही है , जिसमे लिखते कुछ और हैं ,और बोलते कुछ और !

*  यदि स्वानुभूत साहित्य को ही विश्वसनीय और मौलिक माना जाय ,तो क्षमा करेंगे , तमाम दलित लेखकों ने भी दलित पीड़ा को भोगा नहीं है | दूर -दूर से उसकी छवि ली है और लिखने की काबिलियत के बल पर उसे कागज़ पर उतारा है  | एक तरह से वह भी सहानुभूतिक रचनाएँ ही हैं |

*  हरिजन " नाम प्रदान , संभव है सदाशयता से परिपूर्ण रहा हो | पर नाम से होता क्या है ? उनके नाम तो वैसे भी सीता राम , राजाराम राम किशुन , तुलसी राम आदि थे | उस से क्या हासिल हो गया था उन्हें ?  

*  कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी " लिखने वाले को यह सूचना देनी है कि हमारी हस्ती लगातार मिटती जा रही है | पाक के बंटवारे के बाद हर हिस्सा हिंदुस्तान से हटना चाहता है |
सुन रहे हो न , अल्लामा इकबाल !
* कोलकातासे लखनऊ तक का हमारा टिकट पक्का था | पर हमें पहुचाने आये बेटा बहू को प्लेटफार्म टिकट लेने के लिए उसी सामान्य टिकट खिड़की की लाइन में लगना पड़ा की हमारी गाडी छूटने छूटने को हो गयी | क्या प्लेटफार्म टिकट  के लिए कोई सुविधाजनक व्यवस्था नहीं हो सकती ? जैसे कि पान की दुकान के बारे में भी सोचा जा सकता है |           

*कोलकाता की दो लड़कियों को मैं आशीर्वाद प्रेषित करना चाहता हूँ | एक लडकी ने बस में मुझे खड़ा देखने पर अपनी सीट मेरे लिए छोड़ दी , जब कि उसे उतरना नहीं था | कहने लगी - यह अच्छा नहीं लगता कि आप खड़े रहें | दूसरी घटना दखिनेश्वर मंदिर की है | वह दरवाज़े से एकाएक पीछे मुडी और उसका पैर मेरे पैर पर पड़ गया | उसने अपने  माँ -पिता -भाई - बहन के समक्ष ही पूरा झुक कर मेरे मेरे दोनों पैरों के पंजे छूकर क्षमा मांगी | जुग -जुग जियें वे लड़कियां और खूब सुखी रहें | 
            ऐसे में मैं बंगलुरु के   एक नाट्य घर में मिले उस सख्स को भी नहीं भूल सकता जिससे रास्ता पूछने पर वह अगले चौराहे तक मुझे छोड़ने आया और रास्ता तथा बस नम्बर बता कर ही वापस गया | 
औरउस ट्रैफिक पुलिसके सिपाहीको जिसने सड़क पार करने में मेरी परेशानी देखकर सीटी बजाकर दोनों तरफ की ट्रैफिक रोककर मेरा हाथ पकड़ कर सड़क पार कराया |

* सरकारी मेडिकल आफिसर खुद तो मरीजों का इलाज करते नहीं , उन्हें झोला छाप [ quacks ] को लाइसेंस प्रदान करने का अधिकार और काम अवश्य मिला हुआ है |

* मै अपनी कुछ बीमारियों की परवाह नहीं करता | जैसे यही snoring [ खर्राटे] का मामला है | लोग बिलावजह परेशान रहते है और सो नहीं पाते | और इधर मैं चैन से सोता हूँ |      

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