शुक्रवार, 18 मार्च 2011

कठौती में कुकरैल

सच  कहने  के  वास्ते  , रखिये  सबसे  बैर
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सच  कहना जो चाहते  , रखते   सबसे  बैर   
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* अभी एक राजनीतिक मित्र का कथन याद आया | उनका कहना था कि पहले (लोहिया के ज़माने में) संसद कि बहसें अख़बारों के समाचार बनते थे | अब अख़बारों के समाचार संसद में बहस के विषय बनते हैं | कितना सच है ! सवाल यह है कि क्या अब पुराने समाचार , देशी-विदेशी एजेंसियों के लीक- पाद ही देशों की राजनीति चलाएंगे , और वे समय को पीछे , और पीछे ढकेलते जायेंगे ? आखिर उनका इरादा क्या है ? कहीं हम साधारण जनता  अपनी पूरी पाक-नीयतों के साथ अनजाने में उनके शिकार तो नहीं बन रहे हैं ?   


* कामतानाथ की संकलित कहानियाँ पढ़ रहा था | तमाम कहानियों पर तो मन इधर-उधर होता रहा , पर 'खलनायक ' पर जाकर चिपक गया | हालाँकि उसका शीर्षक मैं कहानी के असली नायक (नायिका) के नाम पर उसके असली नाम सुनीता के बजाय ' बिल्लो' ही बताऊंगा | खलनायक भी भला कोई शीर्ष पर रखने की चीज़  है ? मैं इस कहानी से यह एक मछली मार कर पाठकों को देना चाहता हूँ कि यदि शादी की सम्भावना या जुगत -साहस न हो तो किसी लड़की से प्रेम की अनुभूति नहीं बनानी  चाहिए , और यदि कुछ कोमल अहसास  जगें भी, तो  कन्या -विशेष को उसका आभास नहीं होने देना चाहिए |आखिर कहानियों से कुछ सबक तो लेनी चाहिए | बिल्लो का कहा एक संवाद तो शाश्वत  और avismrneey   है की - 'पाँच दिन में तो दुनिया idhar  se  udhar  ho  sakti  थी '  


* उसने कहा - तुम राज ले लो   ,   ले लिया ;
   उसने कहा फिर - पाट  ले लो ,  ले लिया |
   उम्र के  दालान में इस छोर पर  ,
   उसने कहा - अब खाट ले लो , ले लिया || 
                   ##    [ लल्लू बस्तवी द्वारा प्रेषित ]


* जाट आन्दोलनकारी रेल की पटरियों  पर लेटे हैं | इसमें कोई ज्यादा खतरा नहीं है
 वे लेटे रहें तो भी रेल उनके ऊपर से सुरक्षित गुज़र जाएगी | लेकिन एक समस्या है कि यदि कहीं उन्हें जम्हाई आ गयी , और कोई रेल यात्री उसी समय टॉयलेट  में हुआ तो स्थिति बिगड़ सकती है  |
मनोरंजन वार्ता,(दिमाग से)

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