गुरुवार, 24 मार्च 2011

राक्षस - जमात / यह तो अच्छा है

*पौष्टिक से पौष्टिक आहार हो , कौन उसे अपनी आँतों में सुरक्षित रखता है ? उसी प्रकार विचारों को भी कजो , पियो , पचाओ  और फेंक दो |

* हर व्यक्ति में ईश्वर नज़र आया या नहीं , लेकिन हर व्यक्ति में ब्राह्मण ज़रूर  नज़र आया  |

* अपनी बात कहेंगे | अपनी राह गहेंगे | अपना काम करेंगे  |

*अपनी नेता सुषमा स्वराज की देखा-देखी भाजपा के युवा पुरुष नेता भी अपने मस्तकों पर सिन्दूर लगाये रहते हैं | बीजेपी के पोस्टरों पर तो मैंने ऐसा ही देखा |###

* मैं वोट नहीं दूंगा |  मैं एक बात अभी से स्पष्ट और साफ़ बता देना चाहता हूँ , जन- प्रतिनिधित्व के दावेदारों से , चाहे वे स्थानीय निकाय से हों ,चाहे संसद, विधान सभा के उम्मीदवार हों , की जब तक लखनऊ के टेम्पो में ४+४+३ के स्थान पर निर्धारित  ३+३+२ सवारियाँ बैठने का प्रबंध नहीं होता ,मैं किसी को भी वोट नहीं दूँगा | वैसे मैं उनकी राहत के लिए एक तथ्य अपने खिलाफ उन्हें बता दूँ कि मैं मेरा मतदाता पहचान पत्र लखनऊ का नहीं ,मेरे धुर देहात -गाँव का है | इसलिए वे बिना मेरा  वोट प्राप्त किये भी जीत या हार सकते हैं | तिस पर भी मेरे मुद्दे की अहमियत में कोई कमी नहीं आती क्योंकि मैं इस शहर का भी वैध निवासी , वरिष्ठ नागरिक हूँ | ###
*साम्प्रदायिकता तो निश्चित बुरी चीज़ है | लेकिन नेताओं की राजप्रियता ? यह कैसे उचित उद्देश्य हो गया और फिर वह साम्प्रदायिकता से पृथक कैसे हो गया ? ##

*Government , राज्य को भले मजबूत न रखिये लेकिन governance[इन्तज़ामिया- प्रशासन] को मज़बूत रहने दीजिये | यही न्यायप्रिय -अनुशासन प्रिय नागरिकों के हित में होगा |###

*कुछ तो है , जो दोस्ती -दुश्मनी , पाप पुण्य ,न्याय -अत्याचार आदि से परे है | ठीक है कि कृष्ण ने अपने भाई-बंधुओं से लड़नेके लिए कहा |लेकिन उस लड़ाईके भीकुछ नियम थे ,नीतियां थीं |कुछ विचलन छोड़ दें तो सूर्य ढलने के   साथ युद्ध बंद हो जाता था , रात में दुश्मन खेमों की भी खैरियत ली जाती थी इत्यादि | इसी प्रकार आज भी टाटा -बिरला , अमरीका -इंग्लैंड से लड़ना होगा तो कुछ मूलभूत नियमों का पालन करना होगा | उनके भी कुछ लोकतान्त्रिक अधिकारों की रक्षा के साथ ही उनसे लड़ाई की जानी वाजिब होगी |###   

* क्या खाकर मुकाबला करेंगे ब्राह्मणवाद का ,जिसने अपने लिए भीख माँगकर गुज़ारा करने की नीति बना ली ? आप तो अपने लिए आर्थिक समेत समस्त प्रकार की सुविधा के शुभाकांक्षी हैं ! फिर उनसे मजबूत कैसे बनेंगे ?

* स्त्री सुरक्षा कानूनों से औरतों का चिंतित होना स्वाभाविक है | हाय ! कौन शरीफ आदमी उनके करीब आने की हिम्मत जुटाएगा ? मिलने का खतरा मोल लेगा ?

* यह तो अच्छा है , कि पहले स्वयं भ्रष्टाचार के साधन उपलब्ध कराएँ , और जब भ्रष्टाचार संपन्न  हो तो जोर -जोर से चिल्लाएँ कि हाय- हाय बड़ा भ्रष्टाचार है ,और सरकार इसे मिटा नहीं पा रही है | माँगें उठीं कि विधायक - सांसद निधि दो | फिर , यह धन तो बहुत कम है , इसे बढ़ाओ ,इसमें इजाफा करो | विकास कार्य फैलाओ , भाँति -भाँति की योजनाओं के लिए अकूत धन स्थानीय निकायों को दो , फ़ौरन दो , इसमें हीला -हवाली न करो | इत्यादि-इत्यादि |
अब भला कैसे संभव है की भ्रष्टाचार न बढ़े ,जब अनियंत्रित धन भुक्खड़ों के हाथ में पड़े | जो लोग ऐसी योजनायें  माँगते हैं , उनका समर्थन करते हैं , या इसे बनाते और लागू करते हैं और फिर भ्रष्टाचार का रोना रोते हैं , वे या तो हिंदुस्तान  को नहीं जानते ,या फिर वे देश को  मूर्ख बनाते हैं | इसीलिए साधारण जनता इनके झांसे में नहीं आती , इस भ्रष्टाचार को समझती और स्वीकार करती है | 
              मुझे नहीं पता कि माननीय अन्ना हजारे हिंदुस्तान को कितना समझते हैं | भारत की जनता तो अभी कल तक उनको भी नहीं जानती थी | हमें ज्ञात नहीं कि १९९०-९२ के बाद से  ही सही , विभिन्न राष्ट्रीय ज्वलंत मुद्दों पर उनकी क्या राय थी ? तब वे कहाँ थे ,और उन्होंने क्या किया ? बयान ही सही  | बड़े लोगों  का बयान   भी एक कार्यक्रम होता है | पर अन्ना जी का तो वह भी नदारद है | निश्चय ही अयोध्या मसले पर तो  देश उनका रुख स्पष्ट  जानना चाहता है | अब भाई , इसके अभाव में कौवा कान ले गया करके तो आप एकाएक हमारे नेता बनने से रहे ! आप की नीयत पर भले ही कोई शक न हो ,पर हम इतनी जल्दी किसी पर विश्वास भी नहीं करते | पागल युवाओं की तरह दिल नहीं गवाँ बैठते | यह उचित  भी नहीं है कि जोश में होश खो दें | यूँ ,जो आप कर रहे हैं उसे करें , उसमे हमारा कोई व्यवधान नहीं है | लेकिन हमें जब कुछ संदेह है तो फिर आपका साथ बेईमानी  से क्यों  दें ? अब इतने ईमानदार तो हम हैं  ही कि ईमान की लड़ाई तो, कम से कम , ईमानदारी से लड़ें , न कि आपके  के छद्म साथियों की तरह बे -ईमानी  को मन में रखते हुए  |     
        और एक बात बताऊँ |यद्यपि  गांधीवाद पर हमारा कोई आधिकारिक हक नहीं है , और हजारे जी से ज्यादा तो कदापि नहीं | पर हमने 'गाँधी 'फिल्म में देखा कि किस प्रकार गाँधी जी ने युवाओं को नेतागिरी करने से पहले हिंदुस्तान के गावों  की खाक छानने के लिए भेज दिया था | 
        इसलिए ,सवाल अपना सिद्धांत हिंदुस्तान पर लादने का नहीं है , महत्वपूर्ण है हिंदुस्तान के सिद्धांतों को , उसके जन-जीवन को  जानना और  समझना |        ###
     

* [शेर] -           तेरी दुनिया और है ,   मेरी दुनिया और |

* हाइकु कवितायेँ  :-
                                    ऐसा क्या है जो
                                    छुई- मुई है स्त्री में ?
                                     कुछ भी नहीं |
 मेरी लड़की 
 कल्पना चावला हो 
 तो शीश उठे | 

*हर शै प्यार करने के योग्य है |##

* देवताओं से आप देवता बनकर नहीं लड़ सकते | यदि इनका विरोध करने का आपके मन में सच्चा संकल्प है , तो आपको यह नामकरण स्वीकार करना पड़ेगा , कि आप एक राक्षस - जमात हैं |  ###

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