मंगलवार, 29 मार्च 2011

यूँ जिंदगी

* किसी दोस्त ने न हरगिज़ , मुझे पत्थरों ने मारा ,

* देवताओं की सभा में हम न जायेंगे ,
कहीं मनुष्य हों,कुछ जानवर हों तब तो चलो | [शेर ? ]
* [उल्था ]
यूँ जिंदगी गुज़ार रहा हूँ तुम्हारे साथ ,
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं |

*  मोबाईल अपने नंबर का हमेशा साथ ही रखो ,
न जाने किस घड़ी यमदूत का मिसकाल आ जाये |

* [नया ] 
दिल को बहुत संभाल कर रखा था सीने में ,
कहाँ ख्याल था तुम चीर कर देखोगे इसे |

* दिखावे का रुदन है , दिखावे की हँसी है |
वह कथित लड़की किसी के प्रेम में फंसी है ||


* मैं ऐसी  राह - जानिब हूँ -
कोई मंजिल नहीं जिसकी | #

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

धर्म चिकित्सा /Religiopathy


* देखिये , सबसे बड़ी फिलासफी यह है कि कैसे अपने जीवन को स्वार्थ पूर्ण ढंग से सुविधा पूर्वक जिया जाये ? इसके आगे सारी फिलासफी फीकी है , और इसी को सब जी रहे हैं , पालन कर रहे हैं | फिर अन्य दर्शन शास्त्र की ज़रुरत क्या है , यह मेरी समझ में नहीं आता |

* मैं मूर्ख तो हूँ पक्का , इसमें कोई संदेह नहीं है | मैं  ईश्वर को नहीं मानता ,जबकि देख रहा हूँ  कि   labia majora और  labiaminora की संरचना कितने करीने से की गयीहै और इसी प्रकार आँख ,कान ,नाक दांत आदि की बनावट और उनकी आश्चर्य जनक कार्य प्रणाली | 

*सबको  yesman [यसमैन] चाहिए , जबकि मैं वसमैन हूँ |इसलिए मेरी किसी से नहीं पटती |

* यह तो बहुत  अच्छा है |
                                 मैंयह सोच नहीं पा रहा हूँ  कि एन डी तिवारी जी के जैविक पुत्र ने , यदि वह सचमुच  
ही हैं , ऐसा मुकदमा क्यों किया ? पर यह तो निश्चित सोच पा रहा हूँ कि यदि तिवारी की जगह कोई कबाड़ी या रिक्शा वाला होता , और वह दुहाईयाँ देकर , गिडगिडा कर कहता -हे मेरे जैविक पुत्र , मुझे आज खाने और पौवे के लिए पचास रूपये दे दे , तो वह लात मारकर उसे भगा देते |
             दूसरे मैं यह सोच रहा था कि पुत्र को तो कोई हक ही नहीं है क्योंकि वह किसी साम्बंधिक घटना का चश्म दीद  गवाह नहीं है | हाँ , उसकी माँ को है | इसीलिये मैं उसके पक्ष में हूँ | क्योंकि इससे स्त्री सशक्ती करण को बल मिलता है | अब कन्या के पिता और स्वयं कन्या को शादी के लिए ज्यादा खोजबीन करने कि ज़रुरत नहीं होगी कि दूल्हा कैसा है ? वह कुछ कमाता हो ,न कमाता हो , पुन्सक हो ,नपुंसक हो , कोई फर्क नहीं पड़ता | बस लड़की को थोड़ा समझदार - दुनियादार होना चाहिए | वह सब संभाल लेगी | यदि पाँच बच्चे, तीन लड़के दो लड़कियां , भी हुए तो लड़कों को तो एक नेता , एक उद्योगपति ,एक किसी माफिया का जैविक पुत्र बना देगी और लड़कियां चतुर हुयीं  तो माँ का मार्ग स्वयमेव  पकड़ लेंगी | कम्प्लीट चिंतामुक्ति ?
               
          लेकिन एक बात कहना तो शेष ही रह गया | यदि सपूत जी सचमुच तिवारी जी के जैविक पुत्र हैं ,तो उन्हें अपने लक्षणों से उसे जगजाहिर करना चाहिए | अदालत को तो अन्य सबूत चाहिए | उनका फैसला जो भी हो | समाज के समक्ष उन्हें यह सिद्ध करना चाहिये कि वह तिवारी जी के इश्क मिजाज [जैसा कि उनके आरोप में गुप्त - निहित है   ]गुणों से संपन्न हैं | उन्हें भी अपना कोई  जैविक संतान उत्पन्न कर  नजीर के रूप में पेश करना चाहिए और तब ताल ठोंक कर कहना चाहिए कि वे उनके असली वारिस  हैं | जैविक पुत्र में यदि जैविक गुण होंगे तो तिवारी जी स्वीकार करें ,न करें समाज तो उन्हें स्वीकार कर ही लेगा |  ###  
* आपने 2G spectrum देखा है ? क्या आकार - प्रकार , रूप रंग है ? कहाँ निवास स्थान है ? पर उसके नाम पर अरबों का घोटाला हो गया और देश परेशान है |
  इसी प्रकार किसी ने  ईश्वर को भी नहीं देखा | उसके नाम पर भी अरबों - खरबों का खेल चल रहा है , और मानवता परेशान है |  ##

* धर्म चिकित्सा [RELIGIOPATHY]
यह जो आप धार्मिक जनों के मध्य भजन कीर्तन , नृत्य -संगीत गायन , शिखा -टीका -जनेऊ , सवेरे स्नान -ध्यान , मंदिर -मस्जिद -हज - तीर्थयात्रा  गमन, माला-मनका[तस्बीह]फेरना  देख रहे है , यह उनके रोग हेतु या तो औषध है, या बीमारी से बचने के लिए कुछ पथ्य -परहेज़ | इसे मैं धर्म चिकित्सा अथवा Religiopathy का  नाम  देना  चाहता  हूँ | और आदमी के इलाज के लिए तो हमें कुछ भी स्वीकार है |  ## 















*

मेरा ख़याल है कि--

                                              भूमिका

         दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है " | यह पूरी ग़ज़ल किसे याद है | या इसका पहला मिसरा ही कितनों को पता है ? लेकिन यह पंक्ति अमर है , और मेरे ख्याल से समूचा | या -" आख़िरी वक्त में क्या खाक  मुसलमा  होंगे ?" लोगों की जुबान पर है | इससे ज्यादा की उन्हें ज़रूरत नहीं पड़ती | या इतने से उनका काम चल जाता है |
        यही सोच कर मैंने अपनी संवेदना के टुकड़ों को ऐसे ही रख दिया है | कोई सुधी पाठक या गीत - ग़ज़ल शिल्पी इन्हें सुधर कर या पूरा करके पढ़ लेगा | 
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 १ -           ग़ज़ल -         मेरा ख़याल [यह] है कि

     कोई प्रलय न आएगा ,  मेरा ख़याल [यह] है कि,
     सब उसमे विलय होगा , मेरा ख़याल यह है कि |

                             मन [ने कहा ]कहता है कि उनके , बिलकुल करीब जाओ ,
                              कुछ [दूरियां बेहतर हैं ]दूर ही बेहतर है ,मेरा ख़याल है कि |

२ - लल्लो- चप्पो कुछ नहीं , अपने हों या ग़ैर,
       सच जो कहना चाहते , रखते सबसे बैर |

         [सच कहना जो चाहना , रखना सबसे बैर ]
          सच कहने के वास्ते रखिये [रखता] सबसे बैर|       

तू उजड़ जा

        हे प्रभु ! मुझे किसी की सेवा न करनी पड़े  

     यह उवाच दो बातों  की गठजोड़ से निकला | एक तो वाहे गुरु का आशीर्वाद - तू उजड़ जा | और दूसरे मैं कम्युनिस्टों पर अफवाहित एक आरोप पर विचार कर रहा था की उनकी सारी राजनीति गरीबों को लेकर है , इसलिए वे नहीं चाहेंगे कि गरीबी समाप्त हो | लेकिन मुझे इस बात में सच्चाई नहीं दिखी |जैसे कोई कोढ़ियों या बीमारों कि सेवा करता है तो क्या वह चाह सकता है कि रोग रहें और उसका व्यवसाय [ निःशुल्क सेवा] चले ? अतः यदि मैं चाहता हूँ कि कोई बीमार या रोग ग्रस्त न हो तो मुझे कहना चाहिए कि हे भगवान ! मुझे किसी की सेवा न करनी पड़े  |  

गुरुवार, 24 मार्च 2011

अन्धविश्वासी

संपादक जी , हम सब साथ साथ , दिल्ली |

 भाई साहेब , मैं छपने छपाने योग्य कुछ नहीं लिख पाता |ब्लॉग पर  बस डायरी जैसा लिखता हूँ | उस विषय पर अपने किसी सहायक से nagriknavneet .blogspot पर धर्म- कर्म lebel में दिखवा लें , शायद कुछ मिल जाय | वैसे मुझे उम्मीद कम है क्योंकि मैं कहने को तो नास्तिक और रेशनलिस्ट हूँ लेकिन सच्चाई में मैं घनघोर आस्तिक और जड़ अन्धविश्वासी हूँ | अपने भी धर्म को मैं जिद के रूप में लेता हूँ | जैसे ईश्वर को नहीं मानना तो नहीं मानना | हिंसा नहीं करना , जिना [बलात्कार] नहीं करना,सूद नहीं लेना इत्यादि  | इसमें तर्क बुद्धि लगाने की क्या ज़रूरत ? ऐसे कार्य दृढ़ता से ही पूरे होते हैं , दुलमुलपन से
नहीं | ऐसे ही व्यक्तिगत निष्ठां  [पागलपन?] से समाज नैतिक बना रहता
है | सारी अनैतिकता का स्रोत अति - बुद्धिमत्ता है | अब यह बुद्धि हीनता कहाँ दिखती है कि चोरी नहीं करनी तो नहीं करनी , घूस नहीं लेना तो नहीं लेना , स्कैम नहीं करना तो नहीं करना | इसमें सोचना -विचारना कैसा ? फल चाहे जो भुगतना पड़े |
        इसी ताक़त के बल पर मैं किसी भी ढकोसले को सिरे से ही नकार देता हूँ | भविष्य फल , हस्तरेखा ,जन्म कुंडली , भूत -प्रेत , गण्डा -तावीज़ , रत्न अंगूठी ,पूजा पाठ , रोली -टीका ,दिशा विचार , टोना -टटका कुछ भी धारण नहीं करता | भले ही वे पूर्ण सत्य क्यों न हों और प्रभाव भी डालते हों | पर मैं उससे विचलित होने का ख्याल भी मन में नहीं आने देता | न कोई तर्क - वितर्क | क्योंकि अगर इनके लिए आप ने ज़रा भी किन्तु - परन्तु , कोई संशय का कोना दिमाग में छोड़ा तो ये आपके ऊपर हावी होकर ही रहेंगे |
        दाढ़ी हर दूसरे दिन बनाता हूँ | वह दिन जो भी पड़े | पहले सायकिल से चलता था तो रास्ते में जितने नींबू मिर्चे के टोटके पड़े मिलते थे सबको अदबदा कर कुचलता चलता  था | स्कूटर खरीदा तो तय करके शनीचर के दिन | ऐसा नहीं कि उससे एक्सीडेंट नहीं हुए , लेकिन यह भी कोई कैसे कह सकता है कि वे इसलिए हुए क्योंकि वह शनिवार के दिन खरीदा गया था ?
      यह सब अभी उम्र की पैन्सठ्वें साल (तक)  में तो निभ ही रहा है | और आगे न निभने की कोई सम्भावना तो नहीं दिखती |

जाट ... तब जानियो ....

* २५/३/११
                 हमारी अदालतों के जज साहेबान जाटों के बारे में शायद पूरा जानते नहीं हैं ,जो सरकारों  को उनसे रेल पटरियां खली करने को कह रहे हैं | मन लीजिये सरकार की सख्ती से दो - एक जाट मर भी गए तो क्या निश्चित की वे मर ही जायेंगे ? वह कहावत है की नहीं - जाट ... तब जानियो .... |   ###

राक्षस - जमात / यह तो अच्छा है

*पौष्टिक से पौष्टिक आहार हो , कौन उसे अपनी आँतों में सुरक्षित रखता है ? उसी प्रकार विचारों को भी कजो , पियो , पचाओ  और फेंक दो |

* हर व्यक्ति में ईश्वर नज़र आया या नहीं , लेकिन हर व्यक्ति में ब्राह्मण ज़रूर  नज़र आया  |

* अपनी बात कहेंगे | अपनी राह गहेंगे | अपना काम करेंगे  |

*अपनी नेता सुषमा स्वराज की देखा-देखी भाजपा के युवा पुरुष नेता भी अपने मस्तकों पर सिन्दूर लगाये रहते हैं | बीजेपी के पोस्टरों पर तो मैंने ऐसा ही देखा |###

* मैं वोट नहीं दूंगा |  मैं एक बात अभी से स्पष्ट और साफ़ बता देना चाहता हूँ , जन- प्रतिनिधित्व के दावेदारों से , चाहे वे स्थानीय निकाय से हों ,चाहे संसद, विधान सभा के उम्मीदवार हों , की जब तक लखनऊ के टेम्पो में ४+४+३ के स्थान पर निर्धारित  ३+३+२ सवारियाँ बैठने का प्रबंध नहीं होता ,मैं किसी को भी वोट नहीं दूँगा | वैसे मैं उनकी राहत के लिए एक तथ्य अपने खिलाफ उन्हें बता दूँ कि मैं मेरा मतदाता पहचान पत्र लखनऊ का नहीं ,मेरे धुर देहात -गाँव का है | इसलिए वे बिना मेरा  वोट प्राप्त किये भी जीत या हार सकते हैं | तिस पर भी मेरे मुद्दे की अहमियत में कोई कमी नहीं आती क्योंकि मैं इस शहर का भी वैध निवासी , वरिष्ठ नागरिक हूँ | ###
*साम्प्रदायिकता तो निश्चित बुरी चीज़ है | लेकिन नेताओं की राजप्रियता ? यह कैसे उचित उद्देश्य हो गया और फिर वह साम्प्रदायिकता से पृथक कैसे हो गया ? ##

*Government , राज्य को भले मजबूत न रखिये लेकिन governance[इन्तज़ामिया- प्रशासन] को मज़बूत रहने दीजिये | यही न्यायप्रिय -अनुशासन प्रिय नागरिकों के हित में होगा |###

*कुछ तो है , जो दोस्ती -दुश्मनी , पाप पुण्य ,न्याय -अत्याचार आदि से परे है | ठीक है कि कृष्ण ने अपने भाई-बंधुओं से लड़नेके लिए कहा |लेकिन उस लड़ाईके भीकुछ नियम थे ,नीतियां थीं |कुछ विचलन छोड़ दें तो सूर्य ढलने के   साथ युद्ध बंद हो जाता था , रात में दुश्मन खेमों की भी खैरियत ली जाती थी इत्यादि | इसी प्रकार आज भी टाटा -बिरला , अमरीका -इंग्लैंड से लड़ना होगा तो कुछ मूलभूत नियमों का पालन करना होगा | उनके भी कुछ लोकतान्त्रिक अधिकारों की रक्षा के साथ ही उनसे लड़ाई की जानी वाजिब होगी |###   

* क्या खाकर मुकाबला करेंगे ब्राह्मणवाद का ,जिसने अपने लिए भीख माँगकर गुज़ारा करने की नीति बना ली ? आप तो अपने लिए आर्थिक समेत समस्त प्रकार की सुविधा के शुभाकांक्षी हैं ! फिर उनसे मजबूत कैसे बनेंगे ?

* स्त्री सुरक्षा कानूनों से औरतों का चिंतित होना स्वाभाविक है | हाय ! कौन शरीफ आदमी उनके करीब आने की हिम्मत जुटाएगा ? मिलने का खतरा मोल लेगा ?

* यह तो अच्छा है , कि पहले स्वयं भ्रष्टाचार के साधन उपलब्ध कराएँ , और जब भ्रष्टाचार संपन्न  हो तो जोर -जोर से चिल्लाएँ कि हाय- हाय बड़ा भ्रष्टाचार है ,और सरकार इसे मिटा नहीं पा रही है | माँगें उठीं कि विधायक - सांसद निधि दो | फिर , यह धन तो बहुत कम है , इसे बढ़ाओ ,इसमें इजाफा करो | विकास कार्य फैलाओ , भाँति -भाँति की योजनाओं के लिए अकूत धन स्थानीय निकायों को दो , फ़ौरन दो , इसमें हीला -हवाली न करो | इत्यादि-इत्यादि |
अब भला कैसे संभव है की भ्रष्टाचार न बढ़े ,जब अनियंत्रित धन भुक्खड़ों के हाथ में पड़े | जो लोग ऐसी योजनायें  माँगते हैं , उनका समर्थन करते हैं , या इसे बनाते और लागू करते हैं और फिर भ्रष्टाचार का रोना रोते हैं , वे या तो हिंदुस्तान  को नहीं जानते ,या फिर वे देश को  मूर्ख बनाते हैं | इसीलिए साधारण जनता इनके झांसे में नहीं आती , इस भ्रष्टाचार को समझती और स्वीकार करती है | 
              मुझे नहीं पता कि माननीय अन्ना हजारे हिंदुस्तान को कितना समझते हैं | भारत की जनता तो अभी कल तक उनको भी नहीं जानती थी | हमें ज्ञात नहीं कि १९९०-९२ के बाद से  ही सही , विभिन्न राष्ट्रीय ज्वलंत मुद्दों पर उनकी क्या राय थी ? तब वे कहाँ थे ,और उन्होंने क्या किया ? बयान ही सही  | बड़े लोगों  का बयान   भी एक कार्यक्रम होता है | पर अन्ना जी का तो वह भी नदारद है | निश्चय ही अयोध्या मसले पर तो  देश उनका रुख स्पष्ट  जानना चाहता है | अब भाई , इसके अभाव में कौवा कान ले गया करके तो आप एकाएक हमारे नेता बनने से रहे ! आप की नीयत पर भले ही कोई शक न हो ,पर हम इतनी जल्दी किसी पर विश्वास भी नहीं करते | पागल युवाओं की तरह दिल नहीं गवाँ बैठते | यह उचित  भी नहीं है कि जोश में होश खो दें | यूँ ,जो आप कर रहे हैं उसे करें , उसमे हमारा कोई व्यवधान नहीं है | लेकिन हमें जब कुछ संदेह है तो फिर आपका साथ बेईमानी  से क्यों  दें ? अब इतने ईमानदार तो हम हैं  ही कि ईमान की लड़ाई तो, कम से कम , ईमानदारी से लड़ें , न कि आपके  के छद्म साथियों की तरह बे -ईमानी  को मन में रखते हुए  |     
        और एक बात बताऊँ |यद्यपि  गांधीवाद पर हमारा कोई आधिकारिक हक नहीं है , और हजारे जी से ज्यादा तो कदापि नहीं | पर हमने 'गाँधी 'फिल्म में देखा कि किस प्रकार गाँधी जी ने युवाओं को नेतागिरी करने से पहले हिंदुस्तान के गावों  की खाक छानने के लिए भेज दिया था | 
        इसलिए ,सवाल अपना सिद्धांत हिंदुस्तान पर लादने का नहीं है , महत्वपूर्ण है हिंदुस्तान के सिद्धांतों को , उसके जन-जीवन को  जानना और  समझना |        ###
     

* [शेर] -           तेरी दुनिया और है ,   मेरी दुनिया और |

* हाइकु कवितायेँ  :-
                                    ऐसा क्या है जो
                                    छुई- मुई है स्त्री में ?
                                     कुछ भी नहीं |
 मेरी लड़की 
 कल्पना चावला हो 
 तो शीश उठे | 

*हर शै प्यार करने के योग्य है |##

* देवताओं से आप देवता बनकर नहीं लड़ सकते | यदि इनका विरोध करने का आपके मन में सच्चा संकल्प है , तो आपको यह नामकरण स्वीकार करना पड़ेगा , कि आप एक राक्षस - जमात हैं |  ###

चयनिका

*जब किसी साहित्य में सार्थक , जीवंत और संयत समीक्षा पद्धति मुरझाने लगती है तो उसके साथ अनिवार्यतः एक परजीवी वर्ग , एक साहित्यिक माफिया पनपने लगता है |ऐसी विकट स्थिति में लेखक अपने खोल में चला जाता है |
[निर्मल वर्मा]
   

* Forgetfulness is Bliss  +/+  निर्विकल्पता एक वरदान है |
     [ओशो ]

 
* जीवन छोटा और
कहने को बहुत कुछ हो
तो हड़बड़ी हो ही जाती है |
बहुत कुछ
समेट लेने की कोशिश में
बहुत कुछ
छूट जाता है |
                          - -  [कवि ]- अम्बिका दत्त
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*  Being attracted to a scientist is the wrong way to be attracted to science .
                                           - Venkatraman Ramkrishnan
                                       [ 2009 Nobel Prize Winner Laureate for Chemistry ]
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                        ग़ज़ल
मुझमे जो कुछ अच्छा है सब उसका है ,
मेरा जितना चर्चा है सब उसका है |

               उसका मेरा रिश्ता बड़ा पुराना है ,
               मैंने जो  कुछ सोचा है सब उसका है |

मेरी आँखें उसके नूर से रोशन हैं ,
मने जो कुछ देखा है सब उसका है |

               मैंने जो कुछ खोया था सब उसका था ,
                मैंने जो कुछ पाया है सब उसका है |

जितनी बार मैं टूटा हूँ वह टूटा था ,
इधर -उधर जो बिखरा है सब उसका है |
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             --कश्मीरी लाल जाकिर
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*      क़तअ

 वह मुझे प्यार से ' तू ' कहता है ,
हम ख़िताब लेकर क्या करेंगे ;
हम हुज़ूर लेकर क्या करेंगे
हम जनाब लेकर क्या करेंगे ?
       [  उफ़क़ लखनवी ]
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दो कहानियां



१ - यूनियनें
            भाई साहब , बड़ा शोषण है | इसलिए यूनियन बनानी पड़ी |
---- कौन करता है शोषण ?
---- ऊपर वाली श्रेणी के लोग |
---- पर उन्होंने भी तो यूनियन  बना रखी है !
---- हाँ , उनका भी शोषण  होता है |
----उनका शोषण कौन करता है ?
---- उनके ऊपर वाले लोग |
---- और वे भी अपना सशक्त यूनियन  बनाये हुए हैं |

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२ - ग़रीबों के लिए 

      भाई साहब , मुझे तो कम्युनिस्टों से चिढ़ होने लगी है |
---- क्यों भला  ? वे तो ग़रीबों के लिए बहुत काम करते हैं |
---- ग़रीबों के लिए  काम करते हैं , पर ग़रीब  तो नहीं होते !

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बुधवार, 23 मार्च 2011

हाइकु कवितायेँ [seventh] 50


[इन पंक्तियों पर ज्यादा ध्यान न दें |
हाइकु विधा में मैं अपना काव्य मनोरंजन करता हूँ |
जैसे मैं सुडोकु खेलता हूँ |]Numbering in reverse order=
५० - मेरा आदर्श
मेरे सामने होता
घूमूं कहीं भी |


४९ - जो दिखोगे  तो
देख लिए जाओगे
बचो तो बचो !

 
४८ - बन जाता है
विचार का हाइकु
सरलता से |


४७ - साहित्य तो है
कुछ बाजीगरी भी
शब्दों के साथ |


४६ - नया उत्साह
प्रत्येक  पल - छिन
नवीन दिन |


४५ - दुःख तो व्यक्त
करना पड़ता है
अवसरों पर |


४४ - कोई भी शय
ग़ुरबत से ज्यादा
नहीं दुखद |


४३ - मैं हरदम
कविता करता हूँ
मैं हरदम
कविता जीता हूँ , मैं
कविता हूँ मैं
कविता करता हूँ
जीवन तो है
कविता , एक युद्ध
लड़ता हूँ मैं
खुद से कुरुक्षेत्र
बस कविता
करता जाता  हूँ मैं
कविता जीता |


४२ - मुख्य धारा  में
कुछ आयेंगे आप 
या कुछ नहीं ?


४१ - कैसे टालता 
अनुरोध  उनका
आज्ञा समान 
आदेश बराबर
पाप या पुन्य
उचित -अनुचित 
वह जो कहें 
मेरी मजाल क्या है  
जो उसे टालूँ  ? 


४० - आशा है पर
इतनी आशा नहीं
कि कूद जाऊं |


३९ - भ्रष्ट नहीं हूँ
भ्रष्टाचार तो किया
तिस पर भी |


३८ - रहता हूँ मैं
दिन - रात निमग्न
सोच - काव्य में |


३७ - अक्खा रात तो
आँखों में काट दी , तो 
दिन तो दिन !


३६ - आप की कृपा
मुझे जिंदगी मिली
आप भी जियो |


३५ - तुम हंसोगे
याद करके मेरी
छेड़खानियाँ  |
कि तुमने तो खूब
गुस्सा किया था
उस दिन तो , अब
हँसोगे मेरी
बदमाशियां सोच -
सोच  करके |


३४ - तो तय हुआ
आप कवि हैं , हम 
कुछ नहीं हैं |


३३ - मरना क्यों है
जब तक जिंदगी 
मृत्यु अचिन्त्य |


३२ - हाथों में हाथ
एक हाथ , मानो तो
दोनों के कटे  [गये ]


३१ - केवल करें
जो करना है , बोलें 
कुछ भी नहीं |



३० - आज का दिन
अंत नहीं , युग के
कैलेंडर का |


२९ - नर नारी के 
चक्कर में न आना 
व्यक्ति के आना |

२८ - सब आयेंगे
रास्ते पर तुम तो 
चलो तो सही |


२७ - हिंसा न कहो
युद्ध को युद्ध कहो
'नेता' को 'गाँधी' |


२६ - खर्च करो तो
अपना कमाओ भी
बाप से न लो |


२५ - दुनिया कुछ
कहना चाहती है
हमसे , सुनें !


२४ - सब काम तो
सरकार करेगी
हम क्यों करें ?


२३ - समस्त हिन्दू
हो जाएँ सेकुलर
राज्य हो हिन्दू |


२२- मेरे रहते
तुम क्यों करते हो
भ्रष्टाचरण ?


२१ - सुंदर हो तो
नखरे भी बर्दाश्त
अन्यथा नहीं |


२०  - मूर्ख न बनें
यही भर बहुत
बुद्धिमत्ता है |


१९ - कुत्ते कमीने
साले हरामजादे
दुष्ट दानव [कृतघ्न] |


१८ - पढ़े मुझको
जिसको गरज हो
दया न करे |


१७ - जायज़ तो है 
जो मेरी आमदनी
पर ज्यादा है |

१६ - नींद आ जाय
बिस्तर  न भी  मिले
तो सो जायेंगे |
१५ - कमजोरी को 
कमजोरी मान लो 
तो पार लगो | 

१४ - मत बोलिए
किसी के मामले में
बल न हो तो |

१३ - कम बोलना
तौलकर  बोलना
मुझे चाहिए |

१२   - मैंने पा लिया 
आदमी , मनुष्य है 
यूरेका कहूँ ?

११ - रोजाना एक
संस्थान बनाता हूँ
रोज़ तोड़ता |

१० - पनघट की
डगर कठिन है
बहुत ज्यादा |

९ - हो सकता है
शामिल हो जाऊँ मैं
भी बाज़ार में |

८ - लफंगई से
कोई फायदा नहीं
प्रेम गंभीर |

७ - वेदों में कुछ
बिल्कुल कुछ नहीं
व्याकरण  है |

६ - ज्यादा पढ़ा है 
जिन्होंने , वही अच्छा 
लिख पाएंगे |

५ - सुनता तो हूँ
सुनना चाहता हूँ
सबकी बात |

४ - चीर हरण
करते दिमागों का
संघटनानि |

३ - विवाद नहीं 
ज्यादा बोलना नहीं 
मेरा अभीष्ट |

२ - चकनाचूर
करो दंभ उसका 
जो कि तुम हो | 

१ - परेशान  हो ? 
मत परेशान हो 
क्या परेशानी ?

हाइकु कविताएँ [ sixth] 100

१०० - महंत जी हैं
शहर में शांति भी
महा आश्चर्य !

९९ - संत - कथन
न हों यदि महंत तो
बचे शांति |

९८ - बस्ती के लंठ
अब हुए महंत 
शांति दुर्लभ |


९७  - मठ में महंत 
और शहर शांत !
कहाँ संभव ?

९६   - सुनो भदंत !
मठ- मध्य महंत
शांति का अंत |

९५ - नेता ऊपर
जनता सर्वोपरि
नीचे - ऊपर |

९४ -  अति उत्तम
प्रश्न आपका , कोई
उत्तर नहीं
प्रश्न थे प्रायोजित
उत्तर ज्ञात |

९३  - नैतिकता की
बिलार - वाणियाँ तो 
हज को चलीं |

९२  - प्रेम का रास्ता
सच और झूठ के
पार का वास्ता |

९१ - काम या  लोभ
से परे प्यार , सारी 
विपदा  हरे | 

९० - इंद्र को छोड़ा
पर इंद्र धनुष
तो देखता हूँ

८९ - मेरी नज़र 
सबकी बुद्धिमत्ता
संदेहग्रस्त   |
  
८८ - दिपदिपाएं
सूरज के साथ साथ
जुगनुएँ भी |
८७  - नहीं बनती
विवाद करने से
सार्थक बात
|
८६ -ईगो ! यू गो टु          Ego ! you go to
हेल , माई डियर               Hell, my dear !
आई हेट यू |                    I hate  you .
  
८५ - अस्वस्थता है
वही पुरानी बात
ह्रदय रोग |

८४ - हाथ लगेगी
निराशा ही निराशा
जाओ , देख लो |

८३ - कौन है भला
सत्य का पक्षधर
कोई भी नहीं |

८२ - जिंदगी दे दूँ
जिजीविषा के हाथ
फ़िज़ूल बात |

८१ - मन से स्वस्थ
तन से अवश्य हूँ
किंचित रुग्ण |

८० - नहीं लौटेगा 
वह समय पर 
याद तो करूँ !

७९ - किसके पास
समय है इतना
वक्त निकाले
बैठे अपने पास
मन की सुने |
७८ - ऊब जाऊँगा
उनके घर से भी 
जानता हूँ  | 

७७ - महत्वाकांछी
महत्त्व के काम का
नाम का नहीं |

७६ - अविश्वास  था
इतना ही ज्यादा , तो 
व्याह क्यों किया ? 
७५ - पनघट की
डगर कठिन है
कंटकाकीर्ण |
७४ - कर रहा हूँ
सफ़र की तैयारी
कब चलना ?

७३ - करो न करो
कहने में क्या जाता
-करूँगा यत्न |

७२ - होना है अभी
बुद्धि से साक्षात्कार
बहुत बाकी |


७१ - धन दौलत
संचालक शक्ति
पूरे विश्व की |
७० - समझ गया
चाहते हैं  कहना
श्रीमानजी क्या !

६९ -अन्य मनस्क ?
थोड़ा होली खेल लो
मन बहले |

६८ - कभी लगता
किसी ने पुकारा है
कोई नहीं है |

६७ - धर्म न सही
सम्प्रदाय न सही
संत -  वाणियाँ   
तो पढ़ाई जायँगी
विद्यालयों  में !

६६ - नींद आयेगी                       
नींद आ तो रही है
नींद आ गयी |

६५ - कुछ भी बनो
प्रगतिशील नहीं
प्रगति वान |

६४ - कोई नहीं है
बुराइयों से परे
कम या बेश |

६३ - बाकी  तो रखो 
 कुछ कहने को  भी
सब न लिखो |

६२ - विद्रूप चित्र 
हमने बनाये हैं 
मुखौटों पर |

६१ - मन में कोई
विचार न आने दो 
यही ध्यान है |

६०  - खाली दिमाग
सुलेमान  का घर
अमन-चैन |

५९ - स्वास्थ्य, क्या है ?
बस वही , कमजोरी
है शरीर में |

५८ - अधिकतम
लकीर के फकीर
हैं भारत में |

५७ - हुई ज़रूर
मुझसे या तुमसे
कोई ग़लती !

५६ - कर्म अलग
कविता अलग है
ऐसा क्यों भला ?

५५ - आशीर्वाद को
किसने देखा -जाना
फलित होते !
फिर भी बुजुर्गों से
हम मांगते |

५४ - बोलता तो हूँ
कितना झूठ बोलूं
आख़िरकार !
नहीं सुन पाओगे
सच बोलूं तो |

५३ - मुझे अपनी
ज्यादा फिक्र नहीं है 
उनकी ज्यादा |

५२ - कुछ न कुछ
तो विचारता ही है
हर आदमी !

५१ - लिखेंगे हम
आखिर क्या खाकर
जड़ी या बूटी ?

५० - बहुत लोग
बहुत   ज्यादा  ज्ञानी
कम, कम ही |

४९ - शासन लक्ष्य
बहुत से लोगों का
हमारा नहीं |

४८ - जीवन ही है
सोद्देश्य जीवन भी
निरुद्देश्य भी |

४७ - इस लोक को 
as it is  lo / एज   इट इज लो  
सुखी रहोगे |

४६ - ज़रूर बोलूँ 
कोई बात उठे तो
बोलूँ क्यों नहीं !

४५ - जानदार है
ओशो  जानदार है
जीवनानंद |

४४ - आभास नहीं
तुम्हारे पास क्या है
जो विशिष्ट है ?

४३ - दाँत न होते
तो खाते कैसे सब 
वेदांती -जन ?

४२ -स्वाद के लिए
साहित्य पढ़ें , लिखें
स्वास्थ्य के लिए |

४१ - न उन्हें देना
हिसाब बराबर
न मुझे लेना |

४० -सिर्फ यादें हैं / यादें भर हैं
हम लोगों के पास
और न कुछ |

३९ - विज्ञापन है-
डाला निकला और,
हो गया (बच्चे) |

३८ - नेटवर्क ही
कहाँ देख पते हैं 
 मोबाईल के ?

३७ -सब हासिल
विश्वास हासिल तो
शेष बेकार |

३६ -जिंदगी नाम
ग़लतफ़हमी का
हम जीते हैं |

३५ - कोई नहीं है
न औरत , न मर्द
सब आदमी
सभी मजबूर हैं
और जीवित |

३४ -कल ठीक थी 
तबीयत ,परसों 
की तुलना में 
आज , कल से ज्यादा 
कल बिलकुल 
उठ, बैठ जाऊंगा |

३३ -जानते सब
मानता कोई नहीं 
यह भी तो है !

३२ -बहुत लोग
बहुत बेहतर
लिख रहे हैं |

३१ -अब इसमें
चौंकने की क्या बात
ऐसा होता है |

३० - चलता हूँ मैं
जब सभी कहते
सबको जाना |

२९ - कुछ देखिये
देखते ही जाइये
आगे और है |

२८ - बच्चे पिटते 
बिगड़ती जाती हैं
दर पीढ़ियाँ |

२७ - बराबरी    के   
पूर्व  ,बराबरी की
मानसिकता
लाएगी बराबरी  
होगी   समता   | 

२६ - दो आदमी
घर चलाने में तो
लगते ही हैं !
२५ - प्यार में कोई 
किसी का नहीं होता 
सत्य सुनिए !

२४ - कुछ है और
कुछ नहीं है , मेरे ,
तुम्हारे पास |

२३ - साथ चलेगी
सभ्यता -असभ्यता
संग मनुष्य |

२२ - तुला है पैसा
हर किसी चीज़ का
सेवा , श्रम का |

२१ - पूरा मस्तिष्क
कहाँ  समझ पाया
अभी विज्ञानं !

२० - परिचय है
हमारा भी प्रेम से
करते नहीं |

१९ - अपनी मौत
सब मारे जायेंगे
सब मरेंगे |

१८ - कवि हूँ जैसे
तमाम हिन्दुस्तानी
होते हिंदी के |

१७ - धन्य मनाओ
जो तुमको देख लूं
नज़र उठा |

१६ - मन नहीं है
प्यार भी करने  का
अब किसी को |

१५ - है जी आपकी
बुद्धि की बलिहारी
और मेरी भी |

१४ - यूँ तो सबने
मुझे प्यार ही किया
जैसे भी किया |

१३ - गलतियों से
अनुभव लेता हूँ
सही कैसे हो  ?

१२ - होने को ही हैं
हिन्दू -मुसलमान
वरना नहीं |

११  - I do die                 आई  डू डाई   
they all will die               दे आल विल डाई
you will die |                   यू विल  डाई  |

१० - चलिए सही
कुछ तो खायी पटी
दोनों के बीच !

९  - चुनौतियों को
स्वीकार करते हैं 
हम लेखक |

८ - किसी पर दया 
कभी मत कीजिये 
जो भी कीजिये 

७ - मेरे ख्याल से
सबकी इज्ज़त है
होनी चाहिए |

६ - आदमी ही है
अफसर हो वह
या मातहत |

५ - गिरा था वह 
उठने के लिए 
गिरता गया |
  
४ - दस्त और है
सर -दर्द तो है ही
पेचिश और |

३ -जन्म की जाति
मिटा तो नहीं पाए
भुला तो सके |

२- राजकुमार
सपनों का ढूढोगी
छली जाओगी |

१- मन कहता -
नेता क्या होता है जी
लेकिन होते |

सोमवार, 21 मार्च 2011

पंछी आते हैं

* "अपने आप से उलझो " 
     Be cantankerous with thyself 
------------------------------

* क्या आपने कभी अनुभव किया है कि कभी सफाई भी अत्यंत घृणित हो सकती है ?

* मैंने एक बात ग़ौर की | पुराने ज़माने की मैं नहीं कह सकता | पर इस कालखंड में कोई किसी की सुनना नहीं चाहता , किसी से कुछ जानना -समझना-सीखना नहीं चाहता | सब केवल अपनी हाँकते हैं और अपने से ज्यादा ज्ञानी - बुद्धिमान किसी को नहीं समझते |     

जवाब= "नहीं"

*                    हर का जवाब= "नहीं"

१ - क्या कोई राजनीतिक पार्टी शुद्ध और स्वच्छ है ?

२ - सेकुलर और मुस्लिम राजनीति में क्या कोई अंतर है ?
३ -- - -
४ - - - 
    

जो हो रहा है /हो सकता है

*१  - जो हो रहा है , उसे होने दो | जो नहीं हो रहा है ,उसे होने का प्रयास करो |


*२  - क्या ऐसा नहीं हो सकता कि यदि कोई बात सत्य हो तब भी हम उसे न मानें ? या इसे इस तरह कहें कि जो बात हम न मान रहे हों वह सत्य हो ? जैसे जाति प्रथा को हम नहीं मानते , पर वह हकीक़त तो है | तो इसी प्रकार हम यह प्रश्न ईमानदारी से उठा सकते हैं कि जिस ईश्वर को हम नहीं मानते वह भी सत्य हो , क्या ऐसा नहीं हो सकता ?
    तथापि इन लौकिक सच्चाईयों के बावजूद , यह तो तय है कि हम जातिप्रथा और इसी प्रकार ईश्वर को भी न स्वीकार करते हैं , न स्वीकार करेंगे | यहाँ  तक  कि  यदि  इन्हें विज्ञानं  भी सत्य सिद्ध करता फिरे |  

*३ - आप मेरी बात का जवाब देने लगेंगे , और मुझे चुप होना पड़ेगा | इसलिए मैं आप से कोई बात कहता ही नहीं |


*४ - जाम का वरदान
        साईं बाबा एक बड़े दानी -वरदानी , फलप्रदायी संत -फकीर हैं | इसीलिये आजकल उनकी मान्यता सारे महात्माओं से ऊपर चल रही है | भक्तों की सेवा से प्रसन्न होकर उन्होंने लखनऊ को भी एक बड़ा वरदान दिया है | कपूरथला में उनके मंदिर के सामने भीषण - अनंत ट्राफिक जाम का | जय हो !


* ५ - कोऊ नृप होय  
          फिर याद आया कोऊ नृप होय वाला जीवन दृष्टि | इधर दिमागी रूप से बहुत परेशान और चिंतित रहा, राज्य प्राप्त  करने के लिए चलने वाले तमाम आन्दोलनों के बारे में सोचते हुए | सुकून मिला कोऊ नृप होय से | अब राज्य चाहे नक्सलवादी  ले जायं , चाहे कश्मीर को अलगाववादी | अरब देशों में चाहे प्रजातंत्र हो या इस्लामी शासन , हमसे क्या ? और हम कर ही क्या लेंगे ?


* ६ - स्वर्गीय
        अंग्रेजी के late का विशेषण हिंदी में स्वर्गीय प्रयोग किया जाता है | हमारे समूह में बहुत से लोग स्वर्ग नरक परलोक आदि नहीं मानते | तो क्या इस शब्द का भी प्रयोग नहीं करेंगे ? करते तो हैं . करना ही पड़ेगा | इस तरह के हमने तमाम कुछ पौराणिक - धार्मिक शब्द चुने हैं ,जो अब भाषा के अंग बन गए हैं , उसमे समाहित हो गए हैं | उनका प्रयोग हमें करना ही पड़ेगा , चाहे हम आस्तिक हों या धुर नास्तिक |


* ७ - मेरा यह दृढ़ मत है कि भारत के लौकिक नागरिक संतों को ग़रीबी अपनानी ही चाहिए , और वे अपनाएंगे ही यदि वह संत हैं |    

शनिवार, 19 मार्च 2011

जाट की जम्हुआई

* जाट आन्दोलनकारी रेल की पटरियों  पर लेटे हैं | इसमें कोई ज्यादा खतरा नहीं है
 वे लेटे रहें तो भी रेल उनके ऊपर से सुरक्षित गुज़र जाएगी | लेकिन एक समस्या है कि यदि कहीं उन्हें जम्हाई आ गयी , और कोई रेल यात्री उसी समय टॉयलेट  में हुआ तो स्थिति बिगड़ सकती है  |
                                                                                                         [मछलीमार]

अंत में

* अंत में , यह सोचकर ज़रूर अच्छा लगेगा कि मेरी जिंदगी किसी और के नाम थी |

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

कठौती में कुकरैल

सच  कहने  के  वास्ते  , रखिये  सबसे  बैर
====================================
सच  कहना जो चाहते  , रखते   सबसे  बैर   
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* अभी एक राजनीतिक मित्र का कथन याद आया | उनका कहना था कि पहले (लोहिया के ज़माने में) संसद कि बहसें अख़बारों के समाचार बनते थे | अब अख़बारों के समाचार संसद में बहस के विषय बनते हैं | कितना सच है ! सवाल यह है कि क्या अब पुराने समाचार , देशी-विदेशी एजेंसियों के लीक- पाद ही देशों की राजनीति चलाएंगे , और वे समय को पीछे , और पीछे ढकेलते जायेंगे ? आखिर उनका इरादा क्या है ? कहीं हम साधारण जनता  अपनी पूरी पाक-नीयतों के साथ अनजाने में उनके शिकार तो नहीं बन रहे हैं ?   


* कामतानाथ की संकलित कहानियाँ पढ़ रहा था | तमाम कहानियों पर तो मन इधर-उधर होता रहा , पर 'खलनायक ' पर जाकर चिपक गया | हालाँकि उसका शीर्षक मैं कहानी के असली नायक (नायिका) के नाम पर उसके असली नाम सुनीता के बजाय ' बिल्लो' ही बताऊंगा | खलनायक भी भला कोई शीर्ष पर रखने की चीज़  है ? मैं इस कहानी से यह एक मछली मार कर पाठकों को देना चाहता हूँ कि यदि शादी की सम्भावना या जुगत -साहस न हो तो किसी लड़की से प्रेम की अनुभूति नहीं बनानी  चाहिए , और यदि कुछ कोमल अहसास  जगें भी, तो  कन्या -विशेष को उसका आभास नहीं होने देना चाहिए |आखिर कहानियों से कुछ सबक तो लेनी चाहिए | बिल्लो का कहा एक संवाद तो शाश्वत  और avismrneey   है की - 'पाँच दिन में तो दुनिया idhar  se  udhar  ho  sakti  थी '  


* उसने कहा - तुम राज ले लो   ,   ले लिया ;
   उसने कहा फिर - पाट  ले लो ,  ले लिया |
   उम्र के  दालान में इस छोर पर  ,
   उसने कहा - अब खाट ले लो , ले लिया || 
                   ##    [ लल्लू बस्तवी द्वारा प्रेषित ]


* जाट आन्दोलनकारी रेल की पटरियों  पर लेटे हैं | इसमें कोई ज्यादा खतरा नहीं है
 वे लेटे रहें तो भी रेल उनके ऊपर से सुरक्षित गुज़र जाएगी | लेकिन एक समस्या है कि यदि कहीं उन्हें जम्हाई आ गयी , और कोई रेल यात्री उसी समय टॉयलेट  में हुआ तो स्थिति बिगड़ सकती है  |
मनोरंजन वार्ता,(दिमाग से)

बुधवार, 16 मार्च 2011

गेरुआ वस्त्र

16/3/03
                * कितना तो श्रम , कितनी तो सेवा की ,मदर टेरेसा ने , तब जाकर बड़ी मुश्किल से उन्हें संत का पद मिल पाया | हमारे यहाँ क्या है , बस एक मित्र गेरुआ वस्त्र , और हो गए संत |
--------------

               * कहाँ है आस्था ? अब केवल एक ही आस्था बची है | वह है -पैसा | और इसी पर मेरी कोई आस्था नहीं है | इसलिए मैं नास्तिक हूँ |

- - - - - - -
                 * और वैसे भी अब मैं ना- ना बन गया हूँ | तो मुझे नास्तिक नागरिक बनना ही है |

मंगलवार, 15 मार्च 2011

आज का धर्म

* आज का धर्म

मैंने यह तो गौर किया कि धर्म अंततः एक जिद का नाम एक तार्किक/अतार्किक सैद्धांतिक -व्यावहारिक दृढ़ता है धर्म |जैसे ,चोरी ,घूसखोरी , जिना -ज़बरदस्ती, अमानत में खयानत नहीं करना  तो नहीं करना , झूठ  नहीं बोलना तो नहीं बोलना |
अब ऐसी दशा  में , मैं सोचता हूँ , कि हमारा आज का धर्म भला क्या हो सकता है ? क्या होना चाहिए ? तब नागरिक धर्म याद आता है | encroachment न करना , जेब्रा लाइन न पार करना , पेंड़ न काटना  इत्यादि | क्या यह कहना  कुछ गलत है ?

 
* सहज अज्ञान

विज्ञानं के साथ समस्या  यह है कि उसे जाने बिना काम नहीं चल सकता | अज्ञान के साथ सुविधा यह है कि बिना कुछ जाने भी जीवन का काम आसानी से चल जाता है |पृथ्वी एक घंटे में कितना घूमती है , वैज्ञानिक के लिए जानना ज़रूरी है | लेकिन मुझे इससे क्या मतलब ? 

तीन साल का बच्चा

तीन साल का बच्चा

           सुबह पार्क में टहल रहा था | एक मुझसे भी वृद्ध सज्जन अपने तीन साल के नाती को लेकर आये थे | कहना होगा कि दरअसल बच्चा ही उन्हें टहला रहा था , क्योंकि वह उन्हें उँगली खींच कर टहलने के लिए बने मार्ग से इतर झाड़ियों की ओर ले जा रहा था | झाडी के उस पार कुछ बच्चे गेंद  उछाल-उछाल कर खेल रहे थे | बच्चा वहीं जाने के लिए वृद्ध को घसीट रहा था |
              यही हाल नक्सलवादियों का है | वे भी प्रौढ़ , समझदार और मनुष्यता के रास्तों के चिर - जानकार हैं | पर वे क्या करें ? प्रेम और आसक्ति से मजबूर हैं | यह जो तीन साल का बच्चा , तीन गुणे बीस साल का  प्रजातान्त्रिक बचकानापन है ,वह उन्हें जंगलों की ओर खींच रहा है |
    
            सब ठीक हो जायगा | बच्चा बड़ा हो जायगा |
####### - - - - - - - - - - - - -- -- - -- -- - - -- - - - - - - -- - - - -    
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Some other subjects to write upon
* मौलिक सरकार के काम /सीमा सुरक्षा / आतंरिक शांति
* मेरी श्रद्धांजलि सभा के बाद मेरा भाषण -धन्यवाद आप सबको  जो एक पागल के अंतिम संस्कार और  श्रद्धांजलि सभा में भाग लेने आये |
*They make them मुस्लिम,for their any participation i hindu affairs
*pardhani election/ I do not vote to avoid enmity
*had u told me -jaati is not going , i would have not worked against.
*chhatra neta =vidya + baalan , kshatra?
*my agony is peoples behaviour
*progreesive pundit can bring drastic change in rituals .
   

सोमवार, 14 मार्च 2011

अपने काम पर विशेषाधिकार

* अपना -अपना काम

वैज्ञानिक , जागरूक ,सचेत ब्राह्मण भी कभी यह शिकायत समाज से कर सकता है की उससे वह काम कराया गया जो निकृष्ट था | जैसा आज ब्राह्मण कार्य -पुरोहिती  मृतक भोज आदि | अज हर ब्राह्मण को सभ्य - प्रगतिशील तबका हेय,नीच और निरादर की दृष्टि से देखा जाता है | जब कि वह भी समाज की एक महती आवश्यकता की पूर्ति करता ही है | और उसे दिखने भर को भले थोड़ी देर के लिए आदर मिलता हो  अपना काम निकलने के लिए , लेकिन वह घृणित ही समझा जाता है | वह उससे कौन सा अच्छा काम करता है जैसा मैला ढोने वाला करता था | वह भी मनुष्य के मन का मैला ही ढो रहा है |तब तक , जब तक मानव समाज वैज्ञानिक चेतना और जीवन -प्रथा से युक्त नहीं हो जाता | दोष हमारा है , मढ़ते हैं ब्राह्मण के ऊपर |
     वह भी अंधविश्वासों के उगालदान का ही काम करता है | अब यह बात तो है ही किजिससे उसकी आजीविका चलती है , उसे तो वह बढ़ावा देगा ही | पर पेशा तो उसका भंगी का ही है और वैसा ही इज्ज़त / बेइज्ज़त भी है | भंगी जो करता था उसे भी तो केवल भंगी ही कर सकता था /करता था ! हल चलाना जिसके जिम्मे था वही हल चलता था | दूसरा उसमे प्रवेश नहीं कर सकता था | सबके अपने - अपने कामों पर विशेषाधिकार प्राप्त था | कोई उसका क्षरण, उसमे हस्तक्षेप  नहीं करता था | इसी प्रकार सबकी रोज़ी -रोटी चलती थी ,जीवन यापन होताथा| लोहार , सोनार ,मनिहारिन ,कुम्हार ,
लोनिया आदि सबका |

       और उसी में ब्राह्मण भी शामिल था |  

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संवरिया

*    लेकिन वह तो

सुंदर तो है , लेकिन  वह तो
मुन्दर भी है , लेकिन  वह तो |

रहती तो दिल के बाहर है
अन्दर भी है , लेकिन  वह तो |

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*         देहाती गाना   

धूप लगने लगी अब संवरिया
चलि कै छाहें में बयिठो संवरिया |
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*           शेर 

पता नहीं कब क्या हो जाये ?
शाम से सीधे सुब्ह हो जाये |
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*         ग़ज़ल         

कोई दुबिधा ग़म नहीं है ,
यही सुविधा कम  नहीं  है |

                   एक विचारक जा रहा था ,
                   सबसे कहता -'हम' नहीं है |

चाँद पर पानी मिला तो ,
आंख में भी कम नहीं है |

                   एक समंदर ह्रदय में है ,
                   आंख लेकिन नम नहीं है |

उनके  हीरे , तेरे मोती ,
'तोष' मेरा कम नहीं है |

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एकपत्नीव्रत / छिनाल नहीं

* कविता    
                 एक पत्नीव्रत

मैं हमेशा एकपत्नीव्रत
का समर्थक रहा
मैंने इसे जीवन  भर निभाया

बीस से तीस तक  
एकपत्नीव्रत

तीस से चालीस तक  
एकपत्नीव्रत ,

फिर चालीस से पचास तक
एकपत्नीव्रत ,

और अब पचास के बाद
निष्ठापूर्वक
एकपत्नीव्रत निभा रहा हूँ |
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* हिंदी के साहित्यकार वैसे ही हैं जैसी हिंदी है | हिंदी वैसी ही है जैसे हिंदी के साहित्यकार हैं |
* जो औरत नारायण दत्त तिवारी  के ज़रिये पुत्र जनने का बयान दे रही है, और निस्संदेह जिसने 
अपने पति से बेवफाई  की, उसे क्या कहा जाये यदि छिनाल नहीं ?

सम्प्रति कृपा

* - कथन है - कोई हिन्दू आतंकवादी गतिविधियों या हिंसा में लिप्त नहीं हो सकता | यदि यही बात है तो जो हिन्दू हिंसा में लिप्त हैं , उन पर कठोर कार्यवाही होने दीजिये , क्योंकि वे हिन्दू नहीं हैं |

* - यह गौरतलब है कि वह साम्राज्यवादी , पूंजीवादी ,और क्या -क्या वादी अमरीका ही है , जिसने नरेंद्र मोदी को अपने देश में घुसने नहीं दिया |

* नायिकाएं कहती हैं कि कहानी के अनुरूप उन्हें कपड़े उतरने या बोल्ड दृश्य देने में एतराज़ नहीं है | तो फिर निर्माता - निर्देशकों को ही कहानी में ऐसी स्थितियां पैदा करने में क्या एतराज़ हो सकता है ? कहानीकार को इसके लिए देर ही कितनी लगती है ?

* बड़े लोगों की हूबहू नक़ल नहीं करनी चाहिए |

* एक चुटकी भी स्वाद जिस किसी संत ने दे दी , उसका मैं ऋणी हूँ | उसमे ओशो भी हैं कुछ |

* हिंदुस्तान कोई हड्डी का टुकड़ा नहीं है जिसे कुत्तों के सामने फेंक दिया जाय, और कुत्ते उसे नोचें  |

* मैं अपने पौरुष या ईश्वर की दया से नहीं , बल्कि चोरों , डकैतों ,ठगों ,लुटेरों ,हत्यारों ,बलात्कारियों की सम्प्रति कृपा के फलस्वरूप मैं ,हम ,हमारा परिवार अब तक सुरक्षित और सही -सलामत है |##

* शादी , प्रेम तो नहीं ही है , वह सम्बन्ध भी नहीं है | वह केवल ज़िम्मेदारी है | ###

शनिवार, 12 मार्च 2011

आदमीयत न छूटे

* चाहे हिन्दू रहूँ या मुसलमान
या कुछ भी न रहूँ
मैं चाहता हु कि मुझसे
आदमीयत न छूटे |
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*  ईश्वर के अलावा भी
बहुत सारी चीज़ें हैं
ईश्वर कि तरह |
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पुनर्जन्म

आप मानते नहीं ,
मेरा तो हुआ ;
एक बार तब ,जब
मुझसे बारह साल छोटा
मेरा भाई पैदा हुआ
फिर तब,
उससे बीस साल  छोटी
मेरी पुत्री हुयी ,
फिर उसके छः साल बाद
जब, मेरा पुत्र पैदा हुआ |
मैं मरता जा रहा हूँ ,
पैदा होता जा रहा हूँ
अभी फिर हुआ न !
जब मेरे नाती - पोती हुए \
ऐसे ही ,फिर -फिर
मैं पैदा हूँगा |
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*  आदमी बूढ़ा होता
तब तक उसे
दवाईयों के इतने नाम
याद हो जाते
कि उसे जवान होने में 
कोई दिक्कत नहीं होती |
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* जब मैंने देश पर 
हावी होना चाहा
वह बाघ की तरह
मुझ पर झपटा ,
पर जब विनम्र हुआ
उसके समक्ष
उसने मेरा पालन
किया ,माँ की तरह
प्यार किया |
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13 /3 /11   

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

बिचार -विचार नहीं

*  मैं सोचता हूँ तो पाता हूँ कि ,मैं कोई बिचार -विचार नहीं करता | मैं केवल तथ्यों का आकलन करता हूँ , और जो सच्चाईयां जान -समझ पाता हूँ ,वह कहता या लिख देता हूँ | उसमे मेरी तरफ से सैद्धांतिक विचार की मात्रा बिल्कुल नहीं या बहुत कम होती है | और यह तो सच है ही ,कि मैं विचार भी दिमाग  से नहीं ,दिल से करता हूँ |  ##

गुरुवार, 10 मार्च 2011

* लाख गाली दीजिये ब्राह्मणवाद को ! लेकिन यह मानव सभ्यता का सहज और मौलिक दोष या अवगुण है | किसी समाज में इससे मुक्ति नहीं है | कोई ज़रा भी अपने अनुभव का , तर्क बुद्धि और यथार्थवाद का इस्तेमाल करे तो इसे आसानी से समझ और स्वीकार कर सकता है | यूँ किसी ख़ास बौद्धिक या जातीय जिद या दुराग्रह की बात और है | यह उसी प्रकार है जैसे कि Divide and Rule की पालिसी | कोई भी सरकार हो , कोई भी पार्टी हो, कोई भी शासन  हो, वह इससे बच नहीं सकता ,यदि उसे राज्य चलाना है तो ! इन वाक्यों में मेरा अपना विचार कुछ नहीं है | मै तो बस हकीकत बयान कर रहा हूँ | भले ही मैं स्वयं इन दोनो नीतियो को पसंद नहीं करता | पर सारी दुनिया हमारे चाहने से चलती कहाँ है ! उसकी अपनी गति है | हमारी गति इसमें है कि हम कटु यथार्थ को पहचानना, जानना  और जीना सीखें |      ###


* यदि आदमी सरल है ,तो फिर वह चाहे मेरे लिए कुछ करे ,न करे , किसी भी विचारधारा , देश -धर्म , जाति -संप्रदाय का हो , मेरा मित्र है | 


*  कवि ,मैं नहीं हूँ | पर मेरी कवितायेँ लोगों को पसंद  तो आती हैं | फोन तो ऐसे आते हैं |


*  प्रजातंत्र का राजा वह ,जो कानून बनाये , और उन्हें व्यवहार में न ला पाए |


*  दवा , यह जान कर पियो ,कि अमृत पी रहे हो |     ###
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राक्षस हाज़िर

* बुढ़ापे का नाम मत लो ,
नहीं आयेगा ,
राक्षस का नाम लो -
राक्षस हाज़िर | ##
        
                 [ - नागरिक ] 

आदमी

* [ शेर ]
              देवता कोई नहीं है आदमी ,
              राक्षस भी तो नहीं है आदमी |

शेषनाग

* कितना तो ज़हर
भरा है दुनिया में !
सचमुच पृथ्वी
शेषनाग के
फन पर टिकी है | ##


* भयानक चेहरे
हमने खुद बनाये हैं
अपने मुखौटों पर | ##


*  न हम आसमान जानते हैं
न पाताल देख पाते हैं
फिर भी हम
आसमान से
किताबें लिखवा लेते हैं
और पाताल का तेल
निकाल लेते हैं |
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बुधवार, 9 मार्च 2011

अरे नहीं !

*रदीफ़ = अरे नहीं !
भ्रम तो कई बार हुआ मंजिल का ,
बाद में पता चला - अरे नहीं !