सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

हाइकु कवितायेँ

* समझदार
है हमारी संतानें
हमसे ज्यादा ।

* सब स्वार्थी हैं
स्वार्थी ही निकलेंगें
सब के सब ।

* देखना है तो
चश्मा साफ़ कर लो
साफ़ दिखेगा ।

* मर जायेंगे
मार - मार करके
यही सभ्यता ।

* व्यतीत हुआ
लड़ते - झगड़ते
एक जीवन ।

* किसी से कुछ
कहने योग्य नहीं
सब स्वच्छंद ।

* बेअसर है
चीखना - चिल्लाना भी
इस समय ।

* अनगिनत
आवाजें बुलाती हैं
इधर आओ ,
किधर जाऊं
बुलाती हैं आवाजें
अनेकानेक ।

* मेरे मन में
सवाल यह है कि
हल कैसे हो ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें