* मेरी स्थिति एकदम स्पष्ट है ।
प्रथम तो यह कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है , इसका सांस्कृतिक जीवन मूलतः और व्यापक तार पर हिन्दू है । ( हिन्दू की
परिभाषा में किसी को कोई उलझन हो तो वह वही मान ले जो संविधान में है -यानी जो मुस्लिम ईसाई यहूदी पारसी नहीं है,वह क़ानून की नज़र में हिन्दू है । ) लेकिन राज्य हिन्दू नहीं है । वह लिखित रूप में सेकुलर है । यद्यपि यह कोई चिंता की बात नहीं है । वस्तुतः सेकुलर क अर्थ प्रगतिशीलता , वैज्ञानिकता है न की धर्म निरपेक्षता / विहीनता । अलबत्ता इसमें धर्मों का अंधविश्वास अंश खारिज है । ऐसा सेकुलर तो कोई भी धार्मिक जन भी हो सकता है । इसलिए सेकुलर राज्य को भी हम हिन्दू राज्य के रूप में देख सकते हैं । इसके तहत हम पाकिस्तान में , कश्मीर में हिन्दुओं की तरह भारत से मुसलमानों क निष्कासन नहीं चाह सकते । हिन्दू राज्य में हम उन्हें सम्मानित अतिथि का दर्ज़ा देंगे । थोड़ा आप मनोरंजन कर सकते हैं इस तर्क पर की ऐसा तो हम कर ही रहे हैं । हिन्दू तो यूँ भी अपने लिए कठोर है और दूसरो के प्रति दयावान । वह जानवरों पर दया करेगा पर अपने दलितों पर अत्याचार । वह दधीच की तरह अपना अंग - प्रत्यंग काट कर खिला सकता है , तो मुसलमानों को खिला रहा है । लोग तुष्टिकरण कह कर नाराज़ होते हैं , पर ध्यान दें तो यह भी एक तरह से हिन्दू स्वभाव के अनुकूल ही है । जो तुष्टिकरण कर रहे हैं वे हिन्दू ही हैं और हिन्दू धर्मानुकूल ही आचरण कर रहे हैं । [तिस पर भी मैं उनकी व्यथा समझता हूँ ,इसीलिये यह मांग कर्ता हूँ कि भारत को हिन्दू राज्य घोषित कर दिया जाय , फिर चाहें जो मालपुवा खिलाया जाय , हिन्दू को यह संतोष तो हो जाय , उसका भी अहम् तुष्ट तो हो कि हिन्दू ऐसा दानवीर हो सकता है ] । अब प्रश्न यह है कि बिना संविधान संशोधन के क्या हिन्दू परोक्ष रूप में इस स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकता । मेरी दिक्कत यह है कि मैं स्वेच्छा से भारत को हिन्दू राज्य स्वीकार करता हूँ । इसलिए जब कोई मोदी , कोई मठाधिकारी हिन्दू धर्म की महानता के विपरीत आचरण करता है तो मुझे असंतोष होता है । राज्य को अपनी पूरी हिन्दू दक्षता का परिचय देना चाहिए कि देखो हिन्दू राज्य ऐसा होता है , उदहारण प्रस्तुत करना चाहिए कि हिन्दू राज्य एक आधुनिक मानव वादी , सर्व कल्याण वादी , सर्वे भवन्तु सुखिना वादी सुशासन प्रदान कर सकता है , और वह यह है । मुसलमानों का घर भले आकिस्तान -पाकिस्तान हो पर वे हमारे अतिथि देवो भव ।
* दूसरी बात इस हिन्दू राज्य में दलितों की स्थिति के सम्बन्ध में है । विस्तार फिर कभी । सारांशतः [अन्तर्निहित -अव्यक्त- अकथनीय तर्कों के साथ ] यह कि ऐसे हिन्दू राज्य की प्राप्ति और स्थापना हेतु सचमुच इसके लिए चिंतित लोगों को इस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए कि भारत का राज्य चुपके से दलितों [आदि हिन्दुओं ] को सौंप दें । जातिवाद हटाने के चक्कर में समय न गवाएं [ कम से कम राजनीतिक रूप से ] । अपना कोई भी वोट केवल दलित को दें । न सवर्ण को , न मुसलमान को , न सिख को , न ईसाई को । यदि दलित न उपलब्ध हो तो किसी महिला को चन्ने में ही देश की भलाई है । यह ऐसा मुद्दा है जिसे मै ज्यादा स्पष्ट नहीं कर सकता , इसलिए कृपया स्वयं सोचकर देखें ।
* तीसरी बात अंतर राष्ट्रीय स्तर पर संस्कृतियों में टकराव को लेकर है । जैसे भारत में कोई भी आये तो वह मानकर आये कि वह भारतीय सांस्कृतिक वातावरण में आ रहा है , और इसे उसको स्वीकार करना चाहिए । उसे अपनी संस्कृति भारत पर थोपने का मंसूबा नहीं करना चाहिए । इसी प्रकार यदि भारतीय अरब देश , अमरीका , ब्रिटेन जाय तो उसे यह मान कर चलना चाहिए कि उसे वहाँ मुस्लिम या अंग्रेजी संस्कृति के अधीन रहना होगा जो कि वहाँ की प्रमुखता -प्रधानता -विशिष्टता है । उन पर उसे हिंदुत्व आरोपित नहीं करना चाहिए । इसी से सांस्कृतिक - साम्प्रदायिक शांति कायम हो सकती है ।
ज़ाहिर है , मैं ज़्यादातर ख्याली पुलाव पकाता हूँ ।
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