* कौन कहता है कि मंहगाई है ? मंदिरों में भीड़ व चढ़ावा देखिये ,दुर्गा पूजा के पंडाल देख लीजिये , बाजारों में खरीदारी देखिये । और यह कहना तो भ्रम होगा कि सब बड़े लोगों का खेल है । इसमें छोटे - बड़े सब शामिल हैं । कोई गणित लगा कर देखे कि वह भोजन -पानी की वस्तुओं पर कितना खर्च करता है । गरीब तो सादगी का जीवन बिताता है , उसके पास फ़िज़ूल खर्ची के लिए समय कहाँ , पैसा कहाँ ? यह यूँ ही नहीं है कि ३२ रु ० तक की आमदनी वाले को ही बी पी एल से नीचे मानने की पेशकश की गयी है । ७०-७५ प्रतिशत जनता की आय फिर २५ रु रोज़ क्यों मानी गयी ?[सच्चर कमेटी ] । तब तो कोई हल्ला नहीं हुआ । उलटे उसे सच्चा आधार मानकर उनकी दशा सुधारने की मांग की गयी । सब संदेह के घेरे में हैं । #
* कोई नेता कोई दल छोड़कर दूसरे दल में जाता है और वह फ़ौरन स्वीकार कर लिया जाता है । यह बहुत बड़ी राजनीतिक बुराई है । इससे सभी दल प्रभावित हैं पर म्याऊँ का ठौर कोई नहीं पकड़ता । उसका सख्त इंटरव्यू लिया जाना चाहिए । क्यों भाई तुम क्यों उस दल को छोड़ रहे हो ? हमारे दल में क्या विशिष्ट देखकर तुम शामिल होना चाहते हो ? तुम्हारी सत्य निष्ठां का भरोसा क्या है । यह इसलिए चल रहा क्योंकि किसी दल की कोई नीति नहीं है [वाम को छोड़कर] । सब राजनीति की दुकानें भर हैं । कोई कहीं से भी खरीदे । सबका माल एक ही है । इसलिए कोई नेता आज इस दूकान में है , कल उस माल में । #
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