* हम किरण बेदी को माफ़ करते हैं । हमें उनकी नेक नीयती पर भरोसा है । हम भरोसा करने वाले लोग हैं । बिना भरोसे और विश्वास के शिष्टाचार क्या भ्रष्टाचार भी संभव नहीं होता । यही दिक्कत अन्ना टीम के साथ है कि वे किसी पर भरोसा नहीं करते , केवल अपने को स्वच्छ -ईमानदार और बाकी सबको बेईमान समझते हैं । यहीं वे गच्चा खा जाते हैं । तो अब भुगतें । लेकिन मैं उन्हें क्लीन चिट देता हूँ । ऐसी छोटी छोटी बातें तो हो ही जाती हैं , होती रहती हैं । यदि ऐसे शुभ प्रयासों को भी हम भ्रष्टाचार कह देंगें तो आन्दोलन के लिए हम अन्ना - अरविन्द -बेदी कहाँ से लायेंगे ।
मैं तो प्रस्तावित करता हूँ कि बेदी की इस अभूतपूर्व बचत योजना के लिए बचत निदेशालय द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए , किराये में पाँच फीसद और छूट देनी चाहिए जिससे वे अपनी संस्था के लिए और पैसे बचा सकें और देश की ज्यादा सेवा कर सकें ।
उनके आलोचक मेरी बात का जवाब दें कि यदि उस छूट से उन्हें कोई लाभ ही न हो तो ऐसी छूट से क्या लाभ ? क्या वह दिखाने के लिए होगा , या उन्हें बुलाने वाले आयोजकों के हित के लिए ? तब तो वह एक दिन भी सभा - सेमिनार से फुर्सत न पायें !
फिर भी कुछ पेंच मेरे भी मन में है । एक तो यही कि सख्त न सही , सधारण लोकपाल ही होता तो वह क्या करता ? दूसरे , बिल की नैतिक सच्चाई तो खटाई में पड़ ही गयी । किराये के अलावा जो उन्हें मानदेय प्राप्त हुआ उसी को अपनी संस्था के फंड में डालना था । फिर , जिन संस्थाओं का उन्होंने दोहन किया , वे भी तो कुछ सामाजिक कार्य कर ही रही हैं , उन पर बोझ डालना उचित न था । और अंततः , ठीक है कि वह कोई कोमलांगी महिला नहीं हैं फिर भी इकोनोमी में यात्रा करके शरीर को कष्ट नहीं देना चाहिए था । वह कष्ट हम लोगों की धरोहर है ।
चिंता न करें , यह तो होता ही रहता है । ठेकेदार को तो जो दर के हिसाब से भुगतान होता है वह तो होगा ही , इसीलिये इन्जीनियेर उसमे से कुछ बचत कर लेता है , शुभकार्यों के लिए । अक्सर राज्य और शासन के प्रतिनिधियों के लिए । इसमें गलत क्या है । हम भी जो थोड़ा बहुत हाथ मरते हैं वह भी बच्चों की पढ़ाई के लिए , उनके रहने का ठिकाना बनाने के लिए , पत्नी को खुश रखने के लिए । कौन हम सब अपने लिए करते हैं ?
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