रविवार, 2 अक्तूबर 2011

दो कवितायेँ

* किसी दिन कोई एक गुंडा
एक झापड़ लगाएगा ,
तो बत्तीस में से कोई दाँत
बचे तो नहीं हैं
जो बाहर आ जाएँ
लेकिन मेरी सारी तर्क शक्ति ,
विचारणा पर भरोसा
आदर्शों पर अडिगता
निकलकर बाहर आ जायेंगें ।
सारा नैतिक बल
ठिकाने लग जायगा । #

* कोई तुम्ही
सुंदर नहीं हो
बहुत सी हैं लडकियाँ
बहुत बहुत सुंदर
भले उन्हें मैंने
अभी देखा नहीं है ।

कोई मैं ही पुरुष
नहीं हूँ दुनिया में
बहुत से लोग हैं
मुझसे अधिक बलिष्ठ
भले तुमने उन्हें
पाया नहीं है । #
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