गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

हाइकु

[हाइकु कवितायेँ ]
* लोकतंत्र तो
उपाय भी है , पर
समस्या भी है |

* अब हम तो
छपने की दृष्टि से
लिख नहीं सकते ,
छापें न छापें
लिखेंगे अपना ही |

* पाप - पुण्य की
नई बनानी होंगी
परिभाषाएं |

* सब विशिष्ट
अपने -अपने में
सभी ख़ास हैं |

* दवा खा लेता
इतनी भी ताक़त
कहाँ बची थी !

* कौन रोयेगा
मेरे मरने पर
यही तलाश !

* भाग्य तो नहीं
लाटरी मानते हैं
लेकिन हम |
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