[हाइकु कवितायेँ ]
* लोकतंत्र तो
उपाय भी है , पर
समस्या भी है |
* अब हम तो
छपने की दृष्टि से
लिख नहीं सकते ,
छापें न छापें
लिखेंगे अपना ही |
* पाप - पुण्य की
नई बनानी होंगी
परिभाषाएं |
* सब विशिष्ट
अपने -अपने में
सभी ख़ास हैं |
* दवा खा लेता
इतनी भी ताक़त
कहाँ बची थी !
* कौन रोयेगा
मेरे मरने पर
यही तलाश !
* भाग्य तो नहीं
लाटरी मानते हैं
लेकिन हम |
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