मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

ख़याल - बंदिश

सब कल्पना :-
ईदगाह - मैं अपने घर का नाम रखना चाहता था । प्रेमचंद की इस कहानी ने मुझे बहुत प्रभावित किया है , और मेरी हरसंभव यह कोशिश बन गयी है कि कैसे मैं भारत मन के लिए एक चिंता लाऊं ? मुझे खिलौने , मिठाईयां नहीं चाहिए ।
बड़े भाई साहब _ यह मेरा नाम होना चाहिए । प्रेमचंद की कहानी का यह पात्र मेरे बिल्कुल करीब है । मैं खुद तो किसी योग्य हूँ नहीं , कुछ कर नहीं पाता , पर दूसरों को नसीहतें देता , डांटता - डपटता रहता हूँ - तुम यह नहीं करते , तुम लोग यह नहीं करते ।

राजनीतिक मनुष्य - अपने लिए यह भी नाम था । नागरिक मूलतः यही होता है , होना चाहिए ।

संस्था के लिए रोज़ कई नाम आते हैं । अभी है - स्वर्गिक आनंद , जिसमे मैं हमेशा रहता हूँ -Fools' Paradise।
pr अभी अभी " ख्याल - बंदिश " आया । मेरा यही शगल है -Thoughts and Poetry ।

फेस बुक पर ग्रुप के रूप में मंटो की कहानी के आधार पर -'खोल दो ' , यानी मन की गांठें । जैसे 'सिमसिम ' खुल जा । दिल - दिमाग की "हेरा फेरी "भी एक है ।
और यह नाम तो हमेशा है -" मनुष्य की डायरी " , DIARY - NOTEBOOK । साहित्य की इस विधा को आगे बढ़ाने की बड़ी आवश्यकता है ।
अपने सभी मित्रों से यह बताना भी था कि अपनी रचनाओं का सर्जक मैं स्वयं को नहीं मानता । इसलिए ये स्वत्वाधिकार मुक्त हैं । इसकी घोषणा मैंने अपने ब्लॉग की डिजाईन में कर दी है । इसका प्रकाशन या अन्य उपयोग कोई किसी भी नाम से कर सकता है । बात जानी ज़रूरी है , नाम नहीं । इस हेतु मेरा बैनर बनता है =
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