रविवार, 9 अक्तूबर 2011

सारा जहाँ हमारा

* आंध्रा में क्या रखा है ? पूरे प्रदेश का नाम बदलकर तेलंगाना क्यों नहीं कर देते ?
* अगर हिसार उपचुनाव में कही कांग्रेस जीत गयी तो क्या होगा अन्ना जी ? यही होती हैं विसंगतियां राजनीति की !
* देखिये सर्वजन प्रयोग से मायावती को कैसा नुकसान हुवा | सवर्ण विधायकों की करतूतों से सरकार का चेहरा काला हो गया , और उन्हें पार्टी से निकाला गया | इसीलिये मैं कहता हूँ कि विधायक , मंत्री सिर्फ दलित बनें | वे अपने किये -कराये के ज़िम्मेदार होंगे | सवर्ण केवल उन्हें वोट देकर सत्ता में बिठाएं |

* खबर है कि बाबा का अपने ११०० करोड़ से काम नहीं चल रहा है , और अब उनकी नज़र विदेशों में जमा अकूत धन पर है | लेकिन उससे क्या होगा , यह समझ में नहीं आया | क्योंकि वह तो उनका है , उनका ही होगा और रहेगा जिनके नाम वह जमा है | सरकार ज्यादा से ज्यादा उस पर टैक्स ले लेगी , तो वह तो सरकार का हो जायगा | और जब सरकार इतनी भ्रष्ट है ही , तो वह क्या सरकारी भ्रष्टाचारियों की जब में नहीं चली जायगी ? इससे तो अच्छा है कि वह सुरक्षित वहीँ पड़ी रहे | सरकारी खजाने में न आने पाए | अलबत्ता यह हो सकता है कि इस मुहिम से वे जमाकर्ता स्वाभिमान ट्रस्ट में बाबा को प्रसन्न करने के लिए और पैसे जमा करें दान के रूप में | ऐसा तो शायद हो ही रहा है | नहीं तो क्या जो बाबा के पास ११०० करोड़ रूपये हैं वह बीस रूपये प्रतिदिन की आमदनी वाली सत्तर प्रतिशत भारतीय जनता का हो सकता है ? कदापि नहीं | बाबा रामदेव एक काम और बहुत अच्छा कर रहे हैं | वह धनिकों से योग और पतंजलि दवाओं द्वारा स्वास्थ्य लाभ के नाम पर इतना पैसा वसूल ले रहे हैं कि अब धैनकों को अपना धन विदेशों में जमा करने कि सोचने की नाबत ही नहीं आयेगी |
* जब कोई कहता है -"सारा जहाँ हमारा ", तब हम जान जाते हैं कि इसकी जेब में फूटी कौड़ी नहीं है |इसके विपरीत जब बाबा रामदेव [IBN-7 पर ] कहते हैं कि उनके पास एक रुपया भी नहीं है तो विश्वास होने लगता है कि इसके पास ज़रूर करोड़ों रूपये हैं , वह किसी के नाम से हो , इससे क्या फर्क पड़ता है ? इतने बड़े झूठ पर प्रभु चावला [ साक्षात्कर्ता ] को पूछना चाहिए था कि फिर तुम्हारा खर्चा कैसे चलता है ? हवाई जहाज से उड़ानें क्या योग विद्या से भरते हो ? और भाई , गुरु जी , स्वामि जी महाराज ! नहीं तो फिर यह लो एक रुपया हमसे ले लो और फिर इधर -उधर यह न गया करो कि तुम इतने गरीब हो | इससे भारत की छवि विदेशों में बिगडती है , जहाँ तुमने उसे खूब जमा कर रखा है | हाँ ! यह बात भी खूब निकली | विदेशों के इतने विरोधी होकर वे विदेशो में क्या जोड़ रहे हैं ? योग का जोड़ , या धन संपत्ति का योग , या दोनों हाथ लड्डू ?

* आप अन्ना जी के समर्थन में हों या उनके विरोध में , यह आपकी वैचारिक स्वतंत्रता है | आप के इस अधिकार के लिए वाल्तेयर , रूसो , हम और हमारा वोट बैंक के सभी साथी आपके साथ होंगे | लेकिन अपना पक्ष इस जानकारी के साथ तय कीजिये कि अन्ना टीम भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं , अपने जन लोकपाल बिल के लिए संघर्ष कार रहे हैं , जिससे उनका , और केवल उनका [अन्य सिविल जन या समाज नहीं , इसीलिये उन्होंने हम किसी से कोई राय नहीं ली ] रूतबा बुलंद हो सके | या हो सकता है उनकी राजनीतिक लड़ाई कांग्रेस के विरुद्ध हो , जैसा कि उ .प्र. काग्रेस अध्यक्ष रीता बी जोशी ने कहा है कि अन्ना जी यह स्पष्ट करें कि उनकी लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ है या कांग्रेस के खिलाफ ? किसी भी स्थिति में उनका यह कहना कि उन्हें राजनीति से कुछ लेने देना नहीं है उनका छद्म [ shrewdness] है | ऐसा तो हम साधारण जन लेखक -कवि -पत्रकार भी , जो कोई आन्दोलन नहीं करते , केवल , लिखते -विचार व्यक्त करते हैं , नहीं कहते | हम इतने बड़े लोग भी नहीं हैं जो इतने बड़े झूठ को बोल पायें और उस पर मुलम्मा लगा सकें |

* बड़े दुःख के साथ टिप्पणी करनी पड़ती है , यद्यपि आस्थावान पाठक जन बुरा मान जाते हैं | कि एक गाँधी जी थे जिनके पीछे नेहरु - पटेल तमाम लोग चलते थे | एक नए गाँधी जी हैं जिनके आगे कुछ खंजरी बजाने वाले लोग हैं , और वह उनके पीछे चलते हैं | दिखने के लिए ज़रूर उनका पोस्टर रहता है , और वे खुद को नेता प्रदर्शित करने का प्रयास भी करते है , लेकिन दरअसल स्थिति यही है |





















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