शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

पुत्रवत

* [ कहानी ] " पुत्रवत "
बस की तीन सीटर पर हम दो आराम से बैठे थे कि एक बूढ़ा आदमी आकर तीसरी सीट पर बैठ गया और हमारे आराम में बाधा पड़ी | यह मुझे अच्छा नहीं लगा , और मैंने बूढ़े को परेशान करने की सोच ली | मैं बार बार सोने का बहाना करके उसके ऊपर गिरने लगा और उसकी ओर खिसक कर उसके लिए जगह कम करने लगा , जिससे वह तंग आकर कहीं पीछे जाकर बैठे |
एक जगह बस रुकी और ड्राइवर ने बत्ती जलाई , तो पीछे के एक व्यक्ति ने बूढ़े से कहा कि वह क्यों नहीं मुझे जगा कर ठीक से बैठने के लिए कहता ? इसे मैंने भी सुना , क्योंकि मैं तो जग ही रहा था | बस यह था कि रात की सफ़र को मैं थोड़ा आराम से बिताने के लिए बूढ़े को भागना चाहता था | लेकिन बूढ़े ने जो जवाब दिया उसे सुनकर मैं चकरा गया | उसने कहा -" भाई यह मेरे पोते की उम्र का है , यह आराम से बैठे इसी में मुझे आराम है , हम तो जिंदगी भर तकलीफें सहते रहे हैं , हमारे लिए इतना क्या है | "
अब तो जब गाडी चली तो मैं उससे बिल्कुल दूर खिसक उसके लिए पूरी जगह कर दी | अच्छा लगा जब मेरे बाबा का सर थोड़ी देर में मेरे कंधे से टिक गया, और वह सो गए | ##























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