उग्रनाथ'नागरिक'(1946, बस्ती) का संपूर्ण सृजनात्मक एवं संरचनात्मक संसार | अध्यात्म,धर्म और राज्य के संबंध में साहित्य,विचार,योजनाएँ एवं कार्यक्रम @
मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011
जग - न - मिथ्या
* मैं संत तो हूँ , पर मैं किसी को भी यह सीख न दूंगा कि यह जगत मिथ्या है , जीवन क्षण भंगुर है , शरीर मिट्टी है और धन - संपत्ति का कोई महत्व नहीं है | # = अतिसामान्य [ Extra ordinary]
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