बुधवार, 8 अगस्त 2012

Day Book - 8 Aug. 2012

* यदि हम एक पार्टी होते तो क्या करते, क्या अजेंडा होता हमारा, आधारभूत घोषणापत्र ? और हाँ, आप उसका नाम क्या रखते ? इसी सब पर राय प्राप्त करने की पत्रकारिता का नाम है यह ग्रुप - " प्रिय सम्पादक " | 
* मुनाफावादी समाज | समाज आदमियों से निर्मित होता है | और आदमी मूलतः मुनाफा वादी होता है | इसलिए न दलितों की गलती है न ब्राह्मण वादियों की | आज सवर्ण चिल्ला रहे हैं , लेकिन अभी यदि उनके लाभ की कोई योजना लागू हो जाय तो वे भी बल्ले बल्ले हो जायँगे | क्या हुआ नहीं ? वी पी सिंह ने पिछड़ी जातियों के लिए मंडल क्या लागू कर दिया कि वह आज पिछड़ों के महाप्रभु बने हुए हैं | देखिये किस प्रकार उनका गुणगान उनकी पूजा हो रही है | मानो वी पी सिंह कभी सवर्ण रहे ही न हों | वह एकायक पिछड़ों के आयकन बन गए , भले उनके सह - सवर्ण खूब गालियाँ पा रहे हैं | कोई रूककर तनिक सोचने को तैयार ही नहीं कि राजा मांडा भी ठाकुर ही थे , तो उनके सजातियों  का इतना तो अपमान न किया जाय ! यह तो तब है जब कि पिछड़ी जातियाँ [ कुर्मी यादव ] न कुछ कम ब्राह्मण हैं मांस मछली शराब छोड़ने में , और न ही इनके पास संपत्ति की आम तौर पर कमी है , अच्छे खासे ज़मींदार है ये | इसी प्रकार यदि अभी जाति विहीनों के लिए यदि कोई मलाई - योजना चलाई जाय , तो क्या सवर्ण क्या दलित सभी उसकी लालच में अपना कुल गोत्र , जाति वाति, बिस्तर विस्तर, चद्दर वद्दर , तकिया वकिया सब छोड़ कर भारत के सामान्य ' नागरिक ' बन जायँ | सब स्वार्थ , लाभ और मुनाफे की बात है | आरक्षण का थोड़ा सहारा न हो तो भला कौन इज्ज़तदार लोग अपने को दलित कहना - कहलाना पसंद करें , और समाज की अवमानना अवहेलना और झिड़की खाएँ ?      

* कबिरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ , 
जो घर जारे आपनो चले हमारो साथ |
इसलिए मैं तो पार्टी ऐसी ही चाहूँगा जिसमें ऐसे घर जारू लोग हों - सम्पूर्ण  निजी स्वार्थ विहीन | मैं अपनी संस्था का नाम " लुकाठी " रखना चाहूँगा | 

* [ आत्मालाप ]
     १ -  मैं झूठ बोलता ही नहीं | लिखने में वर्तनी की त्रुटि हो जाय तो उसका ज़िम्मेदार नहीं |
     २ - इधर मैंने एक बात सुनी है | सुनी क्या , अनुमान लगाया है कि जो कुछ करता है पुरुष करता है  , बलात्कार तो बलात्कार , सम्भोग भी | औरतें तो मिट्टी का लोंदा होती हैं | उन्हें कुछ भी आनन्द नहीं आता |  

[कविता ?]
* कोई आग 
नहीं देखता 
मैं लोगों में 
मैं आग बबूला |
#

* तुम माओ वादी 
तो सरकार मोबाइल वादी ,
अब क्या करोगे ,
अब तो तुम्हें 
आदर ही करना पड़ेगा 
सरकार का जैसे  
करते हो नारियों का !
एक नहीं दो दो मात्राएँ 
नर से भारी नारी है ,
एक नहीं दो दो मात्राएँ 
माओ से भारी मोबाइल है |
   #
* मुझे ज्ञात हुआ है कि काला धन उसे कहते हैं जिस पर टैक्स न चुकाया गया हो | अब समझ में आया लोग बाग़ मंदिर अँजुरी में कुछ लेकर क्यों जाते हैं ? टैक्स चुकाने | 

* मुझे जिगर मुरादाबादी का यह शेर बहुत पसंद है :-
" किधर से बर्क चमकती है देखें ऐ वाइज़ , मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा | "
 [बर्क = बिजली , वाइज़ = धर्मोपदेशक]
इसीलिये मैं जब तब, यहाँ वहाँ, जैसे भी हो आग ढूँढता, तलाशता, मौका पाने पर सुलगाता-जलाता और उसे भुभुच्चर की तरह फेंकता -बिखराता रहता हूँ कि न जाने किधर से बिजली चमक जाये और मुल्क रौशन हो जाये ! यह सब जो कार्यवाही आप देख रहे हैं , वह इसी के निमित्त है |    
भुभुच्चर = गाँव में रबी की फसल के लिए तैयार खाली खुले खेतों में शाम के समय बच्चे मिट्टी का छेदयुक्त दावात बना उसमे जलता अंगारा भरकर रस्सी के स्ट्रिंग से घुमा, चक्कर देकर आकाश में फेंकते हैं जो फिर दूर ज़मीन पर जाकर गिरता है | बच्चे आनंदित हो दौड़ते - फिरते हैं ] #

* एक कुत्ता मेरे घर बहुत परका [रूचि से लगा] हुआ है | कई बार भगाने पर जब नहीं भागा तो मैंने उससे पूछा - भाई साहब , आपकी जाति क्या है ? उसने मेरा वाल पोस्ट , लगता है , पढ़ा हुआ था | फ़ौरन बोला - ' वही आप वाली ' | #

* मर्दों पर आरोप है कि वे औरतों को परदे में रखना चाहते हैं | पता नहीं किन मर्दों के लिए है यह | मैं तो भाई चाहता हूँ कि हमारी औरत बराबर और खूब घर से बाहर निकले | गेहूँ पिसवा लाये, सौदा सुल्फ, सब्जी मछली ले आये , हाट बाज़ार कर आये | बल्कि वह चाहें जितना बाहर रहे कोई नौकरी करे , कुछ कमा - धमा भी लाये | और मैं घर पर आराम से रहूँ | # 

* राजनीति ,
जहाँ  तक ठीक है -
करते हैं ;
जहाँ से ख़राब होती है -
नहीं  करते |

* कुछ खाया क्या 
क्या खाकर लड़ोगे  
जाति वाद से ?

* नहीं पसंद ?
कह दो मैं समर्थ, 
न बाँधो राखी |

* सेवा न करो  
मैं भी नहीं करूंगा  
सेवा  तुम्हारी  |

* मैं सोचता हूँ , यदि देहाती पढ़ाई वैसे ही चल रही होती उल्टी सीधी , जैसी चल रही थी / जैसी हमने पढ़ी , तो आज अंग्रेज़ी का इतना बोलबाला न होने पाता | मेरा नाती , मेरी पोती अंग्रेज़ी मीडियम में पढ़ रहे हैं, आधुनिक [?] शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं | #
* मैं आश्चर्यचकित हूँ | कहना भी तो नहीं चाहिए , अभी लोग बिदक जायेंगे और झाँय - झाँय करने लगेंगे | लेकिन सोचने की बात है कि यदि दलित जन सचमुच जातिवाद से पीड़ित होते तो वे इस कुप्रथा  को मिटाना ज़रूर चाहते ! वे ऐसा बिल्कुल नहीं कर रहे हैं यह विषाद और आश्चर्य का विषय है | क्यों ? बेहतर वही जानें |  

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