* मुझको बदल दो
मैं जिलों का नाम हूँ , मुझको बदल दो ;
मंजिलों का नाम हूँ , मुझको बदल दो |
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बड़े बड़े ही नहीं , बहुत छोटे छोटे लोग भी लगे हैं सोचने - विचारने में | श्रम रंग लायेगा ही |
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* ज़िन्दगी चलती जाये
पढ़ाई होती लाये
तो मज़ा आये !
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* जाति प्रथा जा तो रही दिखती नहीं , उलटे वाद - विवाद, झगडा - झंझट के ज़रिये यह और प्रखर, कटु और व्यापक होती जा रही है | बढ़ती बढ़ती, वातावरण को विषाक्त करती | जो इसके जंजाल में नहीं हैं , उन्हें भी यह बुला कर शामिल कर लेती है और उन्हें उलझा कर एक प्रकार से जातिवादी बना रही है |
क्या इसे यहीं छोड़कर , इससे कतराकर , बचकर दूसरे रास्तों से आगे निकल जाना ज्यादा सही न होगा ? यह जितनी जहाँ है , उतनी वहाँ पडी रहे ? यही नीति ब्राह्मणवाद के साथ भी काम आ सकती है | देसी कहावत है कि पुलिस और गुंडों [किंवा इन बुराइयों से] न दोस्ती अच्छी , न दुश्मनी अच्छी |
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* उतार दिया
कागज़ पर सब
अपना चिट्ठा |
* क्या कहते हैं
जो है सो , अरे वही
लरकिनिया |
* चाय पी गया
थक हार कर मैं
चाह पी गया |
* हीन भाव से
तो यथास्थिति भली
आगे न सही |
*मैंने किसी का
कुछ लिया तो नहीं
दिया न दिया |
* सड़क पर
मंदिर बन जाय
आश्चर्य नहीं |
* लिखता तो हूँ
लेखक हूँ या नहीं
अनिश्चित है |
* क्या कर लोगे
ईश्वर के खिलाफ
होकर तुम ?
* सोता नहीं है
हरदम नींद में
होता है देश |
* क्या थोड़ा शांत
नहीं रह सकते ,
इतना शोर ?
क्यों थोड़ी देर
चुप नहीं बैठते
इतनी बातें ? 23/7/12
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आप समर्थ हों और आपको सिर्फ [अपना] स्वार्थ सोचना हो तो आप कुछ भी कर सकती / सकते हैं | आप भाग कर अंतरजातीय विवाह भी कर सकती / सकते हैं | लेकिन यदि आपकी छोटी बहन या छोटा भाई इतने समर्थ साहसी न हुए तो उनके लिए मुश्किल हो जायगी ! उनका अरेंज्ड विवाह तो नहीं हो पायेगा , कोई सजातीय करेगा ही नहीं |
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Citizens' Journalism : Inaugurating New Priya Sampadak =
हम विक्रम टेम्पो पर सवार होते हैं | चालक कहता है-बहन जी थोड़ा आप आगे खिसकिये, भाई साहब आप पीछे होकर बैठिये | और इस तरह वह एक का जंघा दूसरे के पुट्ठे से सटाकर तीन की सीट पर चार सवारियाँ फिट कर देता है | जो कुछ कमी रह जाती है वह टेम्पो के झटके से पूरी हो जाती है |
तो यह है लखनऊ की तहजीब जिसे हम रोज़-ब-रोज़ झेलते हैं ,और इसी पर गर्व करने के कसीदे गाये जाते हैं | क्या कोई बताएगा ऐसा कैसे हो रहा है ? किसकी मिली भगत से यह चल रहा है ? जब कि ऐसा पहले न था | निश्चय ही तेल के दाम बढ़े , तो उसी हिसाब से किराया भी तो बढ़ता रहा | और भरती रहीं जेबें किसकी किसकी | क्या इसके लिए भी किसी जन - यातायात -प्रबंध पाल बिल की ज़रुरत है ? ## 23/7/12
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अच्छा लगा = ७४ वर्षीय आर के धवन ने अचला [५९] से शुभ विवाह किया | मुबारक , 22/7/12
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[कविता]
तुम रहो
प्रकृति रहे
मैं भी रहूँ !
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kavita =
मुर्गे ने बाँग दी
तो सवेरा हुआ ,
लेकिन मुर्गा
काट दिया गया |
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कुछ बात तो है
उसके दिल में
मुझसे कहना चाहती है ,
कोई तो है संकोच
जो रास्ता रोक रही है !
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* उसने कहा - तुम राज ले लो , ले लिया ;
उसने कहा फिर - पाट ले लो , ले लिया |
उम्र के दालान में इस छोर पर ,
उसने कहा - अब खाट ले लो , ले लिया ||
एक व्यक्ति वेश्या के पास ५०रु व्यय कर आता है | पत्नी को बताता है |
पत्नी - ' बड़ा अनिष्ट हो गया |'
पति - हाँ ! ५० रु कोई कम थोड़े ही होते हैं |
पत्नी - नहीं , रूपये की कोई बात नहीं , क्षति तो दूसरी हुयी |
पति - अजीब बात है ! ५० रु चले गए , उसका कोई दुःख नहीं , और दो बूँद पानी का इतना मलाल , जो शाम तक पूरा हो जायगा ? कहना तो सिद्ध करके दिखा दूंगा | ##
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* चिढ़ := दो सहेलियां थीं | साथ रहती थीं | एक दिन दो बलात्कारी आये | दोनों अपने कमरे में थीं | लेकिन दोनों ने केवल एक के साथ सामूहिक बलात्कार किया , और दूसरी को छुआ तक नहीं क्या वह इतनी कुरूप या अनाकर्षक है ? फिर उसने न शादी की , न उसका ब्याह हुआ | अब वह नारी सुरक्षा कार्यकर्त्ता है | और जहाँ भी कोई बलात्कार की घटना होती है वह बलात्कारी को सजा दिलवाकर ही दम लेती है | ###
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* अरे हाँ , मैं तो भूल ही गया था , २० साल हो गए न ! १९९२ में दिल का दौरा पड़ा था
| अब ठीक हूँ |
* ट्रेड है ट्रेड ! और फिर यूनियन भी है | तो यह व्यापारिक संगठन हुआ की नहीं ?
* सरकार को भी बस जनता का ट्रेड यूनियन ही समझिये | लोकतंत्र में
ज़रूरी या मजबूरी है इसमें शामिल होना |
* इसके अलावा निजी तौर पर अन्य व्यावसायिक संगठनों में मेरा मन नहीं लगता | इस समय मैं गौर कर
रहा हूँ कौन इन हिंसा कांडों के समर्थन में हैं | मौका पाकर धीरे धीरे उन्हें unfriend कर दूँगा |
* [हाइकु ]
नज़र आई
कुछ बात बनती
तो बना लिया |
* पैसा चाहिए
प्रेम से क्या
होता है
बच्चे रोयेंगे |
* बड़े छिछोरे
लोगवै कहती हैं
बूढ़वै लोग |
* अब कितना
तो इंतजार करें
बहुत हुआ | 21/7/12
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