शनिवार, 25 अगस्त 2012

20-06-2012


[ gon -zo ]

हाइकु=
* तन से सब
मन से कुछ नहीं
मानता हूँ मैं |

* न गर्मी ठीक
कोई मौसम नहीं
न जाड़ा ठीक |

* विशालता से
कम कुछ भी  नहीं
चाहिए मुझे |

कविता =

* हाँ यार ,
लिखना तो चाहिए ऐसा
की दुनिया हिल जाए
पूँजीवाद धूल में मिल जाए
सरकारें धराशायी हो जाएँ
जनवाद का बोलबाला ,
साम्राज्य स्थापित हो जाए |
हाँ यार '
लिखता तो हूँ ऐसा
की कोई पुरस्कार मिल जाए |    kwt
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टीप = डी एन ए टेस्ट
* एक उदाहरण याद है अभिनेत्री नीना गुप्ता का | उन्होंने स्वयं अपनी मर्जी से संतान - प्राप्ति की , और पुरुष का नाम नहीं बताया | उनके अनुसार यह पर्याप्त था कि वह उसकी माँ है , उसने अपनी ज़िम्मेदारी पर बच्चा पैदा किया है , इसमें किसी पुरुष - बाप के नाम की ज़रुरत क्या है ? वह ही माँ -बाप हैं | यह अतीव साहस का काम था |
दूसरा उदाहरण पौराणिक है | बिना बाप के नाम के पुत्र सत्यकाम और उसकी माँ का | लोक - उलाहनों से प्रेरित सत्यकाम ने अपनी माँ से पूछा - माँ , मेरे पिता कौन हैं ? साहसी और सत्यवादी  माता ने दृढ़तापूर्वक  कहा - " बेटे मैं कई ऋषियों की सेवा में रही , तू किसका पुत्र है , मैं बता नहीं सकती ?" यही बालक सत्यकाम सत्यवाद का महान नायक बना , और पुराण पुरुष | प्राच्य विज्ञानं का गुण गाने वाले भले कहते रहें कि उस ज़माने में पुष्पक विमान था , यह था -वह था , लेकिन निश्चय ही उस काल - अवधि तक डी एन ए टेस्ट की जानकारी विज्ञानं को नहीं थी | और यह भी कि हर औरत नीना गुप्ता और सत्यकाम की माँ नहीं हो सकती |     kwt
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[ हाइकु ]
१ - पर्याप्त होता
औरत का होना ही
किसी घर में |

२ - बच्चे रहते 
घर भरा रहता
आनंद पूर्ण |

३ - बिलावजह
नींद हराम किया
उनके पीछे |

४ - होना चाहिए
ईश्वर है नहीं तो
नया बनाओ |

५ - मुझे क्या पता
प्रेम किसे कहते
करना जानूँ |

६ - नाम कमाना
क़ुरबानी माँगता
हलवा नहीं |

७ - कोई न कोई
पावरफुल होगा
वह कोई हो |

८ - कोई आदमी
अपनी बराबरी    
नहीं चाहता |

९ - चिंतन कर्म
बिल्कुल आसान है
शुरू तो करो |

१० - मैं मूरख था
मैं मूरख रहूँगा
मैं मूरख हूँ |

११ - मिलता भी तो
कब तक मिलते
जीवन छोटा |

12 - ठीक से देखो
नज़र नीची करो
ज़मीन देखो |

13 - कुछ चीज़ें तो
बदलनी चाहिए
मसलन क्या ?
हमारी सोच
जन - मानसिकता
बदलेगी क्या ?
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[ कथनानुसार ]
१ - बीस रुपया रोज़ पाने वाले गरीब विधायक -सांसद बनें यह तो संभव नहीं है , लेकिन मेरी आकांछा आकांक्षा है कि सांसद - विधायक बीस रुपया रोज़  वेतन लें |
२ - अजीब बात है कि असली 'व्यक्ति' का उदय तब होता है जब उसका नकली ' व्यक्ति ' तिरोहित हो जाता है |
३ - यदि हिंदुस्तान को तरक्की तो क्या , जिंदा भी रहना होगा तो उसे यह भूलना होगा कि कोई व्यक्ति मात्र पैदा होने से छोटा या बड़ा होता है |
४ - किसी के कहने से नहीं , जब मेरी नानी मरीं , तब मुझे विशवास हो गया हम सबको , सारे मनुष्यों को मरना होगा |
५ - बूढ़ों को भी अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए |
६ - ' आम आदमी ' वह है जिसे अपने आम ज़रुरत के कार्यों के लिए नौकर , मजदूर न लगाना पड़े |
७ - ईश्वर को अपने सिस्टम से delete  मत करो तो उसे recycle bin में तो डाल ही दो |
८ - मैं स्वर्ग को न तो जानता हूँ न मानता हूँ , लेकिन यदि कहीं स्वर्ग हुआ और उसमे मुझे जाना ही पड़ा , तो चला जाऊँगा |
९ - ईश्वर को छोड़ अपने ' आदमी ' की शरण में आइये |
१० - बड़ी ज़िम्मेदारियाँ उतनी ही बड़ी नैतिक ऊँचाइयों के साथ निभाई जानी चाहिए |
११ - जो अपने आपको बहुत बुद्धिमान समझते हैं , वे सबसे अधिक मूर्ख होते हैं |
१२ -  The world is made up of ‘differences’ . Once you forget it , you will  be in a candid tension .  kwt
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मौत की तो सिर्फ बात करता हूँ ,
वरना मैं जनता हूँ - ज़िन्दगी  हूँ |
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अभी समय है , हिंदुस्तान - पाकिस्तान एक करो , चाहें जरदारी को भारत का राष्ट्रपति बना दो | दोनों देशो की समस्याएँ , परेशानियाँ एक हैं अंदरूनी भी , बाहरी  भी | कहने दीजिये किसी को , जब बिल्कुल ठीक से बँटवारा नहीं हुआ , हो ही नहीं सकता था , कि सारे हिन्दू हिंदुस्तान  में - सारे मुस्लिम पाकिस्तान में , तो फिर यह माना जाना चाहिए कि दोनों का रहन सहन , संस्कृति एक ही है | और जो नहीं है तो भी वे अपनी अपनी मान्यताओं के साथ एक साथ सदियों से रहते आये हैं | इन्हें एक साथ रहने का पूरा अनुभव - अभ्यास है | यह काम जितना जल्दी हो जाय उतना अच्छा | भारतीय मानस इस बँटवारे को स्वीकार नहीं कर पाया है , न कभी इसे पचा पायेगा | यदि ऐसा न हुआ तो पाकिस्तान में हिन्दुओं की दशा अच्छी नहीं होगी , है भी नहीं | उसी प्रकार भारत में मुसलमान भी ढंग से नहीं रहने पायेंगे , चाहें सच्चर कमेटी लागू कर लीजिये चाहें आठ प्रतिशत आरक्षण | कैसे भूल जायेगा हिंदुस्तान जिन्ना की बात कि हम अलग हैं और एक साथ नहीं रह सकते , और इसे पाकिस्तान ने अपने यहाँ हिन्दुओं के साथ वही व्यवहार करके दिखा भी दिया ? यदि जिन्ना की बात गलत करनी है ,अल्लामा इकबाल का कौमी तराना यदि सही ठहराना हो , तो फिर एक होकर दिखाओ | अब इससे कोई लाभ नहीं कि बँटवारे में जिन्ना - -इकबाल का दोष ज्यादा था या गाँधी - नेहरु का | एक होने पर सारा मलाल मिट जायेगा | यह तो तय है कि  जनता का तो कोई दोष नहीं था ? उसने बहुत सह ली बँटवारे की त्रासदी | अब वह एक होना चाहती है | ऐसी राजनीतिक इच्छा [Political Will ] जिसके पास हो वह अब अगले चुनाव में उतरे | शेष तो लफ्फाजी बहुत हो चुकी |    kwt
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अन्ना को डाक्टर ने बताया है कि कुछ बोलना ज़रूर है | प्रणव के बारे में नहीं पता था तो भी बोलना , बयान -समर्थन देना ज़रूरी था | अब जब प्रणव के बारे में साथियों से कुछ पता चल गया तब तो बोलना , समर्थन का खंडन करना ज़रूरी ही है | इसी तरह पत्रकारिता ने भी यह ठान लिया है कि अन्ना के बयानात वह छापेगी , उछालेगी ही चाहें वह जैसी हो | मेरा मूल प्रश्न है प्रेस अन्ना को इतना महत्त्व क्यों दे रहा है ? उनकी हैसियत क्या है ? और इसी प्रकार रामदेव की भी ? क्या इसलिए कि ये लोग साधु संत जैसे दिखते लोग हैं ?
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लोग कहते हैं कि सभासदों , पार्षदों , मेयरों के पास अधिकार नहीं हैं | उधर समाचार है कि ये लोग चुनाव जीतकर ज़मीनें हथियाते हैं | भैया जी लिखते है कि अब ठेकेदार नगर निगम के चुनाव में आ रहे हैं | तो इतने कम या कुछ नहीं अधिकार  पर जब यह हाल है , यदि इनके पास खूब अधिकार होता तो ये क्या करते ? 20/6/12 kwt

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