@ कालोनी में नागरिक
जी की पड़ोसी महिला ने एक ' Beauty पार्लर ' खोला और उसका बोर्ड बाहर टाँग दिया | नागरिक जी ने भी देखा देखी एक बोर्ड बनवाकर
अपने घर पर टाँग लिया | जल्दबाजी में थोड़ी
स्पेलिंग मिस्टेक हो गयी जी | उस पर लिखा था ' Duty पार्लर '
#
* सड़क पर गड्ढे हैं
वे तो अपना
कर्तव्य जानते हैं
उसे वे करेंगे '
तुम भी अपना
कर्तव्य समझो
उनसे बचकर चलो | #
* काम बड़ा है
लेकिन हो जायगा
मेरे ख्याल से |
* ज्यादा बहस
बिगाड़ देती बात
चुप भी करो |
* हमने कोई
किताब नहीं लिखी
पन्ने न फाड़े |
* न जातिप्रथा
ख़त्म होगी, न प्रथा
आरक्षण की | 3/8/12
=============================================================================
@ और धनञ्जय जी, गलत या सही, चलिए कायस्थ समाज
ने तो प्रेमचंद जयंती मनाई ! चाहे जातिगत प्रेरणा से या साहित्यिक समझ के नाते | लेकिन उनके वंशजों
प्रगतिशील शिष्यों ने भला क्या किया , कोई खबर पढ़ी आपने ? क्या इससे यह सहज
निष्कर्ष नहीं निकलता है कि इन्हें ऊँच - नीच में न भी बाटें, तो जातियाँ भारत
की सुस्थापित संस्थाएँ हैं? वस्तुतः जनता की
गति अपनी - अपनी जातियों में ही है और ऐसा ही वह समझती है | इसीलिये, हम प्रबुद्ध जन
कितनी भी गालियाँ दे लें इनका बाल बाँका नहीं हुआ, न होने वाला है | अन्य अस्वाभाविक संगठन हिंदुस्तान के खून में
नहीं हैं | यहाँ उचित तो न था
कहना, पर देख लीजिये, यही कारण है कि इस
देश में पार्टियों का गठन भी अन्य देशो की राजनीतिक पार्टियों की तरह संभव नहीं हो
पाया | यहाँ तक कि कथित
अनुशासित वामपंथी दलों में भी हिंदुस्तान का मौलिक चरित्र अनुपस्थित नहीं है | #
@ और धनञ्जय जी, गलत या सही, चलिए कायस्थ समाज
ने तो प्रेमचंद जयंती मनाई ! चाहे जातिगत प्रेरणा से या साहित्यिक समझ के नाते | लेकिन उनके वंशजों
प्रगतिशील शिष्यों ने भला क्या किया , कोई खबर पढ़ी आपने ? क्या इससे यह सहज
निष्कर्ष नहीं निकलता है कि इन्हें ऊँच - नीच में न भी बाटें, तो जातियाँ भारत
की सुस्थापित संस्थाएँ हैं? वस्तुतः जनता की
गति अपनी - अपनी जातियों में ही है और ऐसा ही वह समझती है | इसीलिये, हम प्रबुद्ध जन
कितनी भी गालियाँ दे लें इनका बाल बाँका नहीं हुआ, न होने वाला है | अन्य अस्वाभाविक संगठन हिंदुस्तान के खून में
नहीं हैं | यहाँ उचित तो न था
कहना, पर देख लीजिये, यही कारण है कि इस
देश में पार्टियों का गठन भी अन्य देशो की राजनीतिक पार्टियों की तरह संभव नहीं हो
पाया | यहाँ तक कि कथित
अनुशासित वामपंथी दलों में भी हिंदुस्तान का मौलिक चरित्र अनुपस्थित नहीं है | #
*मेरे पिता का नाम
विशम्भर नाथ था | मेरी माँ को जब
बीस गिनना होता था तो ' दो दस ' कहती थी | मेरी पत्नी भी मेरा नाम नहीं लेती | लेकिन आज एक फोन आने पर वह बोली - हाँ हैं
नागरिक जी , लीजिये बात कीजिये
| इसका मतलब यह हुआ
कि मेरा 'नागरिक ' नाम सरकार द्वारा स्वीकृत और मान्य नहीं हुआ | 2/8/12
[ हाइकु ]
* कुछ भी हुआ
विचार तो ले लिया
चलता बना ,
मैंने कभी तो
बहस नहीं किया
अब भला क्या !
[कविता ?] " बुरी खबर "
* जिस सुन्दरी को
तुम बहुत चाहते थे
उसका हाल जानते हो
?
उसके गाल पिचक गए
और कुपोषण से उस
पर
छायियाँ
दृष्टिगोचर हैं ,
उसके स्तन में पड़
गई हैं
कैंसर की गाँठें |
और जिस कमर पर
तुम जान छिड़कते
थे
सायटिका से ग्रस्त
है |
तुम्हारी गजगामिनी
अब झुक कर चलती है
अब वह सुंदर तो
नहीं रही |
क्या तुम अब भी
उसे प्यार करोगे ?
करोगे न ? #
-----------------------------------
ड्राफ्ट घोषणा
पत्र =
अखिल भारतीय
नागरिक दल
(All India Citizens' Party)
--------------------------------------------
आधार शिला Base
Point
--------------------------
---------------------------
धार्मिक पार्टी [ RELIGIOUS PARTY]
१ - इस दल का कोई
सदस्य नेतागिरी का ड्रेस नहीं पहनेगा दिखावे के लिए | सामान्यतः वह जो भी पहनता है , वही पहनता रहेगा , वह जैसा भी हो | उस पर कोई नियमन नहीं |
२ - हम केवल उन्ही
लोगों को सदस्यता देंगे [आरक्षित वर्ग के कम, अनारक्षित श्रेणी के ज्यादा] , जो इस बात पर सहमत हों कि दलित [sc/st] उम्मीदवार को ही चुनाव के लिए खड़ा किया जाय | दलितों को
उपयुक्त शिक्षण प्रशिक्षण देने की व्यवस्था कर उन्हें नेतृत्व के लिए तैयार
करने की कोशिश की जायगी |
३ - चतुर्थ श्रेणी
की नौकरियाँ केवल दलितों को दी जायंगी | अन्य पद भी उनके लिए समान रूप से खुले रहेंगे |
४ - हमारी पार्टी
राजनीति को फूलों का बगीचा नहीं समझती | इसके लेखे सत्ता काँटों का ताज है और मानव - जन
सेवा के महत्वपूर्ण कर्तव्य का एक सुअवसर, जिसे निभाना है उसे | स्पष्ट है, इसके नेता अपने लिए अधिकाधिक सुविधाएँ , सुरक्षा , लाल बत्ती , वेतन भत्ते , विशिष्टता के प्रतीकों की माँग नहीं करेंगे और
उनका त्याग करेंगे | न्यूनतम में
जीवनयापन उनका प्रयास होगा | वे सतत चलने वाले
स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी होंगे |
- to be continued 2/8/2012 ,
5/8/12
*मैं सामान्य एक
पुरुष , मनुष्य की
स्वाभाविक कमजोरियों से ग्रस्त हूँ | [Personal confession]
* मान लीजिये मैं
अनपढ़ मूर्ख हूँ , पर अन्य बुद्धिमान
जन भी तो आन्दोलन की आलोचना कर रहें हैं ! क्या केवल IAC ही है एकमात्र
सभ्य समाज भारत में ? उनकी क्यों नहीं
सुनते , मशविरा लेते अन्ना
? अमर्त्य सेन तक
इसके आलोचक है | तो यदि
आन्दोलनकारी इनकी बात पर ध्यान नहीं देते तो इसका मतलब है वे केवल अंध भक्त हैं , मुझसे भी ज्यादा
अविवेकी |
* जैसे अनेक कानून
बने भ्रष्टाचार रोकने के लिए और वे असफल हुए , तो क्या गारंटी है लोकपाल इसमें सफल होगा ? इसमें भी होंगे तो
सब हिन्दुस्तानी ही ? लोकपाल की असफलता
पर अपने लिए क्या सजा मुक़र्रर रही है अन्ना टीम ? क्योंकि बोल तो ऐसी ही हैंकड़ी से हैं , जैसे बस बिल पास
होने की देर है और भ्रष्टाचार उड़न छू |
* इसके पूर्व कि
अन्ना पद्मभूषण लौटने का गौरव हासिल कर पायें , केंद्र सरकार को चाहिए कि मंत्रिमंडल से
प्रस्ताव पारित कर, राष्ट्रपति से
संस्तुति लेकर , एक अधिकारी भेजकर
अन्ना से वह अलंकरण बाइज्ज़त वापस मँगवा ले | उनके पास रहकर वह धूमिल और दूषित हो रही है | अब अन्ना उसके
उपयुक्त , योग्य पात्र नहीं
रह गए हैं , बुरी संगत में
बिगड़ गए हैं | अरे क्या बताएँ ? हम होते सरकार में
तब बताते | #
* लखनऊ के उर्दू -
अरबी - फ़ारसी विश्वविद्यालय कांशीराम के नाम से बदलकर ख्वाज़ा मोईनुद्दीन चिश्ती
के नाम पर करने जा रही है यू पी की सपा सरकार | एक महान सूफी संत को बिलावजह बीच में विवाद में
लाने के लिए घसीटा जा रहा है , इसलिए मुझे इस पर एतराज़ है | इससे अच्छा था
विद्वान अल्लामा सर मोहम्मद इकबाल का मजीद नाम | और सबसे तो अच्छा होता - " कायदे आज़म
मोहम्मद अली जिन्ना उर्दू - अरबी - फ़ारसी विश्वविद्यालय लखनऊ [उ. प्र.]
" 2/8/12
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मैं आंबेडकर जी की
इस बात का प्रशंसक हूँ कि स्वतंत्र भारत को किसी आमरण अनशन की ज़रुरत नहीं है , इससे अराजकता पैदा होगी | इसी क्रम में मैंने प्रथम अन्नान्दोलन के समय
ही प्रस्ताव किया था कि लोकपाल बिल से पहले ' Right to die of Hunger Strike' बिल पास करो | जिसे बड़ा शौक हो वह ख़ुशी से अपनी जान दे | पर कोई सुनता
ही नहीं |1/8/12
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विशेषतः प्रेमचंद
क्यों मुंशी कहलाये , यह बौद्धिकों के
शोध का विषय हो सकता है , लेकिन हमारी पीढ़ी
में भी कायस्थों को अमूमन मुंशी ही कहा जाता था | 'वकील के मुंशी' [शायद इसी तर्ज़ पर डा धर्मवीर ने 'सामंत का मुंशी' नाम निकाला] , फिर कचहरी में जो दरख्वास्त लिखता था , उसे मुंशी जी , पोस्ट आफिस के बाहर चिट्ठी , मनीऑर्डर फार्म भरने वाला मुंशी | गोया वह अंग्रेजी के सेक्रेटरी का देशज अनुवाद
था | प्रायमरी मिडिल
स्कूल में तीन प्रकार के शिक्षक होते थे - मोलवी साहब , पंडित जी और मुंशी जी | तब जातियों के बीच इतना जातिवाद नहीं था इतना
सांप्रदायिक दुराव भी न था कि लोग इसे अन्यथा लेते | बस नाम था तो था , नाम भर के निमित्त महज़ पहचान के लिए , संबोधन या पुकारने - गोहराने के लिए | 1/8/12
सम्प्रति फेसबुक
पर अन्ना आन्दोलन पर बड़ी खटपट बहस चल रही है | मैं तो समझता हूँ , इसका हल बहुत आसान है | आधे लोग समर्थन में लिखने वालों के साथ हो जायं
, आधे लोग विरोध
दर्ज करने वालों के साथ हो लें | शेष जो बचें वे
अन्ना जी के साथ मैदान में जाकर आन्दोलन करें |
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To Puja Shukla on fb
वस्तुतः एहसास यह
है कि अब कोई भी वस्तु, व्यक्ति , संस्था , संगठन , सिद्धांत , विचार ,दर्शन ,धर्म , दल , संस्कृति , सत्ता , राज्य , क्रांति , आन्दोलन ,परिवर्तन,पत्रकारिता , कार्यपालिका , न्यायपालिका , विरोध ,पक्ष , विपक्ष , समर्थन , धरना , प्रदर्शन
, जी ओ , एन जी ओ , यहाँ तक कि भाषा , वाक्य , शब्द कुछ भी विश्वसनीय नहीं रह गए गए हैं | इतने धोखे खाए और खा रहे हैं हम कि सब पर से
भरोसा उठ गया है | फिर किस पर आप
इत्मिनान लाने को कह रही हैं ? क्या फिर और फिर
-फिर धोखा खाने के लिए ? एक 'राजा नहीं फकीर' आए तो थे बोफोर्स खोलने , उसे भूलकर , आग लगा कर
एक पद पर नाम अंकित कराकर चलते बने | इसलिए अब न कुछ कहिये न कीजिये | चलने दीजिये देश को ऐसे ही और जो कुछ हो इसे
अपने वोट के माध्यम से ही बदलाव लाना सीखने दीजिये | जनता के इस अधिकार में यदि क्षरण हुआ तो समझिये
गुलामी आई | अन्ना कितने भी
भले हों , टीम कितनी ही
बुद्धिमान हो हैं ये सब इलीट ही , ये न जनता हैं ,न जनता के आदमी | बात तो हर कोई जनता के नाम पर ही करता है |इससे क्या ? क्या हम उसे मान लें ? क्यूँ मान लें ? भरोसा ही रखना है तो संसदीय प्रक्रिया पर कायम
रहिये | जनता को इसके लिए
प्रशिक्षित कीजिये यदि दम है तो , और तब तक इंतज़ार
कीजिये | अपनी भीड़ की
ताक़त से हम क्यों इतना ताक़तवर कर दें पाँच आदमियों को कि वे डंडे से संसद को
हांकने लगें ?
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[कविता ?]
* हाथ और पैर
पीठ और पेट
पेंडू और कमर
आगा और पीछा
शरीर के अंगों के
जोड़े मिलाकर
मैं देखता हूँ -
आदमी | 1/8/12
[विचार ?]
* ब्राह्मणवाद एक
व्यवस्था है , सामाजिक व्यवस्था | गौर करें , यह आदमी को सिर्फ
आदमी नहीं बनने देता , अपनी व्यवस्था का
औजार बना लेता है - तुम यह हो तुम यह करो , तुम्हारा प्रारब्ध यह तुम्हारा भविष्य यह | मानो आदमी अपने आप
में कुछ भी नहीं | इसे किसी दूसरी
व्यवस्था से नहीं तोड़ा जा सकता | तोड़ तो रहे हैं इतने दिनों से इतने तो लोग , संगठित होकर
व्यवस्थित होकर ! क्या इसका कुछ बाल बाँका होता दिख रहा है ? इसलिए अपनी नीतियों
पर पुनर्दृष्टि डालनी ज़रूरी है | सच तो यह है कि इसे नितांत अव्यवस्था ,सामाजिक विखंडन से
ही जीता जा सकता है | व्यक्तिवाद , व्यक्तिवादी
सामाजिक दर्शन से इसे हराया जा सकता है | नहीं मानते हम तुम्हारा जात पात , भूत भविष्य | हम हांड मांस और
अपनी चेतना में सिर्फ मनुष्य हैं , अभी और इसी समय, इसके अतिरिक्त कुछ नहीं | समाज की प्रत्येक
इकाई अपनी इयत्ता के साथ प्रतिष्ठित हो | तो ब्राह्मण कहता रहे -तुम ब्राह्मण हो, तुम शूद्र हो | सचेत रहना होगा, वह सदा यही चाहेगा
कि तुम व्यवस्थित बनो , और जैसे ही तुम
कोई सामाजिक अनुशासन बनाओगे , तुम्हारा ब्राह्मणवाद के चंगुल में आना
अपरिहार्य हो जायगा | स्पष्ट है कि इसे
व्यव्हार में लाना तो क्या ह्रदय में
उतारना ही मुश्किल है , इसीलिये
ब्राह्मणवाद का जाना भी अनिश्चित है |
[कुविचार ]
* चाहे दलित हो चाहे
ब्राह्मण , सबको 'व्यक्ति ' बनना होगा -
आदमीयत की ऊँचाइयों पर पहुँचता व्यक्ति | अब उन मूल्यों को वह चाहे गीता रामायण से ले
चाहे बाइबिल कुरान से | यह उसका 'व्यक्ति ' निर्णय करेगा | लेकिन इंसानियत के तकाजों और गुणों को कोई
ब्राह्मण या दलित होने के कारण अनदेखा [नज़र अंदाज़ ] नहीं कर सकता | कोई भी ' व्यक्ति ' , यदि वह किसी बाहरी शक्ति के अधीन न हो , तो वह मानव मूल्यों की अवहेलना कर ही नहीं सकता, वह ऐसा चाहता ही नहीं | स्वयं उसकी यह ज़रुरत नहीं होती | शर्त बस यह है कि वह ' व्यक्ति ' तो हो !
[कविता ?]
* पहले किराये का मकान
फिर एल आई जी में
आवंटन
फिर उसे बेंचकर
एच आई जी का बँगला
,
अब गोमती नगर में
प्लाट पर बना भव्य
-
आलीशान कोठी | #
* गड्ढा देखना
आपका भी फ़र्ज़ है
गड्ढे का तो है !
* बचे तो कैसे
अब इंसानियत
धरती पर ?
* छुटकारा हो
नारकीय स्थिति से
कहीं तो बोलो !
* थोड़ा बहुत
नीतियों से हटना
तो चलता है
पर ज्यादा नहीं
कोई तो सीमा रेखा
बनाओ भाई !
* देख तो रहे थे
हम दोनों
एक दूसरे को
फिर भी
टकरा गए ! (कविता ?)
* खाना पकाते समय , परोसते समय बालों को कपड़े से ढकना तो समझ में
आता है कि बाल टूटकर कड़ाही - थाली में न गिरें | लेकिन ये इस्लाम वाले हर समय बाल ढकने के लिए
औरतों के पीछे क्यों पड़े रहते हैं ?
1/8/12
* घुस जाता है
समस्त शिष्टाचार
अन्याय पर |
* प्यार किया था
गलती मेरी ही थी
चोरी से की थी ,
पापी नहीं फिर भी
पछताता हूँ
अब पछताने से
होगा भी तो क्या
जब
समय गया ?
* जाति रखोगे
भेदभाव पाओगे
तो चिल्लाओगे
होगा तो यूँ भी
भेद , पर उससे
जाति न जोड़ो | 1/8/12
* मेरे f b मित्रों में जो जातिवादी हों , भले दलित हो , वे कृपया मेरी मित्र सूची , समूह से स्वयं हट जाएँ | यह मेरा निवेदन है | कोई हिन्दू - मुस्लिम -दलित - ब्राह्मण [
व्यक्ति , व्यक्ति के तौर पर
] मुझे अपना अमूल्य सान्निध्य न दे तो मुझे सुख मिलेगा | जातिवादी व्यक्तियों से मुझे उलझन होती है , ऐसी बनावट है मेरी | यूँ इन पर निष्पक्ष विवेचना में मुझे कोई
परेशानी नहीं है , यह समस्या तो है
ही देश की ! पर आदमी तो जाति मुक्त हो! किसी जाति में पैदा होने भर की मजूरी तो
ग्राह्य है , पर उससे हर समय
चिपकना , उस पर गर्व करना
उचित नहीं लगता |
और यह भी निवेदन
कर दूँ कि यदि कोई कायस्थ भी जातिवादी हों तो कृपया मुझे बख्श दें | मैं आजीवन तो क्या , यदि पुनर्जन्म होता हो तो किसी भी जन्म में , चाहे उत्तरी ध्रुव दक्षिणी ध्रुव से मिल जाय या
सूर्य का नाम चन्द्रमा हो जाय , यह मानकर नहीं
देने वाला कि कोई व्यक्ति जन्म से ऊँचा - नीचा हो सकता है | यदि विज्ञानं भी कुछ फर्क सिद्ध कर दे तो भी
मैं नहीं मानूँगा | मैं अत्यंत जिद्दी
सांस्कृतिक मानववादी हूँ इस मामले में | फिर जीवन के बाद के अन्य विविधताओं को तो मानता
ही हूँ | और क्या मेरी जान
ले लोगे जन्म के अंतर को न मानने के कारण ? मैं तो नहीं मानता पर यदि कोई ईश्वर को मानता
है , तो उसे यह भी
मानना पड़ेगा कि ईश्वर इतना अन्यायी नहीं हो सकता | अपने कुविचारों - कुकर्मों को ईश्वर के मत्थे
मढ़कर , और फिर भी उसे
परमात्मा मनवाने की लोगों की जिद ने ही तो मुझे दृढ़ , जिद्दी और झगड़ालू [ cantankerous] अनीश्वरवादी बनाया है | और अब क्या चाहते हो कि हम और हम जैसे लोग इस
दुनिया में न रहें ? तो मार डालो हमको, पर हमारे मित्र बनने का नाटक मत करो |
To Mr R.P.Shahi
Dear, You are exactly right , rather more
than right. I too take even liberal Islam too with its horns. That may not be
due to enmity but simply in love with
human being . No doubt we are all conditioned in some or the other way, but
education is all for getting rid of them , De - schooling as J Krishna murti
puts it .By the way keeping caste all the time in mind is objectionable, that I
meant. It can easily be dispensed with and humanitarian thoughts can be borne
in minds . I am an atheist humanist so I have such a make up of my own . Moral
discrimination irritates me .And friend , it is more than enough that you
realized the need of time, otherwise I am
abused ,that's why I posted this request. It's no pleasure , no shame
that I am Indian , I am Hindu , I am Kayastha and I work for their betterment .
So , I can criticize any Indian , any Hindu , any kyastha and for this matter
any caste -creed and religion . Sorry for not having a detailed talk with you
on chat which I would have liked most . I shall see your profile . I am not
sure we are friends or not ? Thank you very much . - Nagrik Ugranath
---------
नील जी, यह क्या लिख दिया
आपने मित्र ? कायस्थ और " गरीब परिवार से " ? चेक कर लीजिये
कहीं प्रूफ की गलती तो नहीं हो गयी ? और तो और, अपने संदीप जी ही
नहीं मानेंगे इसे | अलबत्ता हम प्रेमचंद को दलित विरोधी अवश्य मान
सकते हैं | वह होंगे ही क्योंकि वह सवर्ण थे और कोई सवर्ण
दलित हितैषी नहीं हो सकता, यह मान कर चलिए | यही माना भी जा
रहा है | महान दलित लेखक डा धर्मवीर जब प्रेमचंद को ' सामंत का मुंशी ' के ख़िताब से
नवाजते हैं, तब यह यूँ ही तो नहीं होगा ? वह उच्च शिक्षित
हैं, प्रशासनिक अधिकारी भी हैं | उनकी बात हमें
माननी ही पड़ेगी, इस दलित युग में | भले डा धर्मवीर
स्वयं अपनी पत्नी से ब्राह्मणवादी नैतिकता की अपेक्षा करते हैं | बुरा मानने की बात
नहीं है, यह सचमुच दलित युग ही है | कोई जन्म से दलित
है और वह इसके प्रति सजग और आग्रहशील है , तो तमाम अन्य कर्म
से अपने को दलित कहलाने पर तुले हैं | 31/7/12
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