[बदमाश चिंतन]
आत्मा उसको कहते हैं जिसमें मनुष्य का मन बहुत रमता
हो | अतः मैं विश्वासपूर्वक,निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि मनुष्य में आत्मा है
और वह उसकी टाँगों के बीच में अवस्थित है |
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[उवाच] - देश की सीमा
आप देश की सीमा की बात कर रहे हो , यहाँ एक-एक संस्थान,गृह समिति , सुपर बाज़ार , के परिसरों की सुरक्षा भी चुस्त
- दुरुस्त रहती है | #
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Plan = Thoughtless Productions By u.n.nagrik
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कविता - [बलात्कारी]
पता नहीं क्या
मरे जाते हैं बलात्कारी
दो इंच ज़मीन के लिए ,
फ़िज़ूल बदनाम करते हैं
पुरुष और पौरुष को
हासिल कुछ नहीं होता
देश के चेहरे पर कालिख पोतते हैं
बलात्कारी |
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कथानक :- नया बाबा
उसने अपने शिष्यों को सुझाया कि मंदिर जाना छोड़
दो ,पूजा
-पाठ छोड़ दो | ईश्वर चाहेगा तो सब ठीक हो जायगा| ( निर्धन बाबा)
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कथानक :- काजू भरा पलेट में
* खालिस काजू नहीं , काजू वाला नमकीन था प्लेटों में जो मेहमानों को दिए गए | कुछ ने केवल काजू बीन बीन कर खाए और नमकीन छोड़ दिया | वे सब अभी थोड़ी देर ही पहले काफी कुछ खा चुके थे | लेकिन कथा नायक ने केवल कुछ नमकीन खाया और काजू सारा ही छोड़ दिया | लोगों को यह अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त था की वह टुच्चा भुक्खड़ नहीं , एक खानदानी सुसंस्कृत मेहमान है | उसका अपना तो बस यही कहना
था कि काजू गरिष्ठ हो जाता | 23/5/12
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हाइकु कविता [इस विधा में तीन लाइनों में ५-७-५ अक्षर संयोजित किये जाते हैं]
१ - कोई ट्रेन हो
आदमी भरे पड़े
उप - डाउन |
२ - मुंह मोड़ लो
इस आकर्षण से
कुफलदायी |
३ - पैसे लेकर
हार गए हम तो
जीवन - मैच |
४ - घूम घूम के
बुद्धू लौट करके
घर को आये |
५ - तोड़ पाओ तो
तोड़ दो , न टूटे तो
जान मत दो |
६ - टूट पाए तो
तोड़ दो , न टूटे तो
रहने ही दो ,
परम्पराएं
ज़िन्दगी के तमाम
रीति - रिवाज़ |
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कविताएँ :
१ - बच्चे जैसे
जैसे
बड़े होते जाते हैं ,
मैं बूढ़ा होता जाता हूँ |
२ - इसी कारण
सदा मैं काम
जोखम के उठता हूँ ,
कि आखिर मौत को भी तो
बहाना चाहिए कोई !
३ - इसके चलते
मैं युगों से
इस कदर हैरान हूँ ,
किसने मेरे सर पे रखा
बुद्धि का जलता दिया ?
४ - इसी से वक्त
मुझको देख
इतना तेज़ भगता है ,
कहीं यह आदमी
मुझसे भी न
आगे निकल जाये !
५ - सब स्वयं
अच्छे हों
यह तो बहुत अच्छा है
लेकिन यह पर्याप्त नहीं ,
सबके ऊपर सब
नज़र भी रखें
जिससे आदमी
बिगड़ने न पाए ,
ताला दोनों तरफ से हो
वह ज्यादा अच्छा है |
6 - Whom I
loved
Means , whom I kissed
,
Or , who kissed me .
23/5/12
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[उवाच]
अव्यवस्थाएँ भी बड़े व्यवस्थित ढंग से पैदा की जाती हैं ।
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कविता :- समय प्रवाह
- " ज़माने की धार को
हम रोक नहीं सकते |"
- क्या मतलब ? क्या
उसका प्रवाह इतना ऊपर से
इतना नीचे की ओर है ,
जो इतनी तेज़ है ?
- हाँ , शायद !
या ऊपर - नीचे का
प्रश्न नहीं
बस पहाड़ से
समतल धरती की ओरे है |
हम इसके प्रवाह को रोक नहीं सकते | #
23/5/12
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कविता :-
मुझसे /
प्रार्थना करने को /
कहा गया था
/
मैं प्रयास करने लगा |
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कनितानुमा-
यदि आप
अपने कमरे में बंद हैं
तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
कि आप का फ्लैट किस मंजिल पर है,
तनिक नीचे झाँकिए
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कीर्ति आज़ाद ठीक कहते हैं | आइ पी एल खेल के
नाम पर अपराध और व्यापार का घिनौना खेल चलता है | ये देशों कि टीमें
नहीं , व्यवसायियों की अंतरराष्ट्रीय दुकानें हैं | ऐसे आइ पी एल को
बंद होना ही चाहिए |21/5/12
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कविता -
सवेरा हो गया है , अब जागो
अँधेरा खो गया है , अब जागो ;
अब जो जागो तो आँख से ही नहीं
चेतना के उफान से जागो | 21/5/12
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क्या अब भी आप लोग यह नहीं मानेंगे , कि देश को एक
सशक्त क्रिकेटपाल की ज़रूरत है ।
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कविताएँ - २०/५/१२
१ - साहेब और
सहिबाइन तो चले गए
सांस्कृतिक कार्यक्रम में ,
गाड़ी में बैठे , उनका इन्तज़ार करते
ड्राइवर और चपरासी ने
क्या देखा ? #
२ - वही एक स्टेज
कभी जंगल , कभी पहाड़ ,
कभी नाचघर का रूप लेता ,
कभी अट्टालिका ,
कभी गरीब का घर बनता
सब एक यही स्टेज
कई पात्र , सब अपने - अपने निर्देशक
अपना संवाद बोलते ,
भूमिका निभाते ! #
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योजना -[संस्था]
१ - नया विश्वास
[ A Faith in
Democracy] & / or
२ - सांस्कृतिक
सरोकार [सांस] / सांस्कृतिक सरोकार दल [ सांसद ]
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ताड़न के अधिकारी
हर चीज़ का एक स्थान होता है , और वह वहीँ शोभा
देता है | सिन्दूर को माँग की बजाय औरत यदि नाक पर लगा ले तो वह हास्यास्पद ही लगेगी | अब मान लीजिये हम
तय करें कि छात्रों को धर्मग्रंथों के अंश पढ़ाए जायं , तो क्या हमारे
विशेषज्ञ राम चरित मानस का वह अंश पाठ्य पुस्तक में डाल दें कि :- " ढोल गवांर शूद्र पशु नारी , ये सब ताड़न के अधिकारी |
" और यदि हम कुछ बोल दें , एतराज़ कर दें तो हमसे कहा जायगा - "चुप रहो, यह गोस्वामी की अभिव्यक्ति और काव्य -कला और साहित्यकार की स्वतंत्रता का प्रश्न है , ? " | मित्र बताएँ क्या मैं संकुचित जातिवादी धारणा से ग्रस्त हूँ
? 20/5/12
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