* कई तरकीब लगा कर जो मैंने देखा तो ,
यही
मालूम हुआ आप मेरे गैर नहीं |
OR = * कई तरकीब लगा कर जो मैंने देखा तो ,
यही
साबित हुआ कि आप मेरे गैर नहीं |
[ कविता एँ ]
* आदमी को
अपनी ज़िन्दगी जीनी चाहिए
लोग बाप - दादा की
ज़िन्दगी जीने लगते हैं
और फिर अपने
बेटे -बेटियों
नाती - पोतों की
उनकी अपनी
ज़िन्दगी नहीं होती | #
* मेरी निष्ठां ने
मुझे रास्ता दिखाया
चल रहा हूँ |
* अभी भी कहीं
साफ़ बात कहना
आसान नहीं |
* मुझे पूरा तो
खारिज मत कीजिये
काम आऊँगा |
देखिये आदमी आदमी में विचार भिन्नता तो रहेगी
थोडा attitude में भी | तो क्या करें ? नाराज़ होकर यही तो करोगे कि अपनी शादी में
मुझे नहीं बुलाओगे, तो मैं भी तुम्हे अपनी पार्टी में शामिल नहीं
करूँगा | लेकिन कभी मैं
आपको एक कप चाय तो पिला ही सकता हूँ , और आप भी मुझे दो अंडे का न सही एक अंडे का
आमलेट तो खिला ही सकते हैं ?
* कर ले जाते
जो करते रहते
हैं अनथक |
* हर बात का
हाइकु न बनाओ
नागरिक जी !
* रामदेव से बोलो
खोलो नाड़ा
मेरी सलवार
वापस करो !
* पर्दा बुर्का तो
बहुत उपयोगी
पानी पीने में
गुप्त जलपान में
मददगार |
अन्ना टीम
-------------
* राजनीति में कब
नहीं थे जो अब राजनीति में आने को कह रहे हैं ?
* कुछ अनशन करके
उखाड़ लिया , कुछ पार्टी बना कर उखाड़ लेंगें | अन्यथा न समझें - लोकतंत्र का झाड़ - झंखाड़ |
* खजड़ी वाले
पार्टी बनानी है तो
खजड़ी बजा
|
* सभी माँगते
जनता से ही राय
सत्ता पाने की |
* यह एक बहुत गैर
जिम्मेदाराना बयान होता है जिसे सभी संगठन / दल देते हैं ,कि उनकी सभी
नीतियाँ जनता बताएगी | तो क्या और जो तमाम संगठन और सपा बसपा भाजपा
कांग्रेस आदि दल है उनकी नीतिया चीन -जापान से बनकर आती हैं ? ज़िम्मेदारी से
अपनी बात क्यों नहीं कहते जैसे मैं कहता हूँ | मैं तो कहता हूँ मैं जनता हूँ , जनता का हिस्सा
हूँ , और मेरी नीति जनता
के ही एक भाग -प्रभाग की संपत्ति है | इन्हें यही मौलिक प्रेरणा नहीं है कि भारत की
जनता और लोकतंत्र अभी शैशवा काल / बाल्यावस्था में हैं | इसे उनकी उँगलियों
का सहारा चाहिए जो समझते हैं कि वे इसके ज़िम्मेदार माँ -बाप बड़े भाई बहन के समान
पालक और हितैषी हैं | स्वतंत्रता संग्राम में भी सारी जनता उपस्थित
होने नहीं गई थी | तो बस जनता को मूर्ख बनाने के लिए ही है जनता
का नाम | जनता का , जनता से , जनता के लिए का
नारा ज़रा सोच समझ कर उछालें |
* एक फौजी नेता नारा
दे गए -' सिंहासन छोड़ो
जनता आती है ' | इसे रामधारी सिंह 'दिनकर ' की कविता से लिया गया है जो कि है = सिंहासन
खाली करो कि जनता आती है | बहरहाल , यह नारा जनांदोलनों के लिए तो ठीक है जैसा कि
जेपी ने इसे लिया | लेकिन सत्ताभिमुख पार्टियों के लिए उचित नहीं , यद्यपि यह उलटबासी
जैसा लगता है कि जिसे सिंहासन पर बैठने की इच्छा है वह इसे न बोले , और जिन्हें सत्ता
का मोह नहीं वे इसका उच्चारण जोर से करें !
* अब पता चलेगा न
आटे दाल का भाव , आयें मैदान में | लेकिन निश्चय ही यह उनका लोकतान्त्रिक
प्रक्रिया में आगमन है , स्वागतयोग्य | यह अलग बात है कि इससे किस क्षेत्रीय -
राष्ट्रीय पार्टी का नफा होगा किसका नुकसान ? यह उनका हक तो है |
* लगता है उन्हें यह
पता चल गया कि मैं " Right to die of Hunger Strike "
Bill लेन वाला हूँ , और उन्होंने अनशन
त्याग दिया |
* पार्टी का नाम
" अन्ना टीम " ही रखा जाय , चिरपरिचित |
* अब वह हमारा काम
करें , बात मानें | घोषित करें कि
केवल दलित लोगों को चनाव में उतारेंगे | बल्कि अराजनीतिक संस्था के रूप में मेरी उनसे
यही अपेक्षा थी कि वह इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को प्रेरित करें , दबाव डालें | साफ़ ध्यान दें - No Quality Control please | अन्नान्दोलन से यही मेरा विरोध था | तो अब भ्रष्टाचार
का मुद्दा छोड़ दें , यह है ही फ़िज़ूल का | दलित को पूरा अवसर
दें | यदि वह कुछ कर भी
लेगा तो भी कोई धन्ना सेठ नहीं बन जायगा बड़े सवर्ण बाबुओं और नेताओं कि तुलना में
| बस कुछ आर्थिक
स्थिति में सुधार आ ही जाय तो क्या बुरा है | यही तो राजनीति है बराबरी की, बराबरी के लिए |
[आज का महान विचार कथन]
* जहाँ तक हो सके बापों को बच्चों की कमाई का पैसा नहीं लेना चाहिए | इससे सद्भाव बना रहता है |#
* जब से यह Pedagogy आई है पढ़ाई बंद हो गई है | पचास के दशक में जहाँ से हम लोग निकले हैं , जो पढ़ने जाते थे , उन्हें अच्छी पढ़ाई मिल जाती थी | तब न Pedagogy थी , न मिड डे मील था | पोटली में रोटी बाँध ले जाते थे , मास्टर जमकर पढ़ाते थे | अब स्कूल हैं नहीं , बच्चे पढ़ने नहीं जाते , टीचर आते ही नहीं और बुद्धिजीवी विवाद कर रहे हैं | जरा गाँव जाकर देखें | अरे अभी तो बच्चों को कुछ मौलिक तथ्य , भाषा का सुपुष्ट ज्ञान प्रदान करना है | बाद में तो वे ' गुरु गुरु रह गए
चेले शक्कर हो गए ' हो ही जाने हैं | क्या समझते हैं वे आपके पढ़ाने से बुद्धिमान
बनेंगे ? [ यह मौलिक गलतफहमी है शिक्षा शास्त्रियों की ], बहुत छोटी बात मैं कर रहा हूँ -क्या आप देख रहे हैं आज के शिक्षितों के
हस्तलेख , वर्तनी कितने कुरुचिपूर्ण -त्रुटिपूर्ण हैं [वही अब पत्रकारिता में आ रही /गई
है , जिसको जैसा मन होता है भाषा को तोड़ मरोड़ कर लिखता है ]| एक pedagogy
मैं दे रहा हूँ -
यदि बच्चे का हस्तलेख स्पष्ट और सुरुचिकर बना दिया जाय तो वे अच्छे इंसान बन
जायेंगे | कहा नहीं है व्यक्ति का सुलेख , उसका हस्ताक्षर उसके चरित्र - व्यक्तित्व का
परिचायक होता है | इतना कहना ज़रूरी लगा पर मैं जल्दी में हूँ , बहस -विवाद में असमर्थ | on Pramod
Joshi Post
नहीं , चिंता की बात नहीं है | सुलेख का मतलब
विज्ञापन की डिजाईनिंग नहीं है , वैसे वह भी चित्रकला का अच्छा माध्यम है और
शिक्षणउपयोगी | सुलेख - सुन्दर सुस्पष्ट लिखना है | तेज़ सोचना भी गलत है , सुस्थिर पदचाप से
चिंतन भी सार्थक होता है | अभ्यास से तेज़ सोचने वाले भी तेज़ लिख लेते
हैं और वह पूर्ण पठनीय हो सकता है | जिन्हें अभ्यास नहीं वे वे मंथर गति से भी
लिखेंगे और आप के पढ़ने में भी नहीं आएगा |
अपवादों पर न जाइये | कोई खराब लिखकर
महान वैज्ञानिक चिन्तक नहीं बन सकता | वह क्षेत्र अलग है | मैंने तो छात्र को
सभ्य [ अनुशासित भी , यदि बहुत बुरा न मानें तो ] मनुष्य बनाने के एक
छोटे से मार्ग की अनुशंसा की थी , वर्ना तो तरीके बहुत वृहद् हैं | एक और सुनिए
शिक्षा के शहरी कारन का हाल | गाँव में पढ़े एक लड़के को क्या , किसी अनपढ़ किसान
को कुछ जोड़ने घटाने को दे दीजिये,वह उँगलियों से जवाब निकल देगा | हम लोगों को बीस
तक का निश्चित पहाड़ा, अद्धा पौना सवैया डेढ़ा ढ्योंचा पहुंचा भी याद
था | अब तो ज़रा किसी
से 4+ 7 + 2 जोड़ने को कह दीजिये , वह मोबाईल निकाल लेगा | अभी बताता हूँ
अंकल जी | शहरी बनिए के पास
तो खैर कल्कुलेतर होता है | देहाती बनिए का बच्चा जुबानी जोड़ता था और वह
धनिया की कागज़ की पुडिया बना कर आप की ओरफेंक देगा , मजाल है खुल जाये | क्या नहीं लगता की
हमने अपने मस्तोश्क से कार्य लेना कम किया है और इसका असर जीवन के अन्य क्षेरों
में भी पड़ा है ?
अंतिम पंक्ति भूल गया था लिखना कि हमने बनाया
तो कुछ नहीं , जो था उसे भी बिगाड़ दिया अपना ज्ञान बघारने के चक्कर में | और सन्दर्भबाह्य
एक जानकारी कि हमारे एक पुराने पाठक मित्र हैं पटना में Dr S . Pandey . वह हस्तलिपि विज्ञानं के भी ज्ञाता हैं , कोई मशीन भी
आयातित कर लगा रखी है उन्होंने | ये हस्तलिपि में कुछ परिवर्तन सुझाकर , जैसे स्ट्रोक ऐसे
लगाये / रेखा इस तरह घुमाएँ , व्यक्ति की कार्यशाली विकसित करने का कार्य
करते हैं | और यह तो पूरा विज्ञानं है कि जानकार हमारी हस्तलिपि से हमारा चारित्रिक गुण -दोष बता सकते हैं |To Sandeep
नहीं गुरजीत भाई , संदीप जी से उन्ही
के तर्क पर आपको स्वतंत्र चिन्तक मनवाने
के जोरदार आग्रह में महान जोड़ गया , परिहास के लिए
नहीं | मैंने तो अपनी तरफ
से pedagogy का एक छोटा सा अंश रखा जैसा बहुत से लोग मानते
हैं | उस पर मेरा कोई
आग्रह नहीं है , हो सकता है गलत हो ,वह कोई मेरा चिंतन नहीं है | हरजिंदर जी आ गए
हैं,उनसे पूछिए | वह बताते थे कि
उनकी खराब रायटिंग शुरुआत में ही वैसे
टीचर का होना [as I remember]. Writing क्षात्र का सहज -स्वाभाविक -जन्मजात गुण नहीं
होती , उसका निर्माण किया
जाता है | हरजिंदर भाई बुरा
न मानेंगे उनका सदर्भ देने का |
* तो मिलते हैं
अभी तो रहेंगे न
दो चार दिन ? [a very good literary Haiku]
*ह्रदय मेरा
विशाल सागर है
बुद्धि हिमाला |
* अच्छा नहीं है
संकल्प दुहराना
भूलते जाना |
* नहीं आएगी
चली जाने के बाद
रात की नींद |
=============================== 4/8/2012
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[हा हा ]
* वैसे चिंता की बात कोई होनी नहीं चाहिए | मारुति गुडगाँव से नहीं इस दुनिया से ही चली
जाय तो भी फिक्र नहीं | इतने सारे तो फेसबुकिया समर्थक हैं उनके, कि यदि एक एक ने एक एक को भी अपने बँगले पर माली , चौकीदार या मशीन [जैसे कि जेनेरेटर] चलाने के लिए लगा लिया , तो उनकी रोज़ी तो चल ही जायगी |
* कोई न हो तो
मेरे पास आ जाओ
कभी आ जाओ |
*[उवाच ] = जातिप्रथा नहीं मानता | लेकिन मैं यह कहाँ मानता हूँ कि मैं मूर्ख नहीं
हो सकता ?
[हाइकु ]
* गी गी और गी
जातिप्रथा जाएगी
क्यों न जाएगी ?
* जाति जाएगी
कैसे नहीं जायगी
हम जो तुले ?
* कार पहले
दादी की दवाइयाँ
थोड़ा बाद में |
* कुछ न कुछ
समर्थक होंगे ही
हर किसी के |
* जाता रहा है
समय गुज़रता
जा ही रहा है !
* बरसात हो रही थी सड़क पर पानी भरा था | मैं स्कूटर से नाती को स्कूल से लेने जा रहा था
धीरे धीरे | उधर से कारें तेज़ी से आतीं और पानी का छपाका
मेरे ऊपर डालती चली जातीं | पहले मैं इस पर बहुत खीजकर लिखता था , गोष्ठियों में कहता था कि यह लोकतान्त्रिक - नागरिक धर्म के प्रतिकूल है | पर अब मैं नहीं चिडचिडाता | मजा लेता हूँ , वाह, क्या बौछार पडी ! आनंद आ गया ! जब आपके ऊपर कभी यह वाकया आये तो आप भी ऐसा कीजिये | भूलिए मत , हिंदुस्तान है प्यारे !
* Small !
I am everything ,
Great !
I am nothing .
* कोई हमको
लड़का लडकी तो
ब्याहनी नहीं है न
जाति क्यों पूछें
हम आपकी ?
* जाति का विरोध जातियों के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है | यह विवशता हमारी रणनीति का हिस्सा भी हो सकती है |अपनी जाति देखिये, दूसरी जातियों को ध्यान में रखिये , तब आगे बढ़िये और लड़िये |#
* सुना है हम [
कायस्थ ] जाति की चारो श्रेणियों में से किसी में नहीं आते या समाते | ये ब्रह्मा के मुख
- भुजा - जंघा - पैर किसी से पैदा नहीं हुए | कायस्थ की उत्पत्ति ब्रह्मा की पूरी काया से
हुई | इसीलिये कायस्थ
कहलाये | अब लीजिये , संतानोत्पत्ति की
एक नई विधि भी ईजाद हो गयी | असली अंग निष्क्रिय हों जाँय तब भी जनसंख्या
वृद्धि में कोई बाधा नहीं | पर हमें क्या ? हमें इस बहाने
चारो जातियों से छुट्टी , मुक्ति तो मिल गई | अब हम प्रसन्न हैं
|
* लेकिन यह लीजिये , ज्यादा ख़ुशी न
मनाइए नागरिक जी | यह ठहरने वाली
नहीं है | संदीप जी बता रहे
हैं कि कायस्थ शूद्र होते हैं | यद्यपि सामान्यतः यह भी अच्छी खबर थी , हमें शूद्र होने
में प्रसन्नता होती | लेकिन अब हमारी
मानसिक स्थिति बदल गई है | अब हम न ब्रह्मा
को मानते हैं , न उनकी औलाद हैं | फिर चाहे उनके सर
के बाल से पैदा हुए हों चाहे पैर के तलुए से , क्या फर्क पड़ता है ? जब हमने सवर्ण
होना स्वीकार नहीं किया तो शूद्र होना क्या स्वीकार करूँगा ? अलबत्ता, यदि जातीय विभाजन
रहना ही है तो शूद्र श्रेणी में रहना हमारे लिए गर्व की बात होगी | #
किसकी मजाल जो
जाति छिपाने की जुर्रत करे मित्र ? वह तो सबसे ज्यादा धूर्त माना जायगा, ऐसा मैंने अनुभव किया | आरक्षण छोड़ने के लिए भी जाति की घोषणा आवश्यक
और मित्रों के बीच स्पष्टता के लिए भी | यह ईमानदारी का तकाज़ा था, वरना इसका मैं नम्बर एक दुश्मन था | हूँ कहना फिर बेईमानी हो जायगी जब यह प्रथा
जानी नहीं है | संदीप सब
व्यक्तिगत जानते हैं , उन्होंने बताया तो
स्वागत कर लिया | तिस पर भी मैं एक
जिद्दी, अपने संकल्पों पर
दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हूँ | जो मान लिया सो
मान लिया, जन्माधारित भेद
नहीं मानता तो नहीं मानता | ईश्वर को नहीं
मानता तो नहीं मानता , इसमें विवाद कैसा ? मेरी असफलता [और
आपकी/सबकी टिप्पणी में अन्तर्निहित किंचित व्यंग्य भी] मुझे विचलित नहीं करती | कोई कायस्थ,ब्राह्मण,शूद्र कुछ भी पैदा हुआ हो, मुझे परिवर्तन पर भरोसा है | मित्र ! काफ्का का क्या ' कायांतरण ' नहीं हो सकता ? हुआ नहीं क्या ? [गज़ब का उपन्यासकार] To Satyendra Pratap Singh 3/8/12
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