शनिवार, 25 अगस्त 2012

27/7/12


दुष्ट आदमी की लम्बी उम्र समाज को दुखी करती है | मूलवंशी संस्कृति में नहीं , ब्राह्मणवादी संस्कृति में खान-पान में शुद्धता-पवित्रता का प्रावधान है - जैसा खाओ अन्न वैसा हो मन | दुनिया आत्महत्या की ओर अग्रसर है , और साथ ही हम उग्र भी
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जाँच लीजिये
जो लिखा है आपने
उसका प्रूफ |

* मैं सवर्ण था 
इसलिए अब मैं 
अछूत हुआ |

* नाक के बाल
काटना गलत है
अवैज्ञानिक |

* भूमिका होती 
आयु की, प्रौढ़ता में
कुछ ज़रूर !

यह देश है
तो देसी डिमाक्रेसी
ऐसे चलेगी |

* हर प्रश्न का
उत्तर मेरे पास
तो होता नहीं |

* बोलते रहो
तोड़ दूँगा कमर
विचारकों की

* आदमी बंधा
फ्रीडम भला कहाँ
औरत बंधी |

* इस काल में
न्याय और समता !
कहाँ हैं आप ?

* जो गरीब हैं
मेरी पार्टी में आयें
धनी न आयें |

* बदला लें तो
दलित भी , लेकिन
जितना देय |

* अमर होंगे
सिगरेट जो पीते
बिज्कुल नहीं |

* हल न होंगे
दुनियावी मसले
पूजा -पाठ से |

* मुझे बताएँ
आपके आने पर
हम खड़े क्यों ?

* दलित जन
अपने पैर पर
कुल्हाड़ी मारे
असहयोग माँगते
गाली भी देते
अन्य सभी वर्णों को
ब्रह्महत्या भी |  31/7/12
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[कविता ?]

* सवर्णों ! अब
अछूत बन जाओ
जैसे तुमने
कुछ लोगों को बनाया था ,
अपनी करनी का
फल भुगतो ,
मत छुओ दलितों को
वे अपवित्र हों जायेंगे ,
दूर ही रहो |
कमर से झाड़ू बाँध लो
कुछ दें तो
दूर से लो ,
उनका थाली गिलास
गन्दा मत करो शूद्रो !
यही तो व्यवस्थाएँ तुमने
उनके लिए की थी !
उस अनुशासन का पालन
अब तुम करो
मनु की औलादों !
# # 29/7/12
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एक बात बताइए , हमने कोई गलती की थी क्या जो सवर्ण घर में पैदा हुए ? हम क्यों रोज़ रोज़ लताड़े जाते , उलाहने पाते, तिरस्कृत होते हैं ? हमारे माँ-बाप-पूर्वज हमारे सामने ही गरियाये क्यों जाते हैं ? अब तो मैं गहरे हीन भावना का शिकार हो रहा हूँ | आरक्षित वर्ग के बीच बैठने की हिम्मत नहीं होती , यह तो अलग बात है | मेरी सूक्ष्म संवेदना मुझे प्रेरित करती है कि मैं आत्महत्या कर लूँ, कोई कुआँ-ताल ले लूँ | किसी नदी में कूद कर जान दे दूँ | दिन -प्रतिदिन की यह झिकझिक सही नहीं जाती |  29/7/12
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[आज की कविता ]

* अपना भेजा ,
अपनी भुजा
मात्र हमारी
यही सम्पदा | # 29/7/12
[कविता ]
* नदी सूखी नहीं है
इसका सारा पानी
मेरी आँखों में आ गया है |
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* अन्नान्दोलन में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनांदोलन तो है , जो है | लेकिन जनजागरण नहीं है | विनोबा ने घूम घूम कर ज़मीनें माँगीं, जे पी ने डाकुओं से आत्म समर्पण कराया , और जिनसे जो बन पड़ा | अन्ना  ने भी किया | लेकिन उनके लोगों ने घूम कर जनता को इसके लिए संबोधित नहीं किया आप संकल्प कर लें कि भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होंगे और अपनी ईमान की कमाई पर रहेंगे | अपने सामने खड़ी भीड़ से भी ऐसा शपथ लेने का आग्रह नहीं किया | ऊपर या नीचे के भ्रष्टाचार पर विवाद हो सकता है पर यह भी सच है कि यदि इतनी बड़ी मशीनरी [जिसे अन्ना बताते हैं , इतने लोग तो उनके साथ हैं] , घूस न लेने का संकल्प ले ले, भ्रष्ट ऑफिसर का असहयोग - उसका सरेआम खुलासा करते हुए करने लगे, यहाँ तक कि एक चपरासी भी फ़ाइल इधर उधर करने , डिस्पैचेर उसे डिस्पैच करने से यह कहकर मना कर दे कि इस पर अधिकारी ने घूस लेकर हस्ताक्षर किया है , तो क्या मजाल यह बीमारी रहने पाए ? फिर नेता तो माहौल के हिसाब से ही चलता है | लेकिन यह सब उनका अजेंडा नहीं है | एक भीड़ का वितान फैलाये हुए हैं क्योंकि इसमें लोकप्रियता सुलभ है , और राजनेता , राजनीति की सलामी मिलती है |        28/7/12
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* अंट- शंट ही
चलेगी , नागरिक
यह दुनिया |

* कैसे कहोगे ?
कह नहीं पाओगे
मैं पराया हूँ |

* कोकड़ाझार
भर गया सावन
में  उच्छवास |

* वक्त कहाँ है
मनोरंजन हेतु
समय नहीं |

* जल्दी न करो
निर्णय करने में
इत्मिनान से |

* नई पार्टी की
छवि तो साफ़ होगी
पिछौटा गन्दा |

* न सिखाइये
हमको मज़हब
का मतलब |   28/7/12
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* मनुष्य से प्रेम करो तो उसके लिए "ऊपर वाला " सब साधन मुहैया करा देता है |

* ईश्वर की न मूर्तियाँ बनाओ , न मंदिर - मस्जिद | उसे शब्दों में पड़ा रहने दो | चिंता न करो , शब्दों में बड़ी शक्ति होती है , ईश्वर से तनिक भी क्म नहीं |

* कंगारू कोर्ट
उनका , मैं हाज़िर
सजा मालूम |

* प्रश्न यह है
मनुष्य , मनुष्य के
प्राण ले ही क्यों ?

* आज मेरी संस्था =
" मानसिक तैयारी "
 =  "मातै "    28/7/12
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क्या महत्वपूर्ण व्यक्तिओं को अपने पद के काम कुशलता से और न्यायपूर्वक करने के लिए यह आवश्यक है  की वह अपने परिवार , सम्बन्धियों या अपनी पत्नी , प्रेमिका से सम्बन्ध न रखे | यह निकष तो बड़ा कठोर हो जायगा | पत्नी के अतिरिक्त किसी सम्बन्ध पर ताला लगाकर हम विवाह संस्था को अनावश्यक बहुत ऊंचा उठा रहे हैं | कब तक व्यक्ति के चरित्र का आकलन उसकी यौनिकता से की जाती रहेगी ?   Ref NDT 27/7/12
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मेरे मामा एक जादुई डिबिया कहीं से लाये , काला चमकीला कोई पदार्थ भरा हुआ | किसी कुँवारे ७-८ साल के लड़के से उसमे देखने को कहते | उससे कहलाते - झाडूवाला आये झाडू लगाये , पोंछा वाला आये पोंछा  लगाये , चटाई वाला आये चटाई बिछाए | अब बोल -हनुमान जी आयें बैठें | उससे पुछ्वाते - हनुमान जी फलांने परीक्षा में पास होंगे या नहीं | हनुमान जी बोल तो सकते नहीं थे इसलिए उनसे आग्रह किया जाता -यदि पास हो दायाँ हाथ नहीं तो बायाँ हाथ उठाइए | उन्होंने कौन सा हाथ उठाया यह तो याद नहीं | पर इस ग्रुप के लिए कहना है कि वह वह वह जी आयें और झाडू पोंछा करें , चटाई बिछाएँ | तब एडमिन जी या सुश्री राकेश जी विराजमान हों और सभा को चलायें | मैं झाड़ू तो नहीं पोंछा भर लगा सकता हूँ , यदि कहा, अनुरोध किया गया तो
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वीरांगना लक्ष्मी सहगल की याद में क्या यह उचित न होगा कि फेसबुक पर औरतों का " झाँसी की रानी ब्रिगेड " ग्रुप बने ? 27/7/12
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* मायावती की मूर्ति पर सरकारी खजाने का बहुत पैसा खर्च हो गया था | जवाहर भवन या कलेक्ट्रेट के कोषागार का रजिस्टर चेक कर लीजिये , मायावती की मूर्तियाँ टूटते ही वह ढेर सारा पैसा वापस सरकारी  खजाने में वापस आ गया | अखिलेश चाहें तो उससे अपने पिता की मूर्ति वहां लगवा सकते हैं |
* मैं बहुत गुस्से में हूँ , पर अनियंत्रित नहीं | इसलिए हास्य -व्यंग्य ही सूझ रहा है |

* बहुत गलत बात लिख दिया के विक्रम राव ने  [kwt -27/7] = " साधारण डाकिये की बेटी मायावती - - आज अरबों की जायदाद - - " | मुझे सचमुच अपने प्रस्ताव पर गर्व हुआ कि जाने कैसे यह सटीक बात मेरी बुद्धि में आई , मानो इल्हाम हुआ ? कि भारत की सत्ता पर दलितों का कब्ज़ा होना चाहिए |

* मैं इस विवाद में पड़ता ही नहीं , कौन सही कौन गलत | इनके मापदंड इतने आसान भी नहीं होते | ठीक है मूर्ति लगाना गलत था ,तो उसे तोडना ही क्या सही हुआ ? इसलिए मैं तो बस एकमत , एकसुर , एकधुन, एकमेव ,एक लक्ष्य  पर कायम हूँ की दलितों को देश का शासन सौंपो |

* फिर भी मै हूँ तो गाँधीवादी ! गाँधीवादी क्या, कहिये शांति और अहिंसा वादी ! मैं हर हाल में अहिंसा को श्रेष्ठ मानता हूँ क्योंकि हिंसा से जनता सहमती है , विरोधी आप की बात को सही समझ  -सहमत होकर नहीं , मार के डर से बेमन से स्वीकार करता है जो स्थाई विजय नहीं होती | शरीर को मारकर होगा भी क्या , वह तो वैसे भी मरेगा | मार सको तो विचार को मारो | इसलिए मैं हिंसा के विचार को हमेशा मारता हूँ |
 आज आप उसे डरायेंगे तो कल अवसर पाकर वह आपको मारेगा और सिलसिला कभी रुकेगा नहीं | मैं भ्रम में नहीं हूँ , वह मारेगा तो वैसे भी लेकिन मुझे विराम देना होगा |
अभी दो ही दिन की तो बात है | एक उत्तेजित आक्रोशित युवा का धमकी भरा मेल आया - कायस्थ कौम के खिलाफ तुमने इस ब्लॉग में लिखा , समझ जाओ वर्ना हम तुम्हे सजा देंगे | जवाब में कुछ तो स्पष्ट किया फिर लिख दिया - घर बुलाओ चाय पिलाओ तो सजा दो | इसी प्रकार -

* मेरी बात कोई मानेगा तो नहीं वरना यह गाँधी अस्त्र बड़ा कारगर होता कि मूर्ति तोड़ने का कोई विरोध न किया जाय , जिनकी सत्ता है तो उनके समर्थक उपद्रवी या गुंडे भी स्वतंत्र ही होंगें | ज्यादा से ज्यादा एक मौन जुलूस शांति पूर्वक पूरी राजधानी में चलती और जनजागरण का सन्देश फैलाती कि अच्छा किया तोड़ दी मूर्ति , अब वहां मायावती की नहीं मुलायम सिंह की मूर्ति लगाओ सरकारी पैसे से , हम कोई विरोध नहीं करेंगें | मायावती की तो अब मूर्ति नहीं , अब वह साक्षात् बैठेगी दिल्ली की गद्दी पर बैठेगी | अब उसे हम भारत की प्रधान मंत्री बनाकर ही मानेंगे , दम लेंगे | इसके लिए अभी से अपने अपने क्षेत्रों में लग जाते | यह सब इसी चुनावी जनतांत्रिक प्रणाली में संभव है जिसे आंबेडकर ने आकार दिया | पार्टियों से अपील किया जाय कि वे दलित उम्मीदवार तैयार करें ,खड़े करें | सवर्णों , हिन्दुओं मुसलमानों से अपील करें कि केवल दलित प्रत्याशी को वोट करें , भले किसी भी पार्टी का हो | ध्यान रखें दलित विधायक / सांसद अंततः माया को ही मजबूत करेगा | वैसे भी दलित आन्दोलन किसी दलित की, वह किसी भी जाति संप्रदाय वर्ण लिंग आयु , संस्था - संगठन या दल का हो, उपेक्षा कैसे कर सकता है | करेगा तो वह दलित आन्दोलन नहीं रह जायेगा , केवल सत्ता प्राप्ति का व्यक्तिगत मिशन बन जायगा | किया तो माया ने सर्वजन प्रयोग और उसकी शिकार बनीं | अतः शासन में तो केवल दलित को रखना है ,लेकिन राष्ट्र का फल तो सारी जनता को मिलना हैं | अपने महान मानववादी संकल्प पर व्यक्ति कायम रहे तभी सफलता मिलती है देर सवेर | दलित शासन को  कोई भेदभाव वाला या बदला निकलने वाला राज्य नहीं बनना है |   
   यह भी समझ लेने की बात है कि पार्कों और मूर्तियों के मुद्दे पर जनमत वास्तव में माया से नाराज़ था | दूरगामी नीति के रूप में यहीं बता दूँ कि यह जो दलित जज्बा आए दिन सवर्णों वेद पुराण , मनुस्मृति , सनातन संस्कृति - ब्राह्मणों और गाँधी को गाली देता फिरता है उससे भी कुछ हासिल होने वाला नहीं है | यह नकारात्मक घृणास्पद अभियान है | यह शासक की भाषा नहीं हो सकती | उसे संतुलित शालीन ह्रदयग्राही , जनता के प्रति प्रेमासक्त होना चाहिए | युद्ध नहीं, जनता का दिल , उसका सहयोग समर्थन जीत कर स्थाई सत्ता स्थापित होती और चलती है | शासन का सपना संजोने वाली नेता और उसकी फौज को बिल्कुल राजा -रानी की तरह व्यव्हार में पटु होना चाहिए | कुशल होना चाहिए शासन संचालन में | प्रदर्शित भी होना चाहिए कि वह अपनी समूची रिआया को सम्मान और न्याय देने में समर्थ है | एक गरीब ब्राह्मण को भी यह विश्वास मिलना चाहिए कि उसकी हालत बेहतर होगी दलितों के शासन में , और अपमान , अवहेलना , तिरस्कार , उसके पूर्वजों का दंड उसे नहीं मिलेगा | ऐसा न हुआ तो  इतने बड़े महादेश का भाग्य विधाता बनना कोई हलवा पूड़ी नहीं है |
अभी की बात सम्प्रति समाप्त |
इसीलिये इस्लाम में आदेश है - मूर्तियाँ न बनाओ | बिला वजह का बकवास और विवाद !     
27/7/2012
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* कौन  मुआ तो
छपना चाहता है
न छापें मुझे |

* हासिल होता
कविता करने से
क्या भला , मित्रो !

* काम करेगी
अब न कोई दवा
न कोई दुआ |

* ठंडा दिमाग
जब गर्म हो जाये
बुरा हो जाये |

* 'चश्मा' कभी
आँख से उतरता
सच देखता |

* रात का वक़्त
बिलकुल अँधेरा
तो उसे देखो |

* किस्सा -कहानी
हो जितनी पुरानी
मन लुभानी |

* दुरुपयोग
दिमाग का बहुत
चतुराई में |

* प्राचीनतम,
आधुनिकतम भी
जो हूँ, मैं ही हूँ |    26/7/12

* अब सबसे
युद्ध पर उतारू
हो गया हूँ मैं |

* मेरी आवाज़
जनता की आवाज़
बराबर है |

* लिखने से ही
फुर्सत नहीं मुझे
पढ़ूँ तों कैसे ?
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अब संत रविदास कोई नहीं होगा | दलितों के खून में यह शाश्वत ऊर्जा थी | यह उनका पारंपरिक गुण स्वभाव हो सकता था | सवर्ण से सवर्ण हो , क्या वह रैदास का कभी भूल कर भी अपमान कर सकता है | गुरु गरंथ साहिब ने तों उन्हें अपनी किताब में दर्ज किया | पर हाय री राजनीति जिसने सब कुछ जो अच्छा था धो डाला | अब कैसी संतई , क्या कबीरपन ? क्या अब फिर कोई संत रविदास , जिन्हें प्रेम से रैदास कहते हैं , होगा ?
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तमाम मुसलमानों को सरकारी पैसे से हज -व्यवस्था का विरोध करते हमने पाया है | असंख्य सवर्णों यहाँ तक कि ब्राह्मणों को भी दलितों की वकालत करते सुना है , बहुजन समाज को वोट देते देखा है | लेकिन किसी दलित ओबीसी को आरक्षण का विरोध करते नहीं पाया
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अंत में दीर्घ := इस बात की हिन्दी क्षेत्र में बड़ी आलोचना है कि राम और योग विदेश से लौट कर भारत में रामा और योगा क्यों हो गए ? लेकिन मुझे इस बात में कोई दम नहीं दिखता | पुकारते समय अंत का अक्षर दीर्घ हो ही जाता है | हरे रामा गाने में आ जाता है | ज्योति , स्वाति,चारु आदि ज्योती -स्वाती-चारू  बन जाती हैं | मित्र दिव्य रंजन को मैं दिव्या कहकर ही बुला सकता हूँ , भले लिखूँगा तो दिव्य | मुझे इसमें कोई आपत्तिजनक बात या भाषा का अपमान जैसा तो कुछ नहीं लगता |
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ब्राह्मण को सवर्ण जातियाँ भी गंधैले - पाखंडी कहकर अपमानित करते हैं | ऐसा मैंने अपना कानों से सुना है और यह मेरे निस्संदेह अनुभव में है | तब भी दलितों को इतने पर संतोष नहीं होता | वे भी गालियों की बौछार करते हैं |
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हमारे लिए यह अवश्य ही घृणित बात है कि कोई अपने सर पर मैला उठाये | वैसे अब यह प्रथा लगभग अदृश्य है, उसे मिटने के प्रयास चल रहे होंगे | तथापि, जहाँ यह है भी वहाँ इसे ढोने वाले अपने गंदे टोकरे को कभी तो सर से उतारते भी हैं, उसे किनारे रखकर और दूसरे काम करते हैं | अब तो वस्तुस्थिति , परिदृश्य यह सरेआम है कि किसी ने मैला ढोया हो या नहीं , वह अपनी जाति के मैले की टोकरी हर समय लटकाए घूम रहा है - ब्लॉग पर फेसबुक पर ग्रुप्स में | उनकी एक ही पंक्ति से उन्हें स्पष्ट पहचाना जा सकता है | तब भी लोग घोषणा करते हैं -हम जाति प्रथा समाप्त करेंगे |  27/7/12

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