शनिवार, 25 अगस्त 2012

03 से 09 जून 2012


[ कविता ]
बोलो बोलो , क्या बोलते हो 
जल्दी बोलो 
प्रेस पर कोई प्रतिबंध नहीं है
कोई इमरजेंसी नहीं लगी है 
जितना चाहो उतना बोलो 
खूब अख़बार हैं और टी वी चैनल 
तुम्हारी बातें दूर दूर तक 
पहुँचाने के लिए 
फिर क्यों नहीं बोलते ?
बोलो कि तुम्हारी बहन बेटी को 
गुंडे उठा ले गए और 
क्या क्या करके उसकी लाश 
सड़क किनारे छोड़ गए हैं ,
बोलो कि अपने लड़के की 
पढ़ाई के लिए डोनेशन -केप्शन 
तुम नहीं दे सके ,
चीखो कि तुम्हारे माता -पिता 
मँहगे इलाज के अभाव में मर गए ,
चिल्लाओ कि मँहगाई की मार से 
घर गिरवी  पड़ा है
और यदि यह हाल तुम्हारा नहीं है 
तो अपनी ही हाँको - बघारो 
कि तुम बड़े सुख - चैन , अमन से हो |
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एक ज़माने से मुझे दो अशआर बहुत पसंद हैं | वस्तुतः ,ये मेरे जीवन मन्त्र बन गए | इन्हें मैं " प्रिय संपादक " में बाटम लाइन लगाता था | इनमे से एक तो अहसान दानिश का है , दूसरे का पता नहीं | कोई मित्र जानते हों तो कृपया बताएँ |
१ - ज़माना बदले न बदले , खयाल तो बदले ,
    न इन्कलाब सही ,   ज़िक्रे -इन्कलाब  तो हो |

२ - मेरी नज़र में वह घर है  जहाँ चिराग़ नहीं
     न होगी जश्ने - बहाराँ की इबादत मुझसे
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बुलाया था , भला कैसे न जाता  ,
मुझे मालूम था , दुश्मन हैं मेरा |
or -
बुला लेते हैं तो कैसे न जाऊँ ,
जानता हूँ मेरे दुश्मन हैं वह |
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*कोई मानता नहीं , वरना मैंने तो सुझाया था कि भारतीय संस्कृति के अनुसार  बूर्हों का आदर करते हुए एक दर्ज़न अति बूढ़े भारतीय नागरिकों को चुन कर राष्ट्रपति भवन में ठहरा लिया जाय | वे किसी भी धर्म -जाति -लिंग -संप्रदाय -पार्टी -प्रदेश के हों | आयु क्रम से ज्येष्ठता  के अनुसार , या एक के दिवंगत  होने के बाद दूसरे को , राष्ट्रपति  बनाते रहा जाय | उनकी सेवा सुश्रुषा , खान पान-इलाज सुनिश्चित हो जायगी और वे कई देशों की सभी धर्मों के पवित्र स्थलों की  तीर्थयात्रा का पुण्य- लाभ उठा कर सरकारी खर्च पर  स्वर्ग जाना  भी सुनिश्चित कर  सकेंगें | मेरी अतिरिक्त लालच यह भी थी कि  इससे मेरा प्रिय पत्रकार लेखक , राजनीति से वाकिफ अराजनीतिक शतकोन्मुख आयु का व्यक्ति खुशवंत सिंह भी लाइन में आ सकता है, जिसकी तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा है | सब राजनीति- राजनीति  चिल्लाये जे रहे हैं और हमारी पत्रकारिता के क्षेत्र को इसका देय सम्मान नहीं मिल रहा है | और एक बात मैं स्पष्ट बता  दूँ कि खुशवंत जैसा पत्रकार अब भारत में कोई पैदा नहीं होगा | जैसा गाँधी के लिए आइन्स्टीन [?] ने कहा था कि लोग आश्चर्य करेगे कि कोई ऐसा भी व्यक्ति दुनिया में पैदा हुआ था , उसी प्रकार की राय मेरी खुशवंत सिंह के लिए है |
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* माननीयों द्वारा क्यों अधिकाधिक सुरक्षा  की माँग की जा रही है ? क्यों उनके बोडीगार्डों  के लिए कार्बाइन उन्हें क्यों अपर्याप्त लग रहा है ?  क्योंकि वे जान गए हैं कि उनके बुरे दिन आने वाले हैं | आ ही गए हैं | विधायक सांसद मारे ही जा रहे हैं | और हम लोग जो मारपीट में विश्वास नहीं करते उन्हें ' कौड़ी के तीन ' बनाने पर तो तुले ही हुए हैं !
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To , Mr Prabhat Ranjan Deen Ref : Kanwhizz Times 12/6/12
I , very much ,appreciate your today's editorial -" व्यक्ति नहीं पद का रहे  ध्यान " | I was  just discussing yesterday with some Anna-ist  political workers - कि अपने नेतृत्व को गाली देने से देश का असम्मान होता है और वह  कमज़ोर न भी हो तो  कमज़ोर होता है | दुष्प्रचार में बड़ी ताक़त है | देश कमजोर भी हो तो भी इसे बाहरी दुश्मन  ताकतों को मजबूत ही दिखना चाहिए, जो हमारे खिलाफ घात लगाये बैठे हैं | अन्दर की लड़ाई और देश की कमजोरियाँ अपनी जगह ,हम नागरिकों को इसे इज्जत और  शक्तिशाली ही बनाना चाहिए | यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आज हम आजादी का जीवन जी रहे हैं , और यह कम नहीं है | देश भ्रष्टाचार मुक्त तो किसी सख्त - आततायी विदेशी शासन के अंतर्गत भी हो सकता है , बल्कि बड़ी आसानी से हो सकता है | पर क्या वह हमें मान्य होगा ? लेकिन ये बड़े -भले लोग छोटी बातें नहीं समझ पाते , क्योंकि लोकतंत्र की मीठी हवा उन्हें यह सोचने का मौका ही नहीं देती कि गुलामी क्या होती है ? पर हम तो वाकयी  आशंकित हैं | कहीं हम फिर न गुलाम हो जाएँ ? इसलिए नारायन सामी और व्यालार रवि ने जो कहा है वह गलत नहीं है | रस्सी को इतना नहीं खींचना चाहिए कि वह टूट जाए , और फिर जुड़े तो गाँठ पड़ जाए |
पाठक नामा में नील गुप्ता का पत्र भी सटीक चेतावनियाँ दे रहा है | हम कितने भी विख्यात हो जाएँ पर कभी अपने खून की जांच भी कराएँ | फिर कोई इलाज सोचें | कौन करेगा जाँच ? कितने तो इनकम टैक्स/ सीबीआई अधिकारी ही जाँच के घेरे में हैं | इसलिए अपनी जाँच स्वयं करें
  आपको भूरि - भूरि बधाई |
और हाँ यह तो छूट ही गया | अभिजित मोहन ने भी खूब लिखा है = ' परिवारवाद पर बहस क्यों ' | मैं भी इस बात का पक्षधर रहा हूँ कि देश की नीतियाँ देश के रक्त [ खून ] को देखकर , ध्यान में रखकर तय की जानी चाहिए | इसीलिये मैंने मुलायम सिंह की शौचालय योजना पर धन बहाने की आलोचना की थी | ग्रामीण जन अब भी बाहर जाते और शौचालयों में उपला - कंडा भरते हैं | फैशनेबल जनतंत्र के खिलाफ देसी लोकतंत्र की बात करने के कारण ही मैं विद्वान मित्रों द्वारा उपेक्षित और बहिष्कार का पात्र बनता हूँ | मेरे साधारण बोधगम्य तर्क उनकी मोटी मोटी पोथियों के ज्ञान के आगे तूती की आवाज़ बनकर रह जाते हैं | लिखता हूँ तो संपादक जन इतने सामान्य टिप्पणियों को निरर्थक समझ लेते हैं |
तो यह समझना होगा कि  परिवार  भारत की मूल एवं महत्वपूर्ण  संस्था है | अब परिवार टूट रहे हैं तो परिवारवाद भी धीरे धीरे टूटेगा ही , पर अभी भी कोई इसकी निंदा नहीं करता | दरअसल लोग अपनी मुसीबतें स्वयं अपने घर बुलाते हैं | मुलायम सिंह का समाजवाद अपने को लोहिया का वारिस बताता है और लोहिया का पूरा राजनीतिक आधार ही नेहरु के वंश वाद के खिलाफ था , जो कि भारतीय परिप्रेक्ष में गलत था | तो अब कोई डिम्पल के चुनाव की आलोचना करता है तो उसे झेलना ही पड़ेगा | लोहिया जी का विरोध की राजनीति में बड़ा नाम है , लेकिन वस्तुतः वे भी अंग्रेज़ी पढ़े - लिखे थे | व्यक्तिपूजा में हम इसे भूल जाते हैं और व्यक्तिपूजा , चढ़ते  सूरज को प्रणाम , विद्वानों- ब्राह्मणों का आदर , राजा को ईश्वरतुल्य मानना भी तो हमारे खून में है ! और मानस का ' भय बिन होय न प्रीत ' , ' कोऊ नृप होय हमें क्या -' इत्यादि भी तो हमारे रग -रग में समाया हुआ है ! 
बदलेगा , खून बदलेगा , संस्कार बदलेंगे पर एकाएक तो यह सब नहीं हो जायेगा ? अलबत्ता बदलाव के उदाहरण भी सामने आने चाहियें ! ऐसा  कोई कर नहीं रहा है , क्या कांग्रेस , क्या सपा , क्या बसपा , क्या भाजपा , यह ज़रूर चिंता की बात है | हर एक हर दूसरे की नक़ल परोस रहा है और नक़ल से कोई नई  नीति , कोई नया रास्ता तो तैयार  नहीं होता !
उग्रनाथ 
'तुच्छ इकाई ' , अलीगंज , लखनऊ
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Gon-zo -
१- -[बदमाश चिंतन ] घूस का पैसा यदि अकेले रख लिया जाय तो वह व्यक्तिवाद है | यदि उसे मिल - बाँट कर खाया जाय तो उसे समाजवाद कहते हैं |
२ - लड़के ने लड़की से कहा आखिर किसी के प्रति तो आकर्षित होगी ही , तो मुझमे ही क्या बुराई है ?
३ - [कथा स्वरुप ] इधर साल भर से मेरा कोलकाता से दिल्ली राजधानी एक्स. से कई बार जाना हुआ | उसके कुछ सेवा कर्मी मेरी पहचान में हो गए हैं | इस बार मई में देखा तो कई कर्मचारी नदारद थे | पूछने पर पता चला कि तमाम रसोइये और वेटर उ.प्र. के जेलों में बुला लिए गए हैं, कैदियों को उच्च श्रेणी की सेवा प्रदान करने के लिए |
४ - गजगामिनी /ज्ञानगामिनी - माधुरी दीक्षित पर बनाये गए चित्रों को हुसैन ने गजगामिनी नाम दिया था| वह बड़े कलाकार थे , वह उनके और माधुरी के बीच का मामला था | लेकिन हम देख सकते हैं कि आज की प्रबुद्ध महिलाएं जब चलती / बोलती हैं,तो ज्ञान छलक -छलक कर बाहर गिरता रहता है
५ - कुछ तो विशेषाधिकार [priviledge] अवश्य मिलता दिख रहा है | दलित और महिला रचनाकारों की किताबें प्रकाशक टप से उठा लेते हैं छापने के लिए | हम लोग रिरियाते रहते हैं पर हमें वे घास नहीं डालते |
६ - विद्वान कुछ भी कहें पर शिक्षा तो मुझे मूलतः conditioning की ही प्रणाली दिखती है | जैसे मान लीजिये हमें बच्चों को दिशा की शिक्षा देनी है तो हम उन्हें उत्तर की और मुंह करका खड़ा कर देंगें और निश्चयपूर्वक बतायेंगे कि बच्चो ! तुम्हारे सामने की दिशा उत्तर कहलाती है , तुम्हारे दायें हाथ की और पूरब , बाएं हाथ की ओर पश्चिम और पीछे की दिशा दक्षिण है | अब इसमें तर्क और reasoning और प्रश्न की क्या गुंजाईश है ?     

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मैं बहुत दिनों से यह महसूस कर रहा हूँ  कि जैसा मेरा नामशः स्वभाव  है ,मुझे अपने क्रोध का अनावरण करना चाहिए , सभ्यता - शिष्टाचार की  आँड़  में उसे रोकना ठीक न होगा | क्योंकि बहुत सी गलत बातें हो रही हैं और मैं उन्हें जाने देता हूँ | ये विसंगतियां समाज में भी हैं , राज्य सम्बन्धी विमर्श में और मनुष्य के मन में भी | इस हेतु मुझे असभ्य समाज , दुर्वासा दल ,क्रोधी संत मिशन, अप्रिय वार्ता, अपशब्द ,आग बबूला   जैसा कुछ होना पड़ सकता है , पर पहले प्रिय सम्पादक से तो छुट्टी मिले [बड़े प्रिय बनने चले थे] !लेकिन दिक्कत यह है कि मैं अपने दिल से भी तो  मजबूर हूँ जो सौम्य,प्रेमी ,स्नेही और शांत है| वैसे बहुत हो चुकीं चिकनी चुपड़ी बातें ,सभ्य -शालीन भाषा में ! तंग तो हूँ , तनाव उसमे भी है ,तनाव इसमें भी है | तो क्या ओशो  की लाइन पकड़नी पड़ेगी , एकांत में गालियाँ बकना ? शुरू तो कर ही दिया है किसी से न मिलने - जुलने का कार्यक्रम !
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-          विनम्रता पूर्वक  मैं एक बात तय जानता हूँ [ चाहे इसका कोई  बुरा माने या भला , या कोई आरोप लगाये कि मैं तो भविष्यवाणी जैसा  बोल रहा हूँ, या फ़तवा दे रहा हूँ ]  कि यदि भारत में हिंदुत्व को दलितों को नहीं सौंपा  गया तो भारत में हिन्दू राज्य की स्थापना कभी भी नहीं हो पायेगी  | और यह भी समझ लें कि दलित जो भी नीति अपनाएगा वह हिंदुत्व ही होगा , भले किसी की समझ में आने में अभी मुश्किल लगे | बस जितनी जल्दी समझ आ जाये उतना ही राष्ट्रहित में अच्छा होगा | चाहे जितनी उछल कूद में समय नष्ट कर लें , सवर्णों के वश का काम नहीं है हिंदुस्तान में हिन्दू राज्य लाना | {नास्तिक मुनि}
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* डिब्बा बनकर रह जाये लैपटॉप ' - विरोधी विधायकों का संदेह |
-- मेरा तो कहना है यदि लैपटॉप छात्रों की माओं द्वारा रोटी बेलने के काम आये तो कहियेगा !
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अफसरों की अशिष्टता ;- विधायकों की बड़ी शिकायत है की अधिकारी उनका महान आदर नहीं करते | विधायक उनके पास जाते ही क्यों हैं , क्या काम कराने ? इस काम के लिए एक पृथक स्पेसल अधिकारी नियत होना चाहिए , केवल उसी के पास वे अपने काम सौंप दें , वह उन्हें सम्बंधित विभाग को भेज देगा | इतने बड़े माननीय होकर क्या छोटे छोटे अफसरों के पास जाते हैं ? काम नहीं अपना धौंस  ज़माने , हनक दिखाने और उनके काम में बाधा डालने जाते हैं | आखिर अफसर इतने सारे माननीयों से आदर पूर्वक मिलने में समय गवांये या अपना कुछ काम भी करे ? आरोप है की पी जी आई के डॉक्टर उनके रिक्मेंडेसन पर ध्यान नहीं देते | तो क्या मरीजों का इलाज़ भी अब विधायकों के कहने पर होगा ? क्या हिंदुस्तान विधायकों का गुलाम बनने जा रहा है ,जिनके आदेश के बगैर पत्ता भी नहीं हिलेगा ? विधायकों द्वारा सरकारी कामों में हस्तक्षेप और विघ्न को रोकना होगा , अन्यथा ये भस्मासुर हो जायेंगे |
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* रामदेव [अब ये राजनीति में गए हैं ,इनके नाम के साथ श्री या बाबा लगाना पत्रकारिता के अनुसार अनावश्यक है ] को यह कैसे पता चला , वह कैसे जानते  हैं कि ४०० लाख करोड़ काला धन विदेशों में जमा है ?कहीं श्रीमान जी भी तो उसी व्यापार में लिप्त नहीं और प्रतियोगिता में असफल होने का खुन्नस निकाल रहे हैं ?इनके पास तो केवल १५०० करोड़ ही गेरुआ धन है | अब सच यह है कि उनका धन जनता के हित के हेतु है , इनका धन जनता के लिए उपयोगी है |
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* नरेंद्र मोदी को बी जे पी चाहे अपना नेता  नम्बर एक बना ले या अपने सर पर चढ़ा ले ,जनता नरेंद्र मोदी को अपना भारत भाग्य विधाता कभी नहीं बनाएगी | एक दिन जल्दी ही मोदी किनारे लगा दिए जायेंगे और उनके साथ बी जे पी भी चली जाएगी | भारतीय मनीषा की कुछ गुप्त नीतियाँ होती हैं, और वह अंदर अंदर उस के अनुसार काम करती है , और वह किसी पार्टी या व्यक्ति की गुलाम नहीं होती |
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* ज्ञान पीठ में गौरव सोलंकी :-- पहले तो ये लोग इसीलिये छपते और प्रशंसा पाते हैं क्योंकि ये IIT,iim , ETC  ग्रेजुएट हैं | फिर जब कभी इनकी पुस्तक नहीं छपती तो अपने graduation का धौंस दिखाते हैं | अब IAS  वगैरह आने भी लगे हैं बहुत साहित्य के क्षेत्र में ! अरे तुम जहाँ के होगे वहां के होगे तीस मार खान , यहाँ तो तुम्हे हिंदी के बड़े बूढ़ों की ही बात माननी पड़ेगी | नहीं तो सीधे चले जाओ बड़े बड़े प्रकाशकों के पास , तुम्हारा नाम तो यूँ ही चमक जायेगा |        9/6/12

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[कविता ]
मैं खुद एक दूरी
बना लेता हूँ
ऊंचे पेंड़ों से
मसलन खजूर से
युक्लिप्टस - बरगद से ,
जिससे मैं उनका
शीर्ष देख सकूँ,
और नाप सकूँ उनकी ऊँचाई
दूरी के हिसाब से
गणित लगाकर |
दूरी शून्य होगी तो
पेंड़ मुझे अपनी ज़द में ले लेगा
मैं संज्ञाशून्य हो जाऊंगा -
नहीं जान पाउँगा
पेंड़ कितना ऊँचा है
या कितना ठिगना ,
पेंड़ जितना ऊँचा
उतना ही उससे दूर
जाना पड़ता है मुझे |
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Gon-zo Journalism . [style created by Hunter S. Thomson and the name so , given by Bill Cordoso], which I am fond of , and it suits me very much .
1 - (Quote) :  - It {cricket} requiresone to assume such indecent postures .- [Oscar Wilde]
2 - "Power attracts the corruptible . Suspect all who seek it " -Frank Herbert.
Personally I have been of the view that who fight elections for power are essentially  mean and lowly persons . I call upon the citizenry not to give respect to them , rather always suspect them as Frank Herbert too suggests.
3 - On Ambedkar cartoon controversy, I would suggest reading  an article -- " A different Reading" by -S. Anand [The Indian Express- 24/5/12 OP-ED Page-11]. I could read it after returning from a long stay out of Lucknow. It confirms my view on the issue.
4 - A Blackberry addict Rahul Gandhi is a nonsense and a nuissance in the politics of our taste .
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[HAIKU]
* न अन्ना टीम
न भोगा , न योगा
न रामदेव |


* युवा , युवा हों
तब न दें उनके
हाथ शासन !

* आदमी ही है
जो कि आदमी भी है
हैवान भी है |

* सुंदर हो तो
सुंदर कह दिया
नयी क्या बात ?

* हो चाहे न हो
पर बातें तो हैं ही
बराबरी की !

* औरतें जानें
औरतों की समस्या
हम क्या जानें ?

*सारे पुरुष
एक से नहीं होते
न सब नारी |

* कुछ भी शुभ
हो ही नहीं रहा है
मैं कैसे बोलूँ ?

* कितने आये
सबको देख लिया
कितने गए |

* कोई समस्या
हिंदुस्तान के लिए
समस्या नहीं |
 * कुछ न हुआ
कुछ नहीं हुआ है
उन्ही से पूछो |

* इतना झूठ
कैसे बोल लेते हो
धारा प्रवाह ?

* बच्चे आवारा
क्या करें माता पिता
मानते नहीं !

* समाज विच
बहुत गंदगी है
हम गंदे हैं |

* परेशानी है
छोटे लोग होते हैं
छोटी सोच के |

* मुझे गाली दो
सहयोग भी चाहो
उल्टी बात है |

* दूर - दूर से
नजदीक से नहीं
प्रेम कीजिये |

* कभी ब्राह्मण
बन जाता हूँ मैं, तो
कभी चमार |

* मैं ऐसा न था
यह तो अब हुआ
परिवर्तन |

* खराब करें
क्यों अपना दिमाग
भलाई पर ?
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ब्राह्मणों में , यह देखा गया है कि, बामन सेन्स तो बहुत होता है , पर कॉमन सेन्स का नितांत अभाव होता है | [उवाच]
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[ कविता ] = सामूहिक

सामूहिक बलात्कार !
सामूहिक भ्रष्टाचार ,
सामूहिक  स्वीकार ,
सामूहिक शवदाह [mass  burial ]
क्या यही है नियति
मनुष्य की सामूहिकता की ?
सामूहिक आत्मदाह ,
सामूहिक आत्महत्या ,
सामूहिक सर्वनाश ?
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[ विशिष्ट कविता ]

आदमी की बात !
किस आदमी की बात
कर रहे हैं आप ?
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किसी के समर्थन या किसी के विरोध से कुछ नहीं होता | आदमी को अपने किये का फल भुगतना ही होता है | [उवाच]
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यदि हिंदुस्तान के लिए मैं सीधे सीधे राजशाही का समर्थन कर दूँ तो आप नाराज़ हो जायेंगे | लेकिन इसके अलावा और हो ही क्या रहा है इस संसदीय दलीय राजनीति में ?
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जातिवादी राजनीति में बढ़ाव का एक कारण मेरी समझ में यह आता है कि इनके थोड़े बहुत भी पढ़े लिखे और सक्रिय नेता भी संख्या में कम होने के नाते अपने समुदाय के कम पढ़े -लिखे सदस्यों को आसानी से प्रभावित कर लेते हैं | जैसे यादव, लोध , पटेल आदि जातियाँ अपने अपने नेताओं के पीछे लामबंद हो जाते हैं | लेकिन समझदार मुसलमान और सवर्ण जातियाँ इसके चक्कर में नहीं पड़ते | उनकी किसी भी जाति का कोई एकछत्र नेता नहीं हो सकता | वे मुलायम सिंह यादव को भी अपना नेता बना सकते हैं और मायावती को भी अपना रहनुमा बना लेते हैं |
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इलाहाबाद वि.वि. के हेड [उर्दू] श्री अली अहमद फातमी  का कहना है कि मुस्लिम समुदाय में आत्मविश्वास पैदा करने के लिए [to generate confidence] हामिद अंसारी को राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए |
- अब हिन्दू का नाम लेने का पाप न भी करें तो , अन्य समुदायों के आत्म विश्वास का क्या होगा ? ज़ाहिर है मुस्लिम आत्म विश्वास ही देश का स्वाभिमान है |3/6/12
[Ref-India Policy Foundation]

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