शनिवार, 25 अगस्त 2012

20/6/12


मान लो
तुम्हारी बात सुनकर
उसने हँस दिया
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तो क्या करोगे ?  

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[ संवाद ]
- यह बताइए सेठ जी , इन लोगों की इतनी दुर्दशा क्यों है ?
= इनके भाग्य ही ऐसे हैं |
- तो यह समझ लीजिये  कि अब आपका भाग्य वैसा ही होने वाला है |
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[ उपन्यास अंश ]
वे क्लास - कास्ट कुछ नहीं मानते | वे रेल में जनरल से लेकर स्लीपर , एसी-१, एसी-२ , एसी-३ किसी भी तरह के डिब्बे में निःसंकोच घुस जाते हैं और निर्द्वंद्व यात्रा करते हैं |   kwt
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[ विचारणीय ]     kwt
 १ - राजनीति तुलनात्मक प्रतियोगिता का खेल है - समय सापेक्ष | इसमें निरपेक्ष और शाश्वत कुछ नहीं |

२ - हालत यह हो गयी है कि अब तो धर्म के बगैर धर्मनिरपेक्ष [ secular ] भी नहीं हुआ जा सकता !

३ - ठीक बात है , जिसको राज्य करना हो वह मांस - मछली खाए , बन्दूक चलाये , हिंसा करे | हम तो चींटी भी नहीं मारते |

४ - जिसकी तरक्की रोकनी हो ,आगे न बढ़ने देना हो , उसे राष्ट्रीयता का वास्ता देकर उकसा दो कि वह मात्र अपनी मातृभाषा में पढ़े और अंग्रेज़ी से नफ़रत करे |

५ - सच तो ज़रूर बोलते हैं हम , बीएस उन कुछ स्थितियों को छोड़कर जहाँ हमें अपनी कमजोरी या मजबूरी स्वीकार करनी होती है |

६ - अल्लाह सिर्फ ईश्वर का नाम नहीं , किसी उच्चतम जीवन लक्ष्य और सम्बल-आश्रय का भी तो नाम है !

७ - एक कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी - कर्मचारी का मुकाबला बड़े से बड़ा नेता, साधु संत भी नहीं कर सकता |

८ - अंग्रेज़ी राज्य इससे बेहतर था , यह कहना ठीक नहीं है | बल्कि गुलामी की दशा में यह देश स्वयं ही ठीक रहता है , ऐसा कहना ज्यादा सही है |   26/6/12
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गुलामी कुछ भी नहीं है , यह तो human protocol का एक हिस्सा है | क्या VIP
अपने मन से कुछ भी  खा -पी सकते हैं , बिना सुरक्षा की अनुमति के , कहीं भी आ - जा सकते हैं ? उसी प्रकार गुलाम का जीवन भी कुछ -कुछ प्रतिबंधित होता है | वरना वे होते तो VVIP  हैं |
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१ - खूब लगाता
मन नहीं लगता
लेकिन यहाँ |

२ - ख़ैर मनायेगी
कब तक बकरी
बकरे की माँ ?

३ - साथ निभाया
जहाँ तक हो सका
नहीं तो नहीं |

४ - पछ्ताऊँगा
पछताना तो मुझे
होगा ही होगा
हर हाल में
मैं जीतूँ या हारूँ
इस जंग में |

५ - बुरा लगता
औरतों का सजना
भला क्यों मुझे ?

६ - इतना बड़ा
कठोर कालखण्ड
बड़ा सताता |

७ - क्या - क्या होता है
यवनिका के पृष्ठ ( पीछे )
तुम क्या जानो ?

८ - गेहूँ के साथ
घुन भी पिस गया
यही समझो |
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  जब मेरी अम्मा ने अपना जीवन काट दिया , और मरी तो अपने मन से | जब कि तब न तो ढंग से जलौनी ईंधन था , न गेहूं पीसने - धान कूटने की मशीन | तब तो प्रेशर कुकर भी नहीं था | नहीं था बर्तन माँजने के लिए विम साबुन , न हरे रंग का मंजना | अब तो यह सब साधन -सुविधाएँ मौजूद हैं | फिर मेरी पत्नी , लडकी , बहू इतनी झिकझिक क्यों करती हैं |
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मेरा सच्चा जीवन साथी - एक छोटा सा प्रेशर कुकर |
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* कुछ नए वाद मेरे मस्तिष्क में हैं | क्या उनके आधार पर कोई राजनीति या दर्शन की शाखा चलायी जा सकती है ? जैसे - धन्यवाद , अपवाद , बकवाद , संवाद , जव्वाद , और एक है मवाद |   kwt
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जिसे कुछ न्याय की आशा हो वह अपील करे ;
मैं तो कातिल के भरोसे हूँ , अब वह जो भी करे |26/6/12
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[ उद्गार - कविता ]
* कुछ पाना तो है 
कुछ पाने की इच्छा तो है ,
लेकिन किसी के मुँह से 
निवाला छीन कर नहीं |
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राजनीति का मतलब = चुनाव का चक्कर और चकचक | इसी में न पड़ने के कारण अन्ना अपने आन्दोलन को अराजनीतिक बताते हैं | दूसरी ओर एक मैं हूँ जो संपादक के नाम एक पत्र लिख कर भी ताल ठोंक कर कहता हूँ कि मैं 'राजनीति' कर रहा हूँ | kwt
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उफ़ ! आये दिन के ये चुनाव | आज नगर निगम का चुनाव है , कल विधान सभा का चुनाव था , परसों लोक सभा का चुनाव होगा | कितने चुनावों में हम अपना अमूल्य वोट का अपव्यय करें ? एक देश , एक राष्ट्र , एक राष्ट्रपति का चुनाव हो जाता तो ----- [ जैसा कि लोग कह रहे हैं कि एक देश एक पढ़ाई , एक परीक्षा --]   23/6/12
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Be it known to all 
यह सर्वविदित हो कि देश में कुछ लोग ऐसे पैदा हो चुके हैं जो गेरुआ वस्त्र देखकर ही भड़क जाते हैं |  kwt
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* मैं ब्राह्मणवाद पर अनायास ही सोचने लगा जब कि मैं ब्राह्मण नहीं संभवतः शूद्र की श्रेणी में आता हूँ | फिर जब जन्मना श्रेष्टता न्यूनता नहीं मानता तो नहीं मानता | यह जिद है हमारी | भले  संस्कारगत या पालन पोषण , शिक्षा दीक्षा में विविधता के कारण अंतर , अथवा यूँ हर व्यक्ति की पृथक इयत्ता और प्राकृतिक विशिष्टता को स्वीकार करता हूँ | लेकिन यह भी मानने में हमें परेशानी है कि मुसलमान - दलित -ब्राह्मण के बारे में सोचने से पहले स्वयं  मुसलमान - दलित -ब्राह्मण हो लिया जाय | यह तो लोकतान्त्रिक विचारशीलता के ही विपरीत हो जायगा | तो अब सोचना है कि  ब्राह्मण को पूज्य मानने का क्या कारण हो सकता है ? एक तो यह समझ में आता है कि उसने अपने जिम्मे केवल पढ़ने- पढ़ाने का काम रखा , और ऐसे लोग स्वभावतः परजीवी होते ही हैं | जैसे आज भी विद्यालयों - विश्व विद्यालयों के अध्यापक , कवि -कलाकार क्या करते हैं ? दूसरे यह कि वह कभी राजा नहीं नहीं बना | परोक्षतः उसने अपने ज्ञान -विज्ञान से राज्य शासन को प्रभावित , किंवा संचालित भले किया , पर राजा तो क्षत्रिय ही रहा | चाणक्य का उदाहरण ज्वलंत है | तीसरे उसने कभी धन नहीं बटोरा | पुरानी किसी भी कहानी में धनी बाभन का उल्लेख नहीं मिलता | धनाढ्य सेठ वणिक-बनिया ही होता है पर " किसी गाँव में एक गरीब ब्राह्मण " ही रहता मिलेगा | प्रहार कटु हो जायगा यदि कोई कह दे कि वह दलित का पैर छूने को तैयार है यदि दलित यह घोषणा कर दे कि " दलितों का धन केवल भिक्षा " | यह मामूली बात नहीं थी कि उसने अपने लिए भिक्षावृत्ति सुनिश्चित की , न उसने एन जी ओ बनाकर या संतई का ट्रस्ट बनाकर करोडो की संपत्ति जमा की | उस ब्राह्मण की आज के ब्राह्मण से तुलना अनावश्यक है | अब ब्राह्मण भी मुख्य धारा में आ गए हैं , और तबसे धनी- मानी बनने लगे हैं जबसे सर्वजन प्रयोग करके उन्हें सत्ता , शासन और राज्य में सीधे बिठाया गया | निस्संदेह सामान्य ब्राह्मण अब भी कुछ सनातन संस्कार के वशीभूत अपने को थोड़ा अनुचित गुमान में रखता है , पर यह एक सामान्य मानुषिक दोष है जिसका परिमार्जन समय के साथ होना ही है | उसे तो मिटना ही है और सामान्य नागरिकता की श्रेणी में आना ही है | लेकिन यदि कोई वर्ग या समुदाय अपनी श्रेष्ठता की सीढ़ी विशेष तौर पर  बुलंद करना चाहता है तो क्या उसके लिए उचित न होगा वह  इसका सूक्ष्म अध्ययन और अनुकरण करे कि आखिर गरीब , दीन- हीन ब्राह्मण किस तरह  , एक- दो , दस -बीस साल नहीं सदियों तक समाज का सिरमौर बना रहा ? उससे कुछ सीखें तो आप भी वैसा बन सकते हैं , आप भी अब वेद पढ़ सकते हैं कोई नया मनुस्मृति गढ़ सकते हैं [ गढ़ा ही है संविधान ] | आप विशिष्ट ब्राह्मण नहीं बनना कहते तो आप भी सामान्य नागरिकता के पायदान पर आइये , सबको समान समझिये | वर्ना ब्राह्मण और आधुनिक लोक -मानव के बीच क्या अंतर रह जायगा ? इस लक्ष्य के लिए अब केवल उसे गाली देने या चिढ़ाने से तो कुछ हासिल होने वाला नहीं | मायावती जी ने उसका साथ लेकर शासन करना सत्य    सिद्ध कर ही दिया , और आश्चर्य क्या कि महान आंबेडकर ने अपने आह्वान में ' शिक्षित बनो ' को सर्वोच्च स्थान दिया ?
अंत में एक महाप्रश्न अपने आप से है - " यदि ब्राह्मण हमको अपने बराबर नहीं समझता था , तो क्या हम ब्राह्मण को अपने बराबर समझते हैं ? "    kwt
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एक  साहित्यिक बदमाशी जैसा कुछ सूझ रहा है | मैं ब्राह्मणों की उपमा मुग़ल बादशाह औरंगजेब से देना चाहता हूँ | औरंगजेब भी टोपियाँ सिलकर और कुरान का हस्तलेख करके अपनी आजीविका चलाता था , पर अपने शासन में बहुत कठोर था | उसी प्रकार ब्राह्मण भी अपने लिए धन केवल भिक्षा रखता था , पर सामाजिक नियमों में बहुत कठोर था  | वैसे भी यह इसके बारे में प्रसिद्ध है कि हिन्दू दूसरों के लिए दयावान पर अपने लोगों , मसलन दलितों के प्रति बहुत निर्मम है |  kwt
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*यदि  हिंदुस्तान -पाकिस्तान को एक करने की बात न करें तो क्या हिंदुस्तान में सिर्फ मंडल - कमंडल , अगड़े - पिछड़े , दलित -ब्राह्म, भाजपा - कांग्रेस की ही राजनीति चलेगी ? इससे देश कहाँ जायगा ? यह तो ' दूसरी -तीसरी गुलामी " की ओर जाने जैसी बात होगी , यदि हम केवल अपने देश में नई - नई समस्याएँ जन्म देकर उसमे उलझते रहे और अपने आगे -पीछे , दायें -बाएँ , ऊपर -नीचे , अडोस - पड़ोस कुछ दीन -दुनिया की ओर नहीं देखेंगे ? आखिर देश भी कोई चीज़ है या नहीं ? देश रहेगा तभी आरक्षण - संरक्षण , आर्टी-पार्टी रहेगी | जिन्ना गलत थे तो भी उनके पीछे खड़े होकर तमाम मुसलमान विभाजन के पक्ष में डायरेक्ट एक्सन तक पर उतारू हो गए और जिन्ना के सिद्धांत को व्यवहृत करके पाकिस्तान बनाया | अब , जब हम उसी जिन्ना को आधार बनाकर भारत में नॉन -इस्लामिक स्टेट चाहते हैं तो हिन्दू बगलें झाँकने लगता है क्योंकि उसे नपुंसक न भी कहें तो नैतिक रूप से नासमझ और कमज़ोर तो कहा ही जायगा | और हम जानते हैं कि अंदरूनी विभाजन उसका कारण है, और वह सच है  | लेकिन आश्चर्य है कि वह और किसी न किसी प्रकार का  विभाजन हर धर्म में है पर उसका रोना वे हर समय नहीं गाया करते | मौक़ा पड़ने पर वे एक हो जाते हैं | और यह ध्यान देने और याद रखने वाली बात है कि भारत हिन्दू है तभी उसमे आरक्षण है | और यह उन वर्गों तक पहुँचने जा रहा  है जो हमेशा शासक वर्ग रहा है | यदि यह हिन्दू नहीं रहा तो यह सब कुछ नहीं रहेगा | क्या पाकिस्तान -अरब -ईरान -ईराक में आरक्षण है , इसका पता लगाना पड़ेगा | अलबत्ता यहाँ  आज दलित  - मुस्लिम एकता की मुहिम और राजनीति भारत राज्य पर फिर से  कब्ज़ा करने के तहत चलायी जा रही रणनीति है | जब कि ज़मीन का थोड़ा सा भी अनुभव रखने वाला जन यह यथार्थ जानता है कि शहर का उच्च वर्ग छोड़ दीजिये , गाँव का गरीब मुसलमान भी हमारे दलितों के प्रति वही  हेयभाव रखता है , जैसा कि ब्राह्मणों के दिलों में होता बताया जाता है , या मान लें कि होता है | फिर भी यह कोई कैसे भूल जाता है  कि भारत के सभी वर्ण किसी भी तरह एक साथ रहते तो आये थे , और उसमे बाह्य जातियाँ - मुस्लिम -ईसाई- पारसी भी शामिल होते रहे | लेकिन मुसलमान आज़ादी की भनक मिलते ही भारत से छटक कर अलग हो गाया  जहाँ उसे इस्लामी संप्रभुता मिलनी थी ? नहीं रह सके वह अपनी हनक , अपनी अलग संस्कृति और सत्ता के बगैर लोकतान्त्रिक भारत में | ठीक है उस समय नेहरु का दबदबा था , पर गुंजाइश तो थी लोकतंत्र में उनके शासन के बारी की या उसमें हिस्सेदारी की , जिसे उन्होंने गवाँ दिया | # 23/6/2012   kwt
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[ gon -zo ]

हाइकु=
* तन से सब
मन से कुछ नहीं
मानता हूँ मैं |

* न गर्मी ठीक
कोई मौसम नहीं
न जाड़ा ठीक |

* विशालता से
कम कुछ भी  नहीं
चाहिए मुझे |

कविता =

* हाँ यार ,
लिखना तो चाहिए ऐसा
की दुनिया हिल जाए
पूँजीवाद धूल में मिल जाए
सरकारें धराशायी हो जाएँ
जनवाद का बोलबाला ,
साम्राज्य स्थापित हो जाए |
हाँ यार '
लिखता तो हूँ ऐसा
की कोई पुरस्कार मिल जाए |    kwt
##

टीप = डी एन ए टेस्ट
* एक उदाहरण याद है अभिनेत्री नीना गुप्ता का | उन्होंने स्वयं अपनी मर्जी से संतान - प्राप्ति की , और पुरुष का नाम नहीं बताया | उनके अनुसार यह पर्याप्त था कि वह उसकी माँ है , उसने अपनी ज़िम्मेदारी पर बच्चा पैदा किया है , इसमें किसी पुरुष - बाप के नाम की ज़रुरत क्या है ? वह ही माँ -बाप हैं | यह अतीव साहस का काम था |
दूसरा उदाहरण पौराणिक है | बिना बाप के नाम के पुत्र सत्यकाम और उसकी माँ का | लोक - उलाहनों से प्रेरित सत्यकाम ने अपनी माँ से पूछा - माँ , मेरे पिता कौन हैं ? साहसी और सत्यवादी  माता ने दृढ़तापूर्वक  कहा - " बेटे मैं कई ऋषियों की सेवा में रही , तू किसका पुत्र है , मैं बता नहीं सकती ?" यही बालक सत्यकाम सत्यवाद का महान नायक बना , और पुराण पुरुष | प्राच्य विज्ञानं का गुण गाने वाले भले कहते रहें कि उस ज़माने में पुष्पक विमान था , यह था -वह था , लेकिन निश्चय ही उस काल - अवधि तक डी एन ए टेस्ट की जानकारी विज्ञानं को नहीं थी | और यह भी कि हर औरत नीना गुप्ता और सत्यकाम की माँ नहीं हो सकती |     kwt
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[ हाइकु ]
१ - पर्याप्त होता
औरत का होना ही
किसी घर में |

२ - बच्चे रहते 
घर भरा रहता
आनंद पूर्ण |

३ - बिलावजह
नींद हराम किया
उनके पीछे |

४ - होना चाहिए
ईश्वर है नहीं तो
नया बनाओ |

५ - मुझे क्या पता
प्रेम किसे कहते
करना जानूँ |

६ - नाम कमाना
क़ुरबानी माँगता
हलवा नहीं |

७ - कोई न कोई
पावरफुल होगा
वह कोई हो |

८ - कोई आदमी
अपनी बराबरी    
नहीं चाहता |

९ - चिंतन कर्म
बिल्कुल आसान है
शुरू तो करो |

१० - मैं मूरख था
मैं मूरख रहूँगा
मैं मूरख हूँ |

११ - मिलता भी तो
कब तक मिलते
जीवन छोटा |

12 - ठीक से देखो
नज़र नीची करो
ज़मीन देखो |

13 - कुछ चीज़ें तो
बदलनी चाहिए
मसलन क्या ?
हमारी सोच
जन - मानसिकता
बदलेगी क्या ?
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[ कथनानुसार ]
१ - बीस रुपया रोज़ पाने वाले गरीब विधायक -सांसद बनें यह तो संभव नहीं है , लेकिन मेरी आकांछा आकांक्षा है कि सांसद - विधायक बीस रुपया रोज़  वेतन लें |
२ - अजीब बात है कि असली 'व्यक्ति' का उदय तब होता है जब उसका नकली ' व्यक्ति ' तिरोहित हो जाता है |
३ - यदि हिंदुस्तान को तरक्की तो क्या , जिंदा भी रहना होगा तो उसे यह भूलना होगा कि कोई व्यक्ति मात्र पैदा होने से छोटा या बड़ा होता है |
४ - किसी के कहने से नहीं , जब मेरी नानी मरीं , तब मुझे विशवास हो गया हम सबको , सारे मनुष्यों को मरना होगा |
५ - बूढ़ों को भी अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए |
६ - ' आम आदमी ' वह है जिसे अपने आम ज़रुरत के कार्यों के लिए नौकर , मजदूर न लगाना पड़े |
७ - ईश्वर को अपने सिस्टम से delete  मत करो तो उसे recycle bin में तो डाल ही दो |
८ - मैं स्वर्ग को न तो जानता हूँ न मानता हूँ , लेकिन यदि कहीं स्वर्ग हुआ और उसमे मुझे जाना ही पड़ा , तो चला जाऊँगा |
९ - ईश्वर को छोड़ अपने ' आदमी ' की शरण में आइये |
१० - बड़ी ज़िम्मेदारियाँ उतनी ही बड़ी नैतिक ऊँचाइयों के साथ निभाई जानी चाहिए |
११ - जो अपने आपको बहुत बुद्धिमान समझते हैं , वे सबसे अधिक मूर्ख होते हैं |
१२ -  The world is made up of ‘differences’ . Once you forget it , you will  be in a candid tension .  kwt
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मौत की तो सिर्फ बात करता हूँ ,
वरना मैं जनता हूँ - ज़िन्दगी  हूँ |
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अभी समय है , हिंदुस्तान - पाकिस्तान एक करो , चाहें जरदारी को भारत का राष्ट्रपति बना दो | दोनों देशो की समस्याएँ , परेशानियाँ एक हैं अंदरूनी भी , बाहरी  भी | कहने दीजिये किसी को , जब बिल्कुल ठीक से बँटवारा नहीं हुआ , हो ही नहीं सकता था , कि सारे हिन्दू हिंदुस्तान  में - सारे मुस्लिम पाकिस्तान में , तो फिर यह माना जाना चाहिए कि दोनों का रहन सहन , संस्कृति एक ही है | और जो नहीं है तो भी वे अपनी अपनी मान्यताओं के साथ एक साथ सदियों से रहते आये हैं | इन्हें एक साथ रहने का पूरा अनुभव - अभ्यास है | यह काम जितना जल्दी हो जाय उतना अच्छा | भारतीय मानस इस बँटवारे को स्वीकार नहीं कर पाया है , न कभी इसे पचा पायेगा | यदि ऐसा न हुआ तो पाकिस्तान में हिन्दुओं की दशा अच्छी नहीं होगी , है भी नहीं | उसी प्रकार भारत में मुसलमान भी ढंग से नहीं रहने पायेंगे , चाहें सच्चर कमेटी लागू कर लीजिये चाहें आठ प्रतिशत आरक्षण | कैसे भूल जायेगा हिंदुस्तान जिन्ना की बात कि हम अलग हैं और एक साथ नहीं रह सकते , और इसे पाकिस्तान ने अपने यहाँ हिन्दुओं के साथ वही व्यवहार करके दिखा भी दिया ? यदि जिन्ना की बात गलत करनी है ,अल्लामा इकबाल का कौमी तराना यदि सही ठहराना हो , तो फिर एक होकर दिखाओ | अब इससे कोई लाभ नहीं कि बँटवारे में जिन्ना - -इकबाल का दोष ज्यादा था या गाँधी - नेहरु का | एक होने पर सारा मलाल मिट जायेगा | यह तो तय है कि  जनता का तो कोई दोष नहीं था ? उसने बहुत सह ली बँटवारे की त्रासदी | अब वह एक होना चाहती है | ऐसी राजनीतिक इच्छा [Political Will ] जिसके पास हो वह अब अगले चुनाव में उतरे | शेष तो लफ्फाजी बहुत हो चुकी |    kwt
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अन्ना को डाक्टर ने बताया है कि कुछ बोलना ज़रूर है | प्रणव के बारे में नहीं पता था तो भी बोलना , बयान -समर्थन देना ज़रूरी था | अब जब प्रणव के बारे में साथियों से कुछ पता चल गया तब तो बोलना , समर्थन का खंडन करना ज़रूरी ही है | इसी तरह पत्रकारिता ने भी यह ठान लिया है कि अन्ना के बयानात वह छापेगी , उछालेगी ही चाहें वह जैसी हो | मेरा मूल प्रश्न है प्रेस अन्ना को इतना महत्त्व क्यों दे रहा है ? उनकी हैसियत क्या है ? और इसी प्रकार रामदेव की भी ? क्या इसलिए कि ये लोग साधु संत जैसे दिखते लोग हैं ?
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लोग कहते हैं कि सभासदों , पार्षदों , मेयरों के पास अधिकार नहीं हैं | उधर समाचार है कि ये लोग चुनाव जीतकर ज़मीनें हथियाते हैं | भैया जी लिखते है कि अब ठेकेदार नगर निगम के चुनाव में आ रहे हैं | तो इतने कम या कुछ नहीं अधिकार  पर जब यह हाल है , यदि इनके पास खूब अधिकार होता तो ये क्या करते ? 20/6/12 kwt

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