[ शुद्ध कविता ]
* मैं उनका
चरणस्पर्श करूँगा
वह मुझे ,
मेरा कंधा पकड़
उठाएँगे और
गले लगा लेंगे |
[ कविता है जापानी ]
* क्यों बोलें हम
सारे ही मुद्दों पर
वे भी तो बोलें !
* उचट गई
नींद तेरे कारण
अब क्या करूँ ?
* ऐ मेरे बुद्धि
तेरा कोई प्रयोग
होगा या नहीं |
* ठीक समय
शुरू न हो
प्रोग्राम
कोफ़्त होती है |
* क्रमशः हल्के
होते जाते मनुष्य
जाने क्या बात ?
* प्रचार तंत्र
मजबूत कर ले
मिट्टी बिक जा |
* मेरी दुनिया
ज़रूर अलग है
थोड़ी तुमसे |
* तुम्हारा यदि
न मिला होता स्पर्श
मैं कहाँ होता ?
* मिटता भेद
सब नग्न रहते
इहलोक में |
* गुस्सा आता है
उतरने के लिए
अपनों पर |
* जो कुछ लिखा
अपने लिए लिखा
पढ़ो न पढ़ो |
* कविता क्रम
[ विचार क्रम ]
आता है मस्तिष्क
में
लिख देता हूँ |
* हर उत्सव
भारी पड़ जाता है
बजट पर |
* ज़रूर होगा
मार्क्सवाद में दम
फ़िदा हैं हम |
* आप मूर्ख हैं
केवल मूर्ख नहीं
महामूर्ख हैं |
* वापस जाऊँ
सवाल ही उठता
नहीं इसका |
* ज़रूर बोलूँ
यदि मारें न मुझे
बोलने पर |
* आप तो मेरी
जान बख्श दीजिये
तब मैं बोलूँ |
* कुछ तो साथ
दिया ही पीड़ाओं ने
मर न जाता !
* सभी लोग अपने जन्म से ही जातिवादी नहीं होते , जीवन के अपने निजी अनुभवों से भी हो जाते
हैं | इसलिए , यदि जातिवाद समाप्त करना है तो हमें अपनी
जातियों के पारंपरिक व्यवहारों से निकलना होगा | जैसे बनिया ' अपने बाप को ' ठगना बंद कर दे , 'कायस्थ का बच्चा ' सच्चा होना शुरू कर दे ;बाभन बभनपन , चमार चमरपन छोड़ दे | kwt
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पुष्पगुच्छ १३/७/१२
* हर वक्त सोचने से
ही सोचना हो पाता है | अन्यथा तर्क निकल
जाते हैं , उदाहरण गुम हो जाते हैं और विचार समग्र
जीवन से नहीं जुड़ पाते | सोचना कोई ऑफिसियल
वर्क नहीं है दस से पाँच का ! जैसे , पिता ने मुझे जगा
कर कहा - जाओ चौराहे से दो मजदूर ले आओ | चेतना आते ही चिंतन
शुरू | यदि गरीब न होते - कोई श्रमिक न होता ,तो मुझे मजदूर कहाँ से मिलते ? क्या मैं , तब ये काम खुद कर
पाता ? क्या कोई मशीन आदमी का सारा काम कर सकता
है ?
मैं सोचने लगा -कम्प्यूटर युग में हम श्रम
से जितने विरत हो रहे हैं , क्या हम मानव जीवन को बचा पायेंगे ? kwt
* स्त्री के अंगूठे
तले
माता के पाँव तले
पिता के पीठ तले
बहन के माथे तले
शिशु के गालों तले
युवकों की हथेली तले
है , संस्कृति की
ज़िन्दगी |
* सुंदर लगता है
सुबह - सुबह
सुंदर स्त्री का
दिख जाना ,
शुभ होता है
सड़क पार करते समय
बिल्ली का रास्ता
काट जाना |
* फोटो तो युवावस्था
का अवश्य दिखाता हूँ , या ऊटपटांग लिखकर
लोगों को भरमाता हूँ | लेकिन मुझे कभी -
कभी लगता है मैं अच्छा -ख़ासा बूढ़ा हो गया हूँ | छः वर्ष जी जाऊँ तो प्रभाष जोशी की उम्र का हो जाऊँ और ४४
वर्ष घटा दूँ तो भगत सिंह की आयु पा जाऊँ |
* देखिये , अब ज़माना आ गया है कि हम जो कुछ बन सकते हैं , व्यक्तिगत ही बन सकते हैं - शिष्ट - विशिष्ट -सत्यनिष्ठ -
कर्त्तव्यपरायण- न्यायप्रिय प्रेम आकुल या कुछ भी तो ! मानें न मानें अभी भी
पायलेट - ड्राइवर के व्यक्तिगत सूझ -बूझ से ही तमाम दुर्घटनाएं टल जाती हैं | इसलिए कुछ बनाना है तो स्वयं कुछ बनना है | इसके लिए समाज का इंतज़ार करना ठीक नहीं , किसी की प्रतीक्षा करना उचित नहीं | नहीं तो समय और
ज़िन्दगी की बरबादी ही होगी | kwt
* होगा बोसोन आपका
ईश्वर ! मेरा ईश्वर तो पोलीथिन की थैलियों की भाँति है जो अविनाशी है भले प्रकृति
और पर्यावरण के लिए हानिकर ! विज्ञानं कुछ भी कहे ,सरकार कितना ही मना करे , कितनी भी रोक लगाये हम इसका प्रयोग करना छोड़ेंगे नहीं | kwt
* ऐसा क्यों हो कि
विरोधी दल सरकार की हर बात का विरोध करें - उचित या अनुचित ? इससे तो उनकी विश्वसनीयता ही घटती है ! जैसे मँहगाई है , तो यह तय है कि लगभग ऐसी ही स्थिति किसी भी पार्टी के शासन
काल में होती | फिर ऐसे विरोध से क्या लाभ , यदि सिर्फ दिखावा ही उद्देश्य न हो तो ! विरोधी दलों को
सत्ता पक्ष के उचित निर्णय या काम -काज का समर्थन भी करना चाहिए , और किसी राष्ट्रीय संकट में उसका संग -सहयोग भी | kwt
* कुछ भी शब्द
लिख सकता हूँ मैं
श्लील या अश्लील |
* चारा दिखाओ
जाल में फँसेगा ही
प्रेम का पंछी !
* बहुत कुछ
सोचा है , देर बस
लिखने में है |
* आ ही जाता है
इतना मैटर तो
दिन भर में | /
[कुछ देर में ]
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( इस तरह के पोस्ट के
लिए मुझे " बालकीय " ग्रुप में पढ़ें )
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* विवाह को बस यूँ समझिये कि कामचलाऊ सरकारों से छुट्टी मिल
गयी , और एक स्थाई सरकार
बन गयी |
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सूक्ष्म कविता =
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* पहले
पीठ पर शाबाशी ,
फिर शीश पर
आशीर्वाद , फिर
गालों पर
थपकी ,
फिर - -
और फिर - - -
- - - - |
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* चारा दिखाओ
जाल में फँसेगा
ही
प्रेम का पंछी |
* फ़िज़ूलखर्ची
नहीं करते लोग
किताबों पर |
*मुरझा गया
प्रेम के अभाव में
जीवन दीप |
* न नाता जोड़ो
और जुड़ जाये तो -
न नाता तोड़ो |
* रहना होगा
गलतफहमी में
सही व्यक्ति को |
* यथार्थ स्थिति
अखबार ने दे दी
कहानी क्या दे ?
सूक्ष्म यथार्थ
कविताएँ देती हैं
कहानियां भी |
* अति ऊष्मा है
इस वर्ष गर्मी में
निजात नहीं
बिजली नहीं आती
बहुत जाती
इस साल हमारे
अलीगंज में |
* क्यों होती इच्छा
प्रिय को अपलक
देखता रहूँ ?
* मर्द होगा तो
आएगा ही , स्त्री के
अंगूठे तले |
[Japani Haiku]
* बच्चे अपना
अंगूठा चूसते ,
बड़े होकर
औरत का
चूसना चाहते |
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सोचता हूँ समूहों
से हट जाऊँ | वे दर्ज़न भर हो गयी हैं और
मैं उन्हें हैंडिल
नहीं कर पाता | एक ही पोस्ट सब पर डाल देता हूँ , तो सब पर एक से लाइक और कमेंट्स से नोटिफिकेशन भर जाता है | उन्हें पढ़ते-पढ़ते परेशान हो जाता हूँ | फिर, उनके योग्य भी नहीं
हूँ मैं | जैसे 'अपना मोर्चा' में गंभीर चिंतन है
,'काफी हॉउस' में बड़ा तनाव है ,'-कवि --' में कवितायेँ कौन
पढ़ता है ? मैं लिख भी नहीं पाता,लगता है, कवितायेँ | यहाँ तक कि मेरे सर्वप्रिय ग्रुप '-- नोंसेंस' में भी कोई युद्ध
छिड़ा है | अलबत्ता 'लखनऊ स्कूल' नहीं छोड़ना है
क्योंकि उसमे पुराने मित्र-पुरानी बातें हैं | 'खबर ज़मीन की' अभी रहने देते हैं | 'प्रिय संपादक' [मेरा ग्रुप] से
छुट्टी यूँ लेना है कि उसे पब्लिक प्लेटफार्म बना देना है , मुझे कुछ नहीं लिखना
है | और केवल अपने लिखने के लिए एक नया ग्रुप
सोचा है | लेकिन पहले अपना प्रोफाइल पिक्चर बदलना है
- पुराना हूँ तो एक पुराना फोटो लगाना है जब मैं 'नया' था | 12/7/12
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* ईश्वर उतना ही नहीं है जिसकी मूर्तियाँ मंदिरों में लगी हैं
, या जिसके लिए
मस्जिदों में नमाज़ें - गिरजाघरों में प्रार्थनाएँ हो रही हैं |
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कविता [एँ]
* मगर ,
इतनी डिमोक्रेसी ?
घबराता हूँ मैं !
* कहाँ नहीं है
व्यक्ति ?
कितने ही बड़े -
बड़े
समाजवादियों की
कविताओं में
व्यक्ति ही है ,
ज़रा झाँक कर देखो
अन्दर आँखें गड़ा |
कहने को भले कहें -
वे व्यक्तिवाद के
विरोध में है
और हैं भी , और
होना भी चाहिए ,लेकिन
उनका वह
असीम व्यक्ति ही है
जो समाजवादी -
साम्यवादी है |
* शातिर मुस्कान
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मैं सोचता हूँ -
जीवन के बुरे क्षण ,
अप्रिय घटनाएँ याद
रखूँ
या खुशनुमा अवसर ?
बुरे वक्त न याद
रखूँ तो
जीवन के निर्णय
लेने में
गलती हो जाती है ,
और यदि खुशी भरे
दिन
याद न रखूँ तो
खुशियों से महरूम
हो जाऊँ |
इसलिए दुःख -शोक
-निराशा ,
लोगों से प्रोत छल
-कपट -
धोखाधड़ी के मामले
नज़र में रखूँ और
ओंठों पर एक स्थाई
मुस्कान चस्पा कर
लूं |
दुःख - सुख किसी को
निराश न करूँ ,
न उनके अनुभवों से
खुद को वंचित रखूँ |
सम्पूर्ण ज़िन्दगी
जिऊँ मैं |
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सवाल यह नहीं है
* तुमने कितना अच्छा
खाया,
सवाल यह नहीं है ,
तुमने कितना अच्छा पहना , सवाल यह नहीं है ,
सवाल यह है तुमने कितना "आप " गँवाया ;
तुमने कितना माल
कमाया , सवाल यह नहीं है |
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सिगरेट मँहगा कर
दिया ? अब अखिलेश-आज़म -मुलायम सरकार को इस्तीफ़ा
दे देना चाहिए | कहते हैं तम्बाकू छुड़ा रहे हैं | इससे क्या लोग पीना बंद कर देंगे ? यह क्यों नहीं कहते कि सरकार की तिजोरी इतनी भरना चाहता हैं
कि पैसा छलक कर विधायकों/ नेताओं के पे स्लिप और पर्क्स / सुविधाओं में आ गिरे ? 12/7/12
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