* एक मैं गाऊँ
एक तुम भी गाओ
गायन पूरा |
* कर लेते हैं
चुपके से
प्रार्थना
ईश्वर खुश |
* कुछ न बोलो
तो मैं समझ भी लूँ
बोलते जाते |
* कुछ भी हो
मैं खिसियाया नहीं
हूँ
बिल्कुल नहीं |
* लोकपाल है
बेईमानों के लिए
हमारे नहीं |
* जीवन होगा
यह सब चलेगा
झींको तो नहीं |
* मोरे राजा हो
हम नाहीं सहबै
झार / मार तोहार |
* हमारी नहीं
गलती गड्ढे की थी
जो हम गिरे |
*यह तो बहुत अच्छा किया भगवान कृष्ण ने जो आज
पैदा होने की जिद ठान ली | बेचारे रात दिन कोल्हू के बैल की तरह खटने वाले पत्रकारों को इस बहाने एक
दिन की छुट्टी मिल गयी |
* जीन्स का मतलब
जवान ,
धोती पजामा या
अब तो पैंट कमीज़ भी
का मतलब है -
वृद्ध दकियानूस ,
जीन्स क्यों नहीं
पहनता
बे नागरिक ?
- जी हजूर , अबकी
लड़के का झिटक
लाऊंगा |
#
* [
Example of Active Journalism / I should have done so ]
रामदेव शहीदों के
मध्य से बालकृष्ण का फोटो हटायें , वर्ना हम उनके
कार्यक्रम, वक्तव्य कुछ भी कवर नहीं करेंगे |
सक्रिय राजनीतिक पत्रकारिता गुवाहाटी छेड़खानी कांड में
भी व्यवहृत की जा सकती थी | प्रथम तो उसका विरोध किया जाना था | उस घटना को समाचार
बनने तक इंतज़ार नहीं किया जाना था | यदि rescue नहीं कर पाए तो
अपराधियों के चेहरों का क्लोज अप लिया जाना था लड़की का नहीं | यह कब तक होगा कि
राजनीति अलग , मानवता अलग और पत्रकारिता अलग ? यद्यपि उनके हमारे
काम करने के तरीके में अंतर होगा | पर हम अपने तरीके
से भी प्रभावशाली भूमिका निभा सकते हैं
========================== Ugra Nonsense
10/8/12 =================================
* जय राम जी , हरिओम जैसे
अभिवादनों पर आपत्ति तो हो सकती है इन्हें धार्मिक - सांप्रदायिक
ठहरा कर | तो हैं न प्रचलित
कुछ बिल्कुल सेक्युलर संबोधन - जय सहारा , जय आरसीएम ! इन पर तो
कोई आपत्ति नहीं है ? [nonsense]
* कण कण में भगवान हैं , इसका कदापि अर्थ यह नहीं निकलता था कि बोसोन कणों से सृष्टि का सृजन हुआ ! यह तो अभी पता चला |
* आखिर राखी बाँधी है भाई की कलाई में , तो आप फ़र्ज़ है कि
भाई की रक्षा करें | सारी औरतों को चाहिए कि वे पुरुषों की रक्षा करें , उनके पास ताक़त की कमी नहीं है | पुरुषों का भी फ़र्ज़ है कि
यदि कोई स्त्री कहीं संकट में हो तो उसकी भरसक मदद करे, भले इस बीच उनकी हड्डी पसली तोड़ दी जाय
और अंततः उन्हें कुछ बदनामी भी हासिल हो |
* अच्छा समाज बनाने का सपना देखना तो ठीक, लेकिन जब उस पर अमल की कार्यवाही होने लगती है तो कभी कभी बड़ी गड़बड़ी हो जाती है | कोई बता तो रहा था , शायद चंचल या उज्जवल जी कि जितने लोगों को स्टालिन ने मरवाया उतने हिटलर ने नहीं ! भैया दुनिया को कुछ ख़राब ही रहने दो लेकिन सब आदमी को जिंदा रहने दो | आदमी की जान की कीमत पर तुम्हारा स्वर्ग हमें स्वीकार नहीं | स्वर्ग ही बनाकर हम क्या करेंगे जब उसमें रहने के लिए आदमी ही न होंगे जिनके लिए हमने उसे बनाया / बनाने जा रहे हैं ?
* आज की तारीख में क्या यह संभव है कि कोई वामपंथी न हो और वह प्रगतिशील भी हो ? क्या यह संभव है कि कोई दलित हो और भारत को गाली न देता हो ?
* बड़ा मज़ा आता है , जब दावत ए वलीमा
की खबर मिलती है | लज़ीज़ भोजन की बात तो है ही ,उसके अतिरिक्त
निकाह के वक्त मौलवी साहब के मंत्रोच्चार के बीच बीच सामयीन भी हुज़ूर और अल्लाह के
हवाले से जब शुभ आशीष वचन का उच्चारण रूप से करते
हैं तब बहुत अच्छा लगता है | मैं वह कलमा तो
नहीं जानता पर तहे दिल से हनुमान चालीसा की पहली दो पंक्तियाँ [उतनी ही मुझे याद
है] बार बार पढ़ देता हूँ | हे हनुमान जी , जोड़े को सुखी करना | इन दोनों की एक दूसरे से रक्षा करना | कोई बुरा न मानो, मैं अपने समाज का
ही तो अनुभव प्रयोग करूँगा !
वैसे ज्ञान की बहस में भावना को नहीं बोलना
चाहिए, न मेरा इरादा पुरातन का गुणगान, महिमामंडित करना
ही हो सकता है | पुराणों ने ही कहा है - " पुराण मित्त्येव न हि साधु सर्वम " | लेकिन इतने काण्ड
आधुनिक भारत में हो गए, किसी इतिहासकार ने यह नहींबताया कि कितनी भी गरीबी, दुर्दशा में कभी
पूर्व में किसानों ने आत्महत्या की हो ! तथा एक बात और - सत्ता शासन न्याय वगैरह
सबके विकेंद्रीकरण की चाहत तो आज भी जोर शोर से की जा रही है, अन्ना टीम समेत ? क्यों की जा रही
है ? नक्सल आन्दोलन में भी मूल माँग यही है - जल जंगल ज़मीन पर स्थानीय वासियों का
हक | यदि पंचायती व्यवस्था [खाप सहित] पर संदेह जताया जाये तो कोई गलत बात नहीं , पर फिर ईमानदारी
के साथ इस पर भी शक की उँगली क्यों न उठाई जाय जिसकी माँग माओवाद कर रहा है | थोड़ा तो निष्पक्ष
होकर, पूरे परिप्रेक्ष को तो ध्यान में रखकर तुलनात्मक वैज्ञानिक तर्क बुद्धि तो
रखनी ही पड़ेगी | यूँ तो बहस का कोई अंत नहीं | लेकिन क्या यह दृश्य सच नहीं कि माओ वादी हिसा
को हाँ कहना एक प्रगतिवाद का फैशन हो गया है और आधुनिकता का तकाज़ा ? एक सांस में खाप
को गाली, उसी साँस से माओखाप का अभिन्दन क्या
बताता है ? फिर सारी बातें हम यहाँ f b पर तो तय कर नहीं लेंगे , लड़ाइयाँ ज़मीन पर
है दंतेवाडा में - हरयाणा में | जिसको जिस तरफ जाना हो वहां जाये न |
* सदियों तक गुलाम बना कर रखा गया , जैसा कहते हो , तो यह गुलामी एक
दो शती में कैसे समाप्त होगी , यह भी तो सोचो !
* ब्राह्मणवाद का कुछ थोड़ा सा भी उल्टा करके
दिखाओ तो शौक से ब्राह्मण को गाली दो , उल्टा लटकाओ |
* गलत बोलना उतना गलत नहीं है जितना गलत जगह पर
सही बोलना |
* सोचना होगा
इस बात पर तो
सोचेंगे मित्र !
* औरतें
मेंहदी लगाती हैं ,
औरतें
मेंहदी क्यों लगाती हैं ?
* कह दिया होगा किसी ने -
बच्चियों स्कर्ट
पहन कर बाहर न निकलो
लेकिन बच्चियों ने चड्ढी पहनना बंद तो नहीं किया !
किया होगा दण्डित
किन्ही खाप ने युवाओं को
लेकिन नौजवानों का
साहस भी तो देखो
वे अब भी भाग रहे
हैं घरों से
उन्होंने प्यार
करना बंद तो नहीं कर दिया ?
अरे , बूढ़ें हैं , हर घर में होते हैं
क्या करें उनके
मुँह नोच लें ?
बड़बड़ाने दीजिये
उन्हें
भाँजने दीजिये
निःशक्त लाठियाँ
तुम्हे कुछ
न होगा , नहीं चाहोगे तो |
देश बहुत बड़ा है
यह, परिवार
दिल तो बड़ा रखो
तो रखो ही
कान भी बड़े रखो
हाथियों के सूप
जैसे
एक से सुनो
कम , ज्यादा
दूसरे से निकाल दो
हर बात का बवाल न
बनाओ | #
* कम्युनिस्ट भी
चिन्तक हो जायेंगे
कभी न कभी |
* कुछ हूँ न हूँ
मैं दलित नहीं हूँ
आप जो भी हों |
* जलेबी बाई
तो मोबाइल वाली
बाई हो गयी |
* मैं दलित होना नहीं छोड़ पा रहा हूँ , लेकिन उम्मीद तो करता हूँ कि ब्राह्मण अपनी जाति छोड़ दे !
* यह अन्नान्दोलन , रामदेव गिरी , माओवाद , सत्ता परिवर्तन , न्याय व्यवस्था
आदि की बातें बुद्धि वाले लोगों के काम हैं , हमें इनसे क्या
मतलब ? सुना होगा चुटकुला - एक सुखी दम्पति से जब इसका
कारण पूछा गया तो पति ने बताया - हमने अपनी जिम्मेदारियां बाँट रखी हैं , इसलिए कोई झगड़ा ,टकराहट नहीं होती | छोटे छोटे मसले ये संभाल लेती हैं , बड़े बड़े मामले
मैं देख लेता हूँ |
--
मसलन ? पत्रकार ने पूछा |
घर की रसोई , भवन निर्माण , मेहमानों - सम्बन्धियों से व्यवहार, बच्चों के स्कूल , नौकरी , शादी विवाह आदि के छोटे मोटे काम ये निपटाती हैं |
-- फिर आप क्या करते हैं ?
-- बड़े बड़े काम , जैसे सोविएत रूस
में साम्यवाद क्यों फेल हुआ ? अमरीका को ईराक पर
हमला करना चाहिए था या नहीं ? भारत को एटमी ऊर्जा ,
FDI retail का द्वार खोलना चाहिए या नहीं, इत्यादि |
* मेरी पत्नी को गठिया है , चलने फिरने में
असमर्थ | उनकी सहानु भूतिनियाँ उन्हें दिलासा दिलाती है - यह ज़िन्दगी
के साथ ही जायगी बहन | उधर उज्जवल जी बता
रहे थे किस प्रकार गाँधी से नजदीकी और मार्क्स से कुछ दूरी [ लेकिन छूटी
नहीं ] हुई है | नीलाक्षी चिल्लाती
रहें वह भूतपूर्व कम्युनिस्ट हैं वर्तमान नहीं , कोई मानने को
तैयार नहीं | मैं अपनी मित्र मंडली में अनुभव करता हूँ कि बीसियों साल हो गए भाइयों को कार्ड छोड़े पर
मोह रह रह कर उभर आता है | मानना पड़ेगा मार्क्स का रोग भी ऐसा है जो एक बार लग
जाये तो वह ज़िन्दगी का साथ ही जाता है |
* सपा सरकार ऐसे अनपेक्षित कार्य करने की अभ्यस्त
थी | कभी इसने बिना गाँव वालों की माँग पर उनके घरों में हैण्ड
पम्प के बगल में शौचालय बनवा दिए जिनका सदुपयोग वे कंडे उपले रखने करते हैं , अब देखा देखी सपा
के बल पर चलने वाली यू पी ए सरकार ने बिना किसी प्रार्थना पत्र के हर हाथ में
मोबाइल देने का निर्णय कर लिया है |
===================== Nagrik
Day Book 9/8/12 ====================
* कविता ही
मेरी प्रार्थना है ,
सुबह - सुबह
मेरी आराधना |
* आते हैं दिमाग में
विचारों के हुजूम ,
लिखने से समाप्त
होने नहीं आते |
* मालूम हुआ
जब ज़िन्दगी का
सत्य
जिंदगी छोटी लगी |
* मैंने क्या किया ?
अपने में आपको
शामिल किया |
* मूर्खों के मुँह
कौन लगे ? ओह नो !
बुद्धिमानों के |
" ज़माना बदले न बदले ख्याल तो बदले , न इन्किलाब सही ज़िक्रे इन्किलाब तो हो !
"
इसी प्रकार पार्टी
बने न बने , राजनीतिक सोच तो
बने , सत्ता में आने की
तैयारी तो चलती रहे | कल क्या हो जाय कौन
जानता है ? हमारे आगे भी तो
पीढ़ियाँ आने वाली हैं | वे हमसे पूछेंगी - बाबा तुमने क्या किया तो हम क्या जवाब
देंगे ?
हम पार्टी , जन पार्टी , शूद्रजन पार्टी , आधार पार्टी , जनाधार पार्टी , जनमत पार्टी |
तो अभी जनमत पार्टी
शीर्षक बनाते हैं |
* मुनाफावादी समाज | समाज आदमियों से
निर्मित होता है | और आदमी मूलतः मुनाफा वादी होता है | इसलिए न दलितों की
गलती है न ब्राह्मण वादियों की | आज सवर्ण चिल्ला
रहे हैं , लेकिन अभी यदि उनके लाभ की कोई योजना लागू हो जाय
तो वे भी बल्ले बल्ले हो जायँगे | क्या हुआ नहीं ? वी पी सिंह ने
पिछड़ी जातियों के लिए मंडल क्या लागू कर दिया कि वह आज पिछड़ों के
महाप्रभु बने हुए हैं | देखिये किस प्रकार उनका गुणगान उनकी पूजा हो
रही है | मानो वी पी सिंह कभी सवर्ण रहे ही न हों | वह एकायक पिछड़ों के आयकन बन गए , भले उनके सह - सवर्ण खूब गालियाँ पा रहे हैं | कोई रूककर तनिक सोचने को तैयार ही नहीं कि राजा
मांडा भी ठाकुर ही थे , तो उनके सजातियों का इतना तो अपमान न किया जाय ! यह तो तब है
जब कि पिछड़ी जातियाँ [ कुर्मी यादव ] न कुछ कम ब्राह्मण हैं मांस मछली
शराब छोड़ने में , और न ही इनके पास संपत्ति की आम तौर पर कमी है , अच्छे खासे
ज़मींदार है ये | इसी प्रकार यदि अभी जाति विहीनों के लिए यदि कोई मलाई - योजना चलाई
जाय , तो क्या सवर्ण क्या दलित सभी उसकी लालच में
अपना कुल गोत्र , जाति वाति, बिस्तर विस्तर, चद्दर वद्दर , तकिया वकिया सब
छोड़ कर भारत के सामान्य ' नागरिक ' बन जायँ | सब स्वार्थ , लाभ और मुनाफे की बात है | आरक्षण का थोड़ा
सहारा न हो तो भला कौन इज्ज़तदार लोग अपने को दलित कहना - कहलाना पसंद
करें , और समाज की
अवमानना अवहेलना और झिड़की खाएँ ?
* कबिरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ ,
जो घर जारे आपनो
चले हमारो साथ |
इसलिए मैं तो
पार्टी ऐसी ही चाहूँगा जिसमें ऐसे घर जारू लोग हों - सम्पूर्ण निजी स्वार्थ विहीन | मैं अपनी संस्था का नाम " लुकाठी
" रखना चाहूँगा |
[कविता ?]
* कोई आग
नहीं देखता
मैं लोगों में
मैं आग बबूला |
#
* तुम माओ वादी
तो सरकार मोबाइल
वादी ,
अब क्या करोगे ,
अब तो तुम्हें
आदर ही करना पड़ेगा
सरकार का जैसे
करते हो नारियों
का !
एक नहीं दो दो
मात्राएँ
नर से भारी नारी
है ,
एक नहीं दो दो
मात्राएँ
माओ से भारी
मोबाइल है |
#
* मुझे ज्ञात हुआ है कि काला धन उसे कहते हैं जिस पर टैक्स न चुकाया गया हो | अब समझ में आया
लोग बाग़ मंदिर अँजुरी में कुछ लेकर क्यों जाते हैं ? टैक्स चुकाने |
"
किधर से बर्क चमकती है देखें ऐ वाइज़ , मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा | "
[बर्क = बिजली , वाइज़ =
धर्मोपदेशक]
इसीलिये मैं जब तब, यहाँ वहाँ, जैसे भी हो आग
ढूँढता, तलाशता, मौका पाने पर
सुलगाता-जलाता और उसे भुभुच्चर की तरह फेंकता -बिखराता रहता हूँ कि न जाने किधर से
बिजली चमक जाये और मुल्क रौशन हो जाये ! यह सब जो कार्यवाही आप देख रहे हैं , वह इसी के निमित्त
है |
[ भुभुच्चर = गाँव में रबी की फसल के लिए तैयार
खाली खुले खेतों में शाम के समय बच्चे मिट्टी का छेदयुक्त दावात बना उसमे जलता अंगारा भरकर
रस्सी के स्ट्रिंग से घुमा, चक्कर देकर आकाश में फेंकते हैं जो फिर दूर ज़मीन पर जाकर गिरता है | बच्चे आनंदित हो दौड़ते - फिरते हैं] #
* एक कुत्ता मेरे घर बहुत परका [रूचि से लगा] हुआ है | कई बार भगाने पर जब नहीं भागा तो मैंने उससे पूछा - भाई साहब , आपकी जाति क्या है ? उसने मेरा वाल पोस्ट , लगता है , पढ़ा हुआ था | फ़ौरन बोला - ' वही आप वाली ' |
* मर्दों पर आरोप है कि वे औरतों को परदे में रखना चाहते हैं | पता नहीं किन मर्दों के लिए है यह | मैं तो भाई चाहता हूँ कि हमारी औरत बराबर और खूब घर से बाहर निकले | गेहूँ पिसवा लाये, सौदा सुल्फ, सब्जी मछली ले आये , हाट बाज़ार कर आये | बल्कि वह चाहें जितना बाहर रहे कोई नौकरी करे , कुछ कमा - धमा भी लाये | और मैं घर पर आराम से रहूँ |
* राजनीति ,
जहाँ तक ठीक
है -
करते हैं ;
जहाँ से ख़राब
होती है -
नहीं करते |
* कुछ खाया क्या
क्या खाकर लड़ोगे
जाति वाद से ?
* नहीं पसंद ?
कह दो मैं समर्थ,
न बाँधो राखी |
* सेवा न करो
मैं भी नहीं करूंगा
सेवा तुम्हारी |
* मैं सोचता हूँ , यदि देहाती पढ़ाई वैसे ही चल रही होती उल्टी सीधी , जैसी चल रही थी / जैसी हमने पढ़ी , तो आज अंग्रेज़ी का इतना बोलबाला न होने पाता | मेरा नाती , मेरी पोती अंग्रेज़ी मीडियम में पढ़ रहे हैं, आधुनिक [?] शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं |
* मैं आश्चर्यचकित हूँ | कहना भी तो नहीं चाहिए , अभी लोग बिदक जायेंगे और झाँय - झाँय करने लगेंगे | लेकिन सोचने की
बात है कि यदि दलित जन सचमुच जातिवाद से पीड़ित होते तो वे इस कुप्रथा को
मिटाना ज़रूर चाहते ! वे ऐसा
बिल्कुल नहीं कर रहे हैं यह विषाद और आश्चर्य
का विषय है | क्यों ? बेहतर वही जानें |
========================== 8/8/2012
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