शनिवार, 25 अगस्त 2012

5/8/2012


[लघु कविता]
* यह तो चिट्ठी है
जिसका इंतज़ार करता हूँ ,
तुम्हें तो जानता हूँ
तुम नहीं आ पाओगे |

* हम क्या जानें
नर -नारी का भेद
हम सन्यासी |

* नहीं करूँगा
आपसे सीधे मुँह
कोई मैं बात |

* मित्र तो मित्र हैं ही , उनसे तो रोज़ मिलते रहते हैं | शत्रु दिवस मनानाअधिक उपयोगी होता | इस दिन हम घोषित रूप से गैर दोस्तों , जिनसे अनबन रहती है या कहें शत्रुता , उनसे मिलने जाते |  [ Friendship day 5 Aug ]

* जाही विधि राखें राम वाही विधि रहियो ,
जैसा एडमिन चाहे वैसा ही लिखियो |
  लेकिन इस सन्दर्भ में एक सीनियर पत्रकार मित्र का उल्था है =
जो हमको हो पसंद वही बात कहेंगे ,
तुम दिन को कहो दिन तो हम रात कहेंगें |
* हाँ उन पत्रकार मित्र का नाम है K .B Singh [ at pioneer] . कल ही तो भेंट हुई थी , पर आज उन्होंने सवेरे सवेरे फोन से जगाया - शेर सुनिए , अडवाणी के बयान पर बनाया है [वह कविता कभी नहीं करते , तो दोहा को शेर बोल गए] :-
*आई मौज फ़कीर (अडवाणी) को दिया झोपड़ा फूँक ,
मोदी की दाढ़ी जली और संतों की मूँछ |  

*अनुभवजन्य है कि हर व्यक्ति  दोस्त अहबाब चाहता है | बहुत घनिष्ट न मिला तो थोड़ा कम नजदीकी मित्र के साथ रहता है | वह भी न मिला तो कुछ जान पहचान के संपर्क से ही काम चलता है , पर अकेला कोई नहीं रहना चाहता |   

श्रीमति राकेश [अब श्रीमती] ने कभी किसी के लिए लिखा = सच्ची इ ई भैया अ आ --- | उस संबोधन कथन का लहजा इतना प्यारा था कि वह आज भी मेरे कानों में गूँजता है मानो वह साक्षात् मेरे सामने बोल रही हों , और मुझे आनंदित करता है | मैं इतनी दूर से कल्पना में उसे रूपायित कर सकता हूँ कि उनकी आवाज़ कैसी होगी | इसे मैं पहले ही लिखने वाला था पर कोई संकोच रोक रहा था | आगे ,
यह तो मेरे बचपन के ही वैज्ञानिक अनुभव में था कि स्वर में भी स्वाद होता है | जैसे अगर खिसरहे फर्श पर फूल की थाली खिसकाई जाय तो शरीर गिनगिना जाता है , जैसा बहुत खट्टी खटाई खाने पर अनुभव होता है | अब मैं इस प्रकरण से कह सकता हूँ कि लेखन में भी स्वर होता है , अक्षर भी सस्वर लिखे जा सकते हैं | और यह तो पूर्व से ही सर्वनुभव में है कि यदि किसी वीभत्स, घृणास्पद स्थिति का विवरणात्मक चित्रात्मक बयान किया जाय तो बहुत से लोग उसे सहन न कर पाने की स्थिति में हो सकते हैं |    

- - - -  और यदि स्टेट ही न रह जाय [ after all there is a hope of its withering away ? ] तो किसके लिए  मारामारी होगी ? यदि अत्याचार रह ही न जाय तो किसके खिलाफ आन्दोलन आन्दोलन होंगें ?

* कायस्थ होना मान लेने से एक सहूलियत तो हो ही जाती है कि मैं कायस्थों पर मजाक लिख सकता हूँ , जैसे गुरु खुशवंत सिंह सरदारों पर करते हैं | देखिये मैंने एक कहानी गढ़ी =
कुछ कायस्थों ने जाती {इस नालायक 'जाति' को जे ए टी आइ रोमन में लिखकर जैसे ही स्पेस बार दबाता हूँ, वह जाती हो जाती है | लगता है यह हमें छोड़ कर किसी दिन चली ही जायगी और हम बेसहारा हो जायेंगे} छोड़ो आन्दोलन का शिविर लगाया और उग्रनाथ को रिसेप्सन पर बैठा दिया | सहभागी आये तो तमाम जातियों से थे लेकिन उन्होंने सबको आउट कर दिया - " देखते नहीं यह किन लोगों ने आयोजित किया है ? यह कायस्थों का कार्यक्रम है | जाइए यहाँ से और अपनी अपनी जातियों में ऐसा आन्दोलन चलाइए | "
और अभी कल ही की तो बात है | सायास मैत्री दिवस पर नहीं , यूँ ही सन्डे को हम चार लोग डा प्रमोद [Head History L.U.] के घर बैठे थे, संयोग से चारो कायस्थ | ज़ाहिर था शुद्र सवर्ण का ज़िक्र छिड़ गया | अपने ज्ञान, तर्क और हंस में छपे उनके लेख के आधार पर प्रमोद जी कायस्थों के शूद्र होने की बात सही बताई | लेकिन यह भी जोड़ा कि शूद्र तो हैं लेकिन दलित नहीं [इनका कोई दलन नहीं हुआ] , पिछड़े नहीं [सामाजिक रूप से ये कभी पिछड़े नहीं रहे], ये आरक्षण के हकदार नहीं | उनका यह कहना भी हमें महत्त्व का लगा कि कायस्थ दलित आन्दोलन के लिए उदाहरण हो सकते हैं कि देखो शूद्र होकर भी कोई कौम इतनी तरक्की कर सकती है | यह भी बताया कि प्रत्येक शासन -मुगलों अंग्रेजों ने इन्ही का सहारा लेकर ब्राह्मणों का मुकाबला किया , इसीलिये कायस्थों से ब्राह्मणों की कभी नहीं बनी | दुखद है कि वही कायस्थ अब ब्राह्मण बनने की दौड़ में हैं | इस पर हम चारो मत विभाजित हो गए | कुछ सवर्ण बनना चाहते थे | मैंने मुराही की कि ठीक है जो सवर्ण हों वे सवर्ण कायस्थ हो जायँ शेष हम शूद्र कायस्थ बने रहते हैं | कल हरजिंदर होते तो बड़ा मज़ा आता | बहुत दिन बात ऐसी गोष्ठी जमी थी |      

* No doubt sex is a fundamental human force, impulse or otherwise . फ्रायड की माने तो माता संतान का रिश्ता भी सेक्स से govern होता है | लेकिन इससे हमें बहुत बड़ा जीवन सूत्र मिलता है | उसका नाम सेक्स दें या पेक्स वह हमारे बीच भाई बहन , दोस्त दोस्त और तमाम जाने अनजाने रिश्ते तो देता है, जोड़ता है, बनाता है ? मेरे अन्यान्य मित्र जिन्हें मैंने कभी छुआ तक नहीं होगा , हाथ तक नहीं मिलाया पर वे कुछ दिन न मिलें तो व्यग्रता होती है | अर्थात सेक्स [मानव प्रेम का सम्बन्ध] किसी स्पर्श, किसी सहवास का मोहताज नहीं | वह वैसे भी काम करता है ,मनुष्य और मनुष्य के बीच प्रेम- मैत्री और मिलन की व्याकुलता प्रदान करने की भूमिका निभाता है | और यदि वह ऐसा करता है तो वह घृणित तो नहीं हो सकता, इसे पाप कहना मानवता के प्रति अपराध है | हम क्यों न इस शक्ति के लिए अपने कामदेव को नमन करें, उनकी प्रार्थना करें ?   

सेकुलरवाद का आध्यात्मिक विस्तार
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* हम सेकुलर वादी बड़े ही भँवर में फँसे हैं | उसका एक कारण तो यह है कि इसे हम योरोपीय जागरण का प्रतिफल और विदेश से आयातित विचार मान लेते हैं , उसी रूप में अपना प्रवचन स्टार्ट करते हैं | जब कि यह सतत सभ्यता का एक पायदान है और इसमें पिछली तमाम सभ्यताओं और संस्कृतियों के विकास का अवदान है | और इसलिए मुझे लगता है इस देश में इसका अवगाहन भारतीय मनीषा ही कर सकते हैं | जैसे हमारा एक घिसा पिटा कथन होता है कि यह 'इहलौकिक ' है | तो परलौकिक ही कौन है ? कौन कोई ईश्वर के भरोसे बैठा रहता है | थोड़ा पूजा नमाज़ किया और फिर लग गए दुनिया के दंद फंद में | वे थोड़ा दीन तो ज्यादा दुनिया का काम कर लेते हैं , राजनीति भी कर लेते हैं | हम दुनिया की चिल्लाते तो हैं पर दीन के पीछे इतना डंडा लेकर पड़े रहते हैं , उसमे समय गवांते हैं कि दुनिया का काम भी नहीं कर पाते | अर्थात हम ज़्यादातर दीन और दुनिया का काम कम करते हैं | तो हमारी ही परिभाषा के अनुसार कौन सेकुलर हुआ ?
फिर परलोक है क्यों नहीं ? किसलिए बोसोन को खोजने के लिए इतना श्रम समय धन ज्ञान व्यय किया गया ? क्यों सुनीता विलियम्स साल साल भर अंतरिक्ष के चक्कर में पडी रहती हैं ? अरे जहाँ हैं , जिस दुनिया में वहीँ रहें फिर ?
और अंत में , जिस बात के लिए यह लेख उठाया कि यदि परलोक नहीं है तो हम पर्यावरण की चिंता क्यों करते हैं ? खाएँ पिएँ उड़ायें मौज करें , प्रकृति  का हर संभव दोहन करके उसे खोखला कर दें , कौन हमें दो चार सौ साल जिंदा रहना है लेकिन नहीं, सेकुलर तो निश्चयतः प्रकृति और पर्यावरण की चिंता करेगा | जिससे मनुष्य जाति की सतत आगामी अग्रगामी जिंदगी चलती रहे , उसका विनाश न हो | यह भी तो एक परलोक चिंतन है ? यही हमारा परलोक इसलिए है क्योंकि वस्तुतः तो हम , मैं आप ये और वे तो उस समय जिंदा नहीं रहेंगे ? लेकिन नहीं, हम रहेंगे अपनी पीढ़ियों के रूप में  | हम अपनी संतानों , पुत्र पुत्रियों , परपोते परपोतियों के रूप में पुनर्जन्म लेंगे | मानते हैं हम पुनर्जन्म को , चिंता करते हैं हम अपनी अनुपस्थिति में विद्यमान अपने परलोक को ! #

* कौन अपनी दुनियावी ज़िन्दगी छोड़ देता है ? कौन है जो मरता नहीं है ?

* खाना खाकर सोना था मुझे | लेकिन अख़बार बिछाकर पत्नी ने थाली रखी तो नज़र एक समाचार पर गयी , जिस पर कुछ कन्फेसन आवश्यक हो गया | अखिलेश यादव [ C M U P ] ने किसानों का ५० हज़ार तक का क़र्ज़ माफ़ कर दिया है | मैं भी किसान तो हूँ | मेरा भी KCC किसान क्रेडिट कार्ड लगभग तैयार था  , इस लालच में कि लोन लेकर किताब छपवा लूँ | क़र्ज़ ज़्यादातर तो सरकारें माफ़ कर देती हैं , न करें तो भी उस पर सूद बहुत कम है | लिया होता तो मेरी किताब मुफ्त छप जाती | लेकिन मैंने इस temptation को शुरू में ही kill कर दिया था | KCC बनवाया ही नहीं | इससे उचित पात्रों का हक मारा जाता या नहीं पर मेरे ऊपर चढ़ा थोड़ा सच्चे  इस्लाम का असर काम कर रहा था | अपनी कमाई खाओ, खैरात की नहीं | फिर मुंशी जी का ज़बरदस्त प्रभाव भी था | मुंशी जी का हॉउस टैक्स आया था | बिल को लेकर वह निगम दफ्तर गए और बताया बिल गलत आया है | इसमें यह कमी है , इसे इस प्रकार ज्यादा होना चाहिए | और उन्होंने अपनी बनाई बढ़ी हुई बिल जमा की |      

* कर्म करता गीता का ,
इस्लाम की सत्यनिष्ठां से |     

[ कविता ]     रस्सी कूदती लडकियाँ
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* रस्सी कूदती हैं लडकियाँ
रस्सी कूद जाती है लडकियाँ
रस्सी कूदती जाती है लडकियाँ
रस्सी कूदती जाती रही है लडकियाँ
फिर, विश्वास नहीं होता
कैसे इन रस्सियों में
बँध जाती हैं  लडकियाँ ?  #

* उम्र तो हो ही गई है
आयु की धोखाधड़ी है ,
हाथ - पाँव जवाब देते
ज़िन्दगी फिर भी वही है |

हमारे शुभेच्छु मित्र ने परामर्श दिया है कि मैं अपनी कायस्थ जाति की संख्या में अभिवृद्धि करूँ | मैं भी सोच रहा हूँ कि यदि इसकी संख्या मैं इतनी बढ़ा दूँ कि पूरा भारत कायस्थ हो जाय तो जातिवाद यूँ ही समाप्त हो जाय | इसलिए मैं कुछ कोशिश कर रहा हूँ |
          कायस्थ सदस्यता अभिवृद्धि अभियान =
- भाई साहब आप कौन जाती हो ?
- या  दव |
- दव / देव के पहले 'या' लगा है न ? मैं बताता हूँ आपका पहला नाम | आप कायस्थ हो |
- भाई साहब , आपकी शुभ जाति ?
- कुर्मी |
- यह तो कोई सार्थक शब्द नहीं है | आप कायस्थ हो , और कायस्थ से ज्यादा कुकर्मी कौन हो सकता है | नटवरलाल से लेकर कहिये कितने नाम गिनाऊँ ? आप हमारे सजातीय हो |
- भाई जी आपका ?
- बनिया हैं हम |
- भाई वाह! आप तो अच्छे मिल गए मेरे भाई , मेरे अपने | मैं भी वही हूँ - कायस्थ | कायस्थ से ज्यादा बनिया कोई हो ही नहीं सकता | दाँतों से पकड़ता है वह पैसे को
- ओह पंडित जी आप ?
- ब्राह्मण हैं जी हम , देखते नहीं ? पंडित जी बोलते हो फिर भी जाति पूछते हो ?
- त्राहिमाम , क्षमा पंडित जी | यह जो आप टोपलेस रहते हैं न , यह तो कायस्थ की निशानी है, हमारी साझा पहचान है | केवल  लंगोटी पहन कर या उसे भी उतारकर आप कर कायस्थ रह सकते हैं | कायस्थ का पौराणिक अर्थ ही है काया में स्थित रहना | आप सब जानते हुए भी ब्रह्मा के केवल मुख से जन्मित क्यों रहना चाहते हैं ? उनकी पूरी काया से पैदा हूजिये , कायस्थ कुल में आइये |
- और आप तो दलित हैं , हम जानते हैं | क्योंकि शूद्र हैं हम भी | क्या यह अपमानजनक नाम लगाये हो ? आओ कायस्थ जाति की सदस्यता ग्रहण करो | हैं न हमारे देवता चित्रगुप्त जी महाराज ! वह सारा का सारा पूरी मानव जाति का खाता / एकाउन्ट रखते हैं, एकदम मेंटेन | सबका नाम रजिस्टर में लिख लेंगे - कायस्थ | लिखते ही हैं | कोई अपने आप को कुछ भी लिखा / बोला करे | 'वास्तव' में तो यह पूरी दुनिया कायस्थ है |  - उग्रनाथश्री 'वास्तव'  # 
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* हाँ , डिमाक्रेसी 
मैं भूल ही गया था -
है डिमाक्रेसी |

* मूल समस्या
हल कर सकेंगे
मूल निवासी |

* हम तो हैं
शूद्र  कायस्थ
लेकिन
दलित नहीं
पिछड़ा नहीं 
आरक्षण नहीं |

* लगता है हिंदी अख़बार महिलाओं के बल पर चल रहे हैं |मेरा आशय यह नहीं की विज्ञापनों में उनकी छवियाँ हैं | बल्कि उन्ही के लिए अख़बार खास तौर पर परिशिष्ट छापते हैं | साहित्यिक पन्ने तो कब के बंद हो गए |
* पागलों की तरह बड़ बड़ करने वाले ही पागल नहीं होते , पागलपन के काम करने वाले उनसे ज्यादा पागल होते हैं |

* शुद्र ऊद्र की बात छोड़िये, मतलब पर आइये | मैंने तो अपनी बिरादरी वाले लोगों को पाया है कि वे निहायत चालाक होते हैं और ज़्यादातर खुदगर्ज़ | ऐसे में मेरी उनसे पटरी खाने का सवाल ही पैदा नहीं होता | भाई , मैं तो individualist हूँ , आदमी देखता हूँ , उसके व्यवहार से उसे परखता हूँ | व्यक्ति सही हो तो कोई भी मेरा दोस्त हो सकता है | मेरे हिसाब से अनुचित था यह कहना पर समय के अनुकूल तो कहा जा सकता है कि , वह चाहे दलित हो , पिछड़े वर्ग का हो ,या हो सवर्ण | मैं ब्राह्मण से भी मित्रता करने में परहेज़ नहीं करता | क्या मुझे ब्राह्मणवादी कहा जा सकता है ? अजीब बात करता हूँ मैं , मानो मुझे कोई दलित - ब्राह्मण - फोबिया का रोग हो गया हो !   

* आप को कहीं
कोई आदमी मिले
तो सूचित करें |

* घरेलू हिंसा  
कानून बना, बढ़ी
घरेलू हिंसा |

* घर की बनी
जली रोटी भी भली
मुँहजली भी |

* त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं, दैवो$पि न जानाति कुतो मनुष्यः | क्या यह बात पूरी तरह गलत है ?

*नैनीताल समाचार के माध्यम से ' हरेला ' के लिए कोटिशः धन्यवाद | - नागरिक उग्रनाथ To Govind Pant Raju

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* हम कुत्ते हैं
कितना भी दुत्कारो
मानेंगे नहीं |

* संगठन , संस्थाएं बहुत हों , यह तो ठीक है , लेकिन तमाम पार्टियों का होना लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं |

*एक बात समझ में नहीं आई जिसका कारण मेरा इतिहास - अज्ञान हो सकता है | और इस आपत्ति के मद्दे नज़र ब्राह्मणवाद को बेहतर सिद्ध करने का इरादा नहीं है | लेकिन यह जो बार बार कहा जाता है कि SHUDRON KO HATHIYAR UTHANE NAHI DIYA . यदि ऐसा है तो फिर एकाएक इतने सारे दलित बहादुर और वीरांगनाएँ कहाँ से आ गयी और वे सब आज दलित सत्ता के आयकन बन गए ? उनकी मूर्तियाँ लगाने की होड़ लग गयी और उनकी सुरक्षा के लिए लट्ठम पैजार |


* मैं अब इतना मानववादी, समतावादी,धर्मनिरपेक्ष, स्त्रीवादी, दलितवादी इत्यादि हो गया हूँ कि मैं किसी से भी प्रेम कर सकता हूँ , किसी के भी साथ रह सकता हूँ [रह ही रहा हूँ ] | लेकिन मेरे मन में एक गुप्त अभिलाषा है कि गाँधी जी की तरह अपने विचार का परीक्षण करने के लिए जीवन के अंतिम दिनों में किसी दलित महिला के साथ रहूँ | सामाजिक - पारिवारिक रूप से शायद ऐसा संभव न हो , पर इच्छा व्यक्त करने में क्या हर्ज़ है ? क्या संकोच , किमाश्चर्यम ?  

* सारा आकाश
तो मेरे मन में है
बाहर क्या है


* आजकल मैं बहुत क्रोधासक्त रहता हूँ | फेसबुक पर लोग सिद्ध करना चाहते हैं की वे कितने मूर्ख हैं, और इसे वे छिपाते भी नहीं , अपने नाम का डंका बजाते हैं | ऐसा वे निश्चित ही जन्मजात तो नहीं हो सकते, हों भी तो हम मान नहीं सकते | यह गुण उन्होंने स्वयं विकसित किया है | बहरहाल मेरा गुस्सा उन पर तारी होता है जो मित्र अपने दुर्भाग्य से मेरे घर आ जाते हैं
* मन में एक प्रश्न बहुत तीब्रता से उभरता है | यदि व्यक्ति De-class हो सकता है , तो वह De - caste क्यों नहीं हो सकता ? यदि नहीं , तो मार्क्सवाद और ब्राह्मणवाद की ताक़त में फर्क का एहसास हो जाना चाहिए | यदि बराबरी है तो मन जाना चाहिए कि व्यक्ति  De-class भी नहीं हो सकता |
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