भौतिक बोसोन कुछ भी
नहीं बिगाड़ पायेगा मनुष्यकृत भगवान का | हम अनावश्यक
उत्साहित हैं | लेख पर लेख आ तो रहे हैं कि वैशेषिक के
जनक कणादि ऋषि ने ईसा से तीन या छः सौ वर्ष पहले ही इसे खोज लिया था ! 10/7/12
वैसे तो मैं एक
महान ? सूक्ष्म चिन्तक - विश्लेषक हूँ , लेकिन मैं जानता हूँ कि आदमी को थोड़ा मोटी बुद्धि से काम
लेना चाहिए | और उसके अनुसार मैं मानता हूँ कि समाजवाद
का मतलब स्थानीय , देसी समाज के अनुसार /अनुकूल शासन प्रशासन
|
भारतीय परिवेश और परिस्थिति में संक्षेप
में कहा जा सकता है कि दलितों , केवल दलितों का
शासन ही समाजवादी शासन हो सकता है |
----------------------------
अब दिमाग ठंडा हो
गया |
इसलिए नहीं कि दोस्तों पर गुस्सा उतार
लिया , बल्कि इसलिए कि एक नया कार्यक्रम दिमाग में आ गया | =
हम सब दलित आन्दोलन
अब यह तो निश्चित
हो चुका है कि जातियाँ इतनी आसानी से जाने वाली नहीं है | नाम - उपनाम छोड़ने की नौटंकी से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा | तो फिर यह कैसे समाप्त हो ? इस दिशा में महती काम यह है कि हम अपने ब्राह्मण , अपनी सवर्णता के छद्म और दंभ को तोड़ें | यह काम दलितों का नहीं हो सकता | उनके पास है क्या जिसे वे मिटायें ? पर हमारे पास तो बहुत कुछ है मिटाने को जिसके न मिटने के
कारण ही दलित हमसे असंतुष्ट और नाराज़ हैं | तो जातियां रहेंगीं
तो दलित तो रहेगा | अब अपनी सवर्णता मिटाने के लिए हम यह करें कि हम भी दलित हो जाएँ | तब जाति तो रहेगी पर उसका नाम केवल दलित होगा और
ब्राह्मणवाद का विनाश होगा | इस प्रकार हम यह
करें कि ज्यादा कुछ न करें , न अनावश्यक उछल-
कूद करें, न तोड़- फांद मचाएँ | एक कार्यक्रम बना लें ,पहले मनःस्थिति की, कि हम दलितों के
साथ उठने बैठने - खाने पीने - दोस्ती
गाँठने इत्यादि में कोई परहेज़ ,कोई संकोच, कोई भेदभाव न बरतें , बल्कि सायास उनके
साथ हों / रहें , उनके आंदोलनों के सक्रिय किन्तु मौन
सहयात्री बनें | ज्यादा बढ़ चढ़कर बोलेंगे तो आप का आदर्श
नहीं आपका संस्कार मुँह से निकल कर सारा कार्यक्रम चौपट कर देगा | शादी विवाह का मामला अभी रहने दें , अपने हाथ में न लें | यह पुत्र पुत्रियों
पर छोड़ें | कोई ज़बरदस्ती तो है नहीं ! पर यदि उनमे
प्रेम हो तो विवाह में बाधक नहीं भरसक प्रोत्साहक बनें | यह तो शायद हम लोग काफी हद तक व्यवहृत करने के लिए सहमत ही
हैं |
अब आगे की बात
ज्यादा महत्वपूर्ण है | शैक्षिक प्रमाणपत्र , जिनमें जाति अंकित हो ,संदूक में बंद कर दें , या जहाँ ज़रुरत हो वहाँ दिखाएँ | समाज में हर वक्त तो कोई आपका सर्टिफिकेट माँगता/ देखता नहीं
,
और यह सामाजिक फिजां - वातावरण बनाने का
कार्यक्रम है न कि आरक्षण प्राप्त करने की साजिश |
सामान्यतः होता यह
है कि समाज में कोई अपरिचित व्यक्ति या यात्री आपकी जाति जानने के लिए -
- ' भाई साहब/ बहन जी ,आपका शुभ नाम ? '
- जी मेरा नाम दीपक
श्रीवास्तव / धनञ्जय शुक्ल / पूनम सिंह / ज्योति पाण्डे/ इत्यादि है | [असली नाम बताएँ जो भी आपका है | लेकिन अपने वसूल पर कायम रहते हुए आप उससे उसकी जाति कदापि
न पूछें ]
ज़ाहिर है अब वह चुप
हो जायगा और आपसे सावर्णिक व्यवहार करने लगेगा | तब आप उसे कुरेदिए -
लेकिन भाई साहब, आपने मेरी जाति तो
पूछी ही नहीं ?
- वह तो आप के नाम से
ज़ाहिर है |
- नहीं भाई साहब , उससे ज़रा धीरे से कहिये , - दरअसल मैं दलित जाति का हूँ |
- फिर आपने यह शर्मा / वर्मा / सिंह / श्रीवास्तव क्यों लगा
रखा है ?
- इज्ज़त के लिए भाई
साहब ! इज्ज़त बड़ी चीज़ है | यह तो मैंने आपसे
बता दिया मैं कौन हूँ , सबसे थोड़े बताता
हूँ ! बड़ा भेदभाव झेलना पड़ता है |
- तो आपको तो आरक्षण
का फायदा मिलता होगा ?
- आप सही कहते हैं , मिल सकता था | लेकिन मैं घर से
संपन्न हूँ न ! चार बीघा तो पुदीना बोया जाता है दूसरे गाँव में भी खेत है, शहर में तिमंजिला पक्का माकन है , और यह , और वह - (हाँक
दीजिये , कौन खसरा खतौनी लिए बैठा है) | और भाई साहब , हमारे लोगों में
मुझसे ज्यादा गिरी हुई अवस्था में बहुत सारे लोग हैं | इसलिए मैंने आरक्षण फोरगो कर दिया , यह उन्हें मिले जिन्हें इसकी सचमुच और ज्यादा ज़रुरत है | हमारा काम तो चल ही रहा है | कौम की सेवा मेरे निजी लाभ से ज्यादा ज़रूरी है | है न बही साहब ?
नोट : - जब सवर्ण
दलित में घुल जायेंगे तो कैसा फर्क ? जातिवाद रहकर भी
क्या बिगाड़ पायेगा | और बताइए क्या किया जा सकता है ? जेहि विधि होय नाथ हित मनुष्य का , और अमानवीय स्थिति का सत्यानाश हो ,आप ही बताएँ | हमसे तो जो बन
पड़ता है सोचते हैं और करते भी हैं , तमाम विवशताओं के
मध्य | पर यह कार्यक्रम ऐसा है जिसके लिए दलितों
से कुछ पूंछना नहीं है | यह सवर्णों का
कार्यक्रम है | और सवर्ण तो हम हैं ही | यहाँ जन्मना की बात हो रही है | और हाँ , मज़े की बात आ गयी
= कर्मणा तो हम नीच ही हैं |
-------------
अपशब्द , दिनांक - ९/७/१२ | नीलाक्षी जी संदीप एवं अन्य सभी मित्रो,जो इससे अपने को सम्बंधित समझते हों ! मैं आज सुबह से बहुत
गुस्से में हूँ | कल इतना उद्विग्न था कि नींद की गोली खाकर
ही सो पाया | मेरे प्रातिभज्ञान [intuition] में यह पहले से ही
था और उसे व्यक्त भी करता रहता था ,पर मुझे कहीं से
सप्रमाण समर्थन प्राप्त नहीं था , और प्रबुद्ध
साथियों के निरंतर विरोध कारण एकाकीपन
महसूस कर रहा था | लेकिन कल जब तवलीन सिंह को एक्सप्रेस में
पढ़ा तो विश्वास हो गया कि मैं गलत नहीं,सही था | इस पर बस मैंने इतना किया कि उसे काटकर fb पर पोस्ट करना चाहा | टेक्निकली नहीं कर
सका तो लिख दिया कि कृपया उस लेख को epaper में पढ़ लें | काफी हाउस ग्रुप
में मैं पोस्ट्स पर प्रतिक्रिया भले दे दूं पर मैं अपना कोई पोस्ट उस पर नहीं
डालता , इस धारणा के भयवश कि इसमें बहुत बड़े
बुद्धिपूर्ण लोग हैं , कौवे की तरह चालाक
और होशियार जो सवेरे सवेरे गू खोदता है | कहें भले कि केवल
राजनेता झूठ बोलते हैं पर बुद्धिजीवी भी केरियर या प्रतिष्ठा के लिए political
correctness के तहत तमाम झूठ बोलते हैं और तमाम सत्य
छिपाते हैं , सब मेरी तरह मूर्खता नहीं करते |
तिस पर भी आज सुबह
जब ग्रुप खोला तो मुझे मेरी भी लाइनें गायब मिलीं तो मेरा पारा आसमान पर चढ़ गया | [यद्यपि बाद में वह दिखा जब बिपेंद्र जी ने पेपर कटिंग लगा
दी |
अब तो यह ग्रुप ओपन भी कर दिया गया पर मैं
किसी घर में क्यों घुसूँ भले उसका दरवाज़ा खुला हो ?] लेकिन क्रोध / अवसाद का क्या , जो चढ़ गया तो चढ़ गया | वह बना रहा क्योंकि किसी ने उसे पढ़ा नहीं | इतनी फुर्सत किसे है ? वैसे ही वे इतना
पढ़ लिए हैं कि ज्ञान साला छलका पड़ रहा है | और यह तो तय है कि
देश किसी के अजेंडे पर नहीं है | जीवन और कर्म का
कोई मकसद हो तब न वह सार्थक हो ? तो नीलाक्षी जी , भले आप की बात में सच्चाई ( सच्चाईयां भी एबसोलुट नहीं
रिलेटिव होती हैं मैडम !) हो , पर मैं आप के हाथों
"मूर्ख " का खिताब पाने की लालच में उसे सिरे से नकारने की धृष्टता करना
चाहता हूँ | तो भी मैं "विप्र सकल गुन हीना
" पूज्य हूँगा क्योंकि - - - -
जब देखो तब वही
दलित , वही ब्राह्मण , वही जातिवाद , आरक्षण -अगड़ा
पिछड़ा ! क्या और कोई विषय / समस्या नहीं दिखती ? हरदम सर पर ढोते फिरते हैं मानो कभी सामान्य आदमी नहीं होते
|
जातिवाद ख़त्म नहीं हुआ , तो यह कहाँ नहीं है ? वहाँ भी है जहाँ
नहीं होनी चाहिए, जिनकी किताबें बड़ी पाक साफ़ हैं | मुस्लिमों में कितनी
जातियां हैं और उनमे कितना फर्क ,भेदभाव है क्या आप
जानते है ? वहाँ भी सबकी अलग अलग टोपियाँ है और अलग
मस्जिदें | नहीं जानेंगे क्योंकि दूर से फर्जी समर्थक
हैं |
सुबूत स्पष्ट है कि इसी कारण वहाँ से भी
आरक्षण कि माँग है | मैं unka विरोध नहीं कर रहा हूँ | सबकी अपनी मजबूरियाँ है | उनकी वकालत भी नहीं कर रहा हूँ पर खूबी तो है कि वे विभेदों
के साथ जीने - रहने के आगे एकजुट भी रहना जानते है, वरना वहाँ भी अल्लाह , मोहम्मद और कुरान
पर सह मति के साथ तमाम असहमतियां हैं | अन्य धर्मों की भी
यही हालत है | तो क्या केवल हमीं हैं जो हर वक्त सिर्फ
विभेदों का रोना रोयेंगे और उनके साथ जीवन
को जियेंगे नहीं ? क्या किसी भी दशा में सबके साथ निर्वाह संभव नहीं है | अभी तक तो हो रहा था , अब ऐसा क्या हो गया
?अख़बारों में ही देखिये "चमार " , 'कूर्मी ' आदि श्रेणियों के
भी वैवाहिक विज्ञापन छपते हैं | वैसे भी चमार भंगी
पासी कोहाँर कुर्मी अहीर कोई भी जाति बाहर विवाह नहीं करता /करना चाहता | सब अपने मानस -संस्कार के गुलाम हैं ,तो ब्राह्मण भी है | वह भी दरिद्र है ,आप की दया का पात्र है | कोई ब्राह्मण लड़की आपके घर क्यों आयेगी जब सुहागरात में
पहले तो उसके बाप की जाति को १८ गालियाँ सुनाएँगे, उसका मूड उखड जायगा | फिर उसका पैर
भी नहीं सहलायेंगे कि "साली , तुम कोई ब्राह्मण नहीं हो " ? तो क्या वह आजीवन कुँवारी रहने और तिरस्कार सहने के लिए
तुम्हारे घर आयेगी ? इस प्रकार के
द्वेषभाव से तो कोई समाज नहीं बनता ,न बना है , तरक्की तो दूर | युद्ध / गृहयुद्ध
की स्थिति भले आ जाय | तो जिसमे आपका भला
हो वही कीजिये हुज़ूर क्योंकि अपने अलावा
किसी की ,और आगे कुछ देखने की चाहत तो दिखाई नहीं
पड़ती | आरक्षण बहुत कमजोर साथी है और दलित होने
के असम्मानजनक पहचान और ख़िताब को खुद उसकी लालच में छोड़ नहीं पा रहे हैं , दलित नामक मैले के टोकरे को कुछ टुकड़ों के चलते फेंक नहीं
पा रहे हैं मानो वह हमेशा के लिए व्यवस्था हो ! आंबेडकर के अनुसार तो वह समय सीमा
समाप्त है पर नालायक कार्यपालिका के कारण बढ़ाना पड़ा , तो वोट की राजनीति के चलते पिछड़े भी रेवड़ी लेने पहुँच गए | अपनी ईज्ज़त का कुछ ख्याल नहीं, तिस पर कहते हैं
हमारी कोई इज्ज़त नहीं करता {सामाजिक सम्मान के
लिए है आरक्षण !} | बताइए जब जन्म से लेकर जीवन भर 'पिछड़ा ' ही होना/ बने रहना
है तो "प्रगतिशील" कैसे हो सकते हो ?और तुर्रा यह कि कम्युनिस्ट बनेंगे | अब यह तो आसान है सारी स्थितियों के लिए दो हड्डी के सींकिया पहलवान ब्राह्मण को दोष देकर छुट्टी
पा लीजिये | खुद कुछ करना न पड़े , कोई ज़िम्मेदारी स्वयं न उठानी पड़े यह ब्राह्मणी नीति हो न
हो ,
हिंदुस्तान का तो राष्ट्रीय चरित्र है | इसमें आपका कोई दोष नहीं है | दोष मेरा भी नहीं है जो मैं मूर्ख हूँ |
यह तो हुई दलित की
बात ,
अब ब्राह्मण की सुनिए | लेकिन लगता है पन्ना कुछ बड़ा हो गया | उसे आगे पोस्ट पर लिखता हूँ , यदि नेट ने साथ दिया तो = =
यह तो हुई दलित की
बात ,
अब ब्राह्मण की सुनिए |
अपशब्द दि . ९/७/१२
(भाग दो) | जिस ब्राह्मण की सामान्यतः बात की जाती है, वह न तो कोई व्यक्ति है न वाद | वह हर मनुष्य की स्वाभाविक - सांस्कारिक कमी -बेशी , अच्छाई- बुराई , दुष्टता- नीचता पर
आधारित जीवन मार्ग है | और वह सबमे व्याप्त
है |
मुझमे तो है , आप में भी होगा ही | न मानें तो मुझे बस एक दिन -रात अपने साथ रहने का अवसर
दे दें , और बनावटी नही, सहज -स्वाभाविक दिनचर्या मेरे साथ बिताएँ तो मैं सबूत एक
पन्ने पर लिखकर आपको दे दूँ | और कहीं यदि पूरा
महीना अपने बरामदे में मुझे पड़ा रहने दें , तब तो मैं एक थीसिस
लिख मारूँ | दूर क्यों जाएँ , यह " इनको इस ग्रुप से निकालो , इनको डालो " क्या है ब्राह्मणवाद नहीं तो { मैंने तो प्रिय सम्पादक को हमेशा खुला रखा } यही तो किया ब्राह्मण ने - तुम यह काम करो - तुम ऐसा करो ? | ' व्यवस्था है ' आप कहेंगे तो मेरे
तर्कजाल में बुरी तरह फँस जायँगे | वह भी एक ऐसी ही
व्यवस्था थी |
इसलिए इसे छोड़िये
और अब ज़रा आँख (खोल ) उठा कर देखिये एक दूसरा
ब्राह्मण आपके द्वार खड़ा है | वह सुदामा नहीं है , न सनातनी भिक्षुक ब्राह्मण लकुटिया टेक | उसके पैर तो आपके घर के बहुत दूर ,बाहर हैं लेकिन
नाखूनी पंजे ठीक आपके सर पर | तवलीन का लेख पढ़ा
आपने ? वह २६/११ का आतंकवादी नहीं , आपके देश पर "आक्रमण " है | उसके पास सनातनी
ब्राह्मण वाला जर्जर- फटा -वेदपुराण नहीं जिसकी आलोचना में आपकी साँसें नहीं थमतीं
|
उसके कंठ में आकंठ अकाट्य आसमानी शास्त्र
है और ज़मीनी मार करने वाला अभेद्य शस्त्र भी | कह सकते हो -इससे हमें क्या , यह हिन्दू जाने -
ब्राह्मण जाने | अच्छा है वह मरे, जिसने हमें इस दशा में पहुँचाया | लेकिन जानना मित्र , यह हिन्दू ही है
जिसके तहत तुम दलित हो | हिन्दू -हिंदुस्तान
न होगा तो तुम सिर्फ दलित नहीं गुलाम भी होगे और तुम्हारी स्थिति उससे भी बदतर
होगी | कहोगे , मैं अतिशयोक्ति कर रहा हूँ | अभी कल ही की तो खबर में है भारत के मुसलमानों को अपने
विवाहों के पंजीकरण जैसी छोटी सी कागजी सरकारी कार्यवाही भी अस्वीकार है , उनका मज़हब इजाज़त नहीं देता , यह उनके अधिकारों में हस्तक्षेप है, जिसे वे बर्दाश्त नहीं कर सकते | बेगुनाह मुस्लिम {ऐसा वे उन्हें पहले
से ही निश्चित मानते हैं - भला मुसलमान कहीं आतंकवादी हो सकता है ? कदापि नहीं , कभी नहीं रहे , सदियों का इतिहास गवाह है , इतनी दूर से अल्लाह के बन्दे शांतिपूर्वक, बिना लड़े - भिड़े भारत आये और प्रेमपूर्वक राज करने लगे
क्योंकि इस्लाम तो मोहब्बत का मज़हब है, पैगाम है , जिसे वेबड़ी शिद्दत-मशक्कत
के साथ फैला रहे हैं } युवकों को फँसाया
जा रहा है , इसके लिए लिए जगह जगह सभा सेमिनार हो रहे
हैं |
मा.सं.मंत्रालय का मदरसों में पढ़ाई
सम्बन्धी कोई कानून गँवारा नहीं | हिन्दू राज्य
[राष्ट्र] की टिटपुंजिया सरकार की यह जुर्रत ? मुलायम का मंत्रिमंडल बुखारी की पसंदगी के विपरीत बन जाये ? सलमान रुश्दी -तसलीमा नसरीन हिंदुस्तान आ जाएँ , हो नहीं सकता | कितना गिनियेगा ? वन्दे मातरम वे नहीं गायेंगे , तो आपको भी उसमे ब्राह्मणवाद की बू ही आ रही होगी ? तो यह है २० -२५ फीसद
की ताकत और आप भ्रम में हैं कि आप बहुसंख्यक हैं मूल निवासी हैं | रहिये, आप अवश्य रहिये
बहुसंख्यक ( वरना उन्हें नौकर- चाकरों की फौज कहाँ से मिलेगी ), बस उन्हें मुल्क का शासन दे दीजिये | आने वाले कल वे कहने वाले हैं कि हमारा काजी सारे विवाहों का रजिस्ट्रेशन करेगा , और वही जो न्याय , जो फैसला करेगा वही
भारत सरकार को मान्य हो , शेष अमान्य | हैं न दारुलउलूम भारत को दारुल इस्लाम बनाने के लिए ! देख
सकते हों तो देखिये अब तक और अभी भी वे अपनी शर्तों पर भारत में रह रहे हैं { ध्यान दे दीजिये
-कहना चाहिए यह भी हिंदुत्व का एक हिस्सा है }, और अपनी ही शर्तों पर रख रहे हैं हिन्दुओं को पाकिस्तान में
|
घटना
प्राचीन या मनगढ़ंत तो नहीं है कि वहाँ लड़कियों को ज़बरन मुसलमान बना कर
दूल्हनें या ? बनायीं जा रही हैं ?
इधर यहाँ हम हैं कि
पैदल सेना , घुड़सवार , गजवाहिनी , जल / वायु सेना सब
आपस में लड़ रही है , और एक दूसरे को क्षतिग्रस्त कर रहे हैं | खुशी मनाइए कि आप शीघ्र ही अपने चिरद्रोही-चिरशत्रु
ब्राह्मण से छुटकारा पाने जा रहे हैं | ब्राह्मणवाद नया
चोला , नया रूप रंग धारण करके आपकी सेवा में आपका
उद्धार करने हेतु पधार रहा है | स्वागत कीजिये | यह बिलकुल मत
देखिये न चिंता कीजिये ,कि जो कहता है मेरा
मज़हब सर्वश्रेष्ठ , मेरा अल्लाह सर्वशक्तिमान , और हम उसके बन्दे मुसलमान , वह निश्चयतः ब्राह्मण ही है और ब्राह्मण के आलावा कुछ नहीं
है |
ब्राह्मणवाद यही तो कहता है ? [नहीं अब इसे "था" कहना अधिक उत्तम होगा] | कि तुम नीच हो और हम उत्तम ? यह भी न गौर कीजिये कि मुसलमान भी जन्म से ही मुसलमान होता
है |
गाड पार्टिकल उनका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा | बहरहाल
रात ज्यादा हो गयी
- अब शब्बखैर , यानी - -
---------
और वैशेषिक ही
क्यों , सांख्य , योग , मीमांसा , न्याय {शायद कुछ अन्य भी , प्रमुख नौ दर्शनों में लगभग छः दर्शन | बौद्ध -जैन भी एक तरह से नास्तिक दर्शन ही हैं } तब भी नास्तिक दर्शन थे , जिनकी हम दुहाई दिया करते थे , लेकिन कितनों ने नास्तिकता स्वीकार की ? इस्लाम पर इस अद्भुत खोज का क्या कोई प्रभाव प्रत्याशित है ? जिसका जो मन होता है मानता था , मानता है , मानता रहेगा | इसलिए हम बहुत दिनों से विज्ञानंवाद का नाम न लेकर "
मान्यतावाद " का सहारा लेने लगे हैं | " ईश्वर है या नहीं
है ईश्वर को मत मानो " जैसे आह्वान और अविरल प्रचार का | समझाने से नहीं मानता मनुष्य , उसे आदेश चाहिए , अन्धविश्वास चाहिए | हमारे [कम से कम मेरे] लिए तो ईश्वर का न होना एक
अन्धविश्वास के सामान है | और मैं
दृढ़तापूर्वक सुकून से हूँ |
और क्या हम भी जो
बड़े वैज्ञानिक मिजाजी बनते हैं , ईमानदारी से कह
सकते हैं कि हम अंधविश्वासों से मुक्त हो चुके है ? कोई दकियानूसी हम में शेष नहीं है ? कम से कम इतना तो स्वीकार कर ही लें कि हम अपनी वैज्ञानिक
समझ को पूर्णतः जीवन में उतार नहीं पा रहे हैं ,उसे समाज में या व्यक्तिगत तौर पर ही व्यवहार में परिवर्तित
नहीं कर पा रहे हैं ? यदि इतना मान लें तो अंधविश्वासों, विज्ञान - असम्मत / विरुद्ध मान्यताओं को भी एक सार्थक , पोजिटिव मोड़ दे सकते हैं | और प्रसन्नता पूर्वक ऐसे विचार और काम कर सकते हैं जिससे
समाज तो प्रभावित होगा ही |
--------
कुछ कहना है =
* जब हम ईश्वर को
प्रणाम करते हैं तो इस बहाने उन तमाम मनुष्यों के आगे नतमस्तक होते हैं जो उसे
मानते हैं | हम ईश्वर को नहीं , मनुष्य को प्रणाम करते हैं |
* जो जीवन को भारी
बनाते हैं , वे दुनिया का बोझ बढ़ाते हैं |
* हर बात में गुलामी
ढूँढना भी तो एक गुलाम मानसिकता है |
* राजनेताओं से ही
नहीं , अब तो मैं मेरे पास आने वाले 'समाजसेवकों' से भी मांगना चाहता
हूँ उनकी संपत्ति का विवरण |
मुक्तभाव सबको
अपनाओ , अपना हो या कोई गैर ;
लेकिन,कैसे कर पाओगे निजी स्वार्थ से उठे बगैर ?
-----------
जब सभी पार्टियाँ
एक जैसी बताई जा रही हैं ,तो भाजपा के प्रति fb पर एक खास खुन्नस क्यों दिखाई पड़ रही है ? ऐसा लगता है जैसे भाजपा विरोध किये जाने का फैसला पहले ही
ले लिया जाता है | कभी इस बात पर एतराज़ कि नेता तय क्यों
नहीं है , नेता तय हो जाय तो एतराज़ कि ऐसा पहले
क्यों कर लिया गया ? यह तो उचित बात नहीं है | भाई अपनी बात पर कायम रहिये और उसी नज़रिए से सबको परखिये | यह एक अकादमीय और मौलिक तार्किक प्रश्न है | भाजपा के प्रति मेरी व्यक्तिगत नापसंदगी के कारण कुछ और हैं
और गहरे हैं , पर कभी तो न्यायवादी भाषा में बोलना तो
पड़ता है |
मैंने तो यूँ ही एक
निर्लिप्त -निर्विकार observation लिख दिया जैसा मुझे
दूर ,
एक ऊँचाई से दिखा | इसे आप अपनी तरह से लें , मेरा कोई दुराग्रह नहीं है | 11/7/12
====
वैसे मैंने दलित
लेखकों को पान्चजन्य [ यानि विरोधी विचार] पढ़ते देखा है | फिर कभी कभी व्यक्ति को चड्ढी पगड़ी उतार कर पोखर में नहाना
पड़ता है ,अपने से बाहर निकल कर देश बनना होता है | भारत भूषण अग्रवाल (स्व) की एक कविता याद आती है = "
मैं हूँ मेरा देश " , वाल्टर स्काट की = 'Doubly dying
, shall go डाउन - - ' , और एक बाल कविता " यही देश का हाल रहा तो मुझे
राष्ट्रपति बनना होगा " | और कुलदीप नायर का
कथन " मेरे लिए सबसे पहले मेरा देश " इत्यादि | मत पढ़िये मन नहीं है तो | मन के विरुद्ध कुछ नहीं करना चाहिए | मेरे वे अपशब्द भी पठनीय नहीं हैं | उन्हें मैंने गुस्से में लिखा है | उसे इसीलिये शायद किसी ने पढ़ा नहीं , पढ़ने की ज़रुरत भी नहीं है | औपचारिक like और बात है | मैं तो कभी कभी त्याज्य / हेय ग्रंथों का भी सहारा लेता हूँ
?=
" होइहैं सोई जो राम रचि राखा"
------
जापानी छंद =
१ - ईश्वर नहीं
मनुष्य की बातें
तो मानिए ही |
२ - सभी कहते
अपने कथन को
अकाट्य सत्य |
३ - नहीं मानता
जो कोई मजबूरी
वह देवता |
४ - जितना भी हूँ
बस उतना ही हूँ
ज्यादा न कहो |
५ - जो हो रहा है
रोक न पाओ तो
उसे होने दो |
६ - ज़िन्दगी का ही
अभिलेखागार है
मेरा लेखन |
७ - हाथ हिलाते
बच्चे झूठ मूठ ही
नाच हो जाता |
८ - स्वर्ग न खोजो
कीचड में ही रहो
तुम कमल |
९ - सुंदर है जी
आँखों में झाँको तो
गहराई से |
१० - हिप जो है
तो
गायरेट होगा ही
नाचो या चलो |
जापानी छंद में हिंदी कवितायेँ =
१ - व्यंग्य लेखन
व्यंग्य ही है
जीवन
हम सबका |
२ - लेटे
रहोगे
तो नींद आयेगी ही
बिस्तर छोड़ो |
३ - नहीं मानेंगे
जिन्हें नहीं
मानना
जिन्हें मानना
उन्हें कहना नहीं
पड़ता कभी |
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