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७ - जब हम डंका बजा देते हैं तब हम प्रसिद्ध तो हो जाते हैं , पर हमारा काम लम्बे समय तक खिंच नहीं पाता |
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६ - मैं क्यों समझाऊँ ? अक्ल आएगी तब स्वयं समझ जायेंगे |
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५ - अब गाँव क्या जाएँ ! वहाँ मेरा कोई सपना नहीं रहता |
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*४ - मैंने ईश्वर से पूछा - आखिर दुःख की कोई सीमा है जो तुम मुझे दे रहे हो ?
उसने कहा - कोई सीमा नहीं है | जितना तुम दुःख से दुखी होते रहोगे उतना मैं उसे तुम्हे देता रहूँगा |
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३ - * न तुम समझ पाओगे न मै समझा पाऊंगा ..
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२ - * कपडे बहुत मजबूत नहीं होने चाहिए . उन्हें फटने भी चाहिए जिसे सिलकर फिर पहना जा सके . जिससे होली दिवाली ,ईद , दशहरा में नए कपडे बनवाने कि ललक बनी रहे और बनने पर ख़ुशी हो . न बन सकने पर मलाल और नाराज़गी भी जिंदगी का हिस्सा हो . .
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१ *क्या करें ! कुछ भी तो बराबर नहीं हो सका मुझसे , न खेत -खलिहान , न सम्बन्ध |
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