मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

जैसा देश वैसा भेष

1. आज सुबह जो ब्लॉग लिखा उसका मंतव्य बेहतर तरीके से एक कहावत के ज़रिये व्यक्त किया जा सकता है :-जैसा देश वैसा भेष | और वेश की  गिनती में धार्मिक धारणा भी शामिल है .है न धारयति इति धर्म : !
!२:अच्छा लगा मेरी बात जैसी बात लोग कह रहें है |आज जनसत्ता में संदीप जोशी ने महात्मा गाँधी के हवाले से निर्णय को उचित बताया है |कल मैंने इस विषय पर लम्बा आलेख लिखा था जो ब्लॉग भेजने सम्बन्धी मेरी नाजानकारी के कारण स्क्रीन से विलुप्त   हो गयी |अब उसे दिमाग से याद करके दुबारा लिखने की ज़रुरत नहीं है |वे बातें अब खूब आ रही है |
३=[कविता ]बहुत बड़ी चीज़ है ,कवि होना ,लेकिन हाँ ,इंकार कैसे करूँ, कविता करता तो हूँ ,मैं भी |
४=अच्छा ,कवि कहने में मुझे संकोच है तो मैं अपने आप को कवितावादी कहूं तो यह ज्यादा सच होगा ,मेरी राजनीति के सन्दर्भ में भी |i.e. poetic पोलिटिक्स |
5=[vichar]  कोई सुन्दर  है " कहूँ ,तो किसी को असुंदर कहना पड़ेगा ,जो मुझे मान्य नहीं है |इसलिए "सब सुन्दर है "कहता हूँ | कौन जाने आगे सब सत्य है भी कहना पड़े |
६=जो विचारक मानवाधिकारवादी जानवरों ,पशु -पक्षियों 'कीड़ो -मकोडो ,पेड़ -पोधो से भी प्यार करते है ,उनसे सहानुभूति रखना सिखाते है ,पता नहीं कैसे वे हिंदुस्तान में हिन्दुओं की मानसिकता और उसकी पीड़ा समझने में असमर्थ हो जाते है |ऐसा वे अनजाने में कर जाते है या जान -बूझ कर छोड़ जाते  है ,यह पता करना मुश्किल है |इसे थोडा विवरण  में समझने की जरूरत है जिसे मैं

विस्तार देना नहीं चाहता |
७=मैं सोच रहा हूँ की भारत में पारसी समुदाय की तरक्की के क्या कारण हैं ?पाता हूँ की "क्योंकि वे साम्प्रदायिक पचड़ों में नहीं पड़ते |हिन्दू -मुस्लिम -सिख -ईसाई के बीच उनका नाम कहीं नहीं आता और वे इन सबसे आगे बढ़ते जाते है |
८="कला ,जीवन के लिए " आप भी जानते होंगे |" कला ,कला के लिए "मैं भी जानता हूँ |लेकिन इधर कला का एक और अभिप्राय  मेरी समझ में आया है |वह है -"कला ,कुर्सी के लिए "|है अजीब बात ,पर है |देखिये किस तरह कलमकार ,फ़िल्मकार ,कवि ,पत्रकार ,वगैरह अपनी कला द्वारा अर्जित ख्याति का इस्तेमाल राजनीति में जाने के लिए करते हैं |क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं है की उनके  कला -सृजन का  असली उद्देश्य सत्ता का गलियारा था |

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