शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

मन में आता है

१० -
९ - इतनी विशाल पृथ्वी को देखते हुए भी जब कुछ लोग अपने को महान कहते हैं तो आश्चर्य होता है |

८ - कई बार मन में आता है कि इस आदमी या औरत से घृणा करूँ | फिर ख्याल आता है कि हमें तो सारे
मनुष्यों से प्रेम करना है |

7*  लोग अपने पास इतने कपडे रखते हैं ,जब की स्थिति यह है कि एक जींस में पूरा जीवन पार हो सकता है |

6* Like government,parliament house ,buildings,rest houses,like T.V.,fridge,furniture , car ,aeroplane, nuclear armament , ladies' ornaments, like dictionary,language ,literature , art paintings, songs ,music and dance etc.god , godesses religion and cultures are also important human discoveries and creations . They too are supposed to  be used carefully for the betterment of humankind .  #

5* न कोई terrorist  है ,न कोई fauzi  | सब अपने -अपने मालिकों के गुलाम हैं |   #

4* T.V. वाले विज्ञापनों से छुट्टी पायें तब न सीरियलों में कुछ सीरिअस  दिखाएँ  !

3* जबसे दिल की  बीमारियाँ बढ़ी हैं , हर साधारण डोक्टर हार्ट स्पेशलिस्ट हो गया है |

2* कहाँ तो थोरो [ जिनसे हमारे गाँधी जी बहुत प्रभावित थे ] का कहना है कि सबसे अच्छा शासन वह है जो
सबसे कम शासन करे,अर्थात शासन जितना दूर हो उतना ही अच्छा  | और कहाँ यह सरकार शासन को हमारे नज़दीक से नज़दीक हमारे गाँव -परिवारतक लाती जा रही है | कहते हैं यह सब राजीव गाँधी की
 देन है , और हमारे लोकतंत्रवादी , पढ़े -लिखे बुद्धिजीवी इससे अत्यंत प्रसन्न और उत्साहित हैं कि सत्ता का विकेंद्रीकरण हो रहा है |
     रोना यह है कि गाँधी बाबा भी यदि जिंदा होते तो प्रसन्न होते | फिर तो भुगतिए गावों में सत्ता का , और सत्ता के चलते गावों का जो हाल हो रहा है ! प्रत्यक्षं किं प्रमाणं  | अब मेरे अकेले के बोलने से क्या होता है |
 मैं तो शुरू से कहता था कि गावों को सत्ता का खून मत चटाओ, इसे भ्रष्ट न करो | अब भी इतना तो फिर
 भी कहता हूँ कि ग्राम प्रधानों को विकास के लिए पैसा मत दो | उनसे राय ले लो ,पर निर्माण कार्य केंद्र /
राज्य सत्ता की एजेंसियों / विभागों से उनके मापदंडों  से कराओ |

1*    यदि  सिद्धांत और व्यवहार की बात की ही जाए तो जिस प्रकार एक रूपया गाँव तक
पहुँचते-पहुँचते बीस -पचीस पैसा रह जाता है , उस तर्ज़ पर सत्ता को तो शून्य होकर पहुंचना 
चाहिए | तर्क कि बात है या नहीं ? 

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